Thursday, July 14, 2016

कारपोरेटस के लिए राजनीति और आदिवासियों -मूलवासियों किसानों के खिलाफ कुटनीति

झारखंड कैबिनॅट का फेसला-04-05-2016
सीएनटी, एसपीटी एक्ट में संशोधन का फेसला-खत्म हुआ आदिवासी जमीन के कंपनसेशन का प्रावधान-
स्रकार ने सीएनटी और एसपीटी एक्ट में संषोधन करने का फैसला लिया है। सीएनटी एक्ट की धारा 21, 49, 71 और एसपीटी की धारा 13 में संशोधन के टीएसी के प्रस्ताव को मंजूर कर लिया है। इससे आदिवासियों की जमीन अब मुआवजे के माध्यम से गैर आदिवासियों को हस्तांतरित नहीं की जा सकेगी।
सीएनटी एक्ट की धारा 71 ए की उपधारा-2 को समाप्त करने का फेसला किया। इससे अब कंपनसेशन  (मुआवजा) के सहारे आरिवासी जमीन का हस्तांतत्रण और गैर आदिवासी को नहीं किया जा सकेगा। हालांकि आधारभूत संरचना के लिए उनकी जमीन ली जा सकेगी। सीएनटी और एसपीटी एक्ट के अंतर्गत आनेवाली जमीन की प्रकृति बदलने का अधिकार भी भू-स्वामी को मिलेगा। मंगलवार की हुई कैबिनेट की बैठक में इसका फैसला किया गया।
एसएआर कोर्ट में दायर होंगें आदिवासी जमीन वानसी के मुकदमें-सीएनटी एक्ट की धारा 71 ए की उपधारा-2 को समाप्त करने के बाद भी एसएआर की अदालते चलेगीं। एसएआर कोर्ट में आदिवासियों की जमीन वापसी से संबंधित मुकदमें दायर किये जाऐंगे। कैबिनेट ने आदिवासी जमीन की वापसी से संबंधित मुकदमों के निबटाने के लिए छह माह का समय निर्धारित किया है। पहले इसके लिए छह माह से दो वर्ष तक का समय तय था।
किस -किस धारा में संशोधन
सीएनटी एक्ट की धारा 49
क्या था पहले-इस धारा के तहत सरकार की ओर से सिर्फ उद्योग और खनन कार्यों के लिए जमीन ली जा सकती थी।
अब क्या होगा-अब इससे संषोधन करते हुए आधारभूत संरचना रेल रपियोजना, काॅलेज, ट्रांसमिशन लाइन, आदि कार्यों को जोड़ दिया गया है। अर्थात सरकार अब विकास कार्योे के लिए भी जमीन ले सकेगी। जमीन का उपयोग पांच साल के अंदर नहीं करने पर मालिक को वापस कर दी जायेगी। साथ ही उसे दी गयी मुआवजा की रकम वापस नहीं ली जायेगी।
सीएनटी एक्ट की धारा 71 ए(2)
क्या था पहले-इस धारा के तहत एसएआर कोर्ट से कंपनसेशन के सहारे आदिवासियों की जमीन गैर आदिवासियों को हस्तांत्रित की जाती थी
अब क्या होगा-इस धारा को समाप्त कर देने से कंपनसेषन के सहारे आदिवासियों की जमीन गैर आदिवासियों को हस्तांत्रित नहीं की जा सकेगी।
सीएनटी एक्ट की धारा 21 और एसपीटी एक्ट की धारा 13-
क्या था पहले-मालिक को जमीन की प्रकृति बदलने का अधिकार नहीं था अर्थात जमीन की प्रकृति अगर कृषि है तो मालिक उसका इस्तेमाल कृषि कार्य के अलावा किसी अन्य कार्य में नहीं कर सकता था।
अब क्या होगा-कैबिनेट ने इन धाराओं में संषोधन करते हुए मालिक को जमीन की प्रकृति बदने का अधिकार देने कर निर्णय लिया है। इससे अब कोई जमीन मालिक अपनी कृषि योग्य जमीन का व्यवसायिक उपयोग कर सकेगा।
राष्ट्रपति को भेजा जायेगा प्रस्ताव-सरकार ने ट्राइबल एंडवाइजरी कांउसिल के प्रस्ताव पर सीएनटी और एसपीटी में संषोधन कर निर्णय लिया है इस फेसले को विधेयक के रूप में विधानसभा से पारित होने के बाद रवजयपाल के माध्यम से इसे राष्टपति को सहमति के बाद वह कानून का रूप लेगा

कारपोरेटस के लिए राजनीति और आदिवासियों -मूलवासियों  किसानों के खिलाफ कुटनीति

एक तरफ रघुवर दास की सरकार आदिवासियों के हितों की रक्षा करने की बात करती है ,दूसरी ओर आदिवासियों जल-जंगल-जमीन सहित राज्य के एक एक इंज जमीन और एक एक बुंद पानी को मुनाफा कमाने के लिए कारपोरेट घरानों के हाथों सौंप रही है।
सीएनटी की धारा (71) ए में जो कमपनसेसन का प्राधान था को बंद कर दिया जा रहा है। सरकार की दलील है कि इसके बाद अब अदिवासियों की जमीन गैर आदिवासी गैर कानून तरीके से कब्जा नहीं पाऐंगे। साथ में यह भी कहते हैं-कंपनषेसन बंद करने के बाद भी एसए आर कोर्ट चलता रहेगा।
विदित हो कि एसएओर कोर्ट का प्रावधान -आदिवासियों की जमीन गैर आदिवासियों द्वारा गैर कानूनी तरीके से कब्जा किया गया है की वापसी के लिए किया गया था। सिर्फ राजधानी में इस तरह के मामले अभी भी 3000 के करीब है जो पेंडिग पडा हुआ है-सरकार के आदेष के बाद भी अधिकारी जमीन वापिस करने में असमर्थ रहे हैं। कानूनी प्रावधान के बावजूद यह हाल है। तब सवाल है कि कंमपनषेसन का प्रावधान समाप्त करने के बाद आखिर एसएओर कोर्ट चलाने की क्या औचित्य है। रघुवर सरकार को इसको स्पष्ट करना चाहिए।
दूसरा अहम सवाल -जिस जमीन पर विवाद चल रहा है-यह विचाराधीन है एसएओर कोर्ट में, यही नहीं कुछ केस का फेसला हो चुका है-जमीन वापिस करने का आदेश  दिया जा चुका है-लेकिन वापस नहीं किया गया है, इसका क्या होग़। सीएनटी एक्ट की

धारा 49
क्या था पहले-इस धारा के तहत सरकार की ओर से सिर्फ उद्योग और खनन कार्यों के लिए जमीन ली जा सकती थी।
अब क्या होगा-अब इससे संषोधन करते हुए आधारभूत संरचना रेल रपियोजना, काॅलेज, ट्रांसमिषन लाइन, आदि कार्यों को जोड़ दिया गया है। अर्थात सरकार अब -विकास कार्योे के लिए भी जमीन ले सकेगी। जमीन का उपयोग पांच साल के अंदर नहीं करने पर मालिक को वापस कर दी जायेगी। साथ ही उसे दी गयी मुआवजा की रकम वापस नहीं ली-सरकार धारा 49 में जिस संषोधन की वकालत कर रही है-इस पर भी चिंतण करने की जरूरत है। पहले इस धारा के तहत सिर्फ उद्योग लगाने और खनन कार्यों के लिए ही जमीन लेने का प्रावधान था।
गौर करने की बात है-उपरोक्त कार्यो के लिए केवल जमीन अधिग्रहण किया जा सकता था-बावजूद आजादी के बाद आज तक तक आंकड़ा कहता है-विभिन्न विकास कार्यों के नाम पर राज्य का लगभग दो लाख से अधिक एकड जंगल-जमीन अधिग्रहण किया जा चुका है। इसे करीब एक करोड़ से अधिक किसान, आदिवासी, मूलवासी, मेहनतकश , मजदूर अपने जीविका और रहवास से उजड़ -विस्थापित हो चुके हैं।
अब धारा 49 में संशोधन धन कर विकास के नाम पर जमीन-जंगल अधिग्रहण करने के दायरा को विस्तार किया जा रहा है। अब जमीन जंगल लेने की खुली छूट कारपोरेट घरानों सहित सभी निजी संस्थानों को दिया जा रहा है। सवाल है-जब इस तरह की खुली छूट दी जाएगी-तब यहां के आदिवासियों, किसानों , मूलवासियों के जमीन-जंगल संबंधित अधिकारों का क्या होगा। परिणाम भयानक होगा-जितना विस्थापन आजादी के इन पैंसठ सालों में हुआ है-उससे दस गुणा विस्थापन सिर्फ दस साल में होगा।
सरकार का दलील है कि-धारा 71 के ए -2 को समाप्त करने से गैर आदिवासियों द्वारा गैर कानूनी से कब्जा करना बंद हो जाएगा। लेकिन इसका विपरित असर पडेगा। एसएआर कोर्ट में मामले फंस जाने के डर से पहुंच नहीं रखने वाले इस विवाद से बचना चाहते थे। लेकिन अब इस डर को ही खत्म कर दिया जा रहा है। सीएनटी ा
एक्ट की धारा 21 और एसपीटी एक्ट की धारा 13-
क्या था पहले-मालिक को जमीन की प्रकृति बदलने का अधिकार नहीं था अर्थात जमीन की प्रकृति अगर कृषि है तो मालिक उसका इस्तेमाल कृषि कार्य के अलावा किसी अन्य कार्य में नहीं कर सकता था।
अब क्या होगा-कैबिनेट ने इन धाराओं में संषोधन करते हुए मालिक को जमीन की प्रकृति बदने का अधिकार देने कर निर्णय लिया है। इससे अब कोई जमीन मालिक अपनी कृषि योग्य जमीन का व्यवसायिक उपयोग कर सकेगा।
धारा 21 और एसपीटी एक्ट की धारा 13 में संशोधन कर जमीन मालिकों को जिस अधिकार देने के बात सरकार कर रही है-पूरी तरह से आदिवासी समाज को गुमराह करने और पूंजिपतियों, कारपोरेटस को आसानी से उद्योग धंधो के लिए जमीन उपलब्ध करने की तैयारी है। क्योंकि जमीन की प्रकृति दलने का कानूनी प्रावधान था, इसीकारण कृषि कार्य में उपयोग होने वाला जमीन झारखंड में बचा हुआ है। इसी भूमिं की उपज से राज्य की सवा तीन करोड़ की जनता को अन्न -जल ग्रहण कर रही है। इसी कारण रियलस्टेट भी कृषि योग्य जमीन को आसानी से लूटने में असमर्थ रहे हैं।
रघुवर सरकार इन्हीं अड़चनों और दिक्कतों से समाप्त कर किसी भी संस्थानों को आसानी से और जल्दी से जल्दी जमीन उपलब्ध कराने के लिए जमीन का नेचर बदलने के अधिकार का दुहाई देकर सीएनटी एक्ट के धारा 21 और एसपीटी एक्ट के 13 को संषोधित कर रहा है।


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