Saturday, July 9, 2016

राज्यपाल-आदिवासी कल्याण मंत्री-आदिवासी विधानसभा अध्यक्ष-आदिवासी ग्रामीण विकास मंत्री-आदिवासी 28 विधायक आदिवासी-इन सभों के रहते क्या हो रहा हैं-यहां आप देख सकते हैं।

कल्याण विभाग की महत्वपूर्ण योजनाएं साल भर से लंबित-स्त्रोत प्रभात खबर 8 जुलाई 2016
झारंखड को आदिवासी राज्य के नाम से जाना जाता है-और यह सच्च भी है कि झारखंड अलग राज्य की मांग को लेकर आदिवासी-मूलवासियों ने लंम्बी लड़ाई लड़ी। इनके शहादत शहादत  के बाद ही अलग राज्य का दर्जा मिला है। अलग राज्य की लड़ाई सिर्फ 24 जिलों के भौगोलिक सीमा क्षेत्र के लिए नहीं था। परंतु झारंखड के जल-जंगल-जमीन, भाषा-संस्कृति और सामाजिक मूल्यों को संरक्षित और विकसित करने के लिए अपने गांव में अपना राज के मांग की लड़ाई थी। इसको स्वीकार करते हुए ही-आदिवासियों, मूलवासियों के जन-नायक शहीद बिरसा मुंडा के जन्म दिवस 15 नोवेम्बर को अलग राज्य का पुर्नगठन किया गया।
आज राज्य के आदिवासी-मूलवासी, दलितों, शोषितों  बंचितों तथा मेहनतकषों के अधिकारों का खुला हनन किया जा रहा है। दुर्भग्य है-यहां के आदिवासी नेताओं की, जिनको जनता ने चुन कर सत्ता में भेजा है, लेकिन कुर्सी पर बैठते ही, अपने समाज, गांव, अपनी धरती, अपने इतिहास को भूल जाता है। सिर्फ अपने परिवार और कुर्सी के लिए राजनीति करने लगता है।
आज राज्य में 28 आदिवासी विधायक हैं, जो आदिवासी आरक्षित सीट से चुन कर आये हैं। मूलवासी, दलित भी आरक्षित सीट से चुनकर आये हैं। राज व्यवस्था के कई महत्वपूर्ण पदों पर आदिवासी विराजमान हैं-
राज्यपाल-आदिवासी
कल्याण मंत्री-आदिवासी
विधानसभा अध्यक्ष-आदिवासी
ग्रामीण विकास मंत्री-आदिवासी
28 विधायक आदिवासी-इन सभों के रहते क्या हो रहा हैं-यहां आप देख सकते हैं।
कल्याण विभाग में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति संबंधित योजनाएं एक वर्ष से अधिक समय से लंबित हैं। खास बात यह है कि कल्याण मुत्री लुईस मरांडी ने इन आवेदनों को निबटाने के लिए पीत पत्र भी लिखा है। पर उनके आग्रह पर भी विचार नहीं किया गया। अनुसूचित जनजाति सहकारी विकास निगम (टीसीडीसी), अनुसूचित जाति सहकारी विकास निगम (एससीडीसी) और जनजातीय कल्याण आयुक्त कार्यालय से अप्रैल 2015 से लेकर सितंबर 2015 के बीच निकाली गयी इच्छा की अभिव्यक्ति (एक्सप्रेषन आॅफ इंटरेस्ट) पर अब तब फेसला नहीं लिया जा सका है। एससीडीसी के पदेन प्रबंध निदेषक स्वयं जनजातीय कल्याण आयुक्त हैं। विभागीय सचिव पदेन अ0 हैं। लेकिन कार्रवाई नहीं हुई।
अनुसूचित जाति ग्राम विकास योजना के आवेदन भी लंबित-
सरकार की तरफ से 22 अनुसूचित जाति ग्राम विकास योजना के तहत अप्रैल 2015 में आवेदन मंगाये गये थे। इसमें 174 स्वंयसेवी संस्थानों और कंपनियों ने आवेदन दिये थे। इसमें से 59 कंपनियों के आवेदनों पर विचार करते हुए उनके तकनीकी पक्ष के अनुरूप् आगे की कार्रवाई करनी थी। हांलांकि, अब तब इसमें अनिर्णय की स्थिति बनी हुई है।
339 एसटी गांवों का भी होना था विकास
राज्य के 339 एसटी गांवों (अनूसूचित जनजाति गांवो) के विकास के लिए मंगाये गये आवेदनें की भी स्थिति पूर्ववत बनी हुई है। यह आवेदन जनजातीय सहकारी विकास निगम की ओर सं मंगाये गये थे। सरकार की ओर से अक्टोबर 2015 में 32 स्वयंसेवी संस्थानों का अंतरिम रूप से चुनाव भी किया गया, पर उन्हें आज तक कार्य आंबटित नहीं किया। कहा गया कि इस योजना के लिए सरकार के पास फंड की कोई व्यवस्था नहीं है। बाद में यह दलील दी गयी कि अब एकटी ग्रामों का विकास मुख्यमंत्री अनुसूचित जनजाति ग्राम योजना के तहत किया जायेगा।
सुरक्षा से संबंधित निविदा भी लंबित
जनजातीय कल्याण आयुक्त की ओर से आमंत्रित आवासीय विद्यालयों की सुरक्षा से संबंधित निविदा भी 10 महीनों से लंबित है। इस निविदा के लिए तकनीकी और वितीय आवेदनों पर नौ जून 2016 को कल्याण सचिव की अध्यक्षता में गठित समिति की ओर से विचार किया गया था। आवेदनें पर विचार करने के बाद फ्रठलाइन एनसीआर और आंरियोन सिवयोर प्राईवेट लिमिटेड के आवेदन तकनीकी रूप से सफल पाये गये। पर अब तक आउटसोसिंग के जरिये सुरक्षाकर्मी, तृत्यीय और चतुथ्र्र वर्गीय कर्मी और रसोइया की नियुक्ति मामले पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गयी है।

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