Monday, July 11, 2016

बिरसा मुंडा के हाथ की हथकड़ी से युवाओं में नेगेटिव असर पड़ेगा यह तर्क गलत है

भारत की आजादी के लिए अंग्रेज हुकूमत के खिलाफ उलगुलान का बिगुल फूंकने वाले आदिवासियों के वीर नायक बिरसा मुंडा के हाथ की हथकड़ी खोलने का आदेश रघुवर सरकार ने दी है।सरकार ने तर्क दिया है कि बिरसा मुंडा के हाथ की हथकड़ी से युवा वर्ग में प्रतिकूल असर पड़ेगा।
यह भी कहा जा रहा है कि अब तो देश आजाद हो गया और झारखंड राज्य भी  अलग हो गया जो आदिवासी चाहते थे।
मुख्य मंत्री के इस कदम का कई आदिवासी संगठन ने स्वागत किया।
लेकिन मेरा मानना है कि बिरसा मुंडा के हाथ का हथकड़ीअदिवासियों के शहीदी संघर्ष के इतिहास का बोध कराता है।बिरसा मुंडा ने अंग्रेजों के खिलाफ सम्पूर्ण आदिवासी समाज को संगठित किया।समाज को समझौता विहीन नेतृत्व दिया।अभाव में रह कर भी अंग्रेजों के बंदूक के सामने घुटना टेकने नहीं सिखाया।
आज भी भारत गुलाम ही है।अंग्रेजों के समय में देश सिर्फ एक ईस्ट इंडिया कंपनी का ही गुलाम था।लेकिन आज हमारा  झारखंड और भारत सैंकड़ों कंपनियों के गुलाब हो गये।हम क्या खायेंगे,क्या पीयेंगे,क्या पहनेंगे,कहां रहना चाहिए सब कंपनी वाले तय कर रहे है।बिरसा मुण्डा के संघर्ष के खून से लिखा सीएनटी एक्ट,सिद्ध कानहू के हूल के आत्मा से लिखा एसपीटी एक्ट में संशोधन कर आदिवासियों मूलवासियों के अधिकारों का दमन किया जा रहा है।
तब यह महसूस करना कि ,बिरसा मुंडा के हाथ की हथकड़ी हमें गुलाम महसूस करता है, यह युवाओं में नेगेटिव असर नहीं,तर्कसंगत नहीं है।

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