Tuesday, July 19, 2016

Barish ka maousam ----

15-सरकारी जमीन, परती जमीन, जंगल-झाड़ी जमीन, गैर मजरूआ आम, खास जमीन को स्थानीय ग्राम सभा, बेघर वालों, गरीबों, बीपलएल परिवार तथा विस्थापित परिवारों को आबंटित किया जाए--किसी बड़े पूजिंपति, कारपोरेट या सक्षम को नहीं




17 Dec. 2015 ko Rajpal Smt. Dropadi Murmuji ne 5th Sechudule Me Bikash Yojnaon ka Pravaw per Bichar Bimarash ke liye Meeting organized ki thi, is meeting me maine in sawalon ko rakhi...
आदिवासी सामाज

देश जब अेग्रेज सम्रज्यवाद के गुलामी जंजीर से जकड़ा हुआ था -तब देश को अंग्रेज हुकूमत से आजाद करने के लिए झारखंड के आदिवासी -जनजाति व अनुसूचित जाति समुदाय ने शहादती संघर्ष कर स्वतत्रता संग्राम को मुकाम तक पहुंचाने का काम किया। शहीद सिद्वू-कान्हू, ंिसदराय-बिंदराय, जतरा टाना  भगत, बीर बिरसा मुंडा के नेतृत्व में हमारे गांव में हमारा राज-याने जल-जंगल-जमीन पर अपना परंपरागत अधिकार बरकरार रखने, गांव-समाज को पर्यावरणीय मूल्यों के साथ विकसित करनेे, अपने क्षेत्र में में अपना प्रशासनिक व्यवस्था पुर्नस्थापित करने, कर अपना भाषा-संस्कृति के साथ संचालित-नियंत्रित एवं विकसित करने का सपना था।
आजाद देश के राजनीतिज्ञों, बुधीजीवियों, एवं संविधान निर्माताओं ने यह अनुभव किया कि-देश का विकास, शांति-व्यवस्था एक तरह के कानून से संभव नहीं हैं-इसीलिए देश में दो तरह के कानून बनाये गये। एक सामान्य कानून जो सामान्य क्षेत्र के लिए दूसरा विशेष कानून जो विशेष क्षेत्र के लिए बनाया गया। प्रकृतिकमूलक आदिवासी बहुल एरिया को विशेष क्षेत्र में रखा गया। इन क्षेत्रों पांचवी अनुसूचि तथा छठी अनुसूचि में बांटा गया।
इसी अनुसूचि क्षेत्र में छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम, संताल परगना अधिनियम और पेसा कानून भी है। ये सभी कानून आदिवासी, मूलवासी, दलित, मच्छूवरा सहित 33 आदिम जनजाति समुदायों के अधिकारों रक्षा के लिए है।
लेकिन- हर स्तर पर इन कानूनों को वयलेशन-हनन किया गया
देश के विकास का इतिहास गवाह है-जबतक आदिवासी समाज अपना जल-जंगल-जमीन के साथ जुड़ा रहता है-तबतक ही वह आदिवासी अस्तित्व के साथ जिंदा रह सकता है। आदिवासी सामाज को अपने धरोहर जल-जंगल-जमीन से जैसे ही अलग करेगें-पानी से मच्छली को बाहर निकालते ही तड़प तड़पकर दम तोड़ देता है-आदिवासी सामाज भी इसी तरह अपनी धरोहर से अलग होते ही स्वतः दम तोड़ देता है।
विकास वनाम विस्थापन
अधिग्रहीत जमीन-एकड़ में---
1-एचईसी हटिया-9500 एकड़
2-बोकारो स्टील प्लांट-34227 एकड़
3-दमोदर घाटी निगम-2,88,874
4-आदित्यपुर औधोकि क्षेत्र-34,432
5-सुर्वणरेखा परियोजना-85,000
6-खनन के कारण--लाखों एकड़
7-शहरीकरण के द्वारा-लाखों एकड़-कोई हिसाब नहीं
विस्थापित आबादी-80 लाख से ज्यादा

आदिवासी -मूलवासी किसान, जनजाति, अनुसूचित जाति- समुदाय का सामाजिक, संस्कृतिक, आर्थिक, एतिहासिक मूल्य प्रकृति-जल-जंगल-जमीन-नदी-पहाड पर ही टिका हुआ है। इसे उजड़ते ही सबकुछ नष्ट हो जाता है।
विस्थापितों पर सामाजिक, राजनीतिक, संस्कृतिक, आर्थिक  प्रतिकुल प्रभाव--सामुहिकता टुटा
सामाजिक मूल्य खत्म हुआ
भाषा-संस्कृति खत्म हुआ
इतिहास खत्म हुआ
पहचान खत्म हुआ
आर्थिक स्त्रोत/आधार खत्म हुआ
जैविक संपदा खत्म हुआ
जलस्त्रोत प्रदूषित हो गया
जमीन मालिक जमीन विहीन हो गये
बंधुआ मजदूर बन गये
महिलाएं -रेजा, और जूठन धोने वाली आया बन गयीं
युवातियां यौन शोषन और हर स्तर पर हिंसा का शिकार बनी
भारी संख्या में विस्थापित राज्य से

आदिवासी आबादी अल्पसंख्यक होता जा रहा है-बहरी आबादी आदिवासी समुदाय पर हावी होता जा रहा है।
राजनीतिक चेतना कमजोर हुआ
आज -राजनीति दिशा, विकास योजनाओं का नीति, के साथ अन्य अधिकारों को निर्धारित करने का आधार समुदाय के जनसंख्या को ही पैमाना माना जा रहा है।
उदा0-डीलिमिटेशन-1- मांग उठ रहा है-81 विधानसभा सीट में से 28 सीट आदिवासी समुदाय के लिए अरक्षित है-लेकिन 28 सीट को घटाकर 21 सीट कियी जा रहा है-दलील दिया जा रहा है-राज्य में सिर्फ आदिवासी आबादी मात्र 26 प्रतिशत ही रह गया है, इसलिए छोटी आबादी के लिए 28 सीट रिर्जब रखना सही नहीं है।
2-14 लोक सभा सीट में से 4 सीट आदिवासी सामाज के लिए अरक्षित है-इसमें से 2 सीटी घटाने की वाकालत की जा रही है-
3-आदिवासी बहुल क्षेत्र में आदिवासी सामाज अपने धरोहर के साथ, अपने परंपारिक सामाजिक मूल्यों और अधिकारों के साथ ही आदिवासी सामाज को विकास हो, इसके लिए भारतीय संविधान ने झारखंड के आदिवासी सामाज को 5वीं अनूसूची के तहत-सामाजिक, संस्कृतिक, आर्थिक, राजनीतिक , ग्राम सभा को विशेष अधिकार मिला है-इसको खत्म करने के लिए झारखंड़ हाई कोर्ट में पीआईएल किया गया है-तर्क दिया जा रहा है कि-राज्य के कई जिलों में आदिवासी आबादी 50 प्रतिशत से कम है-एैसे में उन जिलों को अनुसूचि क्षेत्र का दर्जा नहीं दिया जाए।
अगर 5वीं अनूसूचि को खत्म कर दिया जाएगा-तो उपरोक्त तमाम प्रतिकुल प्रभाव आदिवासी -मूलवासी समुदाय पर पडेगा, परिणमता-आने वाले समय में आदिवासी समुदाय के अस्तित्व बचे रहने की कल्पना नहीं की जा सकती है-
एसएआर कोर्ट-झारखंड में आदिवासी समुदाय के जमीन-जंगल को गैर कनूनी तरीके से छिने जाने को रोकने के लिए एसएआर कोर्ट है, जो आज सीएनटी एक्ट के तहत आदिवासी समुदाय के मालिकाना अधिकार को बनाये रखने का न्यूनतम व्यवस्था है, इससे भी यदि खत्म किया जाए-तब झारखंड के आदिवासी समुदाय के अधिकारों को संरक्षित करने का दावा बेईमानी होगा।
एसएआर कोर्ट को खत्म करने की जगह-जरूरत है, इस व्यवस्था या संस्थान में जिस भ्रष्टचार यह भ्रष्टव्यवस्था, लचर व्यवस्था के कारण आदिवासी ठके जा रहे हैं-इस भ्रष्टव्यवस्था को खत्म करने के साथ लचर व्यवस्था को न्यायपूर्ण बनाने की।
विस्थापितों को नौकरी-मुआवजा, घर अन्य सुविधाएं उपलब्ध करने का सरकारी वादा-
नौकरी में लेने की पद्वती-
क-जमीन लेने के पहले-सरकारी वादा-हर विस्थापित परिवार से एक व्यत्कि को
ख-विस्थापितों को पीढ़ी दर पीढ़ी नौकरी देने का वादा.......
वस्तविकता--
क-जो व्यत्कि सत्क्षार में योग्य साबित होता है उसको नौकरी, पदों की संख्यानुसार
ख-मुश्किल से परिवार के एक व्यत्कि को सिंर्फ एक बार.....इसके बाद सिर्फ माफिया या अफसरों के नाते-रिस्तदारों को ही ..........नौकरी
जमीन रहने के लिए----राज्य में जिस भी विकास योजनाओं से ग्रामीण विस्थापित हुए हैं---उन विस्थापितों को प्रत्येक परिवार को रहने के लिए सिर्फ --10 डिसमिल, 15 डिसमिल अधिकतम 20 डिसमिल जमीन दिया गया-
नोट-आज तक इस उक्त जमीन का कानूनी मलिकाना हक विस्थापितों को नहीं मिला--जमीन उनके नाम से रजिस्र्ट नहीं किया गया
परिणामता---विस्थापितों के जमीन का दबांग लोग उनके हाथ से छीन कर अपने कब्जा में ले रहे हैं, यह दूसरे को बेच रहे हैं।
विस्थापित परिवार--दूसरी बार सरकार के गैर जिम्मेदराना रवैया के कारण उनकी बची-खूची जिंदगी छिना जा रहा है
पांचवी अनुसूचि क्षेत्र में सरकार द्वारा-विभिन्न विकास योजनाओें के लिए एमओयू करना--आदिवासियों के अधिकार, ग्राम सभा के अधिकारों का वायलेशन-हनन है-
पांचवीं अनुसूचि क्षेत्र में भारतीय संविधान के ग्राम सभा को अधिकार दिया है-कि कहीं भी किसी भी विकास योजना के लिए उत्क ग्राम सभा क्षेत्र यह आदिवासी क्षेत्र में जमीन दिया जाए या ना दिया जाए ...यह तय करने का अधिकार ग्राम सभा को है-
लेकिन- जमीन अधिग्रण के संबंध में ग्राम सभा से न तो पूछा जाता है और न ही उनकी राय को मानी जाती है--
सरकार ग्राम सभा बुलाती भी है-तो रैयतो की राय नहीे मानी जाती है, सरकारी पक्ष उसी निर्णय को रैयतों को थोपते हैं-जो अधिकारी चाहते हैं-सिर्फ नाम के लिए ही बैठक होता है।
माइनर-मिनिरलस-पांचवी अनुसूचित में माइनर मिनिरलस पर ग्राम सभा को नियंत्रित-संचालित करने का अधिकार है-
लेकिन-अनुसूचि क्षेत्र के सभी बालू घाटों की निलामी की गयी
पत्थर-खदान यह के्रशर--सभी पत्थर के्रशरों या खदानों को लीजधारको को दी गयी


शहरीकारण का विकास के लिए अनुसूचि क्षेत्र के कृर्षि भूमिं को-गैर कृर्षि कार्य के लिए--
कृर्षि भूमिं का प्रकृति बदल कर हस्तंत्रित कर -भारी संख्या में आदिवासी-मूलवासी किसान समुदाय को विस्थापित किया जा रहा है
यह सीधे तौर पर आदिवासी मूलवासी, दलित, किसानों के अधिकारों का हनन है

कंपनियों के परियोजनाओं के लिए जमीन अधिग्रहण-
अब सरकार कंपनियों को स्वंय ही जमीन मालिकों से जमीन खरीदने के लिए छूट दे दी है-साम, दाम, दंड भेद अपना कर कंपनी के लठैत, बिचैलिया रैयतों से जमीन औने पौन कीमत पर जमीन जबरन हड़प रहे हैं।
ख-जो रैयत जमीन नहीं बेचना चाहता है, या नहीं छोड़ना चाहता है-उसके पुलिस बल प्रयोग कर, आतंक पैदाकर, छूठे मुकदमों में फंसा दिया जा रहा है
सभी तरफ से सरकार, प्रशासन कंपनीवाले मिलकर जमीन मालिकों के उपर दमन के कंपनी के लिए जमीन कब्जा दिला रहे हैं
इसका उदाहरण-बोकारो के चंदनकियारी प्रखंड में एल्केट्रो स्टील द्वारा जबरन जमीन अधिग्रण का विरोध करने वाले गांव भागाबांध को जा कर देखा जा सकता है
इस तरह के सौकड़ों उदाहरण राज्य भर में मिलेगा
गांव-आदिवासी गांव का मतलब -गांव सीमाना के भीतर एक-एक इंच जमीन, मिटी, गिटी, बालू, पत्थर, घांस-फूस, झाड- जंगल  मिलाकर  गांव बनता है-
इसी के आधार पर राज्य के आदिवासी बहुल गांवों का अपना परंपरिक मान्यता है। गांव घर को आबाद करने वाले आदिवासी समुदाय के पूर्वजों ने सामाजिक-पर्यावरणीय जीवनशैली के ताना बाना के आधार पर गांव बसाये हैं।
सामाज के बुजूगों ने अपने गांव सीमा को खेती-किसानी सामाजिक व्यवस्था के आधार पर व्यवस्थित किये हैं-
क-घरो को एक तरफ बासाया गया-
जहां हर जाति-धर्म समुदाय बास करता है
ख-खेत-टांड एक तरफ
गंाव सीमा भीतर के कुछ खेत-टांड को गैराही रखा, कुछ को परती रखे-ताकि गा्रमीण सामुदायिक उपयोग करे। जिसमें नदी-नाला, तालाब, कुंआ-आहर, सरना-मसना, खेल मैदान, खलिहान, अखड़ा बाजार, जतरा, मेला, चरागाह आदि के लिए।
इसी के आधार पर राज्य में आदिवासी सामाज का जमीन को आबाद करने का अपना परंपरिक व्यास्था है यही नहीं इसका अपना विशिष्ट इतिहास भी है।
रैयती जमीन
खूंटकटीदार मालिकाना
विलकिंगसन रूल क्षेत्र
गैर मजरूआ आम
गैर मजरूआ खास
परती
जंगल-झाड़ी भूंमि
नोट-1932 में जो सर्वे सेटेलमेंट हुआ-इस रिकोर्ड के आधार पर जमीन को उपरोक्त वर्गों में बांटा गया। उस समय लोगों की आबादी कम थी। कम परिवार था। 84 साल पहले जमीन को चिन्हित किया गया था-कि ये परती है, जंगल-झाडी भूमिं है।
84 वर्ष में जो भी परती-झारती था, अब वो आबाद हो चूका है। अब उस जमीन पर बढ़ी आबादी खेती-बारी कर रही है।
गैर मजरूआ आम भूंमि पर तो गांव के किसानों को पूरा अधिकार है ही, गैर मजरूआ खास जमीन पर भी ग्रामीणों का ही हक है।
आज सरकार विकास के नाम पर लैंड बैंक---बना कर आदिवासी समुदाय के हाथ से उनका जमीन-जंगल छीन कर उद्योपतियों को देने का योजना बना रही हैं-इसे आदिवासी समाज पूरी तरह कमजोर हो जाएगा
शिक्षा की स्थिति-
ग्रामीण इलाकों के स्कूल चाहे प्राइमरी हो, प्रथमिक हो, उच्चविद्यालय हो -सभी का पठन-पाठन स्थिति दयनीय है-गुणवता बिलकूल कमजोर है
सरकार का आदेश-8वी क्लास तो किसी फेल नहीं करना-सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों को पंगु बनाने की साजिश है                                
3-काॅलेजों की स्थिति-खूंटि काॅलेज
खूंटि बिरसा काॅलेज -8000 विद्यिर्थी हैं-इसमें 70 प्रतिशत महिलाएं हैं-इनके लिए 300 बेड का हाॅस्टल बना है क्लयाण विभाग से
ल्ेकिन इस हाॅस्टल में सीआरपीएफ को रखा गया--होस्टल के लिए -जरूरी उपस्कर विभाग आज तक नही दे सकी
स्वस्थ्य की स्थिति-25 हजार की आबदी में हर प्रखं डमें रेफरल अस्पताल है-लेकिन वहां न तो डाक्टर, न नर्स कोई नहीं रहता-
अस्पताल में-मलेरिया टेस्ट करने का मशीन नहीं
यहां तक कि हडी टुटने पर एक्स्रे मशीन भी नहीं

स्ूाचना अधिकार कानून---
सूचना कभी भी समय पर नहीं दिया जाता है
विकास योजनाओं पर आधिकारी फर्जी सूचना उपलब्ध कराते हैं

मनरेगा कानून का पालन नहीं--

100 दिनों का रोजगार मजदूरों को कभी नहीं मिलता
किये गये काम का मजदूरी-भी नहीं मिला, मजदूरों का पैसा-ठेकेदार-दलाल हडप लेते हैं
50 दिनों को -बेरोजगार कहीं लागू नहीं किया गया

आदिवासी उपयोजना--
1975-80 के दौरान अनुसूचित जाति उप योजना व आदिवासी उप-योजना आरंभ की गयी। इसका उद्वेश्य-अनुसूचित जातियो व जनजातियों की जनसंख्या में प्रतिशत के अनुपात में बजट का न्यायसंगत हिस्सा इन समुदयों की भलाई व विकास के सही प्राथमिकता के कार्यों के लिए उपलब्ध हो।
लेकिन-हर वर्ष इस राशि का 40-50 प्रतिशत ही खर्च होता है-बाकी सरेडर हो जाता है
इस राशि का उपयोग-दूसरे मदों-फलाई ओवर व हाईवे
जेल, बड़े पैमाने का मिठाई वितरण, पशुओं के  इंजैक्शन और कामनवैल्थ खेलों में खर्च होते रहे।

आज किसी भी योजना को सरकार मनमनी ढ़ग से लागू करती है-
चाहे परियोजनाओं के लिए जमीन अधिग्रहण का मामला हो
यह कोई भी विकास योजनाओं को लागू करने मामला हो,
सरकार हमेशा आम जनता को उत्पीडीत करने वाले तत्वों को संरक्षण देने का काम करते रही है
अगर आज जनता सरकार की मनमनी के खिलाफ, भष्ट व्यवस्था, या भ्रष्ट नेता, मंत्रियों के खिलाफ आवाज बुलंद करती है-तब उसे फोल्स केस में फंसा कर जेल भेज देती है
आज कल-तो आवाज उठाने वालों को नक्सली करार दिया जा रहा है-
आज-राज्य के जेलों में 600 बेकसुर आदिवासी जेल में बंद हैं

अनुसूचित क्षेत्रों में शांति-व्यवस्था और सुशासन को सुद्वढ़ करने का उपाय---
1-पांचवी अनूसूचि में प्रदत अधिकारों को अनुसूचि क्षेत्र में अक्षरशा पालन किया जाए
2-सीएनटी एक्ट के धारा 46 को कड़ाई से लागू किया जाए
3-पेसा कानून के तहत ग्राम सभाओं को प्रदत अधिकारों का अक्षरशा पालन हो
4-एसपीटी एक्ट का पालन हो
5-वन अधिकारी कानून के तहत ग्रामीणों को समुदायिक पटा तथा खेती के लिए मिनिमम 2 हेक्टेयर जमीन का पटा दिया जाए
6-आदिवासी उप-योजना का राशि -पूरी राशि हर बजट एलोकेशन का सही लाभकारी कार्यो में खर्च किया जाए
7-जनसूचना आयूक्त आदिवासी समुदाय से ही नियुक्त किया जाए
8-लगत या फर्जी सूचना देने वाले अधिकारियों पर कड़ाई से कार्रवाई की जाए
9-प्रत्येक प्रखंड स्तर पर अस्पतालों, प्रखडों, पंचायतों में स्थानीय कर्मचारियों का नियुक्ति किया जाए
10-भाषा-सस्कृति के आधार पर स्थाीनयता निति लागू किया जाए
11-भूमिं अधिग्रहण कानून-2013 को लागू किया जाए
12-भूमिं अधिग्रहण कानून-2013 के सेक्शन-24 के तहत-नगड़ी में गलत तरीके से अधिग्रहीत 150 एकड़ किसानों की जमीन-रैयतों को वापस किया जाए
13-नगड़ी में लाॅ यूनिवरसिटी के लिए जबरन किसानों ली गयी जमीन का कीमत वर्तमान बाजार मूल्य एक लाख प्रति डिसमिल के दर से भूगतान किया जाए-तथा विस्थापित रैयतों के परिवार को पीढ़ी दर पीढ़ी प्रत्येक परिवार से एक व्यक्ति को नौकरी दिया जाए
14-राज्य में-सभी परियोजनाओं से , पूर्व में हुए तमाम विस्थापितों को -पुर्नवासित तथा नौकरी दिया जाए। जब तब पूर्व के विस्थापितों को नौकरी और पुर्नवासित नहीं किया जाएगा-दूसरा विस्थापन नहीं किया जाए
15-सरकारी जमीन, परती जमीन, जंगल-झाड़ी जमीन, गैर मजरूआ आम, खास जमीन को स्थानीय ग्राम सभा, बेघर वालों, गरीबों, बीपलएल परिवार तथा विस्थापित परिवारों को आबंटित किया जाए--किसी बड़े पूजिंपति, कारपोरेट या सक्षम को नहीं
16-मुंडारी खूंटकटी व्यवस्था के साथ छेड-छाड़ नहीं किया जाए
17-हो आदिवासी ईलाके में विलकिंशन रूल सक्षम है-के साथ छेड-छाड नहीं हो
18-ग्रामीण क्षेत्रों से पलायन रोकने तथा रोजगार व्यवस्था के लिए-नदी-नालों में छोटे छोटे चेक डैम बना कर पानी किसानों के खेतो तक पहुचाया जाए
19-शिाक्ष तथा स्वस्थ्य का नीजिकरण नहीं किया जाए

                         दयामनी बरला
                         न्यू गार्डेन सिरोम टोली
                          क्लब रोड़ रांची-1
                        मे0 9431104386
                   





       

Thursday, July 14, 2016

कारपोरेटस के लिए राजनीति और आदिवासियों -मूलवासियों किसानों के खिलाफ कुटनीति

झारखंड कैबिनॅट का फेसला-04-05-2016
सीएनटी, एसपीटी एक्ट में संशोधन का फेसला-खत्म हुआ आदिवासी जमीन के कंपनसेशन का प्रावधान-
स्रकार ने सीएनटी और एसपीटी एक्ट में संषोधन करने का फैसला लिया है। सीएनटी एक्ट की धारा 21, 49, 71 और एसपीटी की धारा 13 में संशोधन के टीएसी के प्रस्ताव को मंजूर कर लिया है। इससे आदिवासियों की जमीन अब मुआवजे के माध्यम से गैर आदिवासियों को हस्तांतरित नहीं की जा सकेगी।
सीएनटी एक्ट की धारा 71 ए की उपधारा-2 को समाप्त करने का फेसला किया। इससे अब कंपनसेशन  (मुआवजा) के सहारे आरिवासी जमीन का हस्तांतत्रण और गैर आदिवासी को नहीं किया जा सकेगा। हालांकि आधारभूत संरचना के लिए उनकी जमीन ली जा सकेगी। सीएनटी और एसपीटी एक्ट के अंतर्गत आनेवाली जमीन की प्रकृति बदलने का अधिकार भी भू-स्वामी को मिलेगा। मंगलवार की हुई कैबिनेट की बैठक में इसका फैसला किया गया।
एसएआर कोर्ट में दायर होंगें आदिवासी जमीन वानसी के मुकदमें-सीएनटी एक्ट की धारा 71 ए की उपधारा-2 को समाप्त करने के बाद भी एसएआर की अदालते चलेगीं। एसएआर कोर्ट में आदिवासियों की जमीन वापसी से संबंधित मुकदमें दायर किये जाऐंगे। कैबिनेट ने आदिवासी जमीन की वापसी से संबंधित मुकदमों के निबटाने के लिए छह माह का समय निर्धारित किया है। पहले इसके लिए छह माह से दो वर्ष तक का समय तय था।
किस -किस धारा में संशोधन
सीएनटी एक्ट की धारा 49
क्या था पहले-इस धारा के तहत सरकार की ओर से सिर्फ उद्योग और खनन कार्यों के लिए जमीन ली जा सकती थी।
अब क्या होगा-अब इससे संषोधन करते हुए आधारभूत संरचना रेल रपियोजना, काॅलेज, ट्रांसमिशन लाइन, आदि कार्यों को जोड़ दिया गया है। अर्थात सरकार अब विकास कार्योे के लिए भी जमीन ले सकेगी। जमीन का उपयोग पांच साल के अंदर नहीं करने पर मालिक को वापस कर दी जायेगी। साथ ही उसे दी गयी मुआवजा की रकम वापस नहीं ली जायेगी।
सीएनटी एक्ट की धारा 71 ए(2)
क्या था पहले-इस धारा के तहत एसएआर कोर्ट से कंपनसेशन के सहारे आदिवासियों की जमीन गैर आदिवासियों को हस्तांत्रित की जाती थी
अब क्या होगा-इस धारा को समाप्त कर देने से कंपनसेषन के सहारे आदिवासियों की जमीन गैर आदिवासियों को हस्तांत्रित नहीं की जा सकेगी।
सीएनटी एक्ट की धारा 21 और एसपीटी एक्ट की धारा 13-
क्या था पहले-मालिक को जमीन की प्रकृति बदलने का अधिकार नहीं था अर्थात जमीन की प्रकृति अगर कृषि है तो मालिक उसका इस्तेमाल कृषि कार्य के अलावा किसी अन्य कार्य में नहीं कर सकता था।
अब क्या होगा-कैबिनेट ने इन धाराओं में संषोधन करते हुए मालिक को जमीन की प्रकृति बदने का अधिकार देने कर निर्णय लिया है। इससे अब कोई जमीन मालिक अपनी कृषि योग्य जमीन का व्यवसायिक उपयोग कर सकेगा।
राष्ट्रपति को भेजा जायेगा प्रस्ताव-सरकार ने ट्राइबल एंडवाइजरी कांउसिल के प्रस्ताव पर सीएनटी और एसपीटी में संषोधन कर निर्णय लिया है इस फेसले को विधेयक के रूप में विधानसभा से पारित होने के बाद रवजयपाल के माध्यम से इसे राष्टपति को सहमति के बाद वह कानून का रूप लेगा

कारपोरेटस के लिए राजनीति और आदिवासियों -मूलवासियों  किसानों के खिलाफ कुटनीति

एक तरफ रघुवर दास की सरकार आदिवासियों के हितों की रक्षा करने की बात करती है ,दूसरी ओर आदिवासियों जल-जंगल-जमीन सहित राज्य के एक एक इंज जमीन और एक एक बुंद पानी को मुनाफा कमाने के लिए कारपोरेट घरानों के हाथों सौंप रही है।
सीएनटी की धारा (71) ए में जो कमपनसेसन का प्राधान था को बंद कर दिया जा रहा है। सरकार की दलील है कि इसके बाद अब अदिवासियों की जमीन गैर आदिवासी गैर कानून तरीके से कब्जा नहीं पाऐंगे। साथ में यह भी कहते हैं-कंपनषेसन बंद करने के बाद भी एसए आर कोर्ट चलता रहेगा।
विदित हो कि एसएओर कोर्ट का प्रावधान -आदिवासियों की जमीन गैर आदिवासियों द्वारा गैर कानूनी तरीके से कब्जा किया गया है की वापसी के लिए किया गया था। सिर्फ राजधानी में इस तरह के मामले अभी भी 3000 के करीब है जो पेंडिग पडा हुआ है-सरकार के आदेष के बाद भी अधिकारी जमीन वापिस करने में असमर्थ रहे हैं। कानूनी प्रावधान के बावजूद यह हाल है। तब सवाल है कि कंमपनषेसन का प्रावधान समाप्त करने के बाद आखिर एसएओर कोर्ट चलाने की क्या औचित्य है। रघुवर सरकार को इसको स्पष्ट करना चाहिए।
दूसरा अहम सवाल -जिस जमीन पर विवाद चल रहा है-यह विचाराधीन है एसएओर कोर्ट में, यही नहीं कुछ केस का फेसला हो चुका है-जमीन वापिस करने का आदेश  दिया जा चुका है-लेकिन वापस नहीं किया गया है, इसका क्या होग़। सीएनटी एक्ट की

धारा 49
क्या था पहले-इस धारा के तहत सरकार की ओर से सिर्फ उद्योग और खनन कार्यों के लिए जमीन ली जा सकती थी।
अब क्या होगा-अब इससे संषोधन करते हुए आधारभूत संरचना रेल रपियोजना, काॅलेज, ट्रांसमिषन लाइन, आदि कार्यों को जोड़ दिया गया है। अर्थात सरकार अब -विकास कार्योे के लिए भी जमीन ले सकेगी। जमीन का उपयोग पांच साल के अंदर नहीं करने पर मालिक को वापस कर दी जायेगी। साथ ही उसे दी गयी मुआवजा की रकम वापस नहीं ली-सरकार धारा 49 में जिस संषोधन की वकालत कर रही है-इस पर भी चिंतण करने की जरूरत है। पहले इस धारा के तहत सिर्फ उद्योग लगाने और खनन कार्यों के लिए ही जमीन लेने का प्रावधान था।
गौर करने की बात है-उपरोक्त कार्यो के लिए केवल जमीन अधिग्रहण किया जा सकता था-बावजूद आजादी के बाद आज तक तक आंकड़ा कहता है-विभिन्न विकास कार्यों के नाम पर राज्य का लगभग दो लाख से अधिक एकड जंगल-जमीन अधिग्रहण किया जा चुका है। इसे करीब एक करोड़ से अधिक किसान, आदिवासी, मूलवासी, मेहनतकश , मजदूर अपने जीविका और रहवास से उजड़ -विस्थापित हो चुके हैं।
अब धारा 49 में संशोधन धन कर विकास के नाम पर जमीन-जंगल अधिग्रहण करने के दायरा को विस्तार किया जा रहा है। अब जमीन जंगल लेने की खुली छूट कारपोरेट घरानों सहित सभी निजी संस्थानों को दिया जा रहा है। सवाल है-जब इस तरह की खुली छूट दी जाएगी-तब यहां के आदिवासियों, किसानों , मूलवासियों के जमीन-जंगल संबंधित अधिकारों का क्या होगा। परिणाम भयानक होगा-जितना विस्थापन आजादी के इन पैंसठ सालों में हुआ है-उससे दस गुणा विस्थापन सिर्फ दस साल में होगा।
सरकार का दलील है कि-धारा 71 के ए -2 को समाप्त करने से गैर आदिवासियों द्वारा गैर कानूनी से कब्जा करना बंद हो जाएगा। लेकिन इसका विपरित असर पडेगा। एसएआर कोर्ट में मामले फंस जाने के डर से पहुंच नहीं रखने वाले इस विवाद से बचना चाहते थे। लेकिन अब इस डर को ही खत्म कर दिया जा रहा है। सीएनटी ा
एक्ट की धारा 21 और एसपीटी एक्ट की धारा 13-
क्या था पहले-मालिक को जमीन की प्रकृति बदलने का अधिकार नहीं था अर्थात जमीन की प्रकृति अगर कृषि है तो मालिक उसका इस्तेमाल कृषि कार्य के अलावा किसी अन्य कार्य में नहीं कर सकता था।
अब क्या होगा-कैबिनेट ने इन धाराओं में संषोधन करते हुए मालिक को जमीन की प्रकृति बदने का अधिकार देने कर निर्णय लिया है। इससे अब कोई जमीन मालिक अपनी कृषि योग्य जमीन का व्यवसायिक उपयोग कर सकेगा।
धारा 21 और एसपीटी एक्ट की धारा 13 में संशोधन कर जमीन मालिकों को जिस अधिकार देने के बात सरकार कर रही है-पूरी तरह से आदिवासी समाज को गुमराह करने और पूंजिपतियों, कारपोरेटस को आसानी से उद्योग धंधो के लिए जमीन उपलब्ध करने की तैयारी है। क्योंकि जमीन की प्रकृति दलने का कानूनी प्रावधान था, इसीकारण कृषि कार्य में उपयोग होने वाला जमीन झारखंड में बचा हुआ है। इसी भूमिं की उपज से राज्य की सवा तीन करोड़ की जनता को अन्न -जल ग्रहण कर रही है। इसी कारण रियलस्टेट भी कृषि योग्य जमीन को आसानी से लूटने में असमर्थ रहे हैं।
रघुवर सरकार इन्हीं अड़चनों और दिक्कतों से समाप्त कर किसी भी संस्थानों को आसानी से और जल्दी से जल्दी जमीन उपलब्ध कराने के लिए जमीन का नेचर बदलने के अधिकार का दुहाई देकर सीएनटी एक्ट के धारा 21 और एसपीटी एक्ट के 13 को संषोधित कर रहा है।


Monday, July 11, 2016

बिरसा मुंडा के हाथ की हथकड़ी से युवाओं में नेगेटिव असर पड़ेगा यह तर्क गलत है

भारत की आजादी के लिए अंग्रेज हुकूमत के खिलाफ उलगुलान का बिगुल फूंकने वाले आदिवासियों के वीर नायक बिरसा मुंडा के हाथ की हथकड़ी खोलने का आदेश रघुवर सरकार ने दी है।सरकार ने तर्क दिया है कि बिरसा मुंडा के हाथ की हथकड़ी से युवा वर्ग में प्रतिकूल असर पड़ेगा।
यह भी कहा जा रहा है कि अब तो देश आजाद हो गया और झारखंड राज्य भी  अलग हो गया जो आदिवासी चाहते थे।
मुख्य मंत्री के इस कदम का कई आदिवासी संगठन ने स्वागत किया।
लेकिन मेरा मानना है कि बिरसा मुंडा के हाथ का हथकड़ीअदिवासियों के शहीदी संघर्ष के इतिहास का बोध कराता है।बिरसा मुंडा ने अंग्रेजों के खिलाफ सम्पूर्ण आदिवासी समाज को संगठित किया।समाज को समझौता विहीन नेतृत्व दिया।अभाव में रह कर भी अंग्रेजों के बंदूक के सामने घुटना टेकने नहीं सिखाया।
आज भी भारत गुलाम ही है।अंग्रेजों के समय में देश सिर्फ एक ईस्ट इंडिया कंपनी का ही गुलाम था।लेकिन आज हमारा  झारखंड और भारत सैंकड़ों कंपनियों के गुलाब हो गये।हम क्या खायेंगे,क्या पीयेंगे,क्या पहनेंगे,कहां रहना चाहिए सब कंपनी वाले तय कर रहे है।बिरसा मुण्डा के संघर्ष के खून से लिखा सीएनटी एक्ट,सिद्ध कानहू के हूल के आत्मा से लिखा एसपीटी एक्ट में संशोधन कर आदिवासियों मूलवासियों के अधिकारों का दमन किया जा रहा है।
तब यह महसूस करना कि ,बिरसा मुंडा के हाथ की हथकड़ी हमें गुलाम महसूस करता है, यह युवाओं में नेगेटिव असर नहीं,तर्कसंगत नहीं है।

जल,जंगल, जमीन, नदी, पहाड़, पर्यावरण की रक्षा करने वाले सरकार की नजर में विकास विरोधी,सरकारी कार्य में बाधा डालने वाले अपराधी माने जाते है।सरकार उन पर कानूनी कार्रवाई करती है, जेल में बंद करती है।
आज रघुवर सरकार राज्य के गैर मजरूआ आम,गैर मजरूआ खास जमीन जिस पर ग्रामीणों का संवैधानिक है, को भूमि विकास बैंक बना कर कारपोरेट घरानों को उधोग लगाने के लिए दे रही है।
दूसरी तरफ जल,जंगल, जमीन की रक्षा की घोषणा कर रही है, जो अपने आप में कंटाडिकटरी है।साथियों आप जरूर पढें. इस अपडेट को और सरकार के डबल चरित्र को समझने की कोशिश करें

Saturday, July 9, 2016

Visit to Garden






Visit to Nature


राज्यपाल-आदिवासी कल्याण मंत्री-आदिवासी विधानसभा अध्यक्ष-आदिवासी ग्रामीण विकास मंत्री-आदिवासी 28 विधायक आदिवासी-इन सभों के रहते क्या हो रहा हैं-यहां आप देख सकते हैं।

कल्याण विभाग की महत्वपूर्ण योजनाएं साल भर से लंबित-स्त्रोत प्रभात खबर 8 जुलाई 2016
झारंखड को आदिवासी राज्य के नाम से जाना जाता है-और यह सच्च भी है कि झारखंड अलग राज्य की मांग को लेकर आदिवासी-मूलवासियों ने लंम्बी लड़ाई लड़ी। इनके शहादत शहादत  के बाद ही अलग राज्य का दर्जा मिला है। अलग राज्य की लड़ाई सिर्फ 24 जिलों के भौगोलिक सीमा क्षेत्र के लिए नहीं था। परंतु झारंखड के जल-जंगल-जमीन, भाषा-संस्कृति और सामाजिक मूल्यों को संरक्षित और विकसित करने के लिए अपने गांव में अपना राज के मांग की लड़ाई थी। इसको स्वीकार करते हुए ही-आदिवासियों, मूलवासियों के जन-नायक शहीद बिरसा मुंडा के जन्म दिवस 15 नोवेम्बर को अलग राज्य का पुर्नगठन किया गया।
आज राज्य के आदिवासी-मूलवासी, दलितों, शोषितों  बंचितों तथा मेहनतकषों के अधिकारों का खुला हनन किया जा रहा है। दुर्भग्य है-यहां के आदिवासी नेताओं की, जिनको जनता ने चुन कर सत्ता में भेजा है, लेकिन कुर्सी पर बैठते ही, अपने समाज, गांव, अपनी धरती, अपने इतिहास को भूल जाता है। सिर्फ अपने परिवार और कुर्सी के लिए राजनीति करने लगता है।
आज राज्य में 28 आदिवासी विधायक हैं, जो आदिवासी आरक्षित सीट से चुन कर आये हैं। मूलवासी, दलित भी आरक्षित सीट से चुनकर आये हैं। राज व्यवस्था के कई महत्वपूर्ण पदों पर आदिवासी विराजमान हैं-
राज्यपाल-आदिवासी
कल्याण मंत्री-आदिवासी
विधानसभा अध्यक्ष-आदिवासी
ग्रामीण विकास मंत्री-आदिवासी
28 विधायक आदिवासी-इन सभों के रहते क्या हो रहा हैं-यहां आप देख सकते हैं।
कल्याण विभाग में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति संबंधित योजनाएं एक वर्ष से अधिक समय से लंबित हैं। खास बात यह है कि कल्याण मुत्री लुईस मरांडी ने इन आवेदनों को निबटाने के लिए पीत पत्र भी लिखा है। पर उनके आग्रह पर भी विचार नहीं किया गया। अनुसूचित जनजाति सहकारी विकास निगम (टीसीडीसी), अनुसूचित जाति सहकारी विकास निगम (एससीडीसी) और जनजातीय कल्याण आयुक्त कार्यालय से अप्रैल 2015 से लेकर सितंबर 2015 के बीच निकाली गयी इच्छा की अभिव्यक्ति (एक्सप्रेषन आॅफ इंटरेस्ट) पर अब तब फेसला नहीं लिया जा सका है। एससीडीसी के पदेन प्रबंध निदेषक स्वयं जनजातीय कल्याण आयुक्त हैं। विभागीय सचिव पदेन अ0 हैं। लेकिन कार्रवाई नहीं हुई।
अनुसूचित जाति ग्राम विकास योजना के आवेदन भी लंबित-
सरकार की तरफ से 22 अनुसूचित जाति ग्राम विकास योजना के तहत अप्रैल 2015 में आवेदन मंगाये गये थे। इसमें 174 स्वंयसेवी संस्थानों और कंपनियों ने आवेदन दिये थे। इसमें से 59 कंपनियों के आवेदनों पर विचार करते हुए उनके तकनीकी पक्ष के अनुरूप् आगे की कार्रवाई करनी थी। हांलांकि, अब तब इसमें अनिर्णय की स्थिति बनी हुई है।
339 एसटी गांवों का भी होना था विकास
राज्य के 339 एसटी गांवों (अनूसूचित जनजाति गांवो) के विकास के लिए मंगाये गये आवेदनें की भी स्थिति पूर्ववत बनी हुई है। यह आवेदन जनजातीय सहकारी विकास निगम की ओर सं मंगाये गये थे। सरकार की ओर से अक्टोबर 2015 में 32 स्वयंसेवी संस्थानों का अंतरिम रूप से चुनाव भी किया गया, पर उन्हें आज तक कार्य आंबटित नहीं किया। कहा गया कि इस योजना के लिए सरकार के पास फंड की कोई व्यवस्था नहीं है। बाद में यह दलील दी गयी कि अब एकटी ग्रामों का विकास मुख्यमंत्री अनुसूचित जनजाति ग्राम योजना के तहत किया जायेगा।
सुरक्षा से संबंधित निविदा भी लंबित
जनजातीय कल्याण आयुक्त की ओर से आमंत्रित आवासीय विद्यालयों की सुरक्षा से संबंधित निविदा भी 10 महीनों से लंबित है। इस निविदा के लिए तकनीकी और वितीय आवेदनों पर नौ जून 2016 को कल्याण सचिव की अध्यक्षता में गठित समिति की ओर से विचार किया गया था। आवेदनें पर विचार करने के बाद फ्रठलाइन एनसीआर और आंरियोन सिवयोर प्राईवेट लिमिटेड के आवेदन तकनीकी रूप से सफल पाये गये। पर अब तक आउटसोसिंग के जरिये सुरक्षाकर्मी, तृत्यीय और चतुथ्र्र वर्गीय कर्मी और रसोइया की नियुक्ति मामले पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गयी है।

डोभा पूरे राज्य में बच्चों के मौत का कारण बन गया है।

झारखंड सरकार राज्य में विकास की गति में तेजी लाने के लिए 2015 के पंचायत चुनाव के तुरंत बाद पूरे राज्य में योजना बनाओं अभियान चलाया। इस अभियान में मुख्य मंत्री से लेकर राज्य के सभी मंत्री, विधायक तथा वार्ड पर्षद से लेकर जिप अध्यक्ष सभी योजना बनाने में व्यस्त थे। परिणामता राज्य में ढाई लाख डोभा बनाने का निर्णय लिया गया। राज्य में पानी की समस्या का हल निकालने के लिए धरती का जल-स्तर बनाने के लिए संभवता डोभा बनाने की योजना बनायी गयी। इन ढाई लाख डोभा में से डेढ लाख डोभा करीब तैयार हो चुका है। डोभा 10 फीट गहरा बनाने का प्रावधान किया गया है। यह डोभा पूरे राज्य में बच्चों के मौत का कारण बन गया है। बच्चे ही नहीं परंतु पानी पीने पहुंचे मावेषी भी गिर कर डुब रहे हैं।
अभी तक डोभा में गिरने से हुई मौत--
रांची-बेडो के निहालो बरटोली में एक बच्चा
रांची-चान्हो के मदहे गांव में एक बच्ची
गढवा-रमना के गम्हरिया में तीन बच्चे
गढवा-मेराल के बाना गांव में एक बच्चा
गिरिडीह-गांडेय में एक बच्चा
लोतेहार-हंरहंज प्रखंड में तीन बच्ची
खूंटी-मुरहू के कुदासूद गांव में एक बच्ची
ग्ुमला-बसिया के बनागुटू गांव में एक बच्चा
धनबाद-कतरास के रघुनाथपुर में एक बच्चा
गिरिडीह-बेंगाबाद में एक बच्चा
आंकड़ो के अनुसार लगभग 80 हजार डोभा कृषि विभाग ने बनाया और 90 हजार डोभा मनरेगा योजना से बनाया गया। इस योजना के तहत जो डोभा बनाया गया है-वह चैकोण वर्गाकार, सीढीनुमा है। यह सरकारी इंजीनियारों के अनुसार शायद शायद  उपयुक्त और सुरक्षित है। कहने के लिए तो प्रावधान है कि डोभा जेसीबी मशीन से नहीं, परंन्तु मजदूरों द्वारों खोदा जाएगा। लेकिन 90 प्रतिषत डोभा जेसीबी मशीन से ही खोदा गया।
परंपारिक डोभा और डोभा बनाओं अभियान के तहत बनाये जा रहे डोभाओं में बुनियादी अंतर है। पहला- परंपारिक डोभा किसानों के पानी वाले खेतों में झरनों के सोवाओं, झील के स्त्रोतों तथा खेतों से होकर पानी के तेज बहाव से मिटटी के काटाव के कारण खेतों में जल जमाव होता है, को ही डोभा कहते हैं। साधारणतया परंपारिक डोभा को खोद कर नहीं बनाया जाता था।
दूसरा-परंपारिक डोभा पानी के बहाव की गाति और मिटटी के किस्म में हुए प्रभाव पर डोभा का आकार-प्रकार और गहराई निर्भर करता है। हमारे गांव के किनारे तीन तालाब हैं। गांव के 100 गज में चारों तरफ टांड है। इन टांडों से लगे टांड-दोन है। और इन दोनों से लगें गढहा दोन है। गढहा दोन-याने यहां का जलस्तर हमेशा  उपर रहता है। याने यहां का लैंण्डसकैप नीचा होता है।
मुझे याद है--छोटे थे तब जब भी तलाब नहाने साथियों के साथ जाते थे। एक दूसरे को हिदायत देते थे-किनारे ही नहाएंगें, आगे मत जाना, आगे गहरा है, और गहरा पानी हमेशा  अपनी ओर खिंचता है। यह हिदायत मां-पिता जी यह बड़े लोग देते थे। जब भी डोभा यह तालाब में नहीं घुसते थे-नीचे धरातल पर पैर की अंगुलियों को जमाए रहते थे। पानी से बाहर निकलने या अंदर घुसते समय हमेशा  पैर को धरातल पर सरकाते-सरकाते आगे बढ़ना पड़ता है। जो सीढीनुमा बनाये गये डोभा में संभव नहीं है।  प्रया सभी परंपारिक डोभा यह तलाब चारों तरफ छिछलानुमा होता है, और बीच में गहरा। इस तरह के तलाब या डोभाओं से लोग चीर-परिचित होते हैं। इस कारण इसमें डुबने की संभावना कम होती है।
अभी जो डोभा बनाया जा रहा है-वो सीढीनुमा तो है, लेकिन इसमें स्टेप है। इसमें अगर पहला स्टेप से पैर फिसल जाए, तो आप दूसरा स्टेप से भी फिसल कर नीचे गहरे में जा सकते हैं, इसलिए कि आप को डोभा में बने स्टेप का अंदंजा नहीं होगा। दूसरी बात-डोभा में बने सीढी से छोटे बच्चों का सुरक्षिा नहीं मिला सकता है। इसलिए कि उनके लिए यह सीढी सहायक नहीं हा सकता है।

Thursday, July 7, 2016

New Technology of Agriculture Development

New Technology of Agriculture Development
ye Hath, ek Adivasi Ladki ka hai. jo ek sadharan Baigan ko Bishesh kisim--Unat-Kisim  ka Baigan banane ki Taiyari kar rahi hai. yah training ranchi ke plandu me diya jata hai. High-bred or Unat Kisim ka Bij or Seed taiyar karne ke liye ek ko Nar aur ek ko Mada man kar Nar ka Parag ko Mada ka Prag me dal diya jata hai..use jo phal-fruit aayega wo high -bred product mana jata hai. Inhone bataya ki Jink fruit Manush ke Health ke liye Hanikarak hota hai, isliye ham log Jink ke production nahi karte hain...

Wednesday, July 6, 2016

यही है सस्टेनेबल डवलपमेंट

खेत
इस तस्बिर  देख कर  आप निश्चित रूप से सोचेंगे की-यह कोई बड़ा तलाब है।  जंहा  मछली पालन किया जा सकता है।  यंहा का पानी को शहर में सवच्छ जल प्रबंधन के नाम पर शहरवासियों को सप्लाई किया जा सकता है।
लेकिन अगर आप ग्रामीणों से इस खेत -पानी  के बारे बात करेंगे तो वो बताएँगे --यह तलाब  नहीं है , परन्तु यह एक नंबर का धान का खेत है.  खेत में गर्मी के दिन किसान धान , गेंहू , खेसारी , मंसूरी दाल आदि  हैं. यह खेत एक किसान का नहीं है. यह पुरे गॉव की सम्पति है. इस खेत  किसान हजारो कुंइंटल ानज पैदा कर देश की गरीबी दूर  है।   यही नहीं इस खेत में मछली  पालन भी किसान  हैं. खुद  ही हैं, साथ में देश में फ़ूड सिकुरिटी की गारंटी भी करते हैं.  ही पुरे एरिया  वाटर हार्वेस्टिंग का  करते हैं. इससे  धरती  में जलस्रोत बना रहता  है. इस तरह किसान पर्यावरण और धरती   मानव सभ्यता  की रक्छा करते हैं.   यही है सस्टेनेबल डवलपमेंट

SAVE ENVIROMENT, SAVE RIVERS AND SAVE HUMAN RIGHT.

bikas  
jab ham bikas ki bat karte hain, tab ham harek ke dimag me adhunik bikas ke dhanche...bade bade Moll, Kal-Karkhane, Dam, Minis, Newyork me maihatan sahar ke 80-100 manjila makan aankhono ke samane ghune lagta hai.. isme  hamari koi galti nahi hai, kyonki desh ki bazar ne bikas ka aisa hi sapna dikha raha hai.
Aisa bikas janha dharti me ek inch mitti, balu nahi rahega, janha ek bhi ghans, ped-paudha, jangal-jhad nahi rahega. janha nadi-jharna nahi rahega. janha kheti-kisani nahi rahegi.  
Janha sirf Moll, unche unche buildings, forlen ki sandken, kal -karkhana, minis, Dam hi rahega...TAB SARKAR , CORPORATE  HAM  LOGON  KO  SIKHLAYA  --SAVE  FOREST, SAVE ENVIROMENT, SAVE RIVERS  AND SAVE HUMAN  RIGHT.

Tuesday, July 5, 2016

सभी साथियों को जोहर
बहुत  दिनों  के बाद मई फिर से आप लोगों के  बीच आ रही हूँ।  आठ  मार्च २०१६ की रात मेरे परिवार के लिए, दुखत और सुखद दोनों ही रहा। १२ मार्च तक मेदांता हॉस्पिटल में रहने के बाद घर वापस आये. घर बंद था.  होटल भी तब से २७ जून तक बंद था. तीन महीने तक समाजिक काम भी उस तरह से नहीं कर पाए जिससे हम दोनों आप लोगों की उम्मीदों  खरा उतर पाते।
आप लोंगो ने तन मन धन से हम दोनों की मदद की।  हम दोनों
आप सभी के ऋणी हैं. कोशी करेंगे समाज के लिए जो दयितवा हमें निभाना होगा , पूरी अपनी छमता के साथ निभाने की.

जोहार
बहुत दिनों के बाद मैं आप लोगों के बीच आ रहीहूँ आप लोगों की मदद से। इसके लिए आप सभी साथियों का आभारी हूँ।

Tuesday, March 1, 2016

इस तरह से राज में फ़ूड सिक्युरिटी की तो गारंटी नहीं की जा सकती है। .लेकिन राज को कंगाल ---कोपोषित जरूर बना दिया जायगा

केंद्र  की मोदी सरकार और   झारखण्ड की रघुवर दास  सरकार देश और राज के किसानो को मीठी मीठी घोषनाये कर के उनके आँखों  में धुल झोंकने का काम कर रही है एक तरफ झारखण्ड के आदिवासियों के जल जंगल जमीन की रक्छा के लिए बने कानून सी एन  टी  एक्ट , कानून के मुआवजे वाले धारा ७१ (१) को खत्म कर , आदिवासियों की जमीन की गलत तरीके से हो रही खरीद फरोख्त को बन कर इनके जमीन को सुरक्छित करने की बात की  जा रही है , दूसरी तरफ किसानों की  जमीन को गैर कृषि उपयोग के लिए कनभरशन  -बदलने के लिए कानून भी पास कर रही है। ..इस करभर्शेशन कानून के लागु होने से राज की खेती की जमीन धड़ले से कॉर्पोरेट के लिखे अधिग्रहित की जाएगी. इस तरह से राज में फ़ूड सिक्युरिटी की तो गारंटी नहीं की जा सकती है। .लेकिन राज को कंगाल ---कोपोषित जरूर बना दिया जायगा 

Monday, January 4, 2016

JINDAGI KA PAHLA BASIA BAJAR

कुम्हारी बाजार (वर्तमान में गुमला जिला के बसिया प्रखंड के )


मेरे क्ला में एमलेन तोपनो, प्यारी बरला, हन्ना तोपनो, रेलन तोपनो, ऐसरन तोपना सभी मुझ से  बड़ी थी। શિलवंती और मैं एक जोड़ी की हैं। શિलवंती को बिफे दिन को ही स्कूल में बोल दी , कल मैं नहीं आ सकती हॅं कल सर खिलवाऐगें तो हमको देना तेरा कोपी। बिफे रात को ही सुबह के लिए भात बना दिये। सुबह जल्दी उठे। तीन बार कुंआ से पानी लायी। घर-आंगन का काम जल्दी खत्म करके बिजय दादा के साथ कुम्हारी बाजार के लिए निकल गये। मैं पहली बार रायबा, सेमरटोली गांव देखी। सेमरटोली के बाद जंगल શુરુ हो गया। हाफंु गांव पूरी तरह गांव में ही है। जंगल जंगल करीब तीन-चार घंटा तक चलने के बाद कुम्हारी पहुंचे। बाजार अभी भरा नहीं है। जाते ही सीधे गाय-बकरी जहां दुकान लगाते हैं वहीं गये। वहां बैल -गाय भी बंेचने वालों ने बांध कर रखे थे। बकरी भी हैं लेकिन अभी बहुत कम हैं। दादा बोला रूको थोड़ा इंतजार कर लेते हैं, लोग और भी बकरी लेकर आऐंगे।
थोड़ी देर के बाद लोगों ने बकरी लेकर आये। हम दोनों को तो पालने के लिए बकरी बच्चा लेना था। इसलिए ज्यादा इंतजार करना पड़ा। पेषेवार खरीददार लोग जहां खस्सी देखे, यह बकरी दौड़ कर पहुंच जाते हैं। ताकि दूसरा खरीददार उसको न पटा ले। एक बुजूर्ग दो बड़ा बड़ा खस्सी लेकर आम पेड़ के नीचे बैठा है। उनके पास कई खरीद दार आये और फिर चले गये। बड़ा वाला खस्सी का दाम लोग पूछ रहे थे-बुजूर्ग दाम बताया-तीन कोरी। दो लोग फिर उसके पास आये। बोले-ठीक से बोल। देवेक-लेवे नीयर। ये 40 रू़ देवा थी। बुजूर्ग नहीं तीन कोरी से एको रूप्या कम नी होवी। मोल-तोल  आगे बढ़ता जा रहा है। के्रता-नहीं उतनो तो केउे नीं देबायें। उतना कर खस्सी नी लगें। के्रता-अच्छा तोरो नहीं-मोरो नहीं , चल आखरी 50 रूप्या देवा थी। बुजूर्ग-नहीं नी होवी उतना में। बात बढ़ते जा रहा है। अंत में के्रता बोला-ठीक अहे 60 रूप्या देवी थी। बुजूर्ग-नहीं इतना में नी देबुं, तीन कोरी से एक को कचिया कम नहीं। के्रता हा ना-60 रूप्या तो देवा थी, ले। बुजूर्ग -नीही- तीन कोरी से एको रूप्या कम में नी देबुं। अब देखते ही देखते यहां कई लोग पहुंच गये। के्रता -बुजूर्ग को समझाने लगा-जेतना तोंय मांगाथिस उतना तो देवा थों।फिर भी बुजूर्ग तैयार नहीं हो रहा है। तब वहां खडें लोंगों ने बुजूर्ग को समझाने लगे-तीन कोरी के ही 60 रूप्या कहेनां। तब जा कर बुजूर्ग देने को राजी हुआ। बात पक्का करने के लिए बगल से दूब घांस तोड़कर खरीद दार ही लाया और बुजूर्ग को दिया। दूब घांस देने के खरीद-बिक्री पक्का हो गया।  मैं ये सब खड़ा होकर देख रही थी।