Thursday, April 28, 2011

हमारी लड़ाई सिर्फ विस्थापन के खिलाफ नहीं है बल्कि हमारी लडाई भाषा- सांस्कृतिक, सामाजिक, आर्थिक , इतिहास को बचाने की है



Sarhul teyohar ke Anand me Jhumte ..Jabda, Ghorpinda, Jonhe, Ludru ke Gamin

Sakhuwa Dali ka..puja..Archna Karte ..Jabda, Ghorpinda, Jonhe, Ludru gaon ke Pahan
हमारी लड़ाई सिर्फ विस्थापन के खिलाफ नहीं है बल्कि हमारी लडाई भाषा- सांस्कृतिक, सामाजिक, आर्थिक , इतिहास को बचाने की है

सरहुल एक पर्व-त्योहार मात्र नहीं है, बल्कि झारखंड के गैरवशाली प्राकृतिक धरोहर का नाम है सरहुल। यही धरोहर मानव-सभ्यता, संस्कृति एवं पर्यावरण का रीढ़ भी है। आदिवासी समाज इंद्रधानुषी आकाश के नीचे प्राकृतिक छटटा की रंगस्थली में निवास करता है। लहरदार पृष्ट भूमि में विभिन्न रंगविरंगे पतों, पक्षियों-जानवरों से भरे जंगल-पहाड़, नही-घाटियों के गोद में बसे हैं आदिवासीयों मूलवासियों की बस्तियां हैं। चटटानों-पहाड़ों की ढ़लान में उछलते-कुददतें, निर्झर -क्षरने, आकाश में घिरे बादल, बादलों का पंख फैलाए-नाचते मोर, आम मंजरियों आंनंद लेते भैंरों की टोली, आदिवासी समाज को जीने की कला सिखलाता है। जंगल के लार-झार, पेड़-पैधों पर सुगबुगाये लाल-हरे कोपलें, मंजरियों से ढ़के आम-आमड़ो के पेड़, सफेद दुधिया फूलों से सजे-कांटों भरे ढेलकाटों की झाड़ चिलचिलाती धूप से तपती धरती एवं आकाश में मंडराते बादल, कड़कते बिजली की कौंध के साथ मुसलाधार बारिस प्राकृतिकमूलक समाज में जीवन संघर्ष एवं जीने की नयी चेतनाएं भरता है। यही आदिवासी-मूलवासी समाज के सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक राजनीतिक जीवन दर्शन का मुलाधार भी है। हमारी लड़ाई सिर्फ विस्थापन के खिलाफ नहीं है बल्कि हमारी लडाई भाषा- सांस्कृतिक, सामाजिक, आर्थिक , इतिहास को बचाने की है। हमने निर्णय लिया है-सभी त्योहारों को मनाने का। इसी निर्णय के तहत 26 अप्रैल 11 को डैम प्रभावित संघर्ष समिति कर्रा -जो डैम से होने वाले बिस्थापन के खिलाफ संघर्षरत है- ने घोरपिंडा में सरहुल त्योहार मानाया।

1 comment:

  1. बहुत ही अच्छा लेख लिखा है आपने. आदिवासी समाज को विस्थापन करके उनकी सामाजिक सांस्कृतिक पहचान को ख़तम करने की एक बहुत बड़ी साजिस की जा रही है..........और हम लोगों को इसके खिलाफ आवाज उठानी होगी और जगरूप होना पड़ेगा...........

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