Friday, April 1, 2011

आजादी के 54 साल में विभिन्न सूत्रों के आधार पर 80 लाख झारखंडी विस्थापित हो चुके हैं, विकास योजनाओं से। झारखंड राज्य के पुर्नगठन के बाद झारखंड सरकार ने



THIS IS OUR RICH ECONOMIC SYSTEM...JANGAL ME MAHUWA CHHUNTE..
आजादी के 54 साल में विभिन्न सूत्रों के आधार पर 80 लाख झारखंडी विस्थापित हो चुके हैं, विकास योजनाओं से।झारखंड राज्य के पुर्नगठन के बाद झारखंड सरकार ने झारखंड औधेगिक नीति 2001 बनायी। जिसमें प्रवाधानकिया गया है कि उधोगपति झारखंड के किसी भी क्षेत्र में उद्वोग चलाना चाहेगें, उन्हें जमीन आसानी से उपलब्धकरानेकी व्यवस्था की जाएगी। इसी कानून में यह भी कहा गया है कि टाटा से हजारीबाग को मिलाने वाली रोड़एनएच 33 के दोनों बाजू- पांच पांच किमी जमीन उधोगपतियों के लिए अधिग्रहीत किया जाएगा। जो मुंडारीखुंटकटी क्षेत्र तों है ही, साथ ही साल जंगल से पटा भी है जो पूरी तरह नष्ट हो जाएगा। रांची शहर एवं इसके ईर्द-गिर्दके गांव छह अप्रैल को एकता प्रर्दशित करने के लिए एक साथ सरहुल पर्व मना रहे हैं। आज सरहुल के महत्व कोझारखंडियों को नये सिरे से विश्लेषण करने की जरूरत है। यदि हम सरहुल पर्व को सिर्फ सरहुल-त्योहार यामहोत्सव के रूप में मनातें हैं तो यह अपने इतिहास के साथ बेमानी ही होगी। नहीं तो एक दिन aisa समय आएगाकि धरती में जंगल-झाड़ रहेगा, सरहुल- पलाश खिलेगा, आम गाछ में मंजरियां लगेगी। गांव समाज पूंजी-पतियों के अटालिकाओं में विलीन हो जोएगें। कल-कारखानों के उगलतें धूंओं से सरहुल फूल झुलस जाएगा।

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