VOICE OF HULGULANLAND AGAINST GLOBLISATION AND COMMUNAL FACISM. OUR LAND SLOGAN BIRBURU OTE HASAA GARA BEAA ABUA ABUA. LAND'FORESTAND WATER IS OURS.
Friday, April 29, 2011
बदलाव की चाल, चरित्र ओर चेहरा कैसे है? क्या बदलाव समाज के आम लोगों की ज्यादा से ज्यादा भलाई की दिशा में हैं या कुछ खास लोगों की तिजोरियां भरने की दिशा
भारत शहर पिछले कुछ वर्षों से बड़ी तेज रफतार से बदल रहे हैं। दिल्ली हो या मुम्बई, पटना हो या लखनउ, कलकत्ता हो या कोची, सभी शहर आज वल्र्ड -क्लास शहत बनने की अंधी दौड़ में शामिल है। वल्र्ड-क्लास की परिभाषा क्या होगी? इस पर कभी कोई सार्वजनिक चर्चा नहीं की गई। परन्तु आर्थिक, राजनैतिक स सामाजिक सत्ता के मालिक -सभी इस विषय पर एकमत हैं कि दिशा के शहरों को वल्र्ड-क्लास बनाए बिना देख की तरक्की नहीं हो सकती है। उनका दावा है कि शहरों के आधारभूत ढांचे (इंफ्रास्ट्रक्चर) एंव शासन प्रणाली (गवर्नेंस) में यदि सुधार नहीं होता है, तो वर्तमान में 8 फीसदी की दर से जो आर्थिक विकास का घोड़ा दौड़ रहा है वह भारत के एक विकसित राष्ट्र की मंजिल तक पहुंचने से पहले ही बीच में कहीं थक कर बैठ जाएगा। तो ये वल्र्ड-क्लास शहर आखिर है क्या जिसकी सड़कों पर दौडकर आर्थिक विकास का घोड़ा भारत को एक विकसित देश की मंजिल तक पहुंचाएगा ?
पिछले 10-15 वर्षों का अनुभव देखें तो साफ समझ में आता है कि वल्र्ड-क्लास माने ऐसा शहर जहां पैसे वालों को ऐशो -आराम के वे तमाम साधन उपलब्ध हों जिसके लिए उन्हें पहले अमरीका या यूरोप जाना पड़ता था। जगह-जगह शापिंग मॉल हो, चमचमाते सिनेमाघर हों, उपभाग की सभी वस्तुएं उपलब्ध हों। जब सड़क पर उनकी गाड़ी दौड़े तो बीच में कोई रूकावाट न आए इसके लिए हर चैराहे पर एक पलाईओवर हो। वल्र्ड-क्लास शहर माने ऐसा शहर जहां पर्यटक या बिदेशी निवेशक आएं तो उन्हें भीड़, गंदगी या गरीबी न दिखाई दे। जैसा अनुभव उन्हें लंदन या न्यूयार्क की सड़कों पर चलने में होता है वैसा ही अनुभव उन्हें दिल्ली और मुंम्बई में भी मिले।
लेकिन समस्या यह है कि हमारे शहर कोई वीरान बंजर भूमिं तो है नहीं कि उन्हें जो चाहे रूप दे दो और किसी को नुकसान भी न हो। जाहिर सी बात है जब मेट्रो या शापिंग मॉल बनाने होते हैं तो झुग्गियां उजाड़ी जाती हैं। फिर भल ही उससे लाखों लोग बेघर जो जाएं। जब प्रदूषण कम करने की बात होती है तो कारखानों पे ताले लगाए जाते हैं। फिर भले ही उससे लाखों मजदूर बेराजगार हों। जब पलाइओवर बनते हैं तो पैदल, रिक्सा या साइकिल पे चलने वालों के लिए सड़क पर कोई जगह नहीं रहती है। जब माडल बनते हैं तो छोटे दूकानदार अपनी रोजी-रोटी खो देते हैं। संक्षेप में कहें तो एक थर्ड-वल्र्ड देश में जब वल्र्ड-क्लासशहर बनते हैं तो बहुसंख्यक अवाम की जीवन स्थिति फोर्थ वल्र्ड में पहुंच जाती है।
यह किसी निराशावादी का राग विलाप नहीं बल्कि हमारे शहरों की जमीनी सच्चाई है। दिल्ली शहर को ही देखें तो पिछले 8 सालों में 8 लाख से ज्यादा झुग्गीवासियों को विस्थापित किया गया है। मुम्बई में भी लगभग इतने ही लोग पिछले एक दशक में विस्थापित किए गए हैं। झुग्गिवासी हों या कच्ची कोलोनो के निवासी, रिक्सा चालक हों यह रेहडी-पटरी वाले, कारखाना मजदूर हों या बेघर लोग, आज सभी परप्रशासन की मार पड़ रही है।
अभी तक चली प्रक्रियाएं तो यही दिखाती हैं कि आने वाले समय में यह मार बढ़ने वाली है। हमारी सरकार ने पूरी तैयारी कर ली है गरीबों-मेहनतकशों को शहर से बाहर निकालकर शहर की जमीन व अन्य सभी संसाधनों को सम्पन्न वर्ग और देशी -बिदेशी निवेशकों के हवाले करने की। गरीबों के सर से छत और मुंह से निवाला छीनकर धन्नासेठों की तिजोरियां भरने के अपने निर्णय के बारे में सरकार कितनी गंभीर है इसकी मिसाल हमें हाल ही में लाए गए जवाहर लाल नेहरू शहरी नवीनीकरणमिशन के रूप में देखने को मिल रही
Thursday, April 28, 2011
हमारी लड़ाई सिर्फ विस्थापन के खिलाफ नहीं है बल्कि हमारी लडाई भाषा- सांस्कृतिक, सामाजिक, आर्थिक , इतिहास को बचाने की है
Sarhul teyohar ke Anand me Jhumte ..Jabda, Ghorpinda, Jonhe, Ludru ke Gamin
Sakhuwa Dali ka..puja..Archna Karte ..Jabda, Ghorpinda, Jonhe, Ludru gaon ke Pahan
हमारी लड़ाई सिर्फ विस्थापन के खिलाफ नहीं है बल्कि हमारी लडाई भाषा- सांस्कृतिक, सामाजिक, आर्थिक , इतिहास को बचाने की है
सरहुल एक पर्व-त्योहार मात्र नहीं है, बल्कि झारखंड के गैरवशाली प्राकृतिक धरोहर का नाम है सरहुल। यही धरोहर मानव-सभ्यता, संस्कृति एवं पर्यावरण का रीढ़ भी है। आदिवासी समाज इंद्रधानुषी आकाश के नीचे प्राकृतिक छटटा की रंगस्थली में निवास करता है। लहरदार पृष्ट भूमि में विभिन्न रंगविरंगे पतों, पक्षियों-जानवरों से भरे जंगल-पहाड़, नही-घाटियों के गोद में बसे हैं आदिवासीयों मूलवासियों की बस्तियां हैं। चटटानों-पहाड़ों की ढ़लान में उछलते-कुददतें, निर्झर -क्षरने, आकाश में घिरे बादल, बादलों का पंख फैलाए-नाचते मोर, आम मंजरियों आंनंद लेते भैंरों की टोली, आदिवासी समाज को जीने की कला सिखलाता है। जंगल के लार-झार, पेड़-पैधों पर सुगबुगाये लाल-हरे कोपलें, मंजरियों से ढ़के आम-आमड़ो के पेड़, सफेद दुधिया फूलों से सजे-कांटों भरे ढेलकाटों की झाड़ चिलचिलाती धूप से तपती धरती एवं आकाश में मंडराते बादल, कड़कते बिजली की कौंध के साथ मुसलाधार बारिस प्राकृतिकमूलक समाज में जीवन संघर्ष एवं जीने की नयी चेतनाएं भरता है। यही आदिवासी-मूलवासी समाज के सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक राजनीतिक जीवन दर्शन का मुलाधार भी है। हमारी लड़ाई सिर्फ विस्थापन के खिलाफ नहीं है बल्कि हमारी लडाई भाषा- सांस्कृतिक, सामाजिक, आर्थिक , इतिहास को बचाने की है। हमने निर्णय लिया है-सभी त्योहारों को मनाने का। इसी निर्णय के तहत 26 अप्रैल 11 को डैम प्रभावित संघर्ष समिति कर्रा -जो डैम से होने वाले बिस्थापन के खिलाफ संघर्षरत है- ने घोरपिंडा में सरहुल त्योहार मानाया।
Sunday, April 24, 2011
रांची के आम नागरिकों, पत्रकार बंधुओं, समाज के शुभ चिंतकों के लिए बिशेष सूचना m. no. of special Officer Rotiotioning 9431103773
m. no. of special Officer Rotiotioning 9431103773
रांची के आम नागरिकों, पत्रकार बंधुओं, समाज के शुभ चिंतकों के लिए बिशेष सूचना m. no. of special Officer Rotiotioning
रांची के आम नागरिकों, पत्रकार बंधुओं, समाज के शुभ चिंतकों के लिए बिशेष सूचना
m. no. of special Officer Rotiotioning
आप सभी जान रहे हें कि-राज्य सरकार के निर्देश अनुशार पूरे राज्य में नया राशन से कार्ड बनाने का अभियान चल रहा है। इसके इसके लिए सभी वार्ड परर्षदों को अपने वार्ड के लिए .बी पी एल तथा ए पी एल का आवेदन फार्म उपलब्ध कराया गया है। कल मैं अपने वार्ड 15 के वार्ड परर्षद श्रीमति ज्योति लकड़ा के आवास पहुंची। वहां सुबह 10 बजे से ही आवेदन लेने वालों की भीड़ लगी हुई थी। मैं परर्षद से मुलाकात करना चाही, लेकिन नहीं हो सका। मुझे भी ए पी एल का आवेदन लेना था।
मैं दूसरी बार 12 बजे उनके आवास पर गयी। बाहर रोड़ में ही लंबी लाईन लगी थी। उसमें ए पी एल और बी पी एल दोनों थे। कड़ा धूप था। पत्ता चला ए पी एल का फॉर्म खत्म हो गया। लेकिन इसकी सूचना कतार में लगे लोगों को नहीं दी गयी। मैं इसकी सही जानकारी लेने अंदर गयी। परर्षद के लोग जाने से मना करने लगे, लड़कर अंदर गयी। परर्षद से बोली-ए पी एल का फोम है कि नहीं-उत्तर दी नहीं हैं-खत्म हो गया। मैंने सलहा दी-आप बाहर सूचना डालिए कि फोम खत्म हो गया-क्योंकि इतना कड़ा धूप में लोंग घंटों से खडें हैं।
मेरे सामने ही एक महिला कर्मी को भेजा गया बाहर सूचना डालने के लिए। मैं बाहर आकर लोगों को जानकारी दी कि परर्षद बोल रही है कि ए पी एल को आवेदन खत्म हो गया-सोमवार को मिलेगा। लोगों ने कहा-कल से फोम जमा करना है, तो आवेदन आज चाहिए। तब मैंने आंदर जाकर परर्षद से अग्राह की-कि आप फोन करके आज ही फोम मंगवाकर दीजिए-उत्तर मिला कोई फोन नहीं उठा रहे हैं-संबंधित अधिकारी। तब मैंने मारकेंटिग आफिसर को फोन लगायी, नहीं उठाये।
मैं उपायुक्त श्री के के सोन साहब को लगायी-जानकारी दी। सोन साहब बोले आप वहीं रहिये मैं एस ओ आर से अभी फोन करवाता हूँ, आप के ना. में-उनको बता देना क्या स्थिति है। मैं एस ओ आर के फोन का वहीं इंतजार करते रही। फोन नहीं आया। sham के करीब 4 बजे एस ओ आर का फोन आया-बोले वार्ड ना. 17 से बोल रहे हैं-मैंने कहा-नहीं मैं वार्ड 15 से बोल रही हुं.। यहां ए पी एल का आवेदन पत्र खत्म हो गया-लोगों को नहीं मिल रहा है। मै उनसे जनने की कोशिश कि-कितना ए पी एल आवेदन यहां के लिए भेजा गया था-और खत्म हुआ-इसके जवाब में अधिकारी ने कहा-कितना फोम भेजा गया था-यह पोंयट नहीं है-बस जिसको आवेदन पत्र का जरूरत है-उनको बोलिए मुझ से फोन में संर्पक करें, मैं बोली तो आवेदन कहां मिलेगा-इस पर दूबारा-इन्होंने यही कहा-जिनको जरूरत है-आप उनको बोलिए-मुझ से संर्पक करेगें-
आखिर ये क्या हो रहा है-आवेदन अपने वार्ड में आवेदन पत्र लेने जाए-या अधिकारी से फोन कर-आवेदन पत्र मांगवाये ?
विदित हो कि- आज 25 april 11 se 27 april 11 tak सभी आवेदन जमा करना भी प्ररंभ हो रहा है।
Saturday, April 23, 2011
MoUs with industrialists in Jharkhand are unconstitutional and illegal
MoUs with industrialists in Jharkhand are unconstitutional and illegal
All MoUs signed with industrialisrs for implementation in Vth Schedule Areas in Jharkhand without the recommendation of TAC and without the consent of Gram Sabhas are illegal and unconstitutiona
We all know that a legitimately elected Government should always try to safeguard the Constitution and the laws of the country. But here in Jharkhand we have a situation where the state govt itself is the biggest violator of both the Constitution and the laws of the country. Let us see how it is so:
I. The Fifth Schedule [Article 244(1)] of the Constitution states “There shall be established in each State having Scheduled Areas therein and, if the President so directs, also in any State having Scheduled Tribes but not Scheduled Areas therein, a Tribes Advisory Council consisting of not more than twenty members of whom, as nearly as may be, three fourths shall be the representatives of the Scheduled Tribes in the Legislative Assembly of the State . . .” [4.(1)]. It shall be the duty of the Tribes Advisory Council to advise on such matters pertaining to the welfare and advancement of the Scheduled Tribes in the State as may be referred to them by the Governor. [4.(2)].
The Governor of the State “may make regulations for peace and good governance and prohibit or restrict the transfer of land by or among members of the Scheduled Tribes” [5.(2).(a)]. And, “No regulation shall be made unless the Governor making the regulation has, in the case where there is a Tribes Advisory Council for the state, consulted such Council.”[5.(5)]
The above are the constitutional provisions with regard to peace and good governance in general and land transfers in particular. The sad fact is over the past ten years about 100 MoUs have been signed with industrialists. Most of them are to be situated in Scheduled Areas. More than one lakh acres of mostly Scheduled Tribes land is meant to be acquired. During the span of ten years very few Tribes Advisory Council meetings have been held. In no meeting the MoUs that were being entered into with industrialists were placed before the TAC members and their advise sought. Consequently the Governor has not made any regulation to allow the MoUs in the Scheduled Areas of the State. But the land acquisition process has been set afoot with tremendous speed and vigour. With land alienation comes displacement of Scheduled Tribes people. Strange but true, the State govt has not kept an account of how many acres of land have been acquired and how many people have been displaced. This, in short, is a crime perpetrated by the State against the Scheduled Tribes people of the State.
Lo and behold, there have been four Governors in Jharkhand during the last ten years. No Governor sought the advise of the Tribes Advisory Council with regard to the various MoUs and its consequence in terms of alienation of Scheduled Tribes land and the displacement of Scheduled Tribes people.
II. We now come to the field of legislation. One of the most significant legislations passed by the Parliament in recent times in favour of the Adivasi People is The Provisions of the Panchayats (Extension tol the Scheduled Areas) Act, 1996 [PESA]. It emerged as a result of the over due realization that the Adivasi People have been neglected during all the years of independence.
Some of the salient points of this Act are:
(a) a State legislation on the Panchayats that may be made shall be in consonance with the customary law, social and religious practices and traditional management practices of community resources;
(b) a village shall ordinarily consist of a habitation or a group of habitations or a hamlet or a group of hamlets comprising a community and managing its affairs in accordance with traditions and customs;
( c) every village shall have a Gram Sabha consisting of persons whose names are included in the electoral rolls for the Panchayat at the village level;
(d) every Gram Sabha shall be competent to safeguard and preserve the traditions and customs of the people, their cultural identity, community resources and the customary mode of dispute resolution;
(e) every Gram Sabha shall-
i. approve of the plans, programmes and projects for social and economic development before such plans, programmes and projects are taken up for implementation by the Panchayat at the village level;
(k) the recommendations of the Gram Sabha or the Panchayats at the appropriate level shall be made mandatory prior to grant of prospecting licence or mining lease for minor minerals in the Scheduled Areas;
(l) the prior recommendation of the Gram Sabha or the Panchayats at the appropriate level shall be made mandatory for grant of concession for the exploitation of minor minerals by auction;
(k) the recommendations of the Gram Sabha or the Panchayats at the appropriate level shall be made mandatory prior to grant of prospecting licence or mining lease for minor minerals in the Scheduled Areas;
(m) (ii) the Gram Sabha shall have the ownership of minor forest produce;
(iii) the power to prevent alienation of land in the Scheduled Areas and to take appropriate action to restore any unlawfully alienated land of a Scheduled Tribe;
(vi) the power to exercise control over institutions and functionaries in all social sectors;
The Jharkhand govt hurriedly passed a Panchayati Raj Adhiniam, 2001, without any consultation with the Adivasi People and their mass fronts, which took away some important powers of the Gram Sabha given in PESA Act. Some such powers denied by the State Act are :
· Gram Sabha shall be consulted before making the acquisition of land for development projects and before re-settling or rehabilitating persons affected by such projects; (4: i)
State Act makes no mention
· It’s recommendations shall be sought before granting prospective license or mining lease for minor minerals and before granting of concession for the exploitation of minor minerals by auction;
(4: k – l)
State Act makes no mention
· Gram Sabha & Panchayat to be endowed with the ownership of minor forest produce (4: m.ii)
State Act Concurs 2.10.1.ka.xi
State Act gives only the responsibility for the care & protection of forests to the Gram Sabha but not the ownership of forest-produce. State Act gives this power only Zila Parishad. State Act 2.10.1.xxxvi
· Gram Sabha & Panchayat are given the power to prevent alienation of land in Scheduled Areas and to restore unlawfully alienated land of the adivasi to the Gram Sabha (4 m.iii)
State Act makes no mention
· Gram Sabha & Panchayat to be endowed with the ownership of minor forest produce (4: m.ii)
State Act Concurs 2.10.1.ka.xi
State Act gives only the responsibility for the care & protection of forests to the Gram Sabha but not the ownership of forest-produce. State Act gives this power only Zila Parishad. State Act 2.10.1.xxxvi
· Gram Sabha & Panchayat given the Power to exercise control over institutions & functionaries in all social Sectors (education, health etc.) (4 m.vi)
State Act gives it only Zila Parishad. 7.77.ga.2
Very unfortunately, although the Supreme Court has cleared the PESA Act in its totality, the Jharkhand Govt has yet to formally announce its implementation. The lame excuse was that the Panchayat Election has not been held for over two decades and hence Panchayats are not in existence in the State. Now that excuse also does not hold because election has been held and panchayats have started functioning. However, MoUs with industrialists continue to be signed. Attempts are made to divide village communities and dupe people with the promise of giving them jobs in the company if they agree to give their land. The local administration, the police are very much with the companies. The people resisting land-alienation and displacement are easily labeled as extremists / Maoists / Naxalites. They are harassed, implicated in false cases, arrested, tortured and even killed. This is the implementation of PESA Act in Jharkhand!
A hope and a plea
Can Human Rights organizations, concerned intellectuals, socially conscious media, conscientious legal professionals come forward and take the State Govt to task and if need be take legal action demanding immediate implementation of PESA Act. Finally, is it too much to hope that the judiciary at whatever level will take suo motu action on Jharkhand govt and direct it to implement the PESA Act in full immediately.
Friday, April 22, 2011
Jaitapur area against farmers, fishing folks and other rural artisans who have launched a non-violent and protracted democratic struggle against snatc
Statement Against Police firing on Protestors in Jaitapur, Maharashtra
New Delhi, Dt. 19th April, 2011
We, the undersigned individuals and organizations condemn the Maharashtra Police firing on protestors who were demonstrating against the proposed Nuclear Power Park at Jaitapur, Ratnagiri, Maharashtra.
The corrupting influence of the nuclear companies over the political parties has been revealed in the Indo-US nuclear deal. These are the same political players who had played dubious roles during struggle against Enron power plant.
This incident happened at the protest which was organized against the Union Environment Minister’s statement saying, come what may the Nuclear Park will be built in Jaitapur and Prime Minister’s consistent advocacy for nuclear energy unmindful of the tragic incident in Japan.
In the police firing on 18th April, 2011, one person died and 8 others were seriously injured. This firing should not be seen in isolation. For the past one year, the government of Maharashtra has unleashed a reign of terror in the entire Jaitapur area against farmers, fishing folks and other rural artisans who have launched a non-violent and protracted democratic struggle against snatching away of their land, livelihood and the imminent catastrophe from the proposed Nuclear Power Park.
We oppose any forcible acquisition of land against the wishes of the local farmers.
The high-handedness of Maharashtra State Government has been evident for the last four years. A local Konkani activist Vaishali Patil and even other prominent Konkan and Maharashtra residents like Retd. Admiral L. Ramdas and Retd. Supreme Court Justice P B Sawant were arbitrarily declared out of bounds from Ratnagiri District.
This is a flagrant violation of democratic rights. This is clear example of stamping out the right to protest which is one of the sacrosanct constitutional rights in the country. It should be noted that Mr. Narayan Rane, the State Revenue Minister who also hails from the Konkan region has been going around Jaitapur area and threatening everyone who protests against the proposed Nuclear Power Park. Mr. Rane has also openly given a call to local Indian National Congress cadres to forcibly drive out the activists who are protesting against the Nuclear Power Park.
We are seriously concerned about Shiv Sena’s role in provoking the tragic incident. Motivated hooliganism and strong arm tactics of Shiv Sena is a well known phenomena which often dissipates the possibility of peaceful democratic protests. This provides the logic to the administration for Police repression and vilifying peaceful mass protests. Shiv Sena’s opportunism in the Anti- Enron Struggle in the 1990s is well known.
We disapprove of such rank opportunism of these political outfits which attempts to divert the studied pace and direction of the ongoing struggle against the Nuclear Power Park in the Ratnagiri district.
The people of Jaitapur are carrying out peaceful struggle against the proposed Nuclear Power Park for the past 4 years, but Congress Party’s partisan role and Shiv Sena’s unwarranted entry into the struggle has vitiated the atmosphere.
In the aftermath of the nuclear accidents in Three Mile Island, Chernobyl and Fukushima, a stark rationale for the abandonment of nuclear energy has emerged. In a situation where admittedly public health infrastructure is non-existent to deal with the inevitable event of nuclear emergency, promotion of nuclear commerce cannot be approved. We disapprove of nuclear energy in such a context where countries after countries are abandoning or doing a rethink about this optio