Monday, November 14, 2022

विषय-केंन्द्र की स्मामित्व योजना के तहत प्राॅपर्टी/संपत्ति कार्ड की योजना को झारखंड में लागू नहीं करने एवं पांचवी अनुसूचि, पेसा कानून, सीएनटी, एसपीटी एक्ट कानून का उल्लंघन कर राज्य में बनायी गयी भूमि बैंक का रदद करने की मांग के संबंध में।


 सेवा में,

माननीय मुख्यमंत्री श्री हेमंत सोरेन                                                                                                  04/2022

झारखंड सरकार                                                                                                                दिनांक-7 नवंबर 2022

विषय-केंन्द्र की स्मामित्व योजना के तहत प्राॅपर्टी/संपत्ति कार्ड की योजना को झारखंड में लागू नहीं करने एवं पांचवी अनुसूचि, पेसा कानून, सीएनटी, एसपीटी एक्ट कानून का उल्लंघन कर राज्य में बनायी गयी भूमि बैंक का रदद करने की मांग के संबंध में। 

महाशय,

आप को सादर जानकारी दी जाती है कि अप्रैल 2020 को केंन्द्र सरकार द्वारा घोषित स्वामित्व योजना के तहत डिजिटल लैंण्ड रिकाॅर्ड आधुनीकीकरण कार्यक्रम के तहत ड्रोन से गांवों की संपत्ति का सर्वेक्षण कर जीआईएस मानचित्र बनाये जाएगें। साथ ही जमीन मालिकों को प्राॅपटी कार्ड बना कर दिया जाएगा। ये जीआईएस नक्से और स्थानीय डेटाबेस ग्राम पंचायतों और राज्य सरकार के अन्य विभागों द्वारा विभिन्न कार्यों के लिए उपयोग किये जाएगें। इस स्वामित्व योजना का कई उद्वेश्यों के साथ मूल उद्वेश्य एक राष्ट्र एक साॅफटवेयर( व्दम छंजपवद व्दम ैवजिूंतम द्ध व्यवस्था करना है। 

लेकिन कि हम झारखंड के आदिवासी समुदाय का इतिहास गवाह है कि जल, जंगल, जमीन को आबाद करने का हमारा अपना गौरवशाली इतिहास है। आदिवासी समुदाय खतरनाक जंगली जानवरों से लड़ कर जंगल-झाड़ को साफ कर गांव बसाया, जमीन आबाद किया है। आदिवासी-मूलवासी किसान समुदाय जंगल, नदी-झरनों, पहाड़ों की गोद में ही अपने इतिहास, भाषा-सांस्कृति, पहचान के साथ विकसित होता है। 

प्राकृतिक-पर्यावरण जीवन मूल्य के साथ आदिवासी-मूलवासी समुदाय के ताना-बाना को संरक्षित और विकसित करने के लिए ही छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम 1908, संताल परगना काश्तकारी अधिनियम 1949 बनाया गया है। साथ ही भारतीय संविधान में पेसा कानून 1996 एवं पांचवी अनुसूचि में आदिवासी समुदाय के जल, जंगल, जमीन पर इनके खूंटकटी आधिकार सहित सभी परंपरागत अधिकारों का प्रावधान किया गया है। यही हमारा स्वामित्व का पहचान है। 

सर्व विदित है कि आदिवासी समुदाय के जंगल, जमीन, सामाजिक संस्कृतिक, आर्थिक आधार को संरक्षित एवं विकसित करने के लिए भारतीय संविधान में विशेष कानूनी प्रावधान किये गये हैं। सीएनटी, एसपीटी एक्ट, पेसा कानून, फोरेस्ट राईट एक्ट 2006 में विशेष प्रावधान है। इसके तहत गांव के सीमा के भीतर एवं बाहर जो प्राकृतिक संसाधन है जैसे गिटी, मिटी, बालू, झाड़-जंगल, जमीन, नदी-झरना सभी गांव की सामुदायिक संपत्ति है। इस पर क्षेत्र के ग्रामीणों का सामुदायिक अधिकार है। ये अधिकार 1932 के खतियान और विलेज नोट एवं खतियान पार्ट टू में भी दर्ज है। 

ये सभी अधिकार आदिवासी समुदाय के लंबे संघर्ष और शहादत के बाद मिला है। खतियान एवं वीलेज नोट में दर्ज सामुदायिक एवं खूंटकटी अधिकार को बचाना जगरूक नागरिकों के साथ राज्य की कल्याणकारी सरकार की भी जिम्मेवारी है। 

वर्तमान में लाया जा रहा केंन्द्र सरकार की स्वामित्व योजना का उद्वेश्य भारत के लिए एक सकीकृत संपत्ति सत्यापन-समाधान के तहत पूरे देश के लिए एक ही डिजिटल लैंण्ड रिकाॅर्ड-डाटा बनाना है। जो पांचवी अनूसुचि क्षेत्र एवं सीएनटी एक्ट, एसपीटी एक्ट, मुंण्डारी खूंटकटी अधिकार, हो आदिवासी बहुल क्षेत्र के विलकिनसन रूल्स में प्रावधान अधिकारों के खिलाफ है। इन कारणों को यहां रेखांकित करना चाहते हैं।

हम सभी नम्रतापूर्वक निम्नलिखित बिंन्दुओं पर आप का ध्यान खिचना चाहते हैं-

स्वामित्व योजना के कार्यान्वयन के लिए बनी दिशानिर्देक में झारखंड के 5वीं अनुसूचि क्षेत्र के प्रावधानों, सीएनटी एक्ट, एसपीटी एक्ट, पेसा कानून, मुंण्डारी खूंटकटी अधिकारों एवं विलकिनसन रूल्स के प्रावधानों को संरक्षित करने के संबंध में कुछ भी जिक्र/प्रावधान नहीं किया गया है। 

दूसरा बड़ा सवाल है- कि समाज की सामुदायिक -सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक अस्तित्व के ताना-बाना से जुड़ भूमि जैसे नदी-नाला, झील-झरना, सरना, मसना, अखड़ा, ससनदीरी-हडगड़ी, भूइहरी, डालीकतारी, भूत-खेता आदि को 2014 के बाद गलत तरीके से भूमि बैक में शामिल किया गया है-यह समुदाय की संपत्ति है। इसको यथावत समुदाय के स्वामित्व में सुरक्षित रखने का कोई जिक्र या प्रावधान नहीं किया गया है। 

2014 के बाद लैंण्ड रिकाॅर्ड आॅनलाइन होने के बाद जमीन के रिकाॅर्डों -रैयतों के खतियान, पंजी टू और खतियान पार्ट टू में प्रावधान रिकाॅर्डो में छेड-छाड़ किया जा रहा है। रातों रात असली जमीन मालिकों का नाम हटा कर किसी दूसरे नाम दर्ज किया जा रहा है। यह पूरी तरह से 5वीं अनुसूचि, सीएनटी, एसपीटी एक्ट, पेसा कानून एवं 1932 सहित सभी खतियान का अतिक्रमण एवं इससे  खत्म करने की कोशिश है। 

जमीन संबंधित मुददे राज्य सरकार के अधीन है। यह क्षेत्र 5वीं अनुसूचि में हैं, एैसे में केन्द्र सरकार का स्वामित्व योजना को लागू करने के पहले राज्य के जनजातीय परामर्शदात्री समिति-टीएसी में चर्चा होनी चाहिए थी। इसके बाद राज्य के कैबिनेट में पास होना था। इसकी जानकारी आदिवासी समुदाय को भी देनी थी। लेकिन एैसा नहीं हुआ। 

आदिवासी-मूलवासी समुदाय जंगल-जमीन के संबंध में कई समस्याओं से जुझ रहा है - 2014 के बाद भूमि बैंक बना, आखिर किस नीति के तहत बना? क्या सीएनटी, एसपीटी एक्ट, 5वीं अनुसूचि, पेसा कानून में संवैधानिक संशोधन करके बना है? इस सवाल का जवाब कौन देगा? राज्य के आदिवासी -मूलवासी समुदाय जानना चाहती है। 

स्वामित्व योजना के तहत प्राॅपटी कार्ड बनाने के संबंध में भी कई बड़े सवाल हैं-समाज का सामुदायिक संपत्ति/भूमि जो खतियान पार्ट टू में दर्ज है, समुदाय सामूहिक उपयोग करता है। गांव में समुदाय बहुत सारे परंपरागत भूमि/संपत्ति है जिसका लगान भुगतान नहीं किया जाता है जो समाज का स्वामित्व में है-इसका प्राॅपटी कार्ड किसके नाम से बनेगा? 

संपत्ति/प्राॅपटी कार्ड योजना के लागू होने से आदिवासी इलाके में निम्नलिखित खतरे भविष्य में होगें-

1-परंपरागत ग्रामीण आदिवासी इलाके का डेमोग्राफी -भौगोलिक एरिया, क्षेत्र पूरी तरह से बदल जाएगा। कारण 2016 के बाद ग्रामीण इलाके के गैर मजरूआ आख, आम, जंगल-झाडी, परती-झरती, नदी-नाला आदि सामुदायिक भूमि का खरीद-फरोक्त चरम पर हेै। 

2-भूमि बैंक बनने के बाद 5वीं अनुसूचि क्षेत्र, सीएनटी, एसपीटी एक्ट, मुंण्डारी खूंटकटी इलाके में गैर मजरूआ आम, गैर मजरूआ खास, जंगल-झाड़ी, नदी-नाला जैसे सामुदायिक भूमि का खरीद-फरोक्त 

के कारण भारी संख्या में बाहरी आबादी का प्रवेश एवं कब्जा बढ़ता जा रहा है।

3-आदिवासी ग्रामीण इलाके में शहरी एवं बाहरी आबादी के प्रवेश से प्राकृतिकमूलक जीवनशैली से जुडे आदिवासी-मूलवासी, दलित, किसान समुदाय का परंपरागत सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक आधार खत्म हो जाएगा। 

4-ड्रोन सर्वे पूरा होने के साथ ही गांव का नया डिजिटल डेटा बेस नक्सा बनेगा। इस नये डिजिटल नक्सा और 1932 के खतियान में कोई मेल नहीं रहेगा। ताजा उदाहरण है -आॅनलाइन डिजिटल खतियान और 1932 का मैनुअल-आॅफलाइन खतियान। तब निश्चित है कि नया डिजिटल नक्सा बनने के साथ ही आदिवासी -मूलवासी समुदाय को, सामुदायिक अधिकार देने के साथ ऐतिहासिक पहचान देने वाला 1932 का खतियान अस्तित्व विहीन हो जाएगा। 

5-परिणाम स्वरूप आदिवासी समुदाय के अधिकार, सीएनटी एक्ट, एसपीटी एक्ट, 5वीं अनुसूचि, मुंण्डारी खूंटकटी अधिकार, कोल्हान क्षेत्र का विलकिनसन रूल्स स्वतः कमजोर हो जाएगा। 

6-ड्रोन सर्वे पूरा होने के बाद, जमीन का मालिकाना हक सत्यापित करने के लिए ग्रामीण आदिवासी, मूलवासी, दलित समुदाय से कई तरह के जमीन संबंधी दस्तावेज मांगे जाएगें, भोले-भाले ग्रामीण दस्तावेज पेस नहीं कर पायेगें। ऐसे परिस्थिति में जमीन उनके हाथ से निकल जाएगा।

7-ग्रामीण इलाके में बढ़ते शहरी आबादी के कारण ग्रामीण कृषि अर्थव्यवस्था, वन व्यवस्था, जल स्त्रोत एवं पर्यावरणीय व्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पडेगा। 

8-ग्रामीण आदिवासी इलाके में बड़ी संख्या में बाहरी आबादी के प्रवेश होने से राज्य में आदिवासी आबादी तेजी से घटेगी, परिणाम स्वरूप आदिवासी समुदाय की सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक एवं राजनीतिक शत्कि स्वतः कमजोर होगा। 

कई उदाहरण हैं-ग्रामीण जमीन का प्रर्याप्त दस्तावेज पेस नहीं कर पाने के कारण अपने ही परंपरागत अधिकार से बंचित हो रहे हैं। 

1-विगत सुप्रीम कोट का फैसला-जिसमें झारखंड से 1,07,187 लोगों ने जंगल की भूमि पर अपने कब्जे का दावापत्र पेस किया था। लेकिन 27,809 आवेदकों के दावापत्र रदद कर दिया गया। कारण कि लोगों ने अपना दावा साबित नहीं कर सका। 

2-जमीन पर सदियों से ग्रामीणों का कब्जा  है, खेत-बारी करते आ रहे हैं, जमीन का खतियान उनके हाथ में है, आॅफलाइन जमीन का रसीद काटता था-अब आॅनलाइन रसीद काटना बंद कर दिया गया। भूमिदान में मिला जमीन भी छीना जा रहा है -कानून के तहत राज्य में लाखो छोटे किसान और भूमिहीन परिवारों को एक-एक, दो-दो एकड़ भूमिदान में मिला था। जमीन का लगान भी भुगतान करते आ रहे थे-अब एैसे जमीन का लगान रसीद काटना बंद कर दिया। अब ग्रामीणों से कई तरह के साबूत पेस करने के लिए कहा जा रहा है, लोग परेशान है। 

3-जमीन आॅनलाइन व्यवस्था में भारी गड़बड़ी-राज्य में जमीन संबंधित काम-2014-15 तक आॅफलाइन हो रहा था। जमीन मालिक आॅफलाइन रसीद हल्का कर्मचारी द्वारा कटवा रहे थे। आॅनलाइन व्यवस्था होने के बाद जमीन के दस्तावेज-खतियान में भारी गड़बडियां हो गयी है। किसी का खतियान में रैयत का नाम गलत है, खाता नंबर गलत है, प्लाॅट नंबर गलत है, जमीन का रकबा गलत है। इसको सुधारवाने के लिए लोग प्रज्ञा केंन्द्र, अमीन के पास, अंचल पदाधिकारी के पास दौड़ते -दौड़ते थक रहे हैं-कार्रवाई नहीं हो रहा है। 

4-आॅनलाइन खतियान में गलती के कारण बहुत से किसान जमीन का मलगुजारी रसीद 4-5 सालों से नहीं कटवा पा रहे हैं। 

इस तरह से आदिवासी-मूलवासी, किसान, दलित समुदाय से जमीन निकल जाएगा। यही नहीं समुदाय का सुरक्षा कवच सीएनटी एक्ट, एसपीटी एक्ट, पेसा कानून, मुंण्डारी खूंटकटी अधिकार कागजों पर रहेगा, लेकिन वास्तविक अधिकार स्वतः खत्म हो जाएगा। 

उपरोक्त परिणामों से जमीन का लूट बढ़ेगा। परिवार और समाज में अशांति बढ़ेगा। इससे उत्पन्न परिस्थितियों से विस्थापन, पलायन, बेरोजगारी, भूख, भूमिहीन, सूखा-आकाल एवं प्रदूषण जैसे महामारी का ही सामना करना पडेगा। 

हमारी मांगे-

1-केंन्द्र सरकार द्वारा लायी जा रही स्वामित्व योजना के तहत प्राॅपटी/संपत्ति कार्ड योजना का झारखंड में लागू नहीं किया जाए।

2 सीएनटी एक्ट, एसपीटी एक्ट, 5वीं अनुसूचि एवं पेसा कानून में प्रावधान अधिकारों को कड़ाई से लागू किया जाए।

3-आदिवासी बहुल खूंटी जिला में प्राॅपटी कार्ड बनाने के लिए ड्रोन से जमीन/संपत्ति का सर्वे किया जा रहा था को होल्ड किया गया है, इसको स्थायी रूप से रोका जाए। साथ ही गांव -गांव चुपके से जाकर भूमि बैंक में शामिल किये गये प्लाॅटों का ग्रांउड/जमीनी सत्यापन किया जा रहा है-इससे रोका जाए।

4-रघुवर सरकार ने गैर मजरूआ आम, खास , जंगल-झाड़ी जमीन को भूमि बैंक में शामिल किया है, इस भूमि बैंक को रदद किया जाए। 

5-आॅनलाइन जमीन के दस्वातेजों का छेड़-छाड़ हो रहा है, इससे रोका जाए।

6-जमीन का लगान रसीद आॅफलाइन काटा जाए।

7-जमीन के दस्तावेजों में भारी गड़बडी, छेड़-छाड़ किया गया है, उसको ठीक -सुधारा जाए। ठीक करने के नाम पर ग्रामीणों से पैसा वासूला जा रहा है-इससे रोका जाए। 

8-सीएनटी, एसपीटी एक्ट का उल्लंघन करके आदिवासी समुदाय का जमीन गलत तरीके से हडप लिया गया था, एसएआर कोट ने फैसला दिया था इस जमीन को आदिवासी समुदाय को वापस कब्जा दिलाने का, जो आज तक कार्रवाई नहीं हुआ है इस पर रैयतों को दखल कब्जा दिलाया जाए।

9-राज्य के सभी जलस्त्रोंतों नदी-नाला, झील-झरना, डैम का पानी किसानों के खेतों तक पाइप लाइन द्वारा सिंचाइ के लिए पहुंचाया जाए। 

10-2013 के जमीन अधिग्रहण कानून को कड़ाई से लागू किया जाए। 

                       निवेदेक-

              खतियान-जमीन बचाओं संघर्ष मोर्चा

घटक संगठन-आदिवासी मूलवासी अस्तित्व रक्षा मंच-दयामनी बरला-मो0 9431104386

                                           त्ुाुरतन तोपनो, नियारन तोपनो, राजू लोहरा, शिवशरण मिश्र, ज्वालंत तोपनो

2-केंन्द्रीय जनसंघर्ष समिति-लातेहार-गुमला-जेरोम जेराल्ड कुजूर, अनिल मनोहर, प्लादियुश, पात्रिक कुजूर, रोज खाखा

3-जबड़ा डैम प्रभावित संघर्ष समिति-बिरसा सांगा, रीता तिडू, जोर्ज धान, सिलाश धान, लोधा पाहन

4-आजादी बचाओं आंदोलन-मिथलेश डांगी

5-पहाडिया आदिवासी बचाओं समिति-संताल परगाना-रमेश मालटो

6-आदिवासी जागरूता मंच-गुमला-बहन सिसलिया

7-चांडिल विस्थापित समिति-आंम्बिका यादाव

धरना सभा को संबोधित किये-अनुप खेस-बसितया, जागेश्वर लकड़ा-सिसाई, जस्टीन बेक-सिमडेगा, तुरतन तोपनो-तोरपा, सुषमा बिरूली-रांची, जुनास लकड़ा-मांडर, मिथलेश डांगी-हजारीबाग, रोज खाखा-गुमला, मंथनजी-जमशेदपुर, हीरा मिंज-रांची, बरथलमय सांगा-खूंटी, जादू मुंडा-तमाड़, मनोहर केरकेटा-महुंआटांड, प्रफूल लिंडा-आदिवासी संघर्ष मंच रांची, अम्बिका यादव-चांडिल, दयामनी बरला, एलिना होरो। 

स्ंाचालन- हादू तोपनो।     


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