Wednesday, May 11, 2011

चांडिल डैम के नीचे बसाये गये -गांगुडीह -के विस्थापितों को एक बुंद पानी नसीब नहीं


1982-84 में बिहार, बंगाल, उडिसा के 1, 60,000 हेक्टेयर जमीन को सिंचने के नाम पर वर्तमान सरायकेला खरसंवा जिला के चांडिल क्षेत्र के 84 मौजा -गांवों को उजाड़ा गया। इस परियाजना से नहर सहित 116 गांवों की जमीन डूब गयी। जिसकी आबादी-उस समय करीब 40,000 थी। यहां के उजड़े विस्थापितों को आज तक सही पूनर्वासित नहीं किया गया, ताकि वे मानवीय जीवन जी सकें। आज एक बेला की रोटी के लिए, मलेरिया के एक टेबलेट के लिए, दर -दर भटक रहे हैं। पूनर्वास एंव पूनर्वास्थापन के नाम पर 10-10 डिसमिल जमीन में कैद कर रखा गया, जंहा-तंहा फेंक दिया गया । जहां सरकार ने उनके लिए -सुवर गुड़ा- पिग हाउस -4 बाए 6 फीट का मकान बना दिया। बच्चों के -पढाई-लिखाई के लिए न स्कूल हैं, न कालेज। बीमारी में इलाज के कोई सुविधा नहीं। चांडिल डैम का पानी पूरे टाटा कंपनी को सप्लाई दे रहा है, जिससे सरकार सालाना करोड़ो राशि कमा रही हैं। लेकिन चांडिल डैम के नीचे बसाये गये -गांगुडीह -के विस्थापितों को एक बुंद पानी नसीब नहीं। इनके वोट से राज्य में कई नेता-मुख्यंत्री बने, कई मंत्री बने-लेकिन इन विस्थापितों को पूछने वाला कोई नहीं, अलग राज्य तो इनको न्याय देने के लिए बना था...आखिर हम राज्य को कहां ले जाना चाहते हैं?

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