Wednesday, May 11, 2011

आदिवासी मूलवासी अस्तित्व रक्षा मंच ने नारा दिया है-स्टील नहीं-आनाज चाहिए कारखाना नहीं-धरती का विकास चाहिए


झारखंड अलग राज्य बनने के बाद दस सोलों में राज्य सरकार ने 103 बड़े देशी -बिदेशी कंपनियों के साथ एम ओ यू साईन किया है। विदित हो कि इन 103 कंपनियों में 98 कंपनियां सिर्फ स्टील मेकर हैं। हरेक कंपनी को कारखाना लगाने के लिए निम्न तरह से जमीन चाहिए
1. स्टील फैक्ट्री के लिए जमीन चाहिए
2. पावर प्लांट के लिए जमीन चाहिए- किसी को कैप्टिव पवार प्लांट, किसी को थर्मल पवार प्लांट चाहिए
3. पानी के लिए डैम चाहिए( दोनों कारखाना-स्टील प्लांट और पावर प्लांट के लिए)
4. अयर ओर माइंस चाहिए
5. दोनों कारखाना ( स्टील और पावर प्लांट) के लिए अलग अलग कोयला खदान चाहिए
6. इनके सभी मांइस के लिए पानी चाहिए
7. स्टील प्लांट और पावर प्लांट लगने वाले इलाके में शहरीकरण या टाउनशिप के लिए जमीन चाहिए
8. रोड़ के लिए जमीन चाहिए
9. देशी -विदेशी बाजार में माल भेजने के लिए रेलवे लाइंन ताथ बंदरगाह चाहिए
यदि सभी 103 कंपननियों को राज्य में निवेश करने की अनुमति दी जाए तो--राज्य का 98 प्रतिशत जंल-जंगल-जमीन-पहाड़, नदी-नाला सिर्फ स्टील कंपानियां निगल जाएगें। विदित हो की झारखण्ड का छेत्रफल ७९,७ ४१ वर्ग किलो मीटर hai परिणाम होगा-आदिवासियों-मूलवासियों, किसानों के हाथ में एक इंच भी जंगल, नदी-झारना, जमीन नहीं बच पाऐगा।
इसी लिए आदिवासी मूलवासी अस्तित्व रक्षा मंच ने नारा दिया है-स्टील नहीं-आनाज चाहिए
कारखाना नहीं-धरती का विकास चाहिए

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