Sunday, May 22, 2011

आखिर सच्चाई से आप कब तक दूर भागेंगें?

आखिर सच्चाई से आप कब तक दूर भागेंगें?
21 मई 2011 को झारखंड सरकार के जल संसाधन विभाग के प्रधान सचिव संतोष सतपथी का बयान अखबारों में छापा-झारखं डमें अब नहीं बनेगें बड़े डैम-इन्होंने कहा की इस संबंध में सरकार जल्दी ही नीतिगत फैसला लेगी। प्रधान सचिव संतोष सतपथी ने शुक्रवार को 12वीं पंचवर्षीय योजना के सूत्रण विषयक कार्यशाला में यह बात कही। उन्हों कहा-बड़े डैम बनने की घोषण होने से बाद से ही आंदोलन, विस्थापन, पुर्नवास और अन्रू बातें होने लगती हैं। भूमि अधिग्रहण, वन और पर्यावरण विभाग का क्लायरेंस, तकनीकी और प्रबंधकीय क्षमत की कमी की वजह से इन योजनाओं के पूरा होने में भी काफी समय लगता है।
चेक डैम बनाने को प्राथमिकता-सरकार के पास विकल्प
जल संसाधान विभाग के प्रधान सचिव संतोष सतपथी ने कहा कि झारखं डमें सुवर्णरेखा समेत सात बड़ी योजनाएं पूरी नहीं हो सकी हैं। मध्यम दरजे की सिंचाई योजनाओं की स्थित भी कमोबेश यही है। सरकार उदवह सिंचाई योजनाएं और श्रंखलाबद्व चेक डैम बनाने को प्राथमिकता दे रही है। 2016-17 तक लंबित 12 परियोजनाओं को पूरा करने में 5343 करोड़ रूपये खर्च होंगे और सिंचाई की क्षमता मात्र तीन प्रतिशत बढ़ेगी। फिलहाल राज्य में निश्चित सिंचित चेत्र 17 प्रतिशत के आसपास है।
जल संसाधन सचिव ने कहा कि सरकार के पास कई विकल्प हैं। इस पर गहराई से ध्यान देना जरूरी है। किसी भी जलाशय की डी सिल्टिंग आत तक नहीं हुई है। यही हालत रांची में है। इनमें रूक्का, हटिया और गोंदा डैम शामिल हैं। उन्होंने कहा कि सरकार विचार कर रही है कि कैसे मरेगा मजदूरों को डी सिल्टिंग में लगाया जाए, क्योंकि इसके लिए प्रत्येक वर्ष केंन्द से दो हजार करोड़ मिलते हैं। ग्रामीण इलाकों में पानी उपयोग समिति का गठन करने, नदियों से अतिक्रमण हटाने और बारिश का जल को संरक्षित करने की आवशयकता है। नदियों में स्वच्छ पानी का बहाव राज्य सरकार सुनिश्चित करेगी। 12 वीं पंचवर्षीय योजना में छोटी योजनाओं में सात सौ करोड़ खर्च कर सिंचाई सुविधा को 70 प्रतिशत करऩे की योजना है।
मुख्या सचिव के इस बयान को चाहे हम जिस रूप में भी लें-लेकिन सच्चाई तो यही है कि 84 मौजा के 116 गांवों को डूबा कर 1984-86 में सुवर्णरेखा डैम बना। जहां से 40,000 से अधिक लोग विस्थापित हुए। आज तक इन्हें सही पुनर्वास नहीं किया गया। नौकरी नहीं दिया गया। आज ये दर-दर भटक रहे हैं। 86 मौजा के गांवों को उजाड़कर तेनुघाट डैम बना। जहां से 50 हजार से अधिक लोग विस्थापित हुए। आज इन्हें पूछने वाला कोई नहीं। इसी तरह पंचेत डैम, कुडकू डैम, से भी गांव के गांव उजड़े। सभी विस्थापितों का दर्द एक ही है।
710 मेगावाट बिजली पैदा करने के नाम पर कोयल नदी और कारो नदी पर बांध बनाने का प्रस्ताव था। कोयल कारो जनसंगठन के बैनर तले स्थानीय लोगों ने डैम के खिलाफ 30 वर्षों तक संघर्ष कियें। झारखंड अलग राज्य गठन के बाद राज्य का पहला मुख्यमंत्री श्री बाबूलाल मरांडी के समय 2 फरवरी 2001 को संगठन के साथियों पर पुलिस फायरिंग हुई। ेइसमें 8 लोग शहीद हुए। आज जब राज्य में अतिक्रमण हटाने के नाम पर शहर से लाखों लोगों के आसियाने टुट रहे हैं। सही में यह अमानवीय और लोकतंत्र की हत्या है। इन पीडि़तों के साथ बाबूलाल मरांडी खड़े हुए। अनशन में बैठे। अपने आंदोलन मे श्री मरांड़ी जी ने विकास के नाम पर पूर्व हुए विस्थापितों को सवला भी उठाये-कि इन विस्थापितों को आज तक न्याय नहीं मिला है। यहां मेरा मनना है-कि यह श्री मरांड़ी जी ने इसे राजनीतिक लाभ के लिए भले ही उठायें होंगें-लेकिन इस सच्चाई को स्वीकार तो कर रहें हैं कि-पूर्व के विस्थापितों के साथ अन्याय हुआ है। विदित हो कि आज तक राज्य सरकार ने 103 देशी -विदेशी कंपानियों के साथ एमओयू किया है, और सभी कंपानियों को जल-जंगल-जमीन सौंपने की तैयारी में हैं। इसके खिलाफ पूरे झारखंड आदिवासी, मूलवासी, किसान संर्घषरत हैं-नारा दिये हैं-अब हम अपने पूर्वर्जो की एक इंच जमीन नहीं देगें।

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