Tuesday, May 3, 2011

अतिक्रमण हटाने के बहाने शहर के गरीबों का सफाया नहीं करेगें-तो राज्य का इस मिशन के तहत मिलने वालीराशि -1, 65,000 करोड़ जो नहीं दी जाएगी।

अतिक्रमण हटाने, रोड़ के किनारे से फुटपाथ दुकानदारों को हटाने, तथा सरकारी जमीन पर अतिक्रमण हटाने के नाम पर झारखंड के गरीबों, आदिवासियों, झुग्गीवासियों के उपर प्रशासन का गज गिर चुका है। पूरा झारखंड आज राज्यकीय दमन से जल रहा है। जिन राजनेताओं ने राज्य के विकास के नाम पर इस कानून को जमीन पर उत्तारने के लिए सरकार को हरी झंण्डी दिखाये-जब कानून के मार से जनता कराह रही है-तब यही राजनेताएं उनके आंसू पोंछने का ढ़ोंग कर रहे हैं। दुखित-पीडि़त जनता उन से मुंह न मोड़ ले-इसके लिए सत्ता और विपक्ष दोनों पीडि़तों के पक्ष में कभी धरना, तो कभी अमरण अनसन कर रहे हैं। रांची जिला, के कई शहर , धनबाद जिला, बोकारो जिला के कई हाजारों परिवार के सर से उनका आशियाना छीन लिया गया है। लोगों को बेधर करने के बाद अब -सभी राजनीतिक पार्टियों के नेताएं -उनके पुनर्वास की मांग कर रहे हैं। ये है झारखंड के नेताओं के दोहरी राजनीतिक चरित्र का गंदा चेहरा। सवाल यह -जब आप पता था कि -जवाहारलाल नेहरू शहरी नीविणीकरण योजना(janerashan) को लागू किया जाएगा-तो भारी संख्या में उजडेंगे ही-तब इस कानून का लागू ही नहीं करने देना था, रोकना था। लेकिन ऐसा नहीं किया गया-और लोगों को उजाड़ने के बाद उनके पुनर्वास की बात करना पूरी तरह आम जनता के भावनाओं के साथ खिलवाड़ है। लोगों के दर्द के साथ भी वोट की राजनीत करने में सता और विपक्ष में प्रतिस्प्राधा चल रहा है। केंन्द सरकार ने शर्त लगायी है कि-जो राज्य जनेराशन मिशन के तहत अपना काम नहीं करते हैं-झुग्गी-झोपडि़यों को साफ नहीं करेगें, फुटपाथ दुकानदारों को रोड़ से साफ नहीं करेगें, अतिक्रमण हटाने के बहाने शहर के गरीबों का सफाया नहीं करेगें-तो राज्य का इस मिशन के तहत मिलने वालीराशि -1, 65,000 करोड़ जो नहीं दी जाएगी। इस लिए राज्य सरकार लोगों का उजाड़ने में जुटी हुई है।

भारत बदल रहा है। भारत के शहर भी बदल रहे हैं। इसके साथ ही झारखंड के शहर भी बदल रहे हैं। जहां कल शहर के चैक-चैराहों में गरीबों के छोटे-छोटे घर थे, दुकानें थीं-वहां आज टुटा दिवार का टुटा अंश , मिटी का में तब्दील हो गया है। जो गरीबों के बहते अंसूओ के दर्द का बायां कर रहा हैं। हर चीज बदला सा लग रहा है। लोगों के मन में आतंक है कि अगले दिन किस का छत उजड़गे। सरकार के नजर में यही विकास का पैमाना है। सरकार बोली है यह हाईकोर्ट का आदेश है-हाईकोर्ट बोलती है-मैंने बेरहमी से बुलडोज करने को नहीं कहा था। आखिर यह खेल क्यों हो रहा है। यह तो तय है कि जिस भी भूखंड से कमजोर लोगों हटाया जा रहा है-वहां बड़े बड़े पूजिंपतियों का सापिंग मोल बनेगा। कारपोरेट घरानों का सुख सुविधा का केंन्द्र बनेगा। व्यवसायिक केंन्द्र बनेगा। हाई कोर्ट ने यह भी आदेश दिया है कि-ग्रामीण इलाकों में, किसानों के घर-आंगन में जो भी परती जमीन है-वह सरकार की है। जो इस जमीन में घर बनाया है, खेती करता हैं-उस जमीन को किसान के हाथ से छीन कर सरकारी कब्जे में करना है। राज्य के बड़े शहरों में हो रहे अतिक्रमण की आग की लपट प्रखंडों तक पहुंच चुकी है। खूंटी जिला के कर्रा प्रखंड, खूंटी प्रखंड, मुरहू प्रखंड, तोरपा प्रखंड में भी बूलडोजर चलनाशुरू हो गया है। प्रखंड से अब पंचायत तक, और पंचायत से गांव-टोली तक बुलडोजर पहुंचेगा। तब क्या होगा? सभी चिंतित हैं। अतिक्रमण के विवाद ने अभी तक रांची में दो, धनबाद में दो लोगों की जान ले चुकी है।
यूँ देखा जाए तो बदलाव अपने आप में कोई बुरी बात नहीं हैं। बड़े-बड़े दार्शनिक कह गए हैं कि प्रकृति हो या मानव समाज-दोनों में हमेशा से बदलाव होते रहे हैं और आगे भी होते रहेगें। मगर सोचने की बात यह है कि परिवर्तन की दिशा क्या है। बदलाव की चाल, चरित्र और चेहरा कैसे है? क्या बदलाव समाज के आम लोगों की ज्यादा से ज्यादा भलाई की दिशा में हैं या कुछ खास लोगों की तिजोरियां भरने की दिशा में? क्या बदलाव ऐसा है जिससे व्यक्तियों, क्षेत्रों और सामाजिक समूहों के बीच की असमानता कम होती है या ऐसा जिससे विषमता की खाई और चैड़ी होती है? क्या बदलाव कीदिशा में व गति के बार में फैसला व्यापक समाज मिलकर लोकतांत्रिक तरीके से करता है, या कुछ ताकतवर लोग बंद कमरे में बैठकर इसका फैसला करते हैं?
भारत के शहर पिछले कुछ वर्षों से बड़ी तेज रफतार से बदल रहे हैं। दिल्ली हो या मुम्बई, पटना हो या लखनउ, कलकत्ता हो या कोची, सभी शहर आज वल्र्ड -क्लास शहर बनने की अंधी दौड़ में शामिल है। वल्र्ड-क्लास की परिभाषा क्या होगी? इस पर कभी कोई सार्वजनिक चर्चा नहीं की गई। परन्तु आर्थिक, राजनैतिक सामाजिक सत्ता के मालिक -सभी इस विषय पर एकमत हैं कि देश के शहरों को वल्र्ड-क्लास बनाए बिना देख की तरक्की नहीं हो सकती है। उनका दावा है कि शहरों के आधारभूत ढांचे (इंफ्रास्ट्रक्चर) एंव शासन प्रणाली (गवर्नेंस) में यदि सुधार नहीं होता है, तो वर्तमान में 8 फीसदी की दर से जो आर्थिक विकास का घोड़ा दौड़ रहा है वह भारत के एक विकसित राष्ट्र की मंजिल तक पहुंचने से पहले ही बीच में कहीं थक कर बैठ जाएगा। तो ये वल्र्ड-क्लास शहर आखिर है क्या जिसकी सड़कों पर दौडकर आर्थिक विकास का घोड़ा भारत को एक विकसित देश की मंजिल तकपहुंचेगा ?
पिछले 10-15 वर्षों का अनुभव देखें तो साफ समझ में आता है कि वल्र्ड-क्लास माने ऐसा शहर जहां पैसे वालों को आइसो -आराम के वे तमाम साधन उपलब्ध हों जिसके लिए उन्हें पहले अमरीका या यूरोप जाना पड़ता था। जगह-जगह सोपिंग मौल हो, चमचमाते सिनेमाघर हों, उपभाग की सभी वस्तुएं उपलब्ध हों। जब सड़क पर उनकी गाड़ी दौड़े तो बीच में कोई रूकावाट न आए इसके लिए हर चैराहे पर एक पलाईओवर हो। वल्र्ड-क्लास शहर माने ऐसा शहर जहां पर्यटक या बिदेशी निवेशक आएं तो उन्हें भीड़, गंदगी या गरीबी न दिखाई दे। जैसा अनुभव उन्हें लंदन या न्यूयार्क की सड़कों पर चलने में होता है वैसा ही अनुभव उन्हें दिल्ली और मुंम्बई में भी मिले।
लेकिन समस्या यह है कि हमारे शहर कोई वीरान बंजर भूमिं तो है नहीं कि उन्हें जो चाहे रूप दे दो और किसी को नुकसान भी न हो। जाहिर सी बात है जब मेट्रो या सोपिंग मोल बनाने होते हैं तो झुग्गियां उजाड़ी जाती हैं। फिर भल ही उससे लाखों लोग बेघर जो जाएं। जब प्रदूषण कम करने की बात होती है तो कारखानों पे ताले लगाए जाते हैं। फिर भले ही उससे लाखों मजदूर बेराजगार हों। जब पलाइओवर बनते हैं तो पैदल, रिक्सा या साइकिल पे चलने वालों के लिए सड़क पर कोई जगह नहीं रहती है। जब मोल बनते हैं तो छोटे दूकानदार अपनी रोजी-रोटी खो देते हैं। संक्षेप में कहें तो एक थर्ड-वल्र्ड देश में जब वल्र्ड-क्लासशहर बनते हैं तो बहुसंख्यक अवाम की जीवन स्थिति फोर्थ वल्र्ड में पहुंच जाती है।
यह किसी निराशावादी का राग विलाप नहीं बल्कि हमारे शहरों की जमीनी सच्चाई है। दिल्ली शहर को ही देखें तो पिछले 8 सालों में 8 लाख से ज्यादा झुग्गीवासियों को विस्थापित किया गया है। मुम्बई में भी लगभग इतने ही लोग पिछले एक दशक में विस्थापित किए गए हैं। झुग्गिवासी हों या कच्ची कोलोनो के निवासी, रिक्सा चालक हों यह रेहडी-पटरी वाले, कारखाना मजदूर हों या बेघर लोग, आज सभी परप्रशासन की मार पड़ रही है।
अभी तक चली प्रक्रियाएं तो यही दिखाती हैं कि आने वाले समय में यह मार बढ़ने वाली है। हमारी सरकार ने पूरी तैयारी कर ली है गरीबों-मेहनतकशों को शहर से बाहर निकालकर शहर की जमीन व अन्य सभी संसाधनों को सम्पन्न वर्ग और देशी -बिदेशी निवेशकों के हवाले करने की। गरीबों के सर से छत और मुंह से निवाला छीनकर धन्नासेठों की तिजोरियां भरने के अपने निर्णय के बारे में सरकार कितनी गंभीर है इसकी मिसाल हमें हाल ही में लाए गए जवाहर लाल नेहरू शहरी नवीनीकरण मिशन के रूप में देखने को मिल रही जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीनीकरणमिशन । सभी सेवाओं के संचालन एवं रख-रखाव की पूरी लागत वसूलने के लिए यूजर चार्ज-
संबिधान के तहत देश के सभी नागरिकों को जीने का हक दिया गया है। रोजी, रोटी, कपड़ा के अलावा पानी, स्वास्थ्य, शिक्चा इत्यादि कुछ ऐसी सेवाएं हैं जिनके बिना जीवन के अधिकार का कोई बतलब नहीं है। जनेरासन मिशन सभी सेवाओं के इस्तेमाल के लिए यूजर चार्ज यानि कीमत अदा करने की वकालत करता है। यूजर चार्ज और जीने का अधिकार दोनों अंतविरोधी हैं। हमारे देश की जयादातर शहरी आबादी गरीब है। इस आबादी के पास सेवाओं के इस्तेमाल की कीमत अदा करने की क्षमता नहीं है। तो क्या इन लोगों को जीने का अधिकार नहीं है? जनेरासन मिशन तो कम से कम यही कहता हैं पानी चाहिए तो यूजर चार्ज दो, सौचालय जाना है तो यूजर चार्ज दो, दवा चाहिए तो यूजर चार्ज दो, बच्चों को पढ़ाना है तो यूजर चार्ज दो। जो पानी, शौचालय , शिक्षा , स्वास्थ्य सेवाओं इत्यादी के लिए पैसा अदा करेगा उसे ही इन सेवाओं के इस्तेमाल की इजाजत है। जो पैसा नहीं दे सकता वो जहन्नुम में जाये। मिशन के तहत पब्लिक प्राईवेट patnarship को बढवा देना है
janerashan मिशन में जिस चीज पर सबसे ज्यादा बल दिया गया है यह है पाब्ल्कि प्राईवेट पार्टनरशिप (पी.पी.पी) को बढ़ाना। कुछ वर्ष पहले वि’व बैंक, एशिया विकास बैंक जैसे अंतर्राष्टीय वित्तीय संस्थान सार्वजनिक सेवाओं के सीधे निजीकरण की वकालत करते थे। परन्तु जब दुनिया भर में सेवाओं-खासकर पानी-के निजीकरण के खिलाफ जमकर विरोध हुआ तो उन्होंने अपनी शब्दावली बदली और अब वे निजीकरण की बजाय पब्लिक -प्राईवेट-पार्टनरशिप की बात करते हैं। पब्लिक -प्राईवेट-पार्टनरशिप की मूल विचारधारा यह कि सार्वजनिक सेवाओं का पूरी हाथ में दे दिया जाए तो कम से कम उनका प्रबंधन जरूर प्राईवेट कम्पनियों के हाथ में दे दिया जाए। सभी सेवाओं की आपूर्ति व्यवसायिक आधार पर ही की जाए यानि सेवा प्रदान करने वाले निकाय का मुख्य ध्येय मुनाफा कमाना हो। सेवाओं का इस्तेमाल करने वालों को उपभोक्ता माना जाए और उनसे सेवाओं की पूरी कीमत वसूल की जाए। जो तबके सेवाओं की पूरी कीमत अदा नहीं कर सकते हैं, उन्हें थोड़ी बहुत रियायत जरूर दी जाए मगर मुफत में कुछ न दिया जाए। सेवाओं की आपूर्ति सार्वजनिक स्तर पर नहीं बल्कि व्यक्तिगत मकान के स्तर पर हो। रियायत देने में जो खर्चा हो से सेवा प्रदान करने वाले निकाय के खाते में हानि के रूप में दर्ज किया जाए और सरकार से इस हानि के ऐवज में मोटी रकम मुआवजे के बतौर वसूली जाए।
पी. पी.पी के इस मोडल को आज देर पूरे देश में और सभी बुनियादी सेवाओं के क्षेत्र में लागू करने की कोशिश की जा रही । दुनिया भर में ऐसे अनेको उदाहरण हैं जो यह दिखाते हैं कि यदि यह मोडल अपनाया गया तो पानी, शौचालय , बिजली, स्वास्थ्य, ’शिक्चा भोजन जैसी बुनियादी सेवाऐं करोडों-करोडों गरीबो की पहुच से दूर हो जायेगी।
भारतीय शहरों की असलियत को जानने वाले साफ तौर पर देख सकते हैं कि यदि उपरोक्त मदों में मिशन के तहत फंडिंग नहीं दी जाएगी तो गरीब शहरी आबादी के लिए इन मिशन में कुछ भी सकारात्मक नहीं है। आज शहरों में जमीन की कीमत को आग लगी हुई। शायद ही कोई राज्य सरकर होगी जो अपने पल्ले से जमीन खरीद कर गरीबों को आवास मुहैया कराये। यदि मिशन के तहत गरीबों को आवास देने के लिए जमीन खरीदने की अनुमति होती तो शायद राज्य सरकारे इस दिशा में कुछ कदम भी उठाती । इसी तरह से Education , और स्वस्थ्य लोगों की बुनियादी जरूरते हैं। आज गरीब लोग अपनी आमदनी का एक बड़ा हिस्सा प्राइवेट स्वास्थ्य एवं Education हासिल करने में खर्च कर रहे हैं।
आज सरकार के लिए आधारभूत ढ़ाचे का मतलब-पलाईओवर, मेट्रो रेल, मोल वगैरह ही आते हैं, गरीबों की बुनियादी जरूरते नहीं।




(जनेराशन मिशन ) क्या है?
ज्वाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीनीकरण मिशन को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 3 दिसंबर 2005 को हरी झंण्डी दिखाई। यह मिशन शहरी विकास के छेत्र में केंन्द्र सरकार की आज तक की सबसे बड़ी योजना है जनेराशन मिशन के तहत अगले 7 वर्षो के दौरान देश के 63 शहरों में 1,26,000 करोड़ रू खर्च किये जाएगें। इसमें से 50,000 करोड़ केंन्द्र सरकार देगी और बाकी धन नगर पालिकाओं-पैरास्टेटल एजेंसी को उगाहना होगा। जनेराशान मिशन शहरी विकास की पुरानी योजनाओं से सरकार और नगर पालिकाएं शहर के प्रशासन में कुछ सुधार करने की गारंटी दे। ये सुधार क्या है इस पर हम आगे चर्चा करने जा रहे हैं । अभी हम सिलसिलेवार देखेगें कि जनेराशन मि’शान को दस्तावेज आखिर कहता क्या है।
जनेराशन न मिशान के बारे सरकार को जरूरत क्यों पड़ी?
देश की 30 प्रति’शात आबादी ‘शहरों में निवास करती है और सकल घरेलू उत्पाद में इनका योगदान 50-55 प्रतिशत है।
‘’शहरों के इंफ्रास्ट्रक्चर (आधारभूत ढ़ाचे ) और बुनियादी सेवाओं की हालत बिगड़ी हुई है। ये हालत सुधरी नही तो ‘’शहरों की व देश की अर्थव्यवस्था चरमरा जाएगी।
शहरों का विकास करना है तो राज्य सरकारों को कानून एवं शासन के क्षेत्र में इस तरह के सुधार लाने होगें जिससे पूंजी निवेश के लिए बेहतर माहौल तैयार हो।
शहर स्थानीय निकायों के सांगठनिक एवं वित्तीस ढ़ाचे का पुनर्गठन कर उन्हें उधार लेने और उसे व्याज समेत वापिस पाने में सक्षम बनाना।


मिशन का औचित्य
ऽ 1.भारत सरकार के राष्ट्रीय साझा न्यूनतम कार्यक्रम में शहरी नवीनीकरण के लिए एक विस्तृत कार्यक्रम लाने की बात कही गयी थी।
ऽ 2.संयुक्त राष्ट्र संघ ,द्वारा सन 2000 में पारित तिलेनियम डेवलेपमेंट गोल्स (सहस्त्राब्दी विकास लक्ष्य) के लक्ष्यों की पूर्ति के लिए शहरी क्षेत्रों में निवेश को बढ़ाने व मौजूदा नीतियों को मजबूत करने की जरूरत है।
शहर अपनी क्षमता का भरपूर इस्तेमाल कर सके और प्रगति के इंजन बन सके इसके लिए जरूरी है कि उनके इंफ्रास्ट्रक्चर में सुधार लाया जाए।
मिशन का मूल ध्येय
जनेराशन मिशन के खुद के ‘शब्दों में मिशन का मूल ध्येय सुधारों को प्रोत्साहित करना व चुने हुए शहरों का तेज गति से नियोजित विकास करना है। इसमें जोर शहरी इंफा्रस्ट्रक्चर व सेवा प्रदान करने वाले ढ़ाचों की कुशलता, नागरिकों की भागीदारी तथा यू. एल. बी-पैरास्टेटल की नागरिकों के प्रति जवाबदेही पर होगा।
मिशन का उद्वे’य
ऽ आधारभूत ढ़ाचा सेवाओं का एकीकृत विकास
ऽ परिसम्पतियों के सृजन एवं रख-रखाव में संबंध बनाना ताकि वे लम्बे समय तब टिक सके।
ऽ शहरी आधारभूत सेवाओं में निवेश को बढ़ाना
ऽ शहरी क्षेत्रों के अंदरूनी (पुराने) क्षेत्रों का नवीनीकरण एवं पुनर्विकास
ऽ नागरिक सेवाओं का सार्वभौमिकरण कर उन्हें गरीबों को उपलब्ध कराना।
ऽ शहरी गरीबों को बुनियादी सेवाएं-जिसमें चुका सकने वाले दाम पर आवास की सुरक्षा, बेहती, आवास, जल आपूर्ति एवं निकासी शामिल है-उपलब्ध कराना
मिशन का दायरा
जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीनीकरण मिशन के तहत दो उप-मिशन बाए गए हैं-1. शहरी इंफ्रास्ट्रक्चर एवं गवर्नेस उपमिशन तथा-2. शहरी गरीबों के लिए मिलभूत सेवाएं उपमिशन।
1-शहरी इंफ्रास्ट्रक्चर एवं इवर्नेस उपमिशन
शहरी इंफ्रास्ट्रक्चर एवं गवर्नेस उपमिशन के तहत निम्नलिखित क्षेत्रों से जुड़ी परियोजनाएं स्वीकार्य होगीं-
1-शहरी नवीनीकरण यानि पुराने शहर का पुनर्विकासं
2-जल आपूर्ति एवं सफाई
3-सीवर एवं कूड़ा-कचरा प्रबंधन
4-नाले-नालियों का निर्माण एवं सुधार
5-शहरी परिवहन (सड़क, हाइवे, एक्स्प्रेसवे, मेट्रो इत्यादि)
6-धरोहर क्षेत्रों का विकास
7-जल संसाधनों को संरक्षण

2-शहरी गरीबों के लिए मूलभूत सेवाएं उपमिशन
शहरी गरीबों के लिए मूलभूत सेवाएं उपमिशन के तहत निम्नलिखित क्षेत्रों से जुड़ी परियोजनाएं स्वीकार्य होगी-
1. झुग्गी बस्तियों को एकीकृत विकास
2. शहरी गरीबों के लिए मूलभूत सेवाओं का विकास, सुधार व रख रखाव
3. झुग्गी बस्ती सुधार एवं पुनस्र्थापन
4. ज्ल आपूर्ति, सीवर, जन निकासी, सामुदाचिक शौचालय , स्नानघर इत्यादि।
5. झुग्गीवासियों, शाहरी गरीब, आर्थिक रूप से कमजोर तबकों और निम्न वर्ग के लिए उचित दाम पर घर उपलब्ध कराना
6. नाले-नालियों का निर्माण एवं सुधार
7. झुग्गी बस्तियों का पर्यावरणीय सुधान एवं कुड़ा-कचरा प्रबंधन
8. स्ट्रीट लाइटिंग
9. स्मुदाय हाल, बच्चों की देखभाल के केंन्द्र इत्यादि जैसी नागनिक सुविधाएं
10. इस उप मिशन के तहत बनाई गयी परिसम्पतियों का परिचालन एवं रखरखाव

जनेराशन मिशन के अंतर्गत जिन क्षेत्रों की परियोजनाओं के लिए सहायता उपलब्ध नहीं है-
1. बिजली
2. टेलिकाम
3. स्वास्थ्य
4. ’Education
5. मजदूरी और स्टाफ का खर्चा
6. रोजगार के नए साधनों का

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