VOICE OF HULGULANLAND AGAINST GLOBLISATION AND COMMUNAL FACISM. OUR LAND SLOGAN BIRBURU OTE HASAA GARA BEAA ABUA ABUA. LAND'FORESTAND WATER IS OURS.
Thursday, May 26, 2011
2 lakh 40,000 me sirf ..11,000 hi mila hai...hal manrega..ka
खूंटी जिला-दयामनी बरला
केंन्द्र सरकार की मनरेगा योजना राज्य में पूरी तरह फेल है। यह अलग बात है कि-राज्य सरकार दलील देती हैं कि-मनरेगा योजना आम लोगों को रोजगार देने में सफल है। लेकिन गांवों की तशबीर साफ बता रही है कि हकिकत क्या है। खूंटी जिला के तोरपा प्रखंड के कोरको टोली को 2006 से आज तक सिर्फ मनरेगा योजना से एक कुंआ मिला। जानकारी के अनुसार कुंआ का प्रक्कलन राशि 2 लाख 40,000 है। कुंआ सूखु तोपनो के नाम मिला। काम शुरू करने के लिए पैसा नहीं था, इसलिए कुंआ का काम ठेकेदार ने लिया। खुदाई शुरू हुआ। पानी का सोता बहुत जल्दी मिला। कुंआ 24 फुट तक खोदा गया। लेकिन प्रखंड कार्यालय से पैसा नहीं मिलने के कारण काम आगे नहीं बढ़ सका। बरसात पहुंच गया (2010)। कुंआ धंस गया। पैसा मिलने के उम्मीद में घर से भी पैसा लगाया गया। दूसरा साल भी पैसा नहीं मिला। कुंवा वैसा ही पड़ा हुआ है। अब ठेकेदार भी लाभूक को सुझाव दे रहा है-यदि घर में 30,000 तक पैसा होगा, तो पत्थल गिरवा कर पटवा दो, ब्लोक से तों अधिकारी पैसा देना नहीं चाह रहे हैं। किसान कहते हैं-पैसा नहीं देना था, तो खोदना ही नहीं चाहिए था। इतना मेहनत करवाये, घर से भी खर्च हुआ। कहते हैं-इसी लिए हम लोग नहीं चाहते थे-कुंआ खोदवाना। बताते हैं-सिर्फ 11,000 रूपया मिला है। 25 मई को जब उस इलाके में मैं किसानों की खेती -जो नाला के पानी से लहलहा रहा है को देखने गयी थी, तब यह कुंआ नजर में आया। कुंआ में पानी अभी भी बहुत है-जबकि सभी इलाके का जलस्त्रोत सूख गया है। मनरेगा योजना किसानों के गले का फंदा बन गया हैं। एक तो किसान टांड में खेती करते थे, वो आज न तो टांड रहा गया, न ही कुंआ।
Sunday, May 22, 2011
आखिर सच्चाई से आप कब तक दूर भागेंगें?
21 मई 2011 को झारखंड सरकार के जल संसाधन विभाग के प्रधान सचिव संतोष सतपथी का बयान अखबारों में छापा-झारखं डमें अब नहीं बनेगें बड़े डैम-इन्होंने कहा की इस संबंध में सरकार जल्दी ही नीतिगत फैसला लेगी। प्रधान सचिव संतोष सतपथी ने शुक्रवार को 12वीं पंचवर्षीय योजना के सूत्रण विषयक कार्यशाला में यह बात कही। उन्हों कहा-बड़े डैम बनने की घोषण होने से बाद से ही आंदोलन, विस्थापन, पुर्नवास और अन्रू बातें होने लगती हैं। भूमि अधिग्रहण, वन और पर्यावरण विभाग का क्लायरेंस, तकनीकी और प्रबंधकीय क्षमत की कमी की वजह से इन योजनाओं के पूरा होने में भी काफी समय लगता है।
चेक डैम बनाने को प्राथमिकता-सरकार के पास विकल्प
जल संसाधान विभाग के प्रधान सचिव संतोष सतपथी ने कहा कि झारखं डमें सुवर्णरेखा समेत सात बड़ी योजनाएं पूरी नहीं हो सकी हैं। मध्यम दरजे की सिंचाई योजनाओं की स्थित भी कमोबेश यही है। सरकार उदवह सिंचाई योजनाएं और श्रंखलाबद्व चेक डैम बनाने को प्राथमिकता दे रही है। 2016-17 तक लंबित 12 परियोजनाओं को पूरा करने में 5343 करोड़ रूपये खर्च होंगे और सिंचाई की क्षमता मात्र तीन प्रतिशत बढ़ेगी। फिलहाल राज्य में निश्चित सिंचित चेत्र 17 प्रतिशत के आसपास है।
जल संसाधन सचिव ने कहा कि सरकार के पास कई विकल्प हैं। इस पर गहराई से ध्यान देना जरूरी है। किसी भी जलाशय की डी सिल्टिंग आत तक नहीं हुई है। यही हालत रांची में है। इनमें रूक्का, हटिया और गोंदा डैम शामिल हैं। उन्होंने कहा कि सरकार विचार कर रही है कि कैसे मरेगा मजदूरों को डी सिल्टिंग में लगाया जाए, क्योंकि इसके लिए प्रत्येक वर्ष केंन्द से दो हजार करोड़ मिलते हैं। ग्रामीण इलाकों में पानी उपयोग समिति का गठन करने, नदियों से अतिक्रमण हटाने और बारिश का जल को संरक्षित करने की आवशयकता है। नदियों में स्वच्छ पानी का बहाव राज्य सरकार सुनिश्चित करेगी। 12 वीं पंचवर्षीय योजना में छोटी योजनाओं में सात सौ करोड़ खर्च कर सिंचाई सुविधा को 70 प्रतिशत करऩे की योजना है।
मुख्या सचिव के इस बयान को चाहे हम जिस रूप में भी लें-लेकिन सच्चाई तो यही है कि 84 मौजा के 116 गांवों को डूबा कर 1984-86 में सुवर्णरेखा डैम बना। जहां से 40,000 से अधिक लोग विस्थापित हुए। आज तक इन्हें सही पुनर्वास नहीं किया गया। नौकरी नहीं दिया गया। आज ये दर-दर भटक रहे हैं। 86 मौजा के गांवों को उजाड़कर तेनुघाट डैम बना। जहां से 50 हजार से अधिक लोग विस्थापित हुए। आज इन्हें पूछने वाला कोई नहीं। इसी तरह पंचेत डैम, कुडकू डैम, से भी गांव के गांव उजड़े। सभी विस्थापितों का दर्द एक ही है।
710 मेगावाट बिजली पैदा करने के नाम पर कोयल नदी और कारो नदी पर बांध बनाने का प्रस्ताव था। कोयल कारो जनसंगठन के बैनर तले स्थानीय लोगों ने डैम के खिलाफ 30 वर्षों तक संघर्ष कियें। झारखंड अलग राज्य गठन के बाद राज्य का पहला मुख्यमंत्री श्री बाबूलाल मरांडी के समय 2 फरवरी 2001 को संगठन के साथियों पर पुलिस फायरिंग हुई। ेइसमें 8 लोग शहीद हुए। आज जब राज्य में अतिक्रमण हटाने के नाम पर शहर से लाखों लोगों के आसियाने टुट रहे हैं। सही में यह अमानवीय और लोकतंत्र की हत्या है। इन पीडि़तों के साथ बाबूलाल मरांडी खड़े हुए। अनशन में बैठे। अपने आंदोलन मे श्री मरांड़ी जी ने विकास के नाम पर पूर्व हुए विस्थापितों को सवला भी उठाये-कि इन विस्थापितों को आज तक न्याय नहीं मिला है। यहां मेरा मनना है-कि यह श्री मरांड़ी जी ने इसे राजनीतिक लाभ के लिए भले ही उठायें होंगें-लेकिन इस सच्चाई को स्वीकार तो कर रहें हैं कि-पूर्व के विस्थापितों के साथ अन्याय हुआ है। विदित हो कि आज तक राज्य सरकार ने 103 देशी -विदेशी कंपानियों के साथ एमओयू किया है, और सभी कंपानियों को जल-जंगल-जमीन सौंपने की तैयारी में हैं। इसके खिलाफ पूरे झारखंड आदिवासी, मूलवासी, किसान संर्घषरत हैं-नारा दिये हैं-अब हम अपने पूर्वर्जो की एक इंच जमीन नहीं देगें।
पंचायत सेवक का जलवा तो यह रहा कि-जब तक लाभूक योजना पास कराने से लेकर फाईनल कराने तक सिर्फ पैसों से ही बात करते रहें हैं।
धारा 71 ग्राम पंचायत की स्थायी समितिया-
1. ग्राम पंचायत अपने कार्यों तथा कर्तव्यों के निर्वहन के लिए सात स्थायी समितिया गठित कर सकती है जो ऐसी समितियाॅ ग्राम पंचायत के सामान्य नियंत्रण के अधीन होगी और ऐसी समितिया ऐसी शक्तियों को प्रयोग करेगी जो ग्राम पंचायत द्वारा उनको सौंपी जाये-
2. सामान्य प्रशासन समिति
3. विकास समिति
4. महिला, सिक्चा एवं सामाजिक कल्याण समिति
5. स्वास्थ्य ’education एवं पर्यावरण समिति
6. सार्वजनिक सम्पदा समिति
7. अधोसंरचना समिति
2. प्रत्येक समिति में पांच सदस्य ग्राम पंचायत द्वारा बुलाये गये विशेष बैठक में सदस्यों द्वारा अपने बीच में से निर्वाचित किये जाऐंगंे
परन्तुं कोई भी सदस्य एक समय में दो से अधिक स्थायी समिति का सदस्य नहीं होगा।
3. इन समितियों में मुखिया एवं उप-मुखिया पदेन सदस्य होगें
4. ग्राम सभा अपने प्रथम बैठक में प्रत्येक स्थायी समिति के लिए अपने सदस्यों में से क्षेत्र विशेष के अनुभवी एवं जानकार एक व्यक्ति को बहुमत द्वारा निर्वावित की मनोनित कर सकती है परंन्तु तदनुसार मनोनित सदस्य को मत देने को अधिकार नहीं होगा
परंन्तु यह और भी कि ऐसे मनोनीत सदस्य को एक वर्ष की अवधि की समाप्ति के प’चात बहुमत के द्वारा ग्राम सभा वापस बुला सकेगी और नया मनोनयन कर सकेगी।
5. स्थायी समिति के सदस्यों की पद की अवधि, इनके कामकाज के संचालन की प्रक्रिया ऐसी होगी कि विहित की जाए।
6. सचिव-ग्राम पंयायत को सविच स्थायी समिति को पदेन सचिव होगां
धारा 73
पंचायत समिति एवं जिला परिषद की स्थायी समितिया-
1.प्रत्येक पंचायत समिति एवं प्रत्येक जिला परिषद अपने निर्वाचित सदस्यों में से निम्नलिखित स्थायी समितियाॅ गठित करेगी-
क. सामान्य प्रशासन समिति
ख. कृर्षि एवं उद्योग समिति
ग. स्वास्थ्य, जिला ’िाक्षा समिति
घ. वित, अंकेक्षण तथा योजना एवं विकास समिति
ड. सहकारिता समिति
च. महिला, शिशु एवं सामाजिक कल्याण समिति
छ. वन एवं पर्यारण समिति
ज. संचार तथा संकर्म समिति
2. सामान्य प्रशासन समिति में उपधारा(1) में विनिर्दिष्ट गठित समस्त स्थायी समितियों के सभापति होगें।
3. सामान्य प्रशासन समिति को छोड़कर प्रत्येक समिति में कम से कम छः सदस्य होगें, जो यथास्थिति परंन्तु ’िाक्षा या जिला परिषद के सदस्यों द्वारा अपने बीच में से विहित रीति में, निर्वाचित किये जाऐंगें। अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति को एक व्यक्ति होगा।
4. विधान सभा को प्रत्येक ऐसा सदस्य जों पंचायत समिति का सदस्य है उस पंचायत समिति के प्रत्येक समिति का पदेन सदस्य होगा।
5. संसद का प्रत्येक ऐसा सदस्य जो जिला परिषद का सदस्य है, उस परिषद में अपनी इच्छा से किन्हीं भी दो समितियों का पदेन सदस्य होगा।
6. सामान्य प्रशासन समिति एवं education समिति को छोड़ कर प्रत्येक समिति अपने निर्वाचित सदस्यों में से सभापति का निर्वाचन विहित रीति से होगा।
7. प्रमुख या जिला परिषद का अध्यक्ष सामान्य प्रशासन समिति तथा वित, अंकेक्षण तथा योजना एवे विकास समिति को पदेन सदस्य एवं अध्यक्ष होगा।
8. उप-प्रमुख या उपाध्यक्ष Education समिति एवं महिला, shishu एवं सामाजिक कल्याण समिति का पदेन सदस्य एवं अध्यक्ष होगा।
9. पंचायत समिति एवं जिला परिषद का कोई सदस्य दो से अधिक स्थायी समिति में सेवा करने का पात्र नहीं होगा।
10. कार्यापालक पदाधिकारी या मुख्य कार्यपालक पदाधिकारी यथास्थिति पंचायत समिति या जिला परिषद से सभी समितियों के पदेन सचिव होगें।
11. उपधारा(1) के अधीन गठित स्थायी समितियों के कार्यपालक वे होगें जैसा सक्षम प्राधिकारी द्वारा विहित किया जाए।
12. उपधारा (1) के अधीन निर्दिष्ट स्थायी समितियों के अतिरिक्त पंयाचत समिति या जिला परिषद विहित प्राधिकारी के अनुमोदनोपरांत ऐसे विषयों के लिए जो उपधारा(1) में निर्दिष्ट समितियों के कार्यकलाप के अंन्तर्गत नहीं आते हैं। एक या एक से अधिक समितियों को गठन कर सकेगी।
Saturday, May 21, 2011
Medha Patkar Continues Indefinite fast against brutal dispossession of life and livelihoods of Golibar residents
GHAR BACHAO GHAR BANAO ANDOLAN
Medha Patkar Continues Indefinite fast against brutal dispossession of life and livelihoods of Golibar residents
· Protesting against the Brazen and brutal lathi charge by the police, demolition of houses and dispossession of land and livelihood rights of the Golibar residents who have been living here for more than 80 years, Medha Patakar continues indefinite hunger strike for second day today at Golibar, Mumbai. Slum dwellers join the Satyagraha from across Mumbai with relay fast including Devan Nair & Bharti Mishara from Golibar, Norjahan from Malwani, Lala Jaklu Kale from Ambhujwadi, and Guruprit Sing from Guru Nanak Nagar in Golibar Basti.
It is a matter of shame that to support the real-estate agents, the Maharashtra Government has used police force in which 12 peaceful protestors have been arrested, and several injured due to Lathi charge on May 19th, 2011. Ms. Sunita Gurav braved a grievous head injury in a lathi-charge. Another woman named Sharadabai Vasta of 80years old; who is mentally ill was ruthlessly dragged out from her house.
The real face of corruption has been seen at the ground level in Golibar where the lawful residence has been robed off their land, their property, their life and their livelihood only to make corrupt real estate builders like Shivalik rich.
This demolition was illegal precisely because the Supreme Court order used to justify this demolition has already become redundant because it has already surpassed 90 days. Ironically the government and the Police had blatantly ignored the fact that the High Court has ruled in favor of Golibar residence in a (criminal) case of fraud and forgery against Shivalik builders. We have seen these games played before. We have seen repeatedly that the law is lawless in our crumbling corridors.
With lot of zeal and enthusiasm our satyagrah is being joined and supported by slum dwellers from across the Mumbai who have been also fighting the similar battle in their area. One such gesture is the generous solidarity shown by Guru Nanak Rahivasi Sangh from Gurunanak Nagar Ghatkopar joined our battle with their massive presence at Satyagraha site but also provided us with food grain, oil etc.
Meanwhile, we wonder that why this hurried steps for demolition when an inquiry in the dealings of the Shivalik Ventures is already going. It is also an established fact that the builder has changed their name many times and so was the enterprise (SVI Realties, Shivalik Ventures, Shi. Ventures Private Ltd., Lifestyle Realty) has committed serious criminal offences in the process of seeking approval. The Slum Rehabilitation Authority that way seems to be favoring the builder too.
Its also seen and exposed from the letter of the Directorate of Income Tax that UNITECH has made 50% of the investment, that too by collecting advances through Neera Radia! It thus can be covered in the enquiry on the 2 G spectrum scam. As you very well know that the director of Unitech is in judicial custody as of now.
In this context, while the Project deserves cancellation and legal action, its shocking that the your government is demolishing homes since yesterday and also beating people who are opposing this. These colonies of families settled 70-100 years ago, are not "encroacher's slums", but pucca houses erected out of sweat and blood of toiling people.
We strongly condemn the actions of your government, this must be stopped and investigations started in the dubious role of the Shivalik Ventures and relief given to those whose houses have been demolished. It is completely inhuman to do so.
On 5th April 2011 more than 10,000 slum dwellers had taken out a rally in Mumbai and a delegation under the leadership of Medha Patkar had met Shree Prithviraj Chavan, CM Maharashtra and had raised the following demands. We reiterate our demand and struggle will continue till the following demands are met.
- · Rajiv Awas yojana should be implemented in the slums of Mumbai, particularly those where slums dwellers are coming forward and demanding the implementation of the same.
- · 3K clause of Maharashtra slum Area Act should be scraped. Exercising3K clause government has gifted more than 500 acre of slum land to 6 Developers in last 2 years. Slum dwellers of Golibar have exposed the scam of 3K but are but are facing eviction drives that should be halted name directly.
- · Slum Rehabilitation Scheme, which has resulted in land grab by builders and dis-housing of slum dwellers should be revised and instead pro-people self development schemes be supported and facilitated by state.
- · The PDS system should be universalized and there should be stringent provision to stop malpractices in the PDS system.
- · Basic services like water and sanitation should be provided to all slum dweller without any cutoff date
यंहा पंचायत के कामकाज का सचालन एवं बैठक की प्रक्रिया के संबंद में बिशेष जानकारी दी जा रही है.
मुखिया के पावर तय-सरकार ने पंचायती राज व्यवस्था को प्रभावी बनाने के लिए प्रमुख से लेकर मुखिया तक की शाक्तियां तय कर दी हैं। जिला परिषद अध्यक्ष के पावर भी निर्धारित किये गये हैं। इससे संबंधित नियमावली की अधिसूचना जारी कर गजट प्रकाशन के लिए भेज दिया गया है। इसके प्रकाशन की तिथि से अध्यक्ष व मुखिया इन शक्तियों का इस्तेमाल कर सकेंगें। नियमावली में मुखिया को ही चेक पर हस्ताक्षर करने को अधिकार दिया गया है। जिला परिषद अध्यक्ष व प्रमुख को वह अधिकार नहीं है।u
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Tuesday, May 17, 2011
Wednesday, May 11, 2011
चांडिल डैम के नीचे बसाये गये -गांगुडीह -के विस्थापितों को एक बुंद पानी नसीब नहीं
1982-84 में बिहार, बंगाल, उडिसा के 1, 60,000 हेक्टेयर जमीन को सिंचने के नाम पर वर्तमान सरायकेला खरसंवा जिला के चांडिल क्षेत्र के 84 मौजा -गांवों को उजाड़ा गया। इस परियाजना से नहर सहित 116 गांवों की जमीन डूब गयी। जिसकी आबादी-उस समय करीब 40,000 थी। यहां के उजड़े विस्थापितों को आज तक सही पूनर्वासित नहीं किया गया, ताकि वे मानवीय जीवन जी सकें। आज एक बेला की रोटी के लिए, मलेरिया के एक टेबलेट के लिए, दर -दर भटक रहे हैं। पूनर्वास एंव पूनर्वास्थापन के नाम पर 10-10 डिसमिल जमीन में कैद कर रखा गया, जंहा-तंहा फेंक दिया गया । जहां सरकार ने उनके लिए -सुवर गुड़ा- पिग हाउस -4 बाए 6 फीट का मकान बना दिया। बच्चों के -पढाई-लिखाई के लिए न स्कूल हैं, न कालेज। बीमारी में इलाज के कोई सुविधा नहीं। चांडिल डैम का पानी पूरे टाटा कंपनी को सप्लाई दे रहा है, जिससे सरकार सालाना करोड़ो राशि कमा रही हैं। लेकिन चांडिल डैम के नीचे बसाये गये -गांगुडीह -के विस्थापितों को एक बुंद पानी नसीब नहीं। इनके वोट से राज्य में कई नेता-मुख्यंत्री बने, कई मंत्री बने-लेकिन इन विस्थापितों को पूछने वाला कोई नहीं, अलग राज्य तो इनको न्याय देने के लिए बना था...आखिर हम राज्य को कहां ले जाना चाहते हैं?
आदिवासी मूलवासी अस्तित्व रक्षा मंच ने नारा दिया है-स्टील नहीं-आनाज चाहिए कारखाना नहीं-धरती का विकास चाहिए
झारखंड अलग राज्य बनने के बाद दस सोलों में राज्य सरकार ने 103 बड़े देशी -बिदेशी कंपनियों के साथ एम ओ यू साईन किया है। विदित हो कि इन 103 कंपनियों में 98 कंपनियां सिर्फ स्टील मेकर हैं। हरेक कंपनी को कारखाना लगाने के लिए निम्न तरह से जमीन चाहिए
1. स्टील फैक्ट्री के लिए जमीन चाहिए
2. पावर प्लांट के लिए जमीन चाहिए- किसी को कैप्टिव पवार प्लांट, किसी को थर्मल पवार प्लांट चाहिए
3. पानी के लिए डैम चाहिए( दोनों कारखाना-स्टील प्लांट और पावर प्लांट के लिए)
4. अयर ओर माइंस चाहिए
5. दोनों कारखाना ( स्टील और पावर प्लांट) के लिए अलग अलग कोयला खदान चाहिए
6. इनके सभी मांइस के लिए पानी चाहिए
7. स्टील प्लांट और पावर प्लांट लगने वाले इलाके में शहरीकरण या टाउनशिप के लिए जमीन चाहिए
8. रोड़ के लिए जमीन चाहिए
9. देशी -विदेशी बाजार में माल भेजने के लिए रेलवे लाइंन ताथ बंदरगाह चाहिए
यदि सभी 103 कंपननियों को राज्य में निवेश करने की अनुमति दी जाए तो--राज्य का 98 प्रतिशत जंल-जंगल-जमीन-पहाड़, नदी-नाला सिर्फ स्टील कंपानियां निगल जाएगें। विदित हो की झारखण्ड का छेत्रफल ७९,७ ४१ वर्ग किलो मीटर hai परिणाम होगा-आदिवासियों-मूलवासियों, किसानों के हाथ में एक इंच भी जंगल, नदी-झारना, जमीन नहीं बच पाऐगा।
इसी लिए आदिवासी मूलवासी अस्तित्व रक्षा मंच ने नारा दिया है-स्टील नहीं-आनाज चाहिए
कारखाना नहीं-धरती का विकास चाहिए
Saturday, May 7, 2011
बड़े पूंजिपतियों को शहर में किसी तरह की परेशानी न हो, उनको जाने-आने में किसी तरह की परेशानी न हो, इसकी गाडि़यो को संड़कों पर सरपट दौड़ने में किसी तरह
राज्य सरकार सभी स्तर पर जनविरोधी कानून लागू कर कमजोर और मेहनतकशों के अधिकारों का हनन कर रही है। जनविरोधी कानून बना कर उसे जब्रजस्त पुलिस बल प्रयोग कर लागू करने की कोशीश में है। अतिक्रमण के नाम पर झुग्गीवासियों को उजाड़ दे रहा है। रोड़ किनारे के छोटे दुकानदारों को उजाड़ दिया। हजारों के आशियाना उजाड़े गये। हजारों परिवार की रोटी-रोजगारी छीन ली गयी। इन जगाहों को खाली कर सरकार-कारपोरेट घरानों को देगी। पूंजीपतियों के व्यवसायिक संस्थान, सोपिंग मोल बनाया जाएगा। उच्च वर्ग तथा अमीरों के सुख-सुविधा तथा आइसो -आराम की व्यवस्था की जाएगी।
उपरोक्त सुविधाओं के साथ बड़े पूंजिपतियों को शहर में किसी तरह की परेशानी न हो, उनको जाने-आने में किसी तरह की परेशानी न हो, इसकी गाडि़यो को संड़कों पर सरपट दौड़ने में किसी तरह का बाधा न हो -इसके लिए भी राज्य सरकार व्यवस्था करने जा रही है। इसी लिए शहर से ठेला-रिक्सा, ओटो चलाने पर प्रतिबंध लगाया जा रहा है। ये सभी कार्रवाईयां-1996 में वि’व बैंक द्वारा प्रस्तावित ‘शहरी विकास योजना का परिणाम हैं। विदित हो कि इस प्रस्तावित कानून को भारत सरकार ने 2005 में -जवाहरलाल नेहरू शहरी नवीनीकरण योजना का नाम देते हुए हरी झंण्डी दिखाया। इस कानून के तहत देश के 63 शहरों से विकास के नाम पर गरीबों को खाली कर पूंजीपतियों को बसाने का काम होगा
झारखंड की राजधानी में अब रिक्सा, ओटो, ठेला नहीं चलेगें। शहर के भीतर अब पीक आवर में रिक्सा नहीं चलेंगे। भीड़-भाड़ वाले इलाके में रिक्सा को प्रतिबंधित कर दिया गया है। रातू रोड़, मेन रोड़ और सरर्कुलर रोड़ में सुबह नौ बजे से 11 बजे तक और शाम चार बजे से छह बजे तक रिक्सा-ठेला नहीं चहेगी। एसडीओ शेखर जमुआर ने बुधवार को ट्रैफिक एसपी और रिक्या चालक के साथ हुई बैठक में यह निर्देश दिया।
उन्होंने कहा कि अब रिक्सा चालकों को अपने रिक्सा का निबंधन कराना होगा। निबंधन के लिए नगर निगम से आवेदन देकर निबंधन करा लें। इसके लिए उन्हें निबंधन शुल्क देना होगा। मई के बाद बगैर निबंधन के रिक्सा -ठेलर को जब्त कर लिया जाएगा। उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी। जिला प्रशासन ने रिक्सा चालकों से कहा है कि वे शीघ्र ही नगर-निगम से अपने रिक्सा का निबंधन करा लें तभी चालाएं।
रिक्सा चालकों का अब आइ कार्ड होगा-इसमें चालकों का फोटो और रजिस्ट्रेशन नंबर भी अंकित रहेगा। एसडीओ ने नगर निगम को फोटो पहचान पत्र बनाने की जिम्मेवारी ही है। कहा है कि मई तक काम पूरा कर लिया जाए। जून माह से बिना फोटो पहचान पत्र वाले रिक्सा चालकों को सड़क में चलने नहीं दिया जाएगा। साथ ही उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई भी की जाएगी।
रिक्सा की संख्या होगी निर्धारित-शहर के हर मार्ग पर रिक्सा की संख्या निर्धारित रहेगी। जिला प्रशासन ने इसका निर्णय लिया है। सभी रिक्सा चालकों का रिजस्टेशन के बाद मार्गा पर चलने वाले रिक्सा की संख्या निर्धारित रहेगी। एसडीओ ने बताया कि जून माह में संख्या का निर्धाण कर दिया जाएगा। इससे ज्यादा चलने पर कार्रवाई होगी।
शहर में ओटो चलाने के लिए परमिट चाहिए-ओटो परमिट के लिए बुधवार से समाहरणालय परिसर में दो दिनी लोटरी निकाली जाएगी। 27 अप्रैल की सुबह 11 बजे से डीसी की अध्यक्षता में लाॅटरी निकाली जाएगी। इसमें लगभग 1000 वाहनों को परमिट दिया जाएगा। रूट नंबर एक, दो, तीन, चार, पांच, छह, 12,14, और 16 के लिए लाॅटरी निकाली जाएगी। इस रूटों पर पड़े आवेदनों की स्कूटनी कर ली गई हैं।
दूसरी ओर झारखंड़ प्रदेश डीजल ओटो चालक महासंघ ने शहर के सभी ओटों चालकों को परमिट देने की मांग की है। महासंघ ने कहा-कि पूर्व में लिए गए निर्णय के आधार पर 2060 ओटो को परमिट दिया जाना था। लेकिन इसके लिए 2566 आवेदन कहां से आए। अब अधिक आवेदन आने पर लोटरी की बात की जा रही है। संघ ने कहा-जिला प्रशसन से मांग की कि शहर के सभी 8500 वाहन चालकों को परमिट दिया जाए।
Nanti peoples ..Decision...Mr..Patnaik..for Orissa peoples.
Orissa to resume land acquisition for Posco project from May 18
PTIArmed with the final forest clearance order for the mega Posco steel project near Paradip, Orissa government on Saturday decided to resume land acquisition activities from May 18 even as opponents of the South Korean steel major were preparing to foil the bid.
“The state government will begin land acquisition work for Posco project from the place where it halted last year in view of a stop work order from the Ministry of Environment and Forest (MoEF). The land acquisition work will be completed within a month,” Chairman-cum Managing Director of the State-owned Industrial Infrastructure Development Corporation (IDCO) Priyabrat Patnaik told reporters.
The decision in this regard was taken at a meeting between the Chief Secretary B. K. Patnaik, IDCO officials and representatives from the Jagatsinghpur district administration. Some senior police officers also attended the meeting.
The IDCO which was in-charge of acquiring land for different projects, had to abandon land acquisition work at the proposed plant site villages of Posco on August 6, 2010 after the MoEF objected to it based on the recommendation of the N. C. Saxena Committee which pointed out gross violation of provisions under the Forest Rights Act, 2006.
Claiming that the project had meanwhile, received support from majority of the local people, Mr. Patnaik said that the government had retrieved about 11 acre of land during the previous land acquisition effort by acquiring 96 betel vines plantations. The affected betel vine farmers were given adequate compensation.
As most of the betel vines were illegally raised over the government land, the officials would first ensure that those land were retrieved, he said adding that some fish ponds also existed over the government land.
Mr. Patnaik, however, said that as per the government’s decision, private land (about 300 acre) from Dhinkia village would not be acquired as announced by the Chief Minister.
Of the total 4,004 acre of land required for Posco project, 2,900 acre were forest land which needed permission from MoEF for diversion before being handed over to the company for setting up its proposed Rs 52,000 crore project.
Keywords: Posco steel project, Orissa land acquisition
Fact-finding Report on Forced Displacement in Jharkhand
Fact-finding Report on Forced Displacement in Jharkhand
Netharhat Field Firing Range
The Government proposed the establishment of a temporary and permanent firing range at Netarhat displacing 224 villages in Palamau, Gumla and Latehar Districts. In 1994 following strong public protest, the army agreed to suspend its plans of acquiring land for the proposed project. Of late, there has been some move to revive the project.
Mandal Dam
Following the sanction for a hydel project on the river Koel in 1972, moves were made to acquire land and construction began. 13 villages were declared as falling within the submerged area. Although some compensation was paid it was pittance. Following people’s resistance, the project was stalled. But the Government has abandoned these villages and is not providing any of the normal administrative or developmental benefits to them.
Auranga Dam
The sanction for a dam on Koel river came in 1972. Land was acquired for construction of the main dyke and irrigation colony. The total number of affected villages was initially said to be 16 villages. However later estimates suggested that no less than 45 villagers would be submerged. One of the leaders of the struggle was killed in 1988. It was after a struggle spanning over a decade and demonstration by the villagers of the complete unfeasibility of the project that the project was finally stalled.
The team noted an apathy and absence of government run programmes such as NREGA, rural health schemes in these project areas. The team found that a large number of the affected villages had no water supply or electricity.
In both Mandal and Auranga the compensation given for the land acquired was extremely low. In Mandal, compensation for the land acquired was Rs.10, 000/- and 25 decimels of land. In addition, the villagers informed us that the land was rocky and non-cultivable. In Aurganga, there are allegations of corruption as the compensation ranged from Rs.2300 per acre to Rs.18, 000 per acre.
The villagers have waged a long and hard struggle opposing these projects and though the work on the projects stopped, they have not been formally annulled. Though over a decade has passed since the stalling, there have been efforts on the part of the government recently to revive these projects and the people’s struggles are far from over. The Government seems to be playing a game of wait and watch expecting that lack of any development activities along with the prolonged uncertainty may break the unity and resolve of the people. The government has no right to acquire people’s land for an alleged public purpose and sit on the matter without either executing the project or returning the land to the people.
Abhijeet Power Project and ESSAR Steel Plant, Latehar District.
These two projects will end up acquiring 26,000 acres, most of which is cultivable land, spreading across 28 villages. MOU between Abhjeet Project and the state government fixes the compensation as Rs.35, 000 per acre. The government has left it to the company to acquire the land directly from the villagers, which means use of middlemen “to persuade” the villagers to part with their land. Most of the villagers belong to the SC and ST communities. We will comment more below on these methods and the Government’s apathy in this regard.
Jindal and Bhushan Projects at East Singhbum and Saraikela-Kharsewan districts
The block of Potka in East Singbhum district is witness to people’s agitations against the attempts by the Jindal and Bhushan groups to get hold of land for setting up iron ore based projects. The government has not come forward with any information regarding these projects. When the agitating people met the Deputy Commissioner and other officials they are being told that the government knows nothing about the projects and the projects will come up only if the land holders willingly sell their land to the companies. This is sheer hypocrisy. It is a matter of record that the government of Jharkhand has entered into MOUs with these companies inviting heavy investment in the iron and steel industry and promising all assistance in return.
Armed with this undertaking the companies are using repressive and unethical methods to pressurize the people to sell the land of the company’s choice. If they were honest in their purpose they could make an application to the Gram Sabha and seek the consent of the landholders in a transparent manner. Instead they are shelling out money and other benefits to purchase agents in the villages who are using threats to pressurize the people to agree to sell their land to the company. When the men from the company along with such agents attempted to undertake a survey of the land, the people resisted and physically restrained them. This happened at Kalikapur on 8th August 2008. There was a scuffle between the agents of the company and the people. Though nobody was injured, the police interfered and booked a criminal case of attempt to murder against the people but did not book any case against the intruders. The people are apprehensive that by such a combination of police and paid agents the companies may forcibly take over their lands in the name of voluntary sale. It is significant that the representative of Bhushan Steels has come out with the statement that his company is interested in setting up the project if police security is provided. If in fact he is to acquire the land by voluntary sale, he should need no such security.
This process is seen more clearly in Tontoposi of Gamaria block, Saraikela-Kharsewan district. Here the Tatas are setting out to purchase land for their 12 million tonne project affecting 23 villages in four Gram Panchayats. Tontoposi is one of them. From the beginning, as in the Potka block the people here have opposed the project. Initially they mobilized under Bhumi Raksha Grameena Ekta Manch. The Manch itself was co-opted by the Tatas and converted into their paid agents. The Manch is now threatening and harassing the activists of the newly formed Bhumi Raksha Grameen Andolan Abhiyan. When the Andolan stopped the attempt of the Tatas to inaugurate a rehabilitation centre, the leaders of the Manch picked up a quarrel with them, which ended in the murder of Hiralal Mahato, an active worker of the Andolan in Tidingdipa on 12 September this year. The silence that reigns in the villages today is indicative of suppressive tactics being used by the Tatas and other companies.
Even in purely legal terms the action of the government of Jharkhand in entering into MOUs with these companies and letting them lose on the villages to purchase land is objectionable. This entire area referred to above falls under the 5th Schedule of the Constitution. As held by the Supreme Court of India in Samatha vs State of Andhra Pradesh (1997), paragraph 5 (2) of the 5th Schedule of the Constitution contains an inbuilt prohibition against transfer of land in scheduled areas in favour of any non-tribal including a company. This area also falls under the jurisdiction of Chotanagpur Tenancy Act. Section 46 of that Act prohibits transfer of land from STs to non-STs, SCs to non-SCs and BCs to non-BCs without the permission of the Deputy Commissioner of the district. Since all the lands in the named villages are owned by SCs, STs or BCs and Tatas, Jindals and Bhushans do not belong to those categories, the government cannot pretend that there can be any sale without its intervention. When people are strongly resisting the sale, it is the bounden duty of the Deputy Commissioner to come forward and say that he will not permit such sale.
Rehabilitation
Resistance to land acquisition for projects is often met by promises of adequate rehabilitation. The people are painted as unreasonable if they continue their resistance notwithstanding such promises. But the reality shows that people’s skepticism is more than justified. We visited Gangudih colony, a rehabilitation centre of the Chandil dam. There are 12 such rehabilitation centres for a total of about 116 submerged villages. The project started in the 1970s. The resistance was brutally suppressed by police firing in 1978. The dam was completed in 1984, though the canals are yet to be fully dug. The first rehabilitation promise was made in 1990 when the displaced families were offered Rs. 20,000 for construction of house and Rs. 50,000 for purchase of alternative land. In the year 2003 this was modified to Rs. 50,000 for construction of house and Rs. 75,000 for purchase of alternative land. As of the year 2008 not even half the displaced families have received the rehabilitation package.
Our Demands
1. The Government should put a stop to further activity on development projects facing opposition from people and open a dialogue with the concerned people.
2. Netrahat Field Firing Range and Mandal Dam and Auranga Dam submerge considerable amount of forest land in which local people have rights. Stop further activities on these projects and as a first measure settle the rights of these people under the Scheduled Tribes and other Traditional Forest Dwellers (recognition of forest Rights) Act .
3. Resume development work in the Netrahat Field Firing Range area where no land has been acquired by the government.
4. Restitution of rights of the people in the Mandal and Auranga dam as construction of project has not been undertaken in spite of land being acquired more than two decades ago, the rights of the original land-holders should be restored and development activities resumed.
5. In the area of East Singhbhum, Lathehar and Saraikela- Kharsewan districts, where the Vth schedule of the Constitution and the Chota Nagpur Tenancy Act apply, the Government should forthwith withdraw all MOUs entered into with companies for extraction of minerals or establishment of industries.
6. Stop repression on people agitating against displacement and take action against private gangs being used by the companies to suppress people’s movement.
Tuesday, May 3, 2011
अतिक्रमण हटाने के बहाने शहर के गरीबों का सफाया नहीं करेगें-तो राज्य का इस मिशन के तहत मिलने वालीराशि -1, 65,000 करोड़ जो नहीं दी जाएगी।
भारत बदल रहा है। भारत के शहर भी बदल रहे हैं। इसके साथ ही झारखंड के शहर भी बदल रहे हैं। जहां कल शहर के चैक-चैराहों में गरीबों के छोटे-छोटे घर थे, दुकानें थीं-वहां आज टुटा दिवार का टुटा अंश , मिटी का में तब्दील हो गया है। जो गरीबों के बहते अंसूओ के दर्द का बायां कर रहा हैं। हर चीज बदला सा लग रहा है। लोगों के मन में आतंक है कि अगले दिन किस का छत उजड़गे। सरकार के नजर में यही विकास का पैमाना है। सरकार बोली है यह हाईकोर्ट का आदेश है-हाईकोर्ट बोलती है-मैंने बेरहमी से बुलडोज करने को नहीं कहा था। आखिर यह खेल क्यों हो रहा है। यह तो तय है कि जिस भी भूखंड से कमजोर लोगों हटाया जा रहा है-वहां बड़े बड़े पूजिंपतियों का सापिंग मोल बनेगा। कारपोरेट घरानों का सुख सुविधा का केंन्द्र बनेगा। व्यवसायिक केंन्द्र बनेगा। हाई कोर्ट ने यह भी आदेश दिया है कि-ग्रामीण इलाकों में, किसानों के घर-आंगन में जो भी परती जमीन है-वह सरकार की है। जो इस जमीन में घर बनाया है, खेती करता हैं-उस जमीन को किसान के हाथ से छीन कर सरकारी कब्जे में करना है। राज्य के बड़े शहरों में हो रहे अतिक्रमण की आग की लपट प्रखंडों तक पहुंच चुकी है। खूंटी जिला के कर्रा प्रखंड, खूंटी प्रखंड, मुरहू प्रखंड, तोरपा प्रखंड में भी बूलडोजर चलनाशुरू हो गया है। प्रखंड से अब पंचायत तक, और पंचायत से गांव-टोली तक बुलडोजर पहुंचेगा। तब क्या होगा? सभी चिंतित हैं। अतिक्रमण के विवाद ने अभी तक रांची में दो, धनबाद में दो लोगों की जान ले चुकी है।
यूँ देखा जाए तो बदलाव अपने आप में कोई बुरी बात नहीं हैं। बड़े-बड़े दार्शनिक कह गए हैं कि प्रकृति हो या मानव समाज-दोनों में हमेशा से बदलाव होते रहे हैं और आगे भी होते रहेगें। मगर सोचने की बात यह है कि परिवर्तन की दिशा क्या है। बदलाव की चाल, चरित्र और चेहरा कैसे है? क्या बदलाव समाज के आम लोगों की ज्यादा से ज्यादा भलाई की दिशा में हैं या कुछ खास लोगों की तिजोरियां भरने की दिशा में? क्या बदलाव ऐसा है जिससे व्यक्तियों, क्षेत्रों और सामाजिक समूहों के बीच की असमानता कम होती है या ऐसा जिससे विषमता की खाई और चैड़ी होती है? क्या बदलाव कीदिशा में व गति के बार में फैसला व्यापक समाज मिलकर लोकतांत्रिक तरीके से करता है, या कुछ ताकतवर लोग बंद कमरे में बैठकर इसका फैसला करते हैं?
भारत के शहर पिछले कुछ वर्षों से बड़ी तेज रफतार से बदल रहे हैं। दिल्ली हो या मुम्बई, पटना हो या लखनउ, कलकत्ता हो या कोची, सभी शहर आज वल्र्ड -क्लास शहर बनने की अंधी दौड़ में शामिल है। वल्र्ड-क्लास की परिभाषा क्या होगी? इस पर कभी कोई सार्वजनिक चर्चा नहीं की गई। परन्तु आर्थिक, राजनैतिक सामाजिक सत्ता के मालिक -सभी इस विषय पर एकमत हैं कि देश के शहरों को वल्र्ड-क्लास बनाए बिना देख की तरक्की नहीं हो सकती है। उनका दावा है कि शहरों के आधारभूत ढांचे (इंफ्रास्ट्रक्चर) एंव शासन प्रणाली (गवर्नेंस) में यदि सुधार नहीं होता है, तो वर्तमान में 8 फीसदी की दर से जो आर्थिक विकास का घोड़ा दौड़ रहा है वह भारत के एक विकसित राष्ट्र की मंजिल तक पहुंचने से पहले ही बीच में कहीं थक कर बैठ जाएगा। तो ये वल्र्ड-क्लास शहर आखिर है क्या जिसकी सड़कों पर दौडकर आर्थिक विकास का घोड़ा भारत को एक विकसित देश की मंजिल तकपहुंचेगा ?
पिछले 10-15 वर्षों का अनुभव देखें तो साफ समझ में आता है कि वल्र्ड-क्लास माने ऐसा शहर जहां पैसे वालों को आइसो -आराम के वे तमाम साधन उपलब्ध हों जिसके लिए उन्हें पहले अमरीका या यूरोप जाना पड़ता था। जगह-जगह सोपिंग मौल हो, चमचमाते सिनेमाघर हों, उपभाग की सभी वस्तुएं उपलब्ध हों। जब सड़क पर उनकी गाड़ी दौड़े तो बीच में कोई रूकावाट न आए इसके लिए हर चैराहे पर एक पलाईओवर हो। वल्र्ड-क्लास शहर माने ऐसा शहर जहां पर्यटक या बिदेशी निवेशक आएं तो उन्हें भीड़, गंदगी या गरीबी न दिखाई दे। जैसा अनुभव उन्हें लंदन या न्यूयार्क की सड़कों पर चलने में होता है वैसा ही अनुभव उन्हें दिल्ली और मुंम्बई में भी मिले।
लेकिन समस्या यह है कि हमारे शहर कोई वीरान बंजर भूमिं तो है नहीं कि उन्हें जो चाहे रूप दे दो और किसी को नुकसान भी न हो। जाहिर सी बात है जब मेट्रो या सोपिंग मोल बनाने होते हैं तो झुग्गियां उजाड़ी जाती हैं। फिर भल ही उससे लाखों लोग बेघर जो जाएं। जब प्रदूषण कम करने की बात होती है तो कारखानों पे ताले लगाए जाते हैं। फिर भले ही उससे लाखों मजदूर बेराजगार हों। जब पलाइओवर बनते हैं तो पैदल, रिक्सा या साइकिल पे चलने वालों के लिए सड़क पर कोई जगह नहीं रहती है। जब मोल बनते हैं तो छोटे दूकानदार अपनी रोजी-रोटी खो देते हैं। संक्षेप में कहें तो एक थर्ड-वल्र्ड देश में जब वल्र्ड-क्लासशहर बनते हैं तो बहुसंख्यक अवाम की जीवन स्थिति फोर्थ वल्र्ड में पहुंच जाती है।
यह किसी निराशावादी का राग विलाप नहीं बल्कि हमारे शहरों की जमीनी सच्चाई है। दिल्ली शहर को ही देखें तो पिछले 8 सालों में 8 लाख से ज्यादा झुग्गीवासियों को विस्थापित किया गया है। मुम्बई में भी लगभग इतने ही लोग पिछले एक दशक में विस्थापित किए गए हैं। झुग्गिवासी हों या कच्ची कोलोनो के निवासी, रिक्सा चालक हों यह रेहडी-पटरी वाले, कारखाना मजदूर हों या बेघर लोग, आज सभी परप्रशासन की मार पड़ रही है।
अभी तक चली प्रक्रियाएं तो यही दिखाती हैं कि आने वाले समय में यह मार बढ़ने वाली है। हमारी सरकार ने पूरी तैयारी कर ली है गरीबों-मेहनतकशों को शहर से बाहर निकालकर शहर की जमीन व अन्य सभी संसाधनों को सम्पन्न वर्ग और देशी -बिदेशी निवेशकों के हवाले करने की। गरीबों के सर से छत और मुंह से निवाला छीनकर धन्नासेठों की तिजोरियां भरने के अपने निर्णय के बारे में सरकार कितनी गंभीर है इसकी मिसाल हमें हाल ही में लाए गए जवाहर लाल नेहरू शहरी नवीनीकरण मिशन के रूप में देखने को मिल रही जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीनीकरणमिशन । सभी सेवाओं के संचालन एवं रख-रखाव की पूरी लागत वसूलने के लिए यूजर चार्ज-
संबिधान के तहत देश के सभी नागरिकों को जीने का हक दिया गया है। रोजी, रोटी, कपड़ा के अलावा पानी, स्वास्थ्य, शिक्चा इत्यादि कुछ ऐसी सेवाएं हैं जिनके बिना जीवन के अधिकार का कोई बतलब नहीं है। जनेरासन मिशन सभी सेवाओं के इस्तेमाल के लिए यूजर चार्ज यानि कीमत अदा करने की वकालत करता है। यूजर चार्ज और जीने का अधिकार दोनों अंतविरोधी हैं। हमारे देश की जयादातर शहरी आबादी गरीब है। इस आबादी के पास सेवाओं के इस्तेमाल की कीमत अदा करने की क्षमता नहीं है। तो क्या इन लोगों को जीने का अधिकार नहीं है? जनेरासन मिशन तो कम से कम यही कहता हैं पानी चाहिए तो यूजर चार्ज दो, सौचालय जाना है तो यूजर चार्ज दो, दवा चाहिए तो यूजर चार्ज दो, बच्चों को पढ़ाना है तो यूजर चार्ज दो। जो पानी, शौचालय , शिक्षा , स्वास्थ्य सेवाओं इत्यादी के लिए पैसा अदा करेगा उसे ही इन सेवाओं के इस्तेमाल की इजाजत है। जो पैसा नहीं दे सकता वो जहन्नुम में जाये। मिशन के तहत पब्लिक प्राईवेट patnarship को बढवा देना है
janerashan मिशन में जिस चीज पर सबसे ज्यादा बल दिया गया है यह है पाब्ल्कि प्राईवेट पार्टनरशिप (पी.पी.पी) को बढ़ाना। कुछ वर्ष पहले वि’व बैंक, एशिया विकास बैंक जैसे अंतर्राष्टीय वित्तीय संस्थान सार्वजनिक सेवाओं के सीधे निजीकरण की वकालत करते थे। परन्तु जब दुनिया भर में सेवाओं-खासकर पानी-के निजीकरण के खिलाफ जमकर विरोध हुआ तो उन्होंने अपनी शब्दावली बदली और अब वे निजीकरण की बजाय पब्लिक -प्राईवेट-पार्टनरशिप की बात करते हैं। पब्लिक -प्राईवेट-पार्टनरशिप की मूल विचारधारा यह कि सार्वजनिक सेवाओं का पूरी हाथ में दे दिया जाए तो कम से कम उनका प्रबंधन जरूर प्राईवेट कम्पनियों के हाथ में दे दिया जाए। सभी सेवाओं की आपूर्ति व्यवसायिक आधार पर ही की जाए यानि सेवा प्रदान करने वाले निकाय का मुख्य ध्येय मुनाफा कमाना हो। सेवाओं का इस्तेमाल करने वालों को उपभोक्ता माना जाए और उनसे सेवाओं की पूरी कीमत वसूल की जाए। जो तबके सेवाओं की पूरी कीमत अदा नहीं कर सकते हैं, उन्हें थोड़ी बहुत रियायत जरूर दी जाए मगर मुफत में कुछ न दिया जाए। सेवाओं की आपूर्ति सार्वजनिक स्तर पर नहीं बल्कि व्यक्तिगत मकान के स्तर पर हो। रियायत देने में जो खर्चा हो से सेवा प्रदान करने वाले निकाय के खाते में हानि के रूप में दर्ज किया जाए और सरकार से इस हानि के ऐवज में मोटी रकम मुआवजे के बतौर वसूली जाए।
पी. पी.पी के इस मोडल को आज देर पूरे देश में और सभी बुनियादी सेवाओं के क्षेत्र में लागू करने की कोशिश की जा रही । दुनिया भर में ऐसे अनेको उदाहरण हैं जो यह दिखाते हैं कि यदि यह मोडल अपनाया गया तो पानी, शौचालय , बिजली, स्वास्थ्य, ’शिक्चा भोजन जैसी बुनियादी सेवाऐं करोडों-करोडों गरीबो की पहुच से दूर हो जायेगी।
भारतीय शहरों की असलियत को जानने वाले साफ तौर पर देख सकते हैं कि यदि उपरोक्त मदों में मिशन के तहत फंडिंग नहीं दी जाएगी तो गरीब शहरी आबादी के लिए इन मिशन में कुछ भी सकारात्मक नहीं है। आज शहरों में जमीन की कीमत को आग लगी हुई। शायद ही कोई राज्य सरकर होगी जो अपने पल्ले से जमीन खरीद कर गरीबों को आवास मुहैया कराये। यदि मिशन के तहत गरीबों को आवास देने के लिए जमीन खरीदने की अनुमति होती तो शायद राज्य सरकारे इस दिशा में कुछ कदम भी उठाती । इसी तरह से Education , और स्वस्थ्य लोगों की बुनियादी जरूरते हैं। आज गरीब लोग अपनी आमदनी का एक बड़ा हिस्सा प्राइवेट स्वास्थ्य एवं Education हासिल करने में खर्च कर रहे हैं।
आज सरकार के लिए आधारभूत ढ़ाचे का मतलब-पलाईओवर, मेट्रो रेल, मोल वगैरह ही आते हैं, गरीबों की बुनियादी जरूरते नहीं।
(जनेराशन मिशन ) क्या है?
ज्वाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीनीकरण मिशन को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 3 दिसंबर 2005 को हरी झंण्डी दिखाई। यह मिशन शहरी विकास के छेत्र में केंन्द्र सरकार की आज तक की सबसे बड़ी योजना है जनेराशन मिशन के तहत अगले 7 वर्षो के दौरान देश के 63 शहरों में 1,26,000 करोड़ रू खर्च किये जाएगें। इसमें से 50,000 करोड़ केंन्द्र सरकार देगी और बाकी धन नगर पालिकाओं-पैरास्टेटल एजेंसी को उगाहना होगा। जनेराशान मिशन शहरी विकास की पुरानी योजनाओं से सरकार और नगर पालिकाएं शहर के प्रशासन में कुछ सुधार करने की गारंटी दे। ये सुधार क्या है इस पर हम आगे चर्चा करने जा रहे हैं । अभी हम सिलसिलेवार देखेगें कि जनेराशन मि’शान को दस्तावेज आखिर कहता क्या है।
जनेराशन न मिशान के बारे सरकार को जरूरत क्यों पड़ी?
देश की 30 प्रति’शात आबादी ‘शहरों में निवास करती है और सकल घरेलू उत्पाद में इनका योगदान 50-55 प्रतिशत है।
‘’शहरों के इंफ्रास्ट्रक्चर (आधारभूत ढ़ाचे ) और बुनियादी सेवाओं की हालत बिगड़ी हुई है। ये हालत सुधरी नही तो ‘’शहरों की व देश की अर्थव्यवस्था चरमरा जाएगी।
शहरों का विकास करना है तो राज्य सरकारों को कानून एवं शासन के क्षेत्र में इस तरह के सुधार लाने होगें जिससे पूंजी निवेश के लिए बेहतर माहौल तैयार हो।
शहर स्थानीय निकायों के सांगठनिक एवं वित्तीस ढ़ाचे का पुनर्गठन कर उन्हें उधार लेने और उसे व्याज समेत वापिस पाने में सक्षम बनाना।
मिशन का औचित्य
ऽ 1.भारत सरकार के राष्ट्रीय साझा न्यूनतम कार्यक्रम में शहरी नवीनीकरण के लिए एक विस्तृत कार्यक्रम लाने की बात कही गयी थी।
ऽ 2.संयुक्त राष्ट्र संघ ,द्वारा सन 2000 में पारित तिलेनियम डेवलेपमेंट गोल्स (सहस्त्राब्दी विकास लक्ष्य) के लक्ष्यों की पूर्ति के लिए शहरी क्षेत्रों में निवेश को बढ़ाने व मौजूदा नीतियों को मजबूत करने की जरूरत है।
शहर अपनी क्षमता का भरपूर इस्तेमाल कर सके और प्रगति के इंजन बन सके इसके लिए जरूरी है कि उनके इंफ्रास्ट्रक्चर में सुधार लाया जाए।
मिशन का मूल ध्येय
जनेराशन मिशन के खुद के ‘शब्दों में मिशन का मूल ध्येय सुधारों को प्रोत्साहित करना व चुने हुए शहरों का तेज गति से नियोजित विकास करना है। इसमें जोर शहरी इंफा्रस्ट्रक्चर व सेवा प्रदान करने वाले ढ़ाचों की कुशलता, नागरिकों की भागीदारी तथा यू. एल. बी-पैरास्टेटल की नागरिकों के प्रति जवाबदेही पर होगा।
मिशन का उद्वे’य
ऽ आधारभूत ढ़ाचा सेवाओं का एकीकृत विकास
ऽ परिसम्पतियों के सृजन एवं रख-रखाव में संबंध बनाना ताकि वे लम्बे समय तब टिक सके।
ऽ शहरी आधारभूत सेवाओं में निवेश को बढ़ाना
ऽ शहरी क्षेत्रों के अंदरूनी (पुराने) क्षेत्रों का नवीनीकरण एवं पुनर्विकास
ऽ नागरिक सेवाओं का सार्वभौमिकरण कर उन्हें गरीबों को उपलब्ध कराना।
ऽ शहरी गरीबों को बुनियादी सेवाएं-जिसमें चुका सकने वाले दाम पर आवास की सुरक्षा, बेहती, आवास, जल आपूर्ति एवं निकासी शामिल है-उपलब्ध कराना
मिशन का दायरा
जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीनीकरण मिशन के तहत दो उप-मिशन बाए गए हैं-1. शहरी इंफ्रास्ट्रक्चर एवं गवर्नेस उपमिशन तथा-2. शहरी गरीबों के लिए मिलभूत सेवाएं उपमिशन।
1-शहरी इंफ्रास्ट्रक्चर एवं इवर्नेस उपमिशन
शहरी इंफ्रास्ट्रक्चर एवं गवर्नेस उपमिशन के तहत निम्नलिखित क्षेत्रों से जुड़ी परियोजनाएं स्वीकार्य होगीं-
1-शहरी नवीनीकरण यानि पुराने शहर का पुनर्विकासं
2-जल आपूर्ति एवं सफाई
3-सीवर एवं कूड़ा-कचरा प्रबंधन
4-नाले-नालियों का निर्माण एवं सुधार
5-शहरी परिवहन (सड़क, हाइवे, एक्स्प्रेसवे, मेट्रो इत्यादि)
6-धरोहर क्षेत्रों का विकास
7-जल संसाधनों को संरक्षण
2-शहरी गरीबों के लिए मूलभूत सेवाएं उपमिशन
शहरी गरीबों के लिए मूलभूत सेवाएं उपमिशन के तहत निम्नलिखित क्षेत्रों से जुड़ी परियोजनाएं स्वीकार्य होगी-
1. झुग्गी बस्तियों को एकीकृत विकास
2. शहरी गरीबों के लिए मूलभूत सेवाओं का विकास, सुधार व रख रखाव
3. झुग्गी बस्ती सुधार एवं पुनस्र्थापन
4. ज्ल आपूर्ति, सीवर, जन निकासी, सामुदाचिक शौचालय , स्नानघर इत्यादि।
5. झुग्गीवासियों, शाहरी गरीब, आर्थिक रूप से कमजोर तबकों और निम्न वर्ग के लिए उचित दाम पर घर उपलब्ध कराना
6. नाले-नालियों का निर्माण एवं सुधार
7. झुग्गी बस्तियों का पर्यावरणीय सुधान एवं कुड़ा-कचरा प्रबंधन
8. स्ट्रीट लाइटिंग
9. स्मुदाय हाल, बच्चों की देखभाल के केंन्द्र इत्यादि जैसी नागनिक सुविधाएं
10. इस उप मिशन के तहत बनाई गयी परिसम्पतियों का परिचालन एवं रखरखाव
जनेराशन मिशन के अंतर्गत जिन क्षेत्रों की परियोजनाओं के लिए सहायता उपलब्ध नहीं है-
1. बिजली
2. टेलिकाम
3. स्वास्थ्य
4. ’Education
5. मजदूरी और स्टाफ का खर्चा
6. रोजगार के नए साधनों का