Thursday, January 13, 2011

नदियां-जितनी दूर तक बह रहीं हैं-उतना जीवंत इस समाज का इतिहास है,


9 जनवरी झारखंड के इतिहास में -जल, जंगल, जमीन, भाषा-संस्कृति बचाने के संघर्ष के इतिहास में महत्वपूर्ण दिन है। 9 जनवरी 1900 को बिरसा मुंडा के नेतृत्व में अग्रेजी हुकूमत के खिलाफ संघर्ष में खूंटी जिला स्थित डोमबारी बूरू आदिवासी ’शहीदों के खून से लाल हो गया था। उलगुलान नायकों को साईल रकम-डोमबारी पहाड़ में अंग्रेज सैनिकों ने रांची के डिप्टी कमिश्नर स्ट्रीटफील्ड के अगुवाई में घेर लिया था। स्ट्रीटफील्ड ने मुंडा आदिवासी आंदोलनकारियों से बार बार आत्मसामर्पण करने का आदेश दे रहा था। इतिहास गवाह है-उनगुलान के नायकों ने अंग्रेज सैनिकों के सामने घुटना नहीं टेका। सैनिक बार बार बिरसा मुंडा को उनके हवाले सौंपने का आदेश दे रहे थे-ऐसा नहीं करने पर उनके सभी लोगों को गोलियों से भून देने की धमकी दे रहे थे-लेकिन आंदोलनकारियों ने बिरसा मुंडा को सरकार के हाथ सौंपने से साफ इनकार कर दिये।
जब बार बार आंदोलनकारियों से हथियार डालने को कहा जा रहा था-तब नरसिंह मुंडा ने सामने आया और ललकारते हुए बोला-अब राज हम लोगों का है-अंग्रेजों का नहीं। अगर हथियार रखने का सवाह है तो मुंडाओं को नहीं, अंग्रेजों को हथियार रख देना चाहिए, और यदि लड़ाई की बात है तो-मुंडा समाज खून के आखिरि बुंद तक लड़ने को तैयार है।
स्ट्रीटफील्ड फिर से चुनौती दिया कि-तुरंत आत्मसमार्पण करे-नही तो गांलियां चलाई जाएगी। लेकिन aandolankari -निर्भय डंटे रहे। सैनिकों के गोलियों से छलनी-घायल एक -एक कर गिरते गये। डोमबारी पहाड़ खून से नहा गया। lashen बिछ गयीं। कहते हैं-खून से तजना नदी का पानी लाल हो गया। डोमबारी पहाड़ के इस रत्कपात में बच्चे, जवान, वृद्व, महिला-पुरूष सभी shamil थे। आदिवासी samaj में पहले महिला-पुरूष sabhi लंमा बाल रखते थे। अंग्रेज सैनिकों को दूर se पता नहीं चल रहा था कि जो lash पड़ी हुई है-वह महिला का है या पुरूषों का है। इतिसाह में मिलता है-जब वहां नजदीक से lash को देखा गया-तब कई lash महिलाओं और बच्चों की थी। वहीं एक बच्चा को जिंदा पाया गया-जो मृत ma का स्तन चूस रहा था। इस समूहिक जनसंहार के बाद भी मुंडा समाज अंग्रेजो के सामने घुटना नहीं टेका। इतिहास बताता है-जब बिरसा को खोजने अंग्रेज सैनिक सामने आये-तब माकी मुंडा एक हाथ से बच्चा गोद में सम्भाले, दूसरे हाथ से टांकी थामें सामने आयीजब उन से सैनिकों ने पूछा-तुम कौन हो, तब माकी ने गरजते हुए-बोली-तुम कौन होते हो, मेरे ही घर में हमको पूछने वाले की मैं कौन हुं?
इस गौरवशाली इतिहास को आज के संर्दभ में देखने की जरूरत है। आज जब झारखंड का एक एक इंच जमीन, जंगल, पानी, पहाड़, खेत-टांड पर सौंकड़ों देशी -विदेशी कंपनियां कब्जा करने जा रहे हैं। सरकार आज सभी जनआंदोलनों का दमन कर स्थानीय जनता के परंपारिक और संवैधानिक अधिकारों को छीन कर पूंजीपतियों के हाथों सौंपने में लगी हुई है। ऐसे परिस्थिति में आदिवासी मूलवासी अस्तित्व रक्षा मंच बिरसा उलगुलान के 9 जनवारी के ‘’शहीदों के इतिहास को आगे बढ़ाने के लिए आज तोरपा प्रखंड के चुकरू गांव में इतिहास पर गंभीर चर्चा किया। मंच न महसूस किया कि-आज बिरसा उलगुलान के ’शहीदों के रास्ता का समाज भूलते जा रहा है। बिरसा की राजनीतिक चेतना को भूलते जा रहे हैं। बिरसा मुंडा ने आदिवासी राज्यसत्ता की राजनीति का नींव रखा था। जो जल, जंगल, जमीन बचाने के संघर्ष रूप में था। बिरसा की इस राजनीति को अंग्रेजे अच्छी तरह समझते थे। इसीकारण इनके नजर में बिरसा मुंडा थे। यही कारण है कि-अंग्रेजों ने बिरसा मुंडा को पकड़ कर जेल में रखा और जहर देकर मार डाले। बिरसा मुंडा-ने उस समय यह महसूस किया था-जब यहां कोई सुविधा नहीं था, समाज ashikshit था, आने-जाने का कोई सुविधा नहीं था, आज की तरह सड़के नहीं थी, बिजली नहीं था, फोन नहीं था, गाड़ी की सुविधा नहीं था-फिर भी बिरसा मुंडा महसूस किया-कि मुंडा-आदिवासियों को अपना राज चाहिए, अपना समाज, गांव-जंगल-जमीन-नदी-पहाड़ चाहिए। बिरसा मुंडा ने-महसूस किया था-झारखंड की धरती जितनी दूर तक फैली है-यह उनका घर आंगन है। नदियां-जितनी दूर तक बह रहीं हैं-उतना जीवंत इस समाज का इतिहास है, पहाड़ की उंचाई-के बराबर हमारा संस्कृति उंचा है। सभी वक्ताओं ने यह महसूस किया-कि बिरसा मुंडा ने आखिर क्यों अपना परिवार छोड़ा? क्यों घर छोड़ा। मंच ने अहवान किया-संक्लप लिया कि-हमें आज अपने पंचायत में, गांव में, टोला-महला में, जगल, जमीन में, डोमबारी के इतिहास को लिखने की जरूरत है। विकास के क्षेत्र में-सरकारी योजनाओं में बिरसा मुंडा के उलगुलान के इतिहास को लिखना होगा। मंच के साथियों ने बिरसा उलगुलान को याद करते कई गीत गाये-

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