कामरेड महेद्र सिंह आज भी हमारे बीच हैं..अनुगूँज बन कर........जिन्होंने पहले ही हम से कह गए...
चाँद क़दमों के फासले पर
खड़ी हो निर्विकार भाव से तब
हिमालय की तरह अटल जिंदगी
को
जश्न की तरह जीने का
कुछ और ही मतलब है
साँस की हर डोर
जिसका एक सिरा
थाम रखा हो निर्दयी
कल ने
सिर्फ तभी दिल में
हर धड़कन को
रिदम की तरह
जीवन की लाय में
बंधना जरुरी है
कल जब नहीं
होंगे हम
जिंदगी की हर ख़ुशी
और गम में
हिस्सेदारी बन कर
जिन्दा रहेगी
हमारी गूंज
अनुगूँज बन कर
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