Monday, February 8, 2021

काॅरपोरेट कंपनियों को असानी से जमीन उपलब्ध कराने की पूरी व्यवस्था करने के बाद केंन्द्र की मोदी सरकार ने देश के किसानों के खेती-किसनाी पर काॅरपोरेट कंपनियों को घुसपैठ कराने के लिए तीन नये कृषि कानून को राज्य सभा में संसादों के असहमति के बावजूद जबरण कानून का रूप दिया

 झारखंड देश के संविधान में पांचवीं अनुसूचि के अतंर्गत आता है। पांचवी अनूसूचि के तहत गांव सभा या ग्राम सभा को अपने गांव के सीमा के भीतर-बाहर के जंगल-जमीन, लधुवनोपज, जलस्त्रोतों, लघु खनीज पर अपना परंपरागत अधिकार दिया है। सीएनटी, एसपीटी एक्ट, पेसा कानून भी इनके परंपरागत अधिकार को रेखांकित करता है। लेकिन तात्कालीन रघुवर सरकार ने पांचवी अनुसूचि में प्रावधान ग्राम सभा, परंपारगत गांव सभा के अधिकारों को हनन करते हुए काॅरपोरेट पूंजि घरानों के लिए गांव के सीमा के भीतर के सामुदायिक धरोहर को चिन्हित कर भूमि बैंक बना दिया। सरकार के इस असंवैधानिक काम को रोकने के लिए झारखंड के आदिवासी-मूलवासी किसान समुदाय लगातार संघर्ष कर रही है। 

केंन्द्र की मोदी सरकार ने झारखंड सहित देश के किसानों, आदिवासी -मूलवासी समुदाय क ेजल, जंगल, जमीन को देश के बड़े बड़े कंपनियों के हवाले करने की तैयारी अलग-अलग तरीकें से देश के विभिन्न राज्यों में पिछले 2014 के बाद से जुटी हुई है। 2015-16 में झारखंड में भाजपा की रघुवर सरकार थी, तब झारखंड के ग्रामीण इलाके के गांवों के सामुदायिक जमीन, जंगल-झाड़ को चिन्हित कर भूमिं बैंक बनाया गया। इसकी अधिकारिक घोषणा भी रघुवर सरकार ने कर दिया। इन्हेंने काॅरपोरेट घरानों को झारखंडं में जहां वे चाहेगें, वहां जमीन उन्हें बिना बिलंब किये उपलब्ध कराने के लिए सरकार ने सिंगल विंडों सिस्टम बनाया। इसके लिए राज्य के सभी जमीन के दस्तावेजों को आॅनलाइन किया गया। इस सिस्टिम के तहत देश-विदेश के पूंजिपति आॅनलाइन जमीन सर्च करेगें, जमीन देखेगें, पंसंद करेंगें और आॅनलाइन ही जमीन की खरीद-बिक्री की जाएगी, जमीन का मोटेशन भी आॅनलाइन ही किया जाएगा। यह प्रक्रिया राज्य में शुरू हो चुका है, इस प्रक्रिया के तहत जीयाडा और राज्य सरकार ने कई उद्योगपतियों को जमीन हस्तंत्रित कर चुका है। 

20 सितंबर 2020 को प्रभात खबर में एक रिपोर्ट छपि थी, इसे यह स्पष्ट हो जाता है कि, केंन्द्र की मोदी सरकार ने आज जो तीन नये कृषि कानून लाकर किसानों के खेतों पर काॅरपोरेट कब्जा, परंपारिक खेती-किसानी खत्म कर, काॅरपोरेट खेती को बढ़ाने के लिए पृष्टभूमि तौयार कर लिया है। उक्त रिपोर्ट अनुसार केंन्द्र की मोदी सरकार का मनना है कि राष्ट्रीय भूमि बैंक तैयार किया जा रहा है, झारखंड में भी इसकी तैयारी चल रही है। जो रिपोर्ट में छपी खबर इस तरह है-

राष्ट्रीय भूमि बैंक हो रहा तैयार, झारखंड में भी तैयारी-केंन्द्र

रांची-केंन्द्र सरकार निवेशकों को आकर्षित करने के लिए राष्ट्रीय भूमि बैंक बना कर इससे संबंधित जानकारी आॅनलाइन उपलब्ध करायेगी। इसे लेकर झारखंड में भी तैयारी चल रही है। केंन्द्र सरकार ने बताया कि झारखंड के आंकड़े अपलोड़ हो रहे हैं। गाइडलाइन के मुताबिक, राज्य में पोर्टल तैयार किया जा रहा है। राज्यसभा सांसद महेश पोद्वार के सवाल पर केंन्द्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने संसद में इसकी जानकारी दी। केन्द्र सरकार ने बताया कि कोरोना की वजह से वैश्विक स्तर पर ये व्यापारिक परिदृश्य में भारत की दुनिया की फैक्ट्री और व्यापार का सबसे आकर्षक केंन्द्र बनाने के लिए मोदी सरकार प्रतिबद्व है। दुनिया के किसी भी कोने से निवेशक अपने निवेश की जरूरतों के मुताबिक जमीन की उललब्धता के बारे में जानकारी ले सकेंगे। केन्द्रीय मंत्री ने बताया कि सरकार ने पहले चरण में औद्योगिक सूचना प्रणाली (आइआइएस) को छह राज्यों की शामिल किया है। राष्ट्रीय भूमि बैंक बनाने के लिए कंेन्द्र सरकार ने भखूंड स्तरीय जानकारी सहित औद्योगिक भूमि, वहां की संपर्क सुविधा, मूलभूत सुविधाओं व अन्य उपलब्ध सुविधाओं का व्योरा और पार्क के प्राधिकारणों/डेवलपर्स की संपर्क जानकारी मांगी है। झारखंड भी भूमि बैंक जीआइएस सिस्टम को आइआइएस पोर्टल के साथ जोड़नेवाले आठ राज्यों में शामिल है। झारखंड ने पोर्टल पर पहले ही भूमि संबंधी आंकड़े मैनुअली अपलोड़ किये हैं। झारखंड की तकनीकी टीम इस दिशा में काम कर रही केंन्द्रीय टीम के साथ संपर्क में है। 

हो रहा विरोध-पूर्ववर्ती रघुवर सरकार ने वैसी जमीन को चिन्हित करने का आदेश दिया था, जो उपयोग में नहीं है। इसमें गैर मजरूआ जमीन में लेकर विभिन्न औद्योगिक इकाइयों द्वारा अधिग्रहित जमीन भी है, पिछले दिनों विधानसभा में भी मामला उठा था। सदन में सरकार ने कहा था कि रैयतों व विस्थापितों की जमीन लौटायी जायेगी। सरकार भूमि बैंक तैयार करने के फैसले पर विचार करेगी। ऐसे में केन्द्र सरकार की योजना में झारखंड के शामिल होने को लेकर संशय की स्थिति है। 

काॅरपोरेट कंपनियों को असानी से जमीन उपलब्ध कराने की पूरी व्यवस्था करने के बाद केंन्द्र की मोदी सरकार ने देश के किसानों के खेती-किसनाी पर काॅरपोरेट कंपनियों को घुसपैठ कराने के लिए तीन नये कृषि कानून को राज्य सभा में संसादों के असहमति के बावजूद जबरण कानून का रूप दिया। जन विरोधी आर्थिक विकास के एजेंड़े को आगे बढ़ाने के लिए मोदी सरकार ने कोरोना महामारी काल के बीच देश के लिए तीन कृषि बिल/अध्यादेश 5 जून 2020 को लेकर आया है । 1- किसान उपज व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सुविधा) अध्यादेश 2020 , 2- किसान (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) मूल्य आश्वासन एवं कृषि सेवा पर करार अध्यादेश 2020। 3- आवश्यक वस्तु (संशोधन) अध्यादेश 2020 । 14 सितंबर के पहले इन अध्यादेशों को संसद सत्र के पहले दिन  ही इन अध्यादेशों की जगह कानून लाया गया। 

इस कानून को देश के किसानों ने काला कानून मानते हुए, इससे रदद करने की मांग को लेकर ढाई महिनों से कड़ाके की ढड में दिल्ली बोर्डर पर डेरा डाले हुए हैं। इसके साथ ही देश के कई राज्यों में आंदोलन चल रहा है। 


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