खारिज आवेनदाताओं को वनभूमि पर तीन पुस्त से रहने का प्रमाण देना होगा।
एक तरफ झारखंड सरकार राज्य में स्थानीय कौन होगा को परिभाषित करते हुए झारखंड स्थानीय को परिभषित करने के लिए स्थानीय नीति 2017 के कानून को अस्तित्व में लाया। स्थानीय नीति के तहत जो झारखं ड में तीस साल से रह रहा हो, को झारखंड का डोमेसाईल मिला। या जो यहां रह कर मैट्रिक की परीक्षा पास की हो, यह जो झारखड में नौकरी करते यहां बस गया-झारखंडी है। डोमेसाईल मान्यता मिलने के बाद अब यहां के मूल वसिदों की तरह ही सुख-सुविधा का भोग कर सकता है, या लाभ ले सकता है।
दूसरी ओर जो आदिवासी परिवार या समुदाय जिनकी पूरी जीविका जंगल-जमीन,
पर ही टिका है, जो झाड साफ करके खेती बारी करके जीवन यापन कर रहे हैं, या जंगल से दतुन, पत्ता एकत्र कर जिंदगी काट रहे हैं। उनके लिए फोरेस्ट राईट एक्ट के तहत 80 सालों से रह रहे हों, या तीन पीढ़ी से रहने की शर्त रखी गयी है और जो इस तय समय सीमा की शर्त को पूरा नहीं करता है, वह जंगल भूमि का पटा पाने के लिए आयोग्य माना जाता है।
उपरोक्त दोनों कानून में प्रावधान अधिकार का विश्लेषण करने पर लगता है कि अजनुसूचित जाति, जनजाति, दलित जो पूरी तरह प्रकृति के साथ जुडा है, के साथ अन्याय हुआ है।
वन अफाधिकार -वन में निवास करने वाली अनुयचित जनजाति और परंपरागत वन निवासियों के किसी सदस्य या किन्हीं सदस्यों द्वारा निवास के लिए या जीविका के लिए स्वंय खेती करने के लिए व्यक्तिगत या सामूहिक अधिभोग के अधीन वन भूमि को धरित करने और उसमें रहने का अधिकार देता हैं।
सुप्रीम कोट ने राज्य सरकारों से वन भूमि में रहने वालों
-28 हजार आदिवासी नहीं खाली करेगें वनभूमि-
राज्य के वनों में रहने वाले जनजातियों एवं अन्य वर्ग के लोगों के लिए खुशखबरी है। वनभूमि पर रहने वाले 28107 लोगों से जमीन फिलहाल खाली नहीं करायी जायेगी। इस आशय का हलफनामा राज्य सरकार ने सुप्रीमकोर्ट में दायर किया है। सुप्रीमकोर्ट ने वनों में अवैध रूप से वनभूमि का कब्जा कर रहने वालों की सूची उपलब्ध कराने का निर्देश दिया था। यह भी निर्देश था कि पूरी तरह जांच पड़ताल के बाद ही किसी को बेदखल किया जाये। वनभूमि अधिकार अधिनियम 2006 के तहत वनों में रहने वाले योग्य लोगों के सााि वनभूमि का पटटा भी दिया जा रहा है।
वनभूमि कानून के तहत वनभूमि पर अधिकार प्राप्त करने के लिए कल्याण विभाग को 1,10,756 आवेदन प्राप्त हुये थे। यह सभी आवेदन संबंधित ग्रामसभा से पारित करा कर भेजा गया था। इन आवेदनों में से 1,07,187 आवेदन जनजातियों के थें,
3,569 अन्य पारंपरिक वनभूमि पर रहने वालों के आवेदन थे। जनजातिय संवर्ग के 107187 आवेदनों में से 27,809 आवेदन खारिज कर दिये गये। 3,569 अन्य वर्ग के आवेदनों में 298 आवेदन रदद कर दिये गये। जिनके आवेदन खारिज किये गये उनको वनभूमि का पटटा नहीं दिया गया। अब सरकार ने उनलोगों को एक और मौका दस्तावेज उपलब्ध कराने को दिया है जिनके आवेदन खारिज किये गये हैं। खारिज आवेनदाताओं को वनभूमि पर तीन पुस्त से रहने का प्रमाण देना होगा। जनजातियों द्वारा 49,267.56 हेक्टेयर वनभूमि पर दावा किया गया है। जिसमें 1,936.42हेक्टेयर वनभूमि का दावा खारिज किया गया। अन्य संवर्ग द्वारा 1495.49 हेक्टेयर वनभूमि का दावा किया गया, जिसमें से 742.81 हेक्टेयर वनभूमि का दावा खारिज कर दिया गया।
एक तरफ झारखंड सरकार राज्य में स्थानीय कौन होगा को परिभाषित करते हुए झारखंड स्थानीय को परिभषित करने के लिए स्थानीय नीति 2017 के कानून को अस्तित्व में लाया। स्थानीय नीति के तहत जो झारखं ड में तीस साल से रह रहा हो, को झारखंड का डोमेसाईल मिला। या जो यहां रह कर मैट्रिक की परीक्षा पास की हो, यह जो झारखड में नौकरी करते यहां बस गया-झारखंडी है। डोमेसाईल मान्यता मिलने के बाद अब यहां के मूल वसिदों की तरह ही सुख-सुविधा का भोग कर सकता है, या लाभ ले सकता है।
दूसरी ओर जो आदिवासी परिवार या समुदाय जिनकी पूरी जीविका जंगल-जमीन,
पर ही टिका है, जो झाड साफ करके खेती बारी करके जीवन यापन कर रहे हैं, या जंगल से दतुन, पत्ता एकत्र कर जिंदगी काट रहे हैं। उनके लिए फोरेस्ट राईट एक्ट के तहत 80 सालों से रह रहे हों, या तीन पीढ़ी से रहने की शर्त रखी गयी है और जो इस तय समय सीमा की शर्त को पूरा नहीं करता है, वह जंगल भूमि का पटा पाने के लिए आयोग्य माना जाता है।
उपरोक्त दोनों कानून में प्रावधान अधिकार का विश्लेषण करने पर लगता है कि अजनुसूचित जाति, जनजाति, दलित जो पूरी तरह प्रकृति के साथ जुडा है, के साथ अन्याय हुआ है।
वन अफाधिकार -वन में निवास करने वाली अनुयचित जनजाति और परंपरागत वन निवासियों के किसी सदस्य या किन्हीं सदस्यों द्वारा निवास के लिए या जीविका के लिए स्वंय खेती करने के लिए व्यक्तिगत या सामूहिक अधिभोग के अधीन वन भूमि को धरित करने और उसमें रहने का अधिकार देता हैं।
सुप्रीम कोट ने राज्य सरकारों से वन भूमि में रहने वालों
-28 हजार आदिवासी नहीं खाली करेगें वनभूमि-
राज्य के वनों में रहने वाले जनजातियों एवं अन्य वर्ग के लोगों के लिए खुशखबरी है। वनभूमि पर रहने वाले 28107 लोगों से जमीन फिलहाल खाली नहीं करायी जायेगी। इस आशय का हलफनामा राज्य सरकार ने सुप्रीमकोर्ट में दायर किया है। सुप्रीमकोर्ट ने वनों में अवैध रूप से वनभूमि का कब्जा कर रहने वालों की सूची उपलब्ध कराने का निर्देश दिया था। यह भी निर्देश था कि पूरी तरह जांच पड़ताल के बाद ही किसी को बेदखल किया जाये। वनभूमि अधिकार अधिनियम 2006 के तहत वनों में रहने वाले योग्य लोगों के सााि वनभूमि का पटटा भी दिया जा रहा है।
वनभूमि कानून के तहत वनभूमि पर अधिकार प्राप्त करने के लिए कल्याण विभाग को 1,10,756 आवेदन प्राप्त हुये थे। यह सभी आवेदन संबंधित ग्रामसभा से पारित करा कर भेजा गया था। इन आवेदनों में से 1,07,187 आवेदन जनजातियों के थें,
3,569 अन्य पारंपरिक वनभूमि पर रहने वालों के आवेदन थे। जनजातिय संवर्ग के 107187 आवेदनों में से 27,809 आवेदन खारिज कर दिये गये। 3,569 अन्य वर्ग के आवेदनों में 298 आवेदन रदद कर दिये गये। जिनके आवेदन खारिज किये गये उनको वनभूमि का पटटा नहीं दिया गया। अब सरकार ने उनलोगों को एक और मौका दस्तावेज उपलब्ध कराने को दिया है जिनके आवेदन खारिज किये गये हैं। खारिज आवेनदाताओं को वनभूमि पर तीन पुस्त से रहने का प्रमाण देना होगा। जनजातियों द्वारा 49,267.56 हेक्टेयर वनभूमि पर दावा किया गया है। जिसमें 1,936.42हेक्टेयर वनभूमि का दावा खारिज किया गया। अन्य संवर्ग द्वारा 1495.49 हेक्टेयर वनभूमि का दावा किया गया, जिसमें से 742.81 हेक्टेयर वनभूमि का दावा खारिज कर दिया गया।
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