Sunday, February 5, 2012

तीन फरवारी को कई जनआंदोलनों के साथी मिले। दिन भर के चर्चा के बाद सामुहिक रूप से निम्नलिखित प्रस्ताव पारित किये गये

दिनांक 3 फरवरी 2012 को रांची स्थित एच आर डी सी के सभागार में सीएनटी एक्ट को लेकर चर्चा कर लिए झारखंड के विभिन्न इलाकों में जंगल-जमीन-पानी की रक्षा के लिए संघर्षरत जनसंगठनों की बैठक हुई। वर्तमान में हाईकोर्ट के आदेsh सीएनटी एक्ट के धारा 46 को कड़ाई से लागू करने के सवाल को लेकर पूरे झारखंड में उबाल की स्थिति उत्पन्न हो गयी है। बडें पूजिपति, माफिया, जमीन दलाल, राजनीतिक तंत्र, ब्यूरोक्रेट, तथा आदिवासी समाज को लूटने वाले हाइकोर्ट के इस आदेsh का विरोध कर रहे हैं। झारखंड विकास मोर्चा के अध्यक्ष श्री बाबूलाल मरांडी तथा भाजपा के पूर्व उपप्रधानमंत्री श्री रघुवारदासजी सीएनटी एक्ट में बदलाव लाना चाहते हैं। इनका कहना है कि-जमीन खरीद-बिक्री करने का हक सभी को मिलना चाहिए। दूसरी ओर भाजपा गठबंधन झारखंड सरकार के मुख्यमंत्री भी इस विवाद को अपनी राजनीतिक स्टेंट बनाने की koshish करते हुए सीएनटी एक्ट में किसी तरह की बदलाव संभव नहीं है-कि बात कह रहे हैं। झारखंड मुक्ति मोर्चा के सुप्रीमो श्री shebu सोरेन भी अपनी स्थिति मजबूत करने की koshish में हैं-उनका बयान भी है कि-सीएनटी एक्ट में किसी तरह का बदलाव नहीं होना चाहिए। दूसरी तरफ मीडिया पूरी koshish में है कि-इस विवाद को और जहरीला बनाया जाए ताकि समाज दो भागों में बांट जाए, स्थिति खाराब हो और अंत में सामाजिक समरासता और विकास का रास्ता साफ करने के नाम पर सीएनटी एक्ट में बदलाव लाने को राज्य मजबूर हो, इसका प्रयास कर रहा है। यही कारण है कि प्रतिदिन मीडिया अभियान चला रखा है -विभिन्न वर्ग और जाति समूदाय का बयान -सीएनटी को कड़ाई से पालने करने पर किस को लाभ होगा और किस को हानि। इसमे मीडिया चेंबर आफ कोमारस और बीलडरों का राय रोज प्रका’िात कर रहा हैं। चेमबर off comerce और बीलडर दुखित हैं कि-सीएनटी एक्ट की धारा 46 को यदि कड़ाई से लागू किया जाएगा-तो राज्य का विकास रूक जाएगा, यहां किसी तरह से उद्योग-कलकारखाना नहीं लगाया जा सकता है। रियल स्टेट के लोग दुखित हैं-कि इस स्थिति में राज्य में बिलडिंगें, अर्पाटमेंट, मोल आदि का व्यवसाय नहीं किया जा सकता है। सभी बिलडर आंसु बहा रहे हैं-कि हम लोगों का पूंजि फंस जाएगा। अब यहां व्यवसाय संबंध नहीं है-इसलिए अब दूसरे राज्यों का रूख करना ही बेहतर होगा।
इन परिस्थितियों में जो आदिवासी जल-जंगल-जमीन के अधिकारों के सवाल को लेकर संघर्षरत हैं-इनकी राय क्या है। इसी udesheya से तीन फरवारी को कई जनआंदोलनों के साथी मिले। दिन भर के चर्चा के बाद सामुहिक रूप से निम्नलिखित प्रस्ताव पारित किये गये-
1-झारखंड हाइकोर्ट का यह फैसला कि सीएनटी एक्ट की धारा 46 (1),(2) और 64 को सख्ती से लागू किया जाए-इसका हम स्वागत करते हैं और सरकार से यह मांग करते है कि इसका अक्षरsha पालन करावे।
2-टी ए सी ( आदिवासी पर्रामर्sh दातत्री समिति -ट्राईबल एडवाजरी कामेटी) को कारगर और प्रभावी एवं pardarshi बनाया जाए।
3-सीएनटी एक्ट का उल्लंघन करते हुए जिन जमीननो का हस्तत्रंण किया गया है-उसे पुनः मूल रयैत को वापस किया जाए।
4-झारखंड के तमाम एमओयू रदद किये जाएं क्योंकि उसमें टी ए सी से सहमति नहीं ली गयी है तथा पेसा कानून के तहत ग्राम सभा की सहमति नहीं ली गयी हैं साथ ही सीएनटी का उल्लंघन किया गया है।
5-कांके -नगड़ी में आइ एमएम और लाॅ काॅलेज के लिए सरकार पुलिस बल पर 227 एकड़ जमीन का कब्जा किया है -जो सीएनटी एक्ट के धारा 46 का घोर उल्लंघन है तथा पेसा कानून के तहत ग्राम सभा की अनदेखी की गई है। इसका हम पूरजोर विरोध करते हैं-और वहां से कब्जा करने के काम को तत्काल रोका जाए तथा पुलिस बल को वहां से हटाया जाए।
sanyojika -दयामनी बरला
संगठन-
1-आदिवासी मूलवासी अस्तित्व रक्षा मंच
2-बोकारो जिला विस्थापित साछा मंच
3-विस्थापन विरोधी एकता मंच
4-बेरमो अनुमंडल विस्थापित प्रभावित संघर्ष मोर्चा
5-बागईचा
6-इंसाफ
7-डैम प्रभावित संघर्ष समिति-खूंटी-कर्रा
8-कांके-नगड़ी के ग्रामीण
उपस्थिति-अजहर अंसारी, फादर स्टेन स्वामी, कुमार चंद्र मार्डी, अलोका, राजकुमार गोरांई, kashinath केवट, दिनेsh तोपनो, नदी कच्छप, एतवा मुंडा,

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