Saturday, February 26, 2011

Mitha jahar..punarwash our punarasthapan Niti 2008

नीतियों में उपलब्धि गिनाने वालों को इतिहास के झरोखे में भी झांक कर देखने की जरूरत है कि झारखंड के आदिवासियों-दलितों और जरूरतमंदो के अधिकार की रक्षा के लिए, इनके विकास के लिए दर्जनों संवैधानिक अधिकार की सुरक्षा के लिए दर्जनों कानून बनाये गये। राज्य के आदिवासियों के जंगल-जमीन की रक्षा के लिए छोटानागपुर काश्तकरी अधिनियम 1908 तथा संताल परगाना काश्तकरी अधिनियम बना। छोटानागपुर काश्तकरी अधिनियम तथा संताल परगना काश्तकरी अधिनियम जिसमें प्रवाधान है कि आदिवासियों का जमीन को काई गैर आदिवासी यह बहारी आदमी के हाथ न तो बेचा जा सकता है, न ही हस्तंत्रण किया जा सकता है। लेकिन कानून बनने के 50 वर्षों में झारखंड के आदिवासियों के हाथ से चाहे किसी भी तरह से हो 80 फिसदी जमीन छीना जा चुका है। आज जो आर-आर नीति बनी है यह भी सीएनटी एक्ट तथा एसपीटी एक्ट के विरोध में बना है, सीएनटी और एसपीटी एक्ट में प्रावधान है कि कृर्षि भूमि को उद्योग-कल कारखाना लगाने के लिए हास्तंत्रित नहीं किया जा सकाता है। आजादी के बाद देश के प्रथम प्रधानमंत्री स्व. जवाहरलाल नेहरू ने देश के आदिवासी-दलित-किसानों के जल-जंगल-जमीन, समाज-इतिहास, पहचान की रक्षा के लिए पंचशील बनाया। लेकिन यह भी आज तक जमीन पर उतरा नहीं। पांचवी और छटवीं अनुसूची क्षेत्र को विशेष अधिकार दिया गया। आखिर इन सभीकानूनों का क्या हुआ, कहीं लागू नहीं हुआ। 1956 में बोकारो स्टील प्लांट बना, 1966-67 में एचईसी बना, 1986 के दशक में चांडिल डैम बना, जमशेदपुर में यूसीएल कंपनी बैठी, ये सभी इकाईयां कल्याणकारी भारत सरकार की प्रतिष्ठानो में गिना जाता है। विदित हो कि जमीन अधिग्रहण के समय इन सभी प्रतिष्ठानो की भी पुनर्वास्थापन एवं पुनर्वास नीति थी, जमीन अधिग्रहण के समय इन सभी प्रतिष्ठानो ने भी हर विस्थापित परिवार को नौकरी देने, आर्दशपुनर्वास करने का, विस्थापितों को शिक्षित-प्रशिक्षित करने का वायदा किया था। लेकिन क्या हुआ-विस्थापितों को नौकरी और अन्य सुविधाएं देने के नाम पर संबंधित अधिकारी, दलाल, माफियाओं का राज चलता रहा, और विस्थापित रोड़ पर भीख मांग रहे हैं।

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