Saturday, February 26, 2011

वह कौन सा जंगली जानवर था चुड़का सोरेन जो जंगल से लकड़ी बिनने गई तुम्हारी बहन मुंगली को उठाकर ले भागा?

अपने घर की तलाश में.........santhali sahiyakar......निर्मला पुतुल
मैंने देखा था चुड़का सोरेन
तुम्हारे पिता को अक्सर हडिंया पीकर
पिछवाड़े बंसबिटूटी के पास ओघड़ाए हुए
कठुवाई अंगुलियों से
दोना-पत्तल-चटाई बुन
बाजार ले जाकर बेचते हुए तुम्हारी मां को भी
हजार-हजार कामुक आंखें और सिपाहियों के पंजे झेल
चिलचिलाती धूप में ईंट पाथते
पत्थर तोड़ते मिटूटी काटते हुए भी
किसी बाज के चुगुल में चिडि़यों की तरह
फड़फड़ाते हुए एक बार देखा था उसे

तूम्हारे पिता ने कितनी sharb पी
यह तो मैं नहीं जानती
पर शराब उसे पी गई
यह जानता है सारा गांव
इसे बचो चुड़का सोरेन
बचाओ इसमें डूबने से अपनी बस्तियों को
देखो तुम्हारे ही आंगन में बैठ
तुम्हारे हाथों बना हडि़यां तुम्हें पिला-पिलाकर
कोई कर रहा है
तुम्हारी बहनों से ठिठौली
बीड़ी सुलगाने के बहाने बार बार
उठकर रसोई में जाते
उस आदमी की मनसा पहचानो चुड़का
सोरेन
जो तुम्हारी औरत से गुपचुप बतियाते
निपोर रहा है दांत
बात-बात में।

वह कौन सा जंगली जानवर था चुड़का सोरेन
जो जंगल से लकड़ी बिनने गई तुम्हारी
बहन मुंगली को उठाकर ले भागा?

तुम्हारी भाषा में है बोलत वह कौन
जो तुम्हारे भीतर बैठा कुतर रहा है तुम्हारे
विश्वाश की जड़ें?
दिल्ली की गणतंत्र झांकियों में
अपनी टोली के साथ नुमाइश बनकर
कई कई बार पेश किए गए तुम
पर गणतंत्र नाम की कोई चिडि़या
कभी आकर बैठी तुम्हारे
घर की मुंड़ेर पर?

क्या तुम जानते हो
पेरिश स्थित भारतीय दूतावास में भागी
ललिता उरांव के बारे में
जनते हो महानगरों में पनपे
आया बनाने वाली फैक्ट्ररीयों का गणित को
और घरेलू कामगार महिला संगठन का
इतिहास?
बांदों की दीपा मूर्मू की आत्मा आज भी
भटक रही है
इंसाफ की गुहार लगाते तुम्हारी बस्तियों में
उसे सुनो चुड़का सोरेन
उसे सुनो

कैसा बिकाउं है तुम्हारी
बस्ती का प्रधान
जो सिर्फ एक बोतल बिदेशी दारू में रख
देता है पूरी बस्ती को गिरवी
और ले जाता है कोई लड़कियों के गटठर की तरह
लादकर अपनी गाडि़यों में तुम्हारी लड़कियों को
हजार पांच सौ हथेलियों पर रखकर
पिछले साल धनकटनी में खाली पेट बंगाल
गई पड़ोस की बुधनी

किसका पेट साजकर लौटी है गांव?
कहां गया वह परदेशी जो
शादी का ढ़ोग रचाकर
तुम्हारे ही घर में तुम्हारी बहन के साथ
साल दो साल रहकर अचानक गाएब हो
गया?

उस दिलावर सिंह को मिलकर
ढ़ुढों चुड़का सोरेन
जो तुम्हारी ही बस्ती की रीता कुजूर को
पढने -लिखाने का सपना दिखाकर दिल्ली ले
भागा
और आनन्द भोगियों के
हाथ बेच दिया

और हां, पहचानो
अपने ही बीच की उस कई कई
उंची सेंडिल वाली
स्टेला कुजूर को भी
जो तुम्हारे भोली-भाली बहनों की ओखों में
सुनहरी जिन्दगी का ख्वाब दिखाकर
दिल्ली की आया बनाने वाली फैक्ट्रीयों में
कर रही है कच्चे माल की तरह सप्लाई
उन सपनों की
हकीकत जानो चुड़का सोरेन
जिसकी लिजलिली दीवारों पर पांव रखकर
वे भागती हैं बेतहासा पछिम की ओर

बचाओ अपनी बहनों को
कुंवारी मां बनी पड़ोस की उस शिल्वान्ति के
मोहजाल से
पूरी बस्ती को रिझाती जो
बैग लटकाए जाती है बाजार
और देर रात गए लौटती है
खुद को बेचकर बाजार के हाथों

किसके शिकार में रोज जाते हो जंगल
किसके?
शाम घिरते ही अपनी बस्तियों में उतर आए
डन खतरनाक शहरी जानवरों को पहचानों
चुडका सोरेन
पहचानों
पांव पसारे जो तुम्हारे ही घर में घुस कर
बैठे हैं
इस पेचदार दुनिया में रहते
तुम्हारे भोलेपन की ओट में
तुम इतने सीधे क्यों हो चुड़का सोरेन?

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