Monday, February 21, 2011

सरकार भोले-भाले ग्रामीणों को माओवादी घोषित कर उनके परिवार को उजाड़ कर जनसंहार कर रही हैं


paulush ka chhota beta --8 mah kaka hansta-khelta Anup.is ko kya pata ki iska pita jel me hai.
Anup ka bada bhai ..Ankit..pitaji ko jel le jane ke bad apne moushi ke pas rah raha hai..
जंगल
-जमीन, नदी-पहाड़ आदिवासी समुदाय का सामाजिकd, संस्कृतिक, आर्थिक तथा इतिहासिक अस्तित्व है। इतिहास गवाह है desh के जिस भी भाग में आदिवासी समुदाय प्रवेश किया, जंगल को रहने, खेती करने लायक बनाया। बाघ-भालू, बिच्छु से लड़कर गांव बसाया। जंगल में रहते हुए इन्हें अपना मित्र बनाया। मुसलाधार बारिस और आकाश में कड़कती बिजली ने आदिवासी समाज को संर्घष करने का कला सिखलाया। जेठ माह की दोपहरी की तापती धरती जीवन का गुढ़ रहस्य समझाया । प्रकृति के जीवन चक्र के साथ इस सामाज का कला और ज्ञान का एक दुसरे के साथ अटुट रिस्ता जुड़ा हुआ है। यही कारण ही कि आदिवासी समाज प्रकृति से लेता भी है और जितना उसे लेता है, उसे दूना उसे देता भी है। यही कारण है कि आज भी जहां आदिवासी हैं, वहीं जंगल है और जहां जंगल है, आदिवासी भी वहीं हैं।
लेकिन आज के बाजारवाद और पूंजीवादी अर्थव्यवस्था ने आदिवासी समूदाय और जंगल को एक दूसरे से अलग करने का हर हथ कंड़ा अपना रहा है। आदिवासी समाज और जंगल के बीच के समरसता को जब्रजस्ती कटुता में बदलने का पूरा प्रयास कर रहा है। यह सभी षटयंत्र सिर्फ आदिवासी समाज और प्रकृति को एक दूसरे से अलग कर प्रकृतिक संसाधनों पर पूंजीवाद का मालिकाना अधिपत्य जमाने की कोशिश है। यही कारण है कि आज पूर देश में प्रकृतिक संसाधनों से पटा इलाका में माओवादियों को समाप्त करने के नाम पर भोले भाले आदिवासियों को माओवादी करार कर जेल में बंद कर दिया जा रहा है। ताकि आदिवासी समाज कमजोर हो जाए। ग्रीन हंट के नाम पर कई आदिवासी गांवों से सभी युवकों को माओवादी घोषित कर कई सालों तक जेल में डाल कर रखा गया है। गांव में अब सिर्फ बुढ़े बुर्जग, अबोध बच्चे तथा बच्चों के मां ही रह गये हैं। घर में पूरूषों के नहीं होने से परिवार की आर्थिक स्थिति बिगड़ते जा रही है। बच्चों का सही परवारिस नहीं होने से बच्चों का भविष्य अंधकारमय होता जा रहा है। पति के सहयोग के अभाव में महिलाओं का जीवन भी हर स्तर में असुरक्षित होता जा रहा है। जंगल-जमीन बंजर भूमिं में तब्दील हो रहा है। जो परिवार खेत से सालों भर का आनाज पैदा करता था, अब खेती करना छोड़ दिया। कारण की खेत में हल-कोड़ी चलाने वाले पुरूष तो अब माओवादी के नाम पर जेल में बंद हैं। बच्चे अनाथ हो गये हैं। आइऐ इस पीड़ा को झेल रहे गांव के पीडि़तो से मिलिए। यह है उडिसा के सुंदरगढ़ जिला का सिलपुंजी गांव। गांव में तीन टोली है-मुंडा टोली, बड़का टोली और छोटका टोली। तीनों टोली मिला कर यहां करीब 100 परिवार हैं। गांव की निर्माला उरांव और बिरंग उरांव इस गांव का दुखड़ा सुनाती हैं। निर्माला के पति पौलूस उरांव हैं। गांव के अन्य 29 पुरूषों के साथ 29 अगस्त 2010 को ही सीआरपी एफ ने माओवादी के नाम पर घर से पकड़ कर राउरकेला के एस्पेशल जेल में बंध कर दिया हैं। जिस दिन इन युवकों को सीआरपीएफ पकड़ कर ले जा रही थी-महिलाएं अपने पति को छुड़ाने के लिए पुलिस गाड़ी के पीछे पीछे दौड़ रही थी। लेकिन सीआरपीएफ युवाकों को लेकर भाग निकला । निर्माला के दो बेटे हैं। बड़ा बेटा दो साल का है, छोटा बेटा आठ माह का। बच्चों का परवारिस नहीं कर पाने के कारण बड़ा बेटा को निर्माला ने अपनी बहन के पास भेज दी है। करलुस उरांव को जब जेल ले जाया गया तब उसकी पत्नि गर्भवती थी। पत्नि ने दो जुड़वा बच्चों को जन्म दी। सही सेवा के अभाव में एक बच्चा दो माह के बाद मर गया। पतरस उरांव को जेल होने के बाद बेटी जोसफिन आठ माह की थी, सही परवारिस के अभाव में मर गयी। पतरस का भाई को जेल में रखा गया है-इसका एक साल का बेटा अर्जुन भी सही सेवा, भोजन के अभाव में मर गया। आदम उरांव की पत्नि गर्भवती थी। पति को जेल ले जाने के बाद बच्चा पैदा हुआ-लेकिन सही सेवा के अभाव में दो दिन के बाद बच्चा मर गया। जयदेव को जेल ले जाने के बाद पत्नि उषा बीमार पड़ी, इलाज के अभाव में वह दम तोड़ दी। एक बच्चा है जो आज अनाथ की तरह है, वह नाना-नानी के पास है। जितने लोगों को जेल ले जाया गया सबके बच्चे स्कूलों में पढ़ रहे थे। अब गरीबी के कारण सभी बच्चे स्कूल छोड़ दिये। दातुन और पत्ता बेच कर महिलाएं परिवार का गाड़ी खिंच रही हैं। सवाल है सरकार भोले-भाले ग्रामीणों को माओवादी घोषित कर उनके परिवार को उजाड़ कर जनसंहार कर रही हैं आखिर इसके लिए कौन जवाबदेह होगा। ग्रामीण अब गांव छोड़ने को मजबूर हो रहे हैं। इन यातनाओं के बावजूद ग्रामीण कहते हैं-हम अपने धरती को छोड़कर कैसे जाएंगेंं।

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