Monday, February 28, 2011

Hills Don’t Crumble, The Social Structure Of Aadivasi (Aboriginal) Community Collapses

Jangal-Jamin..Prayawaran --Sampati nahi Hamara Dhrohar hai..




Gramin arthbewastha hi desh ko vikash ka naya disha de sakta hai. jo samajik sanskriti, arthik bewastha ka muladhar hai..Yahi hamara Etihas our pahchan hai..yahi samudayik adhikaron ki raksha kar sakta hai..jo Globlaization,
Privetaization, Global Warming ko rok sakta hai. Yahi Jangal Jamin hame pidhi dar pidhi khilata hai...Iska Punarwas awam Punarasthapan Sambhaw nahi hai..Na hi kisi Muwaja rashi se ishe nahi bhara ja sakta hai...




Sunday, February 27, 2011

Mitha Jahar ..Punarwas awam Punarasthapan niti 2007,2008-Part-11

yah..report..2008 ki hai..isko RTI se maine nikala hai...
Gumla jila prashasan ne Kadara block ke 10 gaon me is tarah se sarkari jamin chihit kiya..our Mittal company ko bech raha hai..Pink cloure se highlighted jamin jise se identify kiya gaya hai...yah bonda gaon ka naksha hai..
Gumla jila prashasan ne kamdara block ke Tithi gaon me is tarah se sarkari jamin identiry kiya..aap dekh rahe hain..yah karo nadi ki sahayak nadi hai..sath me choti-choti..upnale bhi hain..jo gaon se bich se..kisano ke khet-jangal ke bich bah raha hai...yah..report..2008 ki hai..isko RTI se maine nikala hai..
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Mitha Jahar..Punarwas awam Punarasthapan niti 2007, 2008.Part-10

जिस जमीन को सरकारी जमीन घोषित किया गया है-वह जमीन पूरी तरह से गा्रमीणों द्वारा आबाद है। उस जमीन पर किसान खेती करते हैं। कई भूखंड ग्रामीणों का चरागह है। जमीनी हकिकत से दूर सरकार सिर्फ कंपनी की दलाली कर रही है। एक तरफ जिला prashasan गुमला जिला के गांवो के ग्राम सभा को sasakt करने के लिए हर माह के 16 तारीख को हर ग्राम सभों का बैठक करती है। दूसरी ओर उन्हीं ग्रामीणों के अधिकारों का सरकार दमन कर रही है। आर्सेलर मित्तल कंपनी के पास यदि कोई नौतिकता है, तो मानवता पर जो दमन हो रहा है, इस पर विचार करना चाहिए। यहां aisa ही हो रहा है-jaise एक rupiya है इसमें से 99 रूप्या 98 पैसा किसानों के अधिकार में है और इसमें से जबरजस्त 2 पैसा पर सरकार अपना अधिकार जमाना चाह रही है और इसी के जरिये इस इलाके के gramino को उजाड़ने के लिए कंपनी को क्षेत्र में घुसाने के लिए रास्ता तैयार कर रही हैं। जो अमानवीयता का हद हैं। जहां-तहां जिस जमीन को चिन्हित किया गया है-वह किसानों के घर-आंगन और खेतों के बीच है। तब यहां तकनीकी सवाल उठता है कि -किसान तो जमीन देगे ही नहीं-तब इस चिन्हिित सरकारी जमीन पर कंपनी कैसे प्लांट लगाएगी।

Mitha jahar.. Punarwas awam Punarasthapan niti 2007, 2008-Part-9

घर-आंगन, मंदिर-Masjid, girja, सरना-ससनदीरी, shmsan-hadgadi, खेत -खलिहान के अगल-बगल कहीं 5 डिसमिल जमीन को सरकारी जमीन के रूप में चिन्हित किया, कहीं 10 डिसमिल चिन्हित किया तो कहीं 20 डिसमिल चिन्हित किया गया है।
झारखण्ड सरकार gumla जिला प्रशासन कमडारा प्रखंड के 10 गांवों के नदी-नाला, जंगल-पहाड़, जैसे समुदायीक sansadhno को मित्तल कंपनी को 1025 एकड़ जमीन बेच रही है-यह इस क्षेत्र के गांव सभा तथा आदिवासी-मूलवासी, किसानों के अधिकारों का दमन ही है। इस क्षेत्र में सीएनटी कानून है और इसके तहत गांव सीमा के भीतर जो भी जमीन है-वह गांव की समुदायिक संपति है। इस कानूनी अधिकार का जिक्र खतियान पार्ट भाग दो में भी है। लेकिन राज्य सरकार गांव के जमीन को कहीं 5 डिसमिल, कहीं 12 डिसमिल, कहीं 15 डिसमिल जमीन को सरकारी जमीन करार कर मित्तल कंपनी को बेच रही है-यह छोटानागपुर कस्तकारी अधिनियम का घोर उल्लंखन है। कंपनी के लिए सरकार द्वारा किसानों के खेत-खलिहानों के बीच, जंगल-पहाड़ों के बीच बह रही नदी-नालों को कंपनी को बेच रही है। ये चिन्हित किये गये जमीन एक साथ नहीं है। 5 डिसमिल जमीन तीन किली मिटर में है, दूसरा चिन्हित किया 10 डिसमिल जमीन इसे चार किलोमिटर दूर है। इस तरह से कमडारा प्रखंड के 10 गांवो से 1025 एकड़ सरकारी जमीन के रूप चिन्हित किया गया है, इसमें नदी-नाला, झरना आदि भी shamil hai । इस चिन्हित जमीन के एवज में सरकार कंपनी से 15,48,71,550.00(पन्द्रह करोड़ अढ़तालीस लाख, एकहात्तर हाजार, पांच सौ, पचास रूप्या) मांग रही है। विदित हो कि ग्रामीण मित्तल कंपनी को प्लांट लगाने के लिए जमीन नहीं देना चाह रहे हैं-ग्रामीण कंपनी को विरोध कर रहे हैं। इसलिए जिला prasashan नदी-नालों को कंपनी को बेच रही है। जबकि यह ग्रामीणों की समुदायिक संपति है। इसे यही साबित होता है कि सरकार के सामने ग्रामीण जनता का कोई अस्तित्व नहीं है, न ही इनके अधिकारों का मान-सम्मान हैं। एक गांव का कुल रकबा 1740.80 एकड़ है-उस गांव क्षेत्र से 111.05 एकड़ (एक सौ ग्यारह एकड़ पांच डिसमिल) जमीन सरकारी जमीन के रूप में चिन्हित करके कंपनी को बेचा जा रहा है-यह ग्रामीणों के उपर हो रहा अत्याचार की सीमा भी लांघ दिया है। सरकारी अधिकारियों से जब पूछा गया कि इस तरह से जो जमीन आप कंपनी को बेच रहे हैं-इस जमीन पर करखाना लगाना संभव है क्या-इस पर अधिकारी कहते हैं, sambhaw तो नहीं हैं। सवाल उठता है-आखिर सरकार किसको मुर्ख बनाना चाहती है-आम जनता को या कंपनी को।

Mitha Jahar..Punarwas ewam Punarasthapan niti 2007, 2008-Part-8

अब समाज और कंपनी यह सरकार और जनता के बीच लड़ाई काम होगा..क्योंकि जमीन कें खरीद-फरोक्त में अब ठेकेदार, दलाल और मफियाएँ मुख्या भूमिका में हैं.
केंद्र सरकार की पुनर्वास एवं पुनर्स्थापन नीति २००७ के तर्ज पर ही झारखण्ड सरकार सहित देश के तमाम राज्यों की सरकार कंपनियों के जमीन आसानी से उपलब्ध करने की बेवस्था कर दिया है. कानून में कहा गया है- कंपनी को जितना जमीन की जरुरत है, इसका ७० प्रतिशत जमीन कंपनी जमीन मालिकों से खुद खरीदेगा और ३० प्रतिशत जमीन सरकार अधिग्रहण कर कंपनी को देगी. इसके अधर पर ही आज पूरे देश में राज्य सरकार और कंपनी किसानो का जमीन दलाल-माफियाओं के सहयोग से साम-दाम-दंड -भेद- की नीति अपना कर खरीद रहे हैं. सरकार की यह नीति बहुत ही खतरनाक है. इसमें सरकार अपने को जमीन मालिकों के सामने आने वाले समस्या से दूर रखती है. इसमें दलाल और माफियाओं का raj चलता है. दलाल-माफिया अपना मशाल-मणि पवार का उपयोग कर जमीन मालिकों से कौड़ी के भाव जमीन लेते हैं और कंपनी से करोड़ों राशि का सौदा कर रहे हैं. इसके कई तजा उदहारण हैं. इसमें सरकार भी ग्रामीणों का जमीन को सरकारी जमीन घोषित कर कंपनी से करोडो राशि कमाने का प्रयास कर रही है. यंहा यह बताना जरुरी है..किसी भी गाँव के भीतर जो भी जमीन है..वह समुदाय का है. जिसे सरकार अपना मानती है.
झारखण्ड में १०४ कंपनियों के साथ एम् औ यू हस्ताक्षर किया है..इन सभी कंपनियों के लिए इसी अधार पर जमीन का प्रबंध करने का निर्देश सरकार कंपनियों दो दी है. इसी के अधार पर जंहा जमीन-जंगल के अधिग्रहण को लेकर जनबिरोध चल रहा है, वंहा सरकार कंपनी को उस इलाके में घुसाने के लिए समुदाय का सामूहिक सम्पति को गैर मजुरुवा आम और गैर मजुरुवा खास याने सरकार की सम्पति घोषित कर कंपनी को बेचने की कोशिश कर रही है. इसके कारण अब जंहा पूंजीपति अपना udhyog lagane ke liye jamin chinhit kar rahe hain..gaon gaon me we apna dalal -maphiya khada kar jamin malikon par dabaw ban kar jamin kampani ko dila rahe hain. yah niti bhai bhai me ladwa raha hai..gaon gaon me khun kharaba karwa raha hai. अब समाज और कंपनी यह सरकार और जनता के बीच लड़ाई काम होगा..क्योंकि जमीन कें खरीद-फरोक्त में अब ठेकेदार, दलाल और मफियाएँ मुख्या भूमिका में हैं. is kam me rajya sarkar inhe puri tarah sahyog kar rahi hai..sabhi rajyon me. इस तरह से यह पुनर्वास एवं पुनर्स्थापन नीति सामाजिक एकता, समरसता को तोड़ने वाला जहर है.

Mitha Jahar..Punarwash awam Punarasthapan Niti 2008-Part-7

राज्य बने दस साल पूरे हो गये-इस दस साल में जो भी सरकार सत्ता में बैठी, सभी मिल कर 104 बड़े देशी -बिदेशी पूंजीपतियों के साथ एमओयू साईन किये। यहां यह जानने की जरूरत है कि हर एक कंपनी को अपना
1-कारखाना बैठाने के लिए जमीन चाहिए, इनके पावार के लिए
2-पावार प्लांट बैठाने के लिए जमीन चाहिए
3-पानी के लिए डेम चाहिए
4-लाखों हेक्टेयर कोयला खादान चाहिए
5-स्टील प्लांटों का अयर ओर के लिए लाखों एकड़ माइंस के लिए जंगल-जमीन चाहिए
6-आवागामन के लिए रेल लाईन चाहिए
7-शहरीकरण के लिए जमीन चाहिए-टाउनशिप के लिए
८ -इन्सलारी-सहायक फैक्ट्रीयों के लिए जमीन चाहिए
यहां यह समझने की जरूरत है कि हर उद्वोगपति को कोयला-उनके जरूरत के हिसाब से-स्टील प्लांट के लिए चाहिए साथ में पावार प्लांट के लिए भी चाहिए।
इसी तरह-पानी सभी उद्वोगपतियों को -कोयला खादान के लिए चाहिए, अयरन ओर माइंस के लिए भी चाहिए, और स्टील प्लांट तथा पावार प्लांट सभी के लिए पानी चाहिए।

यहां-यह भी जानने की जरूरत है कि झारखंड का क्षेत्रफल 79,714 वर्ग किलो मीटर है। यदि सभी उद्वोगपतियों को उद्वोग लगाने के लिए जमीन दिया जाए तो झारखंड के आदिवासी-मूलवासी किसानों के हाथ में एक इंच भी जमीन-जंगल नहीं बचेगा। यही नहीं बूंद -बुद पानी के लिए झारखंडवासी तरसने लगेगें। यही नहीं..ग्लोबल वार्मिंग...से होने वाले सभी परिणामों को भीझेलना होगा..

Mitha Jahar..Punarwash awam Punarasthapan Niti 2008-Part -6

Ise Khet par Hamare kai pidhi..Jiwika..Jindagi...Bitaye...Our Jab tak ye Dharti rahegi...Aane wala kai Pidhi ise me jita--palta..rahega...Khud to Kisan khet ka upaj khate hi hai..pure Desh ko bhi khilate hain..
नीति के 7.2 में कहा गया है-प्रत्येक विस्थापित परिवार को ग्रामीण क्षेत्रों अधिकतम 10 डिसमिल तथा शहर में 5 डिसमिल होगा दिया जाएगा, जिसका कारपेट एरिया 100 वर्ग मीटर होगा। इसी जमीन पर एक पक्का मकानजिसमें दो कमरा, एक ड्राईंग रूम तथा एक किचन होगा बना कर दिया जाएगा। जो इस जमीन पर घर नहीं चाहताहै को एक मुश्त तीन लाख रूपया दे दिया जाएगा, इस तीन लाख रूपया से कहीं दूसरा जगह जाकर जमीन खरीदोऔर घर बनाओ। कहा गया है-जिनके पशुधन हैं-मुर्गी-चेंगना, गाय-बैल, भेड़-बकरी, काडा-भैंस, बत्तक इनकोरखने के लिए भी इसी 10 डिसमिल जमीन में गाय-बैल-बकरी गोहार बनाना है। सुअर के लिए सुअरगुड़ा भी इसीमें बनाना है। कुत्ता-बिल्ली तो साथ रहेगें ही।

इस नीति के ड्रफट में किसानों के जमीन जिसको अधिग्रहण किया जाएगा -उसका क्या कीमत होगा, किस दर सेहोगा, इसका कोई जिक्र नहीं है। यहां यह भी समझने की जरूरत है कि जब राज्य सरकार और कंपनी के बीच, जिसभी कंपनी के साथ एमओयू किया गया है, उसमें क्या-क्या शर्तें हैं। जमीन अधिग्रहण संबंधी, मुआवजा यह अन्य प्रावधानों पर सरकार और कंपनी के बीच क्या शर्तें हैं। विस्थापितों के प्रति कंपनी कहां-कहां उत्तरदायी है औरसरकार किन-किन दायित्वों के लिए जवाबदेह होगी। इसका खुलासा आखिर सरकार जनता के सामने क्यों नहींकरती है। जिस जनता के जिंदगी के कीमत का सौदा किया जा रहा है-उनके सामने एकरारनामा एमओयू काखुलासा आखिर क्यों नहीं किया जा रहा है। एमओयू को परदे के पीछे रख कर पुनर्वास्थापन और पुनर्वास नीतिकैबिनेट में पारित करना आदिवासी-मूलवासी किसानों के साथ बहुत बड़ा धोखा है।

Mitha Jahar..Punarwash awam Punarasthapan Niti 2208-Part-5

Jangal Jamin sirph Aandata nahi hai..lekin yahi..SUDH HAWA PANI Dene wala bhi hai
7.12 में कहा गया है-जिस परिवार को नौकरी नहीं मिलेगा, उसको उनके जमीन के एवज में प्रति एकड़ प्रतिमाहरू मिलेगा 30 वर्षों तक दिया जाएगा-यह वार्षिक पालिसी के तहत दिया जाएगा प्रतिएकल परिवार को।उदा-एक परिवार में दस सदस्य हैं, और इस परिवार का पांच एकड़ जमीन अधिग्रहण कर लिया गया। इस परिवारका जमीन के एवज में अब प्रतिमाह पांच हजार रूपया मिलगा बिना मेहनत किये। यहां यह भी देखना है कि अबइस परिवार को हर चीज पौसों से खरीद कर ही जीना है, चठी-बरही, शिक्षा-दिक्षा, शादी-विवाह सभी सामाजिकदायित्व पूरा करना है। वार्षिक पोलिसी तहत मिलने वाले इस राशि को जमीन का पेंशन भी कह सकते हैं। जिनकिसानों के पास अधिक जमीन है-यह इस मुगालतें में रहें कि उनको प्रतिएकड़ एक हजार रूपया मिलेगा तोजिनकी 15-20 एकड़ जमीन लेली गयी, उसको 15-20 हजार प्रतिमाह मिलेगा, एैसा नहीं है। नीति कहता है- वार्षिक पालिसी के अधीन अधिकतम राशि प्रति माह हस जहार रूपये प्रति परिवार तक सीमित होगी। इसी नीतिमें कहा गया है-एक वर्ष की अवधि के लिए प्रति माह पच्चीस दिनों की न्यूनतम कृषि मजदूरी के बराबर मासिकजीविका भत्ता दिया जाएगा-यहां सवाल उठता है-पिछले तीन साल से केंन्द्र सरकारी की बहुमुखी राष्टीय ग्रामीणरोजगार योजना चलायी जा रही है। इस एक्ट में प्रावधान है कि जिस दिन से मजदूर रोजगार के लिए फार्म भरता हैइसके 15 दिनों तक यदि उत्क व्यत्कि को रोजगार नहीं मिलता है तो उसे 50 दिनों का बेरोजगार भत्ता दियाजाएगा। इस योजना को कर्यान्वित करने के लिए प्रधानमंत्री से लेकर मुख्यमंत्री, बीडीओ से लेकर पंचायत सेवकतथा लाभुक समिति तक जिम्मेवार है। जगजाहिर है इस योजना की स्थिति का, योजना को सही तरीके से लागूकरनो वाले युवक ललित मेहता की हत्या तथा हाजीरीबाग के तापस सोरेन की अत्महत्या ने दुनिया का बता दियाकि यहां का लूट तंत्र कितना निर्मम और कठोर है। तब सवाल है कि विस्थापितों को न्यूनतमकृषि मजदूरी केबराबर मासिक जीविका भत्ता मिलना कितना कठिन होगा यह तो समय ही बताएगा।

Mitha Jahar..Punarwash awam Punarwash Niti..2008-Part-4

Jangal-Jamin sirph Aandata kewal nahi hai..Sudh HAWA PANI ka DATA bhi yahi hai
नीति में कहा गया है कि हर विस्थापित को नौकरी देगें। सवाल है आज भी 80 फीसदी ग्रामीण अशिक्षित हैं, कईगांवों में तो एक भी मैंर्टीक पास वाले नहीं हैं। इसके लिए ग्रामीणी दोषि नहीं हैं, इसके लिए दोषि है तो सरकार औरव्यवस्था। ज्ञात हो कि आज ग्रामीण क्षेत्रों में दर्जनों उत्क्रामित स्कुल में सांइस शिक्षकों का पद खाली पड़ा है क्योंकिक्षेत्र में साइंस पढ़े-लिखे युवक-युवातियां नहीं मिल रहे हैं। तब यहां के आदिवासी-सदान किसान कंपनी के शुद्वआय तथा शेयर@डिवेंचर का मायाजाल को कितने लोग समझेगें। यह भी समझने की बात है कि जिस ईलाके मेंकंपनी प्लांट लगाएगी, उस क्षेत्र में कितने टेकनिकलहोडर हैं, कितने मेकेनिकल हैं, कितने इंजिनियर हैं, कितनेआईटीआई वाले हैं, कितने कमप्युटर में दक्ष लोग है क्योंकि कंपनी में नियोजन-नौकरी पाने वाले उम्मीदवारों कीयोग्यता और पात्रता का यही मापदंड होगा। कुछ लोगों को नौकरी मिलेगी-तीस साल नौकरी के बाद आउट होजाऐंगे। कही गयी है-कंपनी के शुद्व आय का एक प्रतिशत प्रभावित परिवारों को दिया जाएगा। सवाल है कंपनी घाटेमें चल रहा है या लाभ में इसका हिसाब कौन रखेगा-यह सर्वविदित है कि कोई भी व्यवसायिक संस्थान अपनीअर्थिक सुरक्षा को देखते हुूए अपने का घाटा में ही बताता है। जब की जंगल जमीन पर समाज पीढ़ी डर पीढ़ीजीते- रहाहै..

Mitha Jahar--Punarwash awam Punarasthapn Niti 2008--Part -3

Is ka Puranwash kaise sambhaw hai...pure Samajik-Sanskritik-Arthik System ko samajhne ki Jarurat hai

Puranwas our Punarasthapan niti ko puri tarah Jankari ke liye..blog posting..27 Feb. 2011 ke sabhi ..Mitha Jahar..ki posting dekhene..
नीति के र्डाफट कापी के 6.23 में विस्थापितों को पुनर्वास अनुदान की राशि के पचास प्रतिशत तक की राशि के अर्जनकारी निकाय के शेयर@डिवेंचर अथवा दोनों को लेने का विकल्प दिया जायेगा। 7.13.1 में कंपनी के शुद्व आय का एक प्रतिशत प्रभावित परिवारों को दिया जाएगा कहा गया है। लेकिन इसके तह में कई बुनियादी सवाल सामने उभर कर आते हैं और इन सवालों को इमानदारी से स्वीकार किये बिना, यह तर्क देना कि इस नीति से झारखंडियों का भविष्य उज्जवल होगा-विस्थापितों के साथ घोर अन्यय ही होगा। आज भी 95 प्रतिशत ग्रामीण किसान है जिनकी जीविका, सामाज व्यवस्था-अस्था, आर्थिक व्यवस्था, भाषा-सांस्कृति पहचान, अस्तित्व, यहा के नदी-पहाड़, जंगल-जमीन, पेड़-पौधा, घांस-फूस, फुल-फल के साथ प्रकृति के जीवन-चक्र के साथ इनका ताना-बाना है। छह माह खेतों से आनाज पैदा करना तथा बाकी छह माह हरियाली के बीच फूल-फल के साथ जीवन जीना ही इनका स्वार्ग है जो ससटेनेबल डबलपमेंट और पर्यावरण सुरक्षा का पाढ़ पढ़ाता है। कटहल, आम, जाम ईमली, पुटकल, कोयनार, महुंआ-डोरी, चार-पीयार, केंदु-सराई, करांज-लाह, कुसुम, चिरौंजी, दातुन-पताई, रूगडा-खुंखडी ग्रामीण जीवन का आर्थिक रीढ़ है। हर गांव कटहल, आम-जाम, ईमली, बांस, महुंआ पेंड़ से पटा हुआ है। हर साल किसान-ग्रामीण परिवार लाखों रूपया कमाता है। ज्ञात हो कि मौसम में करांज 10रू किलो, महुंआ 15 रू किलो, चिरौंजी 500रू किलो, आमसी 65रूकिलो, पुटकल साग सुखा 150रू किलो बिकता है। तब इसका मुआवजा कैसे आंका जा सकता है। यह सच है ग्रामीण क्षेत्रों में 5 प्रतिशत स्थानीय मूलवासी-सदान समाज व्यवसाय करता है जो 90 प्रतिशत व्यवसाय प्रकृतिक-वनोउपज पर केंन्द्रित है