Sunday, March 22, 2020

जिंदगी का यात्रा आप सभी के साथ 2007

जिंदगी का यात्रा आप सभी के साथ 2007
अमेरिका यात्रा के लिए वीजा के लिए साक्षात्कार की तैयारी 2007

मेरे अमेरिका वीजा के लिए श्रीप्रकाश ने वीजा फाॅम आदि मांगाने के लिए आर्या ट्राव्लेस से बात किया था। श्रीप्रकाश ने मुछे आर्या ट्राव्लेस के पास वीजा फाॅम भरने के लिए भेजा। आर्या ट्राव्लेस के लोगों ने फाॅम भरने में मदद किये, इसके लिए श्रीप्रकाशजी ने पहले ही चार हजार रूपया एजेंन्सी को भुगतार कर दिया था। एजेंन्सी के लोगों नेे मुझे से पूछा कि मैं कब साक्षातकार के लिए कलकता जाना चाहती हुॅ। इन्होंने साक्षात्कार का दिन नेट में देख कर बताये जिसमें 12 सितंबर, 18 सितंबर और 26 एवं 30 2007 सितंबर का दिन मिल रहा था। 12 सिंतबर बिलकुल सामने था। इसके बाद 18 सितंबर था, लेकिन 18 सितंबर को पिछले साल कुरकुरा में शांति सेना के लोगों ने छह आदिवासियों को गोली से भून दिया था। क्षेत्र में शांति सेना के लोग आतंक मचाये हुए थे। दुसरी ओर  आदिवासी क्षेत्र में शांति व्यवस्था कायम करना चाहते थे, बाजार में हडिेया-दारू की ब्रिकी पर रोक लगाना चालते थे साथ ही शांति सेना द्वारा किये जा रहे शोषण को समात्प करना चाह रहे थे। इसी को लेकर शांति सेना के लोगों ने आदिवासियों की हत्या की थी। 

18 सितंबर2007 को कुरकुरा क्षेत्र के ग्रामीण शहीद दिवस मनाने की तेयारी में जुटे थे। ग्रामीण बार-बार फोन कर अग्राह कर रहे थे कि हर हाल में आप को शहीद दिवस दिवस में आना है क्योंकि आप गोली कांड के बाद हमलोगों को हर कदम में मदद किये हैं। घायल लोग रिम्स रांची में इलाजरत थे, आप ने घायलों को पूरा मदद किये। मेरे मन भी आ रहा था कि इस शहीद दिवस में क्षेत्र के आठ-दस हजार लोग जमा होगें, सबके साथ नजदीकी बढ़ गयी है एैसे स्थिति में हमको वहां जरूर जाना चाहिए। लेकिन अमेरिका वीजा के लिए साक्षत्कार के लिए 18 सिंतबर के बाद का समय भी नहीं जज रहा था क्योंकि कब कोई बड़ा काम सामने आ जाये, इसलिए 18 सितंबर को ही साक्षत्कार के लिए तय की।

आर्या ट्राव्लेस के लोगों ने 18 सितंबर के पहले आवाश्यक तैयारी करने की सलहा दिये। इसके लिए मुझे कहा गया कि आप के नाम से जितना भी संपती-गाड़ी, जमीन, मकान, बैंक जमा, इंश्योरंस, आप के नाम खरीदा गया अन्य जयजाद-संपती हो तो, सभी का एक फाईल बना कर साक्षात्कार के समय ले जाईएगा। साथ ही आप के पति के साथ जो भी संपती जोंईट नाम पर है सबको ले जाना। मेेंरे पासपोट में शादी के बाद मेरे पति का नाम नहीं चढ़ा हुआ है, इनका नाम भी पासपोट कार्यालय में चढ़वाना है। साथ ही प्रभात खबर में या कहीं भी नौकरी कर रही हो तो नौकरी-पद के साथ आय दिखाने के लिए आप को मिलने वाला प्रति माह का वेतन का भी एक लिखित, संबंधित आदिकारी यह संपादक से लिखवाना है। ये तमाम निर्देश मिलने के बाद मैं घर अनेको चिंताओं में उलझे हुए लौटी।

सब कुछ मेरे लिए बहुत भारी काम था। हल्का काम था तो सिर्फ पासपोट में पति का नाम चढ़वाना। फिर भी मुझ को जो लगा, कुछ तो प्रयास करना चाहिए। मैं पासपोट में पति का नाम चढ़वाने के लिए टूर एंड ट्राव्लेस के आबिद को सहयोग करने के लिए बोली। ये लोग कुछ पैसे लेकर लोगों का काम कर देते हैं। मैं सोची स्वंय करने से तो पैसा जरूर बचेगा, लेकिन दूसरे काम में भी समय देना पडे़गा। इसलिए एजेंसी को से काम कराने की सोची। आबिद के साथ हुए बात के आधार पर उन्होंने राजेन्द्र को यह काम सौंप दिया। क्योंकि आबिद स्वंय रांची में नहीं था। राजेंन्द्र मिसलेनियस फाॅम पासपोट कार्यालय से लाये। मैं उसको भर दी। जिस दिन फाॅम पोसपोट कार्यालय में जमा की उसी दिन शाम को पांच बचे मुझ को पासपोट कार्यालय से पासपोट रिसिव करना था। राजंेन्द्र बोले आप का फाॅम जमा हो गया है, आप पांच बजे पासपोट कार्यालय जाकर पासपोट ले लिजिएगा। मैं फाॅम के साथ राजेंन्द्र को कुल एक हजार रूपया दी थी। जब राजेंन्द्र ने मेंरे हाथ में रसीद सौंपा, जिसमें कुल एमाउंट तीन सौ रूपया लिखा हुूआ था। राजेंन्द्र ने रसीद थमाते हुए कहा, आठ सौ ले लिया, यह कहते दो सौ का नोट मेरे ओर बढ़ाया। मेरे मन में आया काम करवाये हैं तो पैसा तो देना दी पड़ेगा, सोच कर बोली, इससे आप रख लो। 

राजेंन्द्र ने कहा था पासपोट कार्यालय में अनिल से मिलिएगा। शाम चार बजे पासपोट कार्यालय पहुंच कर अनिल से मिली। उन्होंने कहा आप इतनी जल्दी आयी हैं। अभी तो काम नहीं हुआ है, आप छह बजे आइऐ। पासपोट आफिसर श्री लकड़ा साहब का दरवाजा खुला हुआ था। मैंने अनिलजी से कही, मुझको लकड़ा साहब से मिलना है। अनिल ने दो मिनट के बाद मझे लकड़ा साहब से मिलने के लिए अंदर बुलाये। मैं अपना नाम बोली तो साहब ने कहा मैं जानता हुं। उन्होने बैठने को कहा। मैं नीलिमा और रेजन का जर्मनी जाने के लिए तत्कल में पासपोट बनवाने के प्र्िरक्रया के बारे जानकारी ली। दस मिनट तक श्री लकड़ा के पास बैठने के बाद मैं बाहर आयी। फिर भी समय नहीं बित रहा था। मैं माले विधायक कार्यालय निवास में श्री गुूप्ताजी को फोन लगायी। मैंने कहा मैं आप के पास आ रही हुं। माले विधायक श्री विनोद सिंेह के विधायक आवास में उस समय श्री गुप्ताजी तथा उनकी बेटी तथा नाती था। भुना चुड़ा तथा बदाम के साथ चाय की चुस्क्ी भी लिये। बातों-बात पर निकला की मैं पासपोट काया्रलय आयी थी, काम नहीं हुआ है अभी फिर वहीं जाना है। गुप्ताजी अपने दमाद को बुलवाया तथा उनसे कहा-देखिये तो दयामनी जी पासपोट कार्यालय आयी थी, काम हुआ कि नहीं थोड़ा पूछ कर देखो। गुप्ताजी के दमाद ने फोन पर बोला-दयामनी बरला का काम हुआ कि नहीं, ये हमारे पार्टीेे के साथी हैं, नहीं बना है तो बना दीजिए। आगे बोला अच्छा तो आते हैं। फोन काट दिया। गुप्ता के दमाद पूछते हैं कितना लिया, सात सौ?। मैं बोली हां। 

दस मिनट के बाद गुप्ताजी के दमाद ने मुझको मोटरसाईकिल में बैठा कर पासपोट कार्यालय पहुंचा दिया। मैं अंदर गयी। अनिल से पूछी-बन गया?। बोला हां, अब काउंटर खुलेगा, वहीं से मिलगा। अनिल बोला आप स्वंय क्यों नहीं आते हैं। आप का रेनुवल वाला काम पिछले साल हम ही कर दिये थे। आगे कुछ सामाजिक बातें होती रही। इन्होने बताया कि वह सिमडेगा का रहने वाला है। बोला दीदी आप लोगों के मदद की जरूरत है। मेरी पत्नी एनजीओ राजिस्ट्रेशन कर रही है। आप लोगों का मदद की जरूरत है। आज मंत्री जी अपने आवास में इसी काम के लिए बुलाये हैं कि क्या-क्या वे मदद कर करते हैं। मैंने पूछी कौन मंत्री? अनिल बोला-नलीन सोरेन। अनिल ने मेरा मोबाईल नंबर लिया और अपना भी दिया।

प्रभात खबर से पत्र लिखवाने के लिए मैं हरिवंश जी के पास गयी। साथ में एआईडी द्वारा भेजा गया पत्र भी ले गयी। मैं हरिवंश जी को  एआईडी का पत्र दिखाते हुए बोली-सर अमेरिका के साथी वहां बुला रहे हैं। उन्होंने कहा-दयामनी तुम एकदम जाओं, बोलो मैं क्या सहयोग कर सकता हूं। मै बोली आप एक पत्र लिख दीजिएगा। उन्होंने कहा-मैं ज्वोइनिंग तो नहीं दे सकता हंॅु। मैं बोली-नहीं आप सिर्फ यह लिख दीजिए कि ये अमेरिका से वापस आने के बाद फिर लिखेगी। तब उन्होंने कहा-मैं कल तैयार कर तुमको दे दूंगा। तुम कभी भी आकर राकेश से ले लो। 

मैं 16 सितंबर को प्रभात खबर गयी पत्र लेने के लिए। मैं पहले बिनय भूषण, निराला तथा जेबअखतर से फीचर डेस्क में जा कर मिली। इसके बाद हरिवंशी के पास गयी। पहुंचते ही उन्होंने पूछा-अच्छा तुम कब जा रही हो साक्षात्कार के लिए कलकता?। मैं बोली-सर कल जा रही हुं। अच्छा तो वहां तुम्हारा कोई है? मैने कहा-नहीं वहां मेरा कोई नहीं हैं। कलकता मेरे लिए अनजान की तरह है। उन्होंने पूुछा तुम्हारा साक्षात्कार का समय क्या है? मैंने कहा- सर 9.15 बजे। सर बोले देखो वहां बिलकुल समय पर तुम पहुंच जाना, और एक दम मत खबराना, डरने की कोइ्र्र बात नहीं है। यह कहते हुए हरिवंश जी ने स्थानीय संपादक श्री अस्क जी को बुलाये। बोले-देखिये दयामनी कल कलकता जा रहा हैं, इन्हें रेवले स्टेशन से रिसीव करने और वहां ठहराने का व्यवस्था किजीएगा। हरिवंशीजी अस्क जी से बोल दयामनी प्रभात खबर को खड़ा करने वालो में से एक है। दयामनी को किसी तरह की कोई्र दिक्कत नहीं होनी चाहिए। हरिवंशजी हम से पूछे-तुम जाने का टिकट कर ली हो? जी सर सताब्दी में कर ली हूुं। लौटने का टिकट कर ली हो? मैंने कहा-नहीं की हुं। हरिवंशजी अस्कजी से बोले, इनके लौटने का भी टिकट 18 की रात का करा दीजिएगा। 

कलकता जाने के पहले मैं आर्या ट्रव्लेस के पास गयी। जैसा कि श्रीप्रकाश ने सलहा दिया था। वहां राय साहब ने मेरे फाईल को देखा, एक-एक करके। बोले ठीक है। पूछा आप का पासबुक लेकर जा रहे हैं ना? और आप के पति का पासबुक और एलआईसी का र्सािफकेट भी ले जाईएगा। श्री राय जी ने कहा आप का सब ठीक है लेकिन फाईनानसिएल पक्ष बहुत कमजोर है। मैं दो फाईल बना कर ले गयी थी। एक फाईल में अमेरिका कासलटेंट का साक्षात्कार पत्र, हरिवंशजी का लिखा पत्र, एडआईडी का आमंत्रण पत्र, पासपोट, तथा एलआईसी प्रीमियम कागजात एवं मेरे नाम से दस डिसमिल जमीन का 2रू का कटा रसीद। दूसरे फाईल में मैं दो पत्रिका जिस पर मेरा जीवनी तथा काम पर साक्षात्कार फोटो सहित छपी थी, मेंरा काउंटर मीडिया एवार्ड मिला उस समय का पेपर कटिंग, मेरा 20-30 रिपोट जो विभिनन विषयों पर जो प्रभात खबर, दैनिक जगरण, तरंग भारती में छपा था, का फाईल बनायी थी। इसे देखाना चाही तो श्री राय बोला-ये क्या है? मैंने बोली, ये मेरा लिखा रिपोट है, श्री राय बोला इसकी जरूरत नहीं है।

मैंे कलकता जाने के लिए निकली। टेन पर बैठने के बाद हरिवंशजी को फोन कर बता दी कि-मैं निकल गयी हुं। थीडी देर के बाद हरिवंशजी ने फोन किया-बोले, तुमको स्टेशन लेने के लिए लोग आएगें, और तुम्हारे लिए ठहराने के भी व्यवस्था कर दिये हैं, कोई दिक्कत नहीं होगी। करीब 9 बजे रात को स्थानीय संपादक श्री अस्कजी फोन किये पुछे-अभी कहां पहुंची हो। मैंने कहा बाहर अंधकार है पता नहीं चल रहा है कि ट्रेन कहां पहुंची है। थीड़ी देर के बाद कलकता से पे्रम जी फोन किये, पूछे आप किस कोच में हैं। मैने बता दी, कोच ना 7 में हुं। पे्रम बोले मैं स्टेशन में हूुं, साफेद कामीज पहना हंु, आप के कोच के सामने ही खड़ा रहुंगा। 

ट्रंेन 15 मिनट लेट थी। पौने दस बजे ट्रेन हवड़ा स्टेशन पहुंची। स्टेशन के बाहर काले रंग की एक एम्बेसेटर कार को प्रेम ने रोका और ड्राइवर को यह बताते हुए हम दोनों बैठे कि हम लोगों को भाषा-परिषद जाना है। गाड़ी भाड़ा 80 रूपया तय कर हम दोनों गाड़ी में बैठ गये। करीब 11 बजे भाषा-परिषद पहुंचे। संयोग था कि भाषा-परिषद का परिसर में अंधकार छाया हुआ था। पता चला बिजली चली गयी है, संभवता एक-दो बजे रात तक आ जाएगी। प्रेम सिंह बाहर जाकर दो छोटा मोमबती तथा माचिस लेकर आये। बारह बज चूका था। कल मिलने की बात कर प्रेम चला गया।

रात को बिजली नहीं थी, इस कारण मैं रात को अपना फाईल आदि साक्षत्कार जाने के पहले चेक नहीं कर पायी थी। सुबह उठते ही मेरा पहला काम यही था। साढ़े सात बजे तक प्रेम सिंह आने की बात बोले थे, उसी का इंतजार कर रही थी। सुना था जिसका भारी भरकम संपति होगा, उसी को वीजा मिलता है। मन में कुछ हलचल था। लेकिन मैं सोच रही थी। यदि जाने का मौका मिलेगा भी तो बस जनता की सेवा के लिए ही तो सोचना-करना है। आज तक तो उसी के लिए करते रहे। प्रेम सिंह करीब नौ बजे प्रभात खबर रांची से बापी आये थे को लेकर आये। बोले बापी को रेवले स्टेशन लेने गये थे, इसी में देरी हो गया। बापी कों रूम में छोड़ कर हम और प्रेम सिंह अमेरिकन कनसलटेंट के लिए निकल गये। रास्ते में नास्ता करने का था लेकिन देरी होने के कारण नहीं कर सके। बस दो गिलास मौसमी का जूस पी लिये। नौ बज कर पांच मिनट में  अमेरिकन कनसलटेंट पहुंचे। बाहर नेपाली सैनिक या गार्ड एक नामों की सूची लिये वहां पर खड़ा था। पूछा इटरव्यू देना है। हां में जवाब दिये। तक उसने वहीं एक व्यत्कि था के पीछे खड़ा होने के लिए बोला। आगे का व्यत्कि को अंदर भेज दिया। दो मिनट के बाद मुछे भी भेज दिया। अंदर सभी चीजो की चेकिंग हो रही थी। अपने साथ लाये सभी समानों की जांच हुई। मेरे हाथ से जांच के समय दो पत्रिकाओं को निकला दिया, पानी को बोतल था उसे भी रख लिये, बोले बाद में ले लेना। मुछ को अपने साथ पेपर कटिंग की फाईल तथा पासपोट तथा अमेरिकन कनसलटेंट से संबंधित फाईल लेने की अनुमति दी। 

अंदर जाने वालों को कर्मचारी बाहर से ही किधर जाना है, कहां खड़ा होना है इसका निर्देश दे रहे थे, निर्देश देने वाले कमचारियों की सिर्फ आवाज ही सुनाई दे रही थी। मैं भी लाईन में लगी। सामने काउंटर ना0 एक तथा काउंटर ना0 दो में कर्मचारी साक्षत्कार के लिए आये लोगों के आवश्यक कागजातों को चेक कर रहे थे, साथ ही उनसे पूछ रहे थे कि आप क्यों अमेरिका जाना चाह रहे हैं। अच्छी खासी इंटरव्यू इसी काउंटर में हो जा रहा था। काउंटर ना0 एक में वहां मौजूद कर्मचारी मेरे सामने वाले व्यत्कि से पूछ रहा था। आप का मकान कहां है, उस मकान का ना0 कितना है, आप को अपना मकान है या रेन्ट में रहते हैं, अगर आप का मकान ना0 नहीं है तो फिर आप को कैसे खोजेगें। उत्क व्यत्कि जवाब दे रहा था, मैं एक कंपनी में काम करता हंु, उसी कंपनी ने जमीन लीज में दिया है, उसी जमीन में मकान बनाया हंु, फिर भी कर्मचारी पूछता है, ठीक है लेकिन आप का मकान ना0 क्या है। मेरा मन मेरे सवालों का जवाब ढु़ड रहा था, सोच रहे थे, मेरा तो मकान भी नहीं है, सिरोम टोली में अभी हरिस सुरिन के घर किराया में रह रहे हैं। लेकिन मकान ना0 कितना है मुछ को पता नहीं है। 

इसी समय काउंटर ना0 दो खाली हो गया। यहां महिला कर्मचारी थी। उन्होंने मुछेू अपने काउंटर में बुला लिया। महिला कर्मचारी ने बहुत ही सहजता से मेरे साथ बातें करने लगी। पूछी आप क्या करती हैं? आप नौकरी नहीं करती है? आप को वेतन आदि नहीं मिलता है? मैनंे उतर दिया- मैं अखबार में स्वतंत्र पत्रकारिता करती हुं, नौकरी नहीं कर रही हुं, नौकरी नहीं करती हुं तो वेतन कहां से मिलेगा। अगला सवाल उन्होंने पूछा-आप तो पत्रकार है, आप का फास्ट नेम क्या है? मैने जवाब दिया-दयामनी। उन्होंने कहा-लेकिन आप का फास्ट नेम में बरला लिखा हुआ है, आप का पासपोट बना है 2000 में और आज हम लोग हैं 2007 में। आप आज तक देखे नहीं हैं इसको आप तो पत्रकार हैं। मैंने पासपोट का वह पेज दिखाते हुए जहां मिसलेनियस में यह सुधारा हुआ हैं, बोली मेम सुधार दिया गया है। मेरा फोटो जो रांची पीपी कापांउंड स्थित राय स्टूडियो से खिचवायी थी, साफ नहीं था, अधिक काला था। इस फोटो को हटाते हुए एक कागज मेंरे हाथ में थमाते हुए, जो बाहर जा कर वापस आने का परमिसन कागाज था, बोली, जाइऐ आप को समय दे रही हुं एक फोटो बाहर से खिंचवा कर आइए। वह अपने साथ पासपोट आदि बाकी कागजातों को रख ली।

बाहर सामने ही कई दुकाने हैं जहां कम्पीयूटर से हर देश के लिए फोटो बनाते हैं। थोड़ी देर में फोटो बनाने क बाद वापस उसी काउंटर में आयी और फोटो जमा कर वहीं बैठ गये जहां और लोग बैठे थे। 

मेरे समझ में नहीं आ रहा था, कि अब क्या करना है। यहीं बैठे रहना है यह चले जाना है। कुछ लोगों को आगे दो अलग-अलग जगहो में बारी’-बारी जाते देख रही थी। लेकिन समझ में नहीं आ रहा था कि वे वहां क्यों जा कर खड़ा हो कर कुछ बातें कर रहे हैं। थोड़ी देर बाद ध्यान से देखी तो कुछ में आया। वहां दो और काउुटर थे। काउंटर ना0 1 और काउंटर ना0 2। इन दोनों काउंटरों में लिखा था” इंन्टरव्यू कांउटर“। काउंटर ना0 1 में एक अ्रग्रेज लेडी थी। दो बुजुर्गे दमपति से वह पूछ रही थी, आप लोग क्यों अमेरिका जाना चाहते हैं। दमपति में पूरूष जवाब दे रहा था-मई बीग सन एण्ड मइ डाॅटर आर वारकिंग इन अमेरिका। अंग्रेज लेडी एक हिन्दी बोलने वाले कर्मचारी के सहयोग से पूछ रही थी-तुम्हारा बेटा आता है इंडिया? दमप्ती ने जवाब दिया-हां, इसी गर्मी में आये थे, छोटी बेटी की शादी में। दमप्ती के पास कई मोटो-मोटी फाईलें थी, जिससे वे अंग्रेजी लेडी को दिखला रहे थे। वे बता रहे थे-यह मेरा 85 लाख का शेयर का कागजात है, जिससे मैं अपने नाम खरीदा हुं, दूसरा कागजात दिखाते हुए-यह मेरा मकान का कागजात है, जिससे मैं 67 लाख में बनाया हुं, यह मेरा जोइंट पास बुक जो फिस्ड है। अंग्रेज महिला और भी कई सवाल पूछ रही थी। साक्षात्कार देने वाले दमप्ती में पति अपना परिचय दे रहा था- मैं रिटायड एमडी हुुं। तीन-चार मिनट के बाद अंग्रेज महिला दोनों को पासपोट तथा कागजात वापस कर दिया। पासपोट तथा फाईलों को प्लास्टिक के थैली में डालकर वहां से बाहर निकल गये। अमेरिकन कनसलटेंट का स्पष्ट निर्देश था कि साक्षात्कार देने वाले अपना कागजात यह फाईल आदि प्लास्टिक के थैली में अंदर ले जा सकते हैं।

दोनों का साक्षात्कार के बारे मैं ध्यान से सुन रही थी। इन दोनों के जाने के बाद नवविवाहित आये। दोनों ने अपना कागजात दिखाया। काउंटर में 4-5 मिनट रहे। दोनों के अंगुलियों का फिंगर प्रिंट लिये। इसके बाद दोनों काउंटर से मुस्कुरातें हुए चले गये। इसी तरह काउंटर ना0 2 में भी लोग बारी-बारी से जा रहे थे। लेकिन यह काउंटर अंदर की ओर थी इसकारण लोगों की बातें सुनाई नहीं दे रही थी। अब तक मैं समझ चुकी थी, इसी काउंटर में बारी-बारी से साक्षात्कार देने वालों का नाम पुकार कर बुलाया जा रहा है। मैं भी कान लगा कर अपना नाम सुनने का प्रयास कर रही थी। इसी समय काउंटर ना0 1 की अंग्रेज महिला ने मेरा नाम पुकारी। मैं काउंटर में आयी। तक तब एक कर्मचारी अंग्रेेज महिला के बगल में आ खड़ा हुआ। पूछा आप हिन्दी से देंगी? मैंने कहा हां। अंग्रेज महिला पूछी-अंग्रेजी में- आप का नाम कया है, आप क्या करती हैं, मैंने जवाब दिया-मेरा नाम दयामनी बरला है, मैं अखबार में लिखती हुं, स्वतंत्र पत्रकार हुं। आप पहले कभी अमेरिका गाये हैं-जवाब दिया-नहीं। आप तो किसी पद पर काम नहीं कर रहे हैं फिर आप क्यों अमेरिका जाना चाहती हैं? मैंने जवाब दिया-मैं जनता के लिए लिखती-पढ़ती हुं, सुने हैं वहां के लोग बहुत मेहनती हैं, वहां विकास के काम में सभी लोग भागीदारी दे रहे हैं। इससे देखने-समझने के लिए मैं जाना चाहती हुं। आगे पूछा-आप किसके पास जाएगीं? जवाब दिया-वहां बहुत सारे भारतीय छात्र-छात्राएं हैं वे आम जनता के लिए काम करते हैं, उन्हींके पास जाना है। अगला सवाल पूछी-कैसा काम कर रहे हैं वे? मैं ने कहा-संगठन के लोग, जो पिछड़े हैं, गरीब हैं, उत्पीड़ित हैं उन्हें अपने हक, न्याय की बात बताते हैं, विकास काम में उनको भागीदारी बनाते हैं। उनका कोई संगठन है? जवाब दिया-जी हां। संगठन का कया नाम है? जवाब दिया एसोसियसन फॅार इंडिया डवलपमेंट। आप को खर्च कौन देगा? जवाब दिया-एसोसियसन फॅार इंडिया डवलपमेंट देगा। संगठन के किसी व्यत्कि को आप व्यत्किगत तैर से जानते हैं? जवाब दिया-कई साथियों को जानती हुं, जो भारत आते रहते है। वहां के हेड को आप जानते हैं? जी हां। क्या नाम है उसका? जवाब दिया-एम एस भगत। फिर दूबारा पूछते है आप वहां क्यों जाना चाहती हैं? जवाब दी-मैं सोसलवार्कर हुं, मैं देखना-समझना चाहती हुं कि वहां के लोग किस तरह मेहनत करते हैं, विकास कार्यो में किस तरह अपना योगदान दे रहे हैं। फिर पूछा आप सामाजिक कार्याकर्ता हैं? आप तो स्वतंत्र पत्रकार हैं,? जवाब दी-जी मैं स्वतंत्र पत्रकार हुं सामाज के लिए काम करती हुं तो सामाजिक कार्याकर्ता ही न कहेगें?। आगे पूछा-आप पत्रकार हैं तो आप का लिखा रिपोट तो होगा? जवाब में मैं अपने रिपोटों की कुछ कापियां उनके हाथ में दी, जो अखबार में छापी थाी। साथ ही काउंटर मीडिया पुरस्कार मुझे मिला था, इस पर अंग्रेजी अखबार दा विजनेस ने ”आदिवासी वीनर “हेडिंग से मेरे उपर लिखा था, को उनके हाथ में दी। अंग्रेज महिला उसे पढी और फिर वापस की दी। इसके पहले मैं हिरवंशजी द्वारा मेरे विहाप में लिखा पत्र भी उनका दे दी थी। आप वहां कितने दिनों तक रहना चाहेगीं? जवाब दिया-25 से 30 दिनों तक। आप वहां जाकर रिपोटिंग करेगीं? जवाब दिया-देखिये मैं एक पत्रकार हुं तो वहां जो भी देखुंगी-समझुंगीं, यहां आ कर अपने लोगों के लिए जरूर लिखुंगीं। मेरा पासपोट, एसोसियसन फॅार इंडिया डवलपमेंट का आमंत्रण पत्र, हिरवंशजी का लिखा पत्र अपने पास रख लिये और उन्होंने कहा-अब आप घर जाईए, यूएस आप को वीजा दे रही है, आप का पासपोट आप को एक-दो दिन के भीतर कोरियर से मिल जाएगा। 20 सितंबर 2007 को 12 बजे ब्लू डाट कोरियर वालों ने मेरा पासपोट घर लाकर दिया।

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