गांव का बाजार --गाँव में महिलाएं आर्थिक आधार की रीढ़ होते हैं , घर चलने में , खेत बरी के काम में, जंगल, जमीन की रक्षा या समाज -संस्कृति को सुरक्षित रखने में। यह गाँव का साप्तहिक बाजार है. जंहा ग्रामीण अपने जरुरत की चीजों की खरीद बिक्री करते हैं, महिलाएं अपना सामना बेचने के लिए बलि -लकड़ी गाड कर बांस और पेड़ के पते से छत बना कर दुकार चलती हैं, गर्मी और बरसात पहुँचने के पहले महिलाएं अपने दुकान की छतों की मरमत कर रही हैं।
हालाँकि आदिवासी समाज में महिलांओं को घर का छापर पैर चढ़ना परम्परानुसार मनाही है। यदि घर बरसात में चू भी रहा है , तो महिलाएं छत चढ़ कर छत की मरमत नहीं कर सकती हैं. यदि कोई महिला छत चढ़ कर मरमत करती है. तो उससे परम्परा तोड़ने के नाम पैर कई गावो में दण्डित भी किया जाता है।
इन महिलाओं को देख कर थोड़ी देर के लिए सोने लगी --की आखिर इन महिलांओं के घर में पुरुष सदस्य हैं की नहीं, मन में आया सायद नहीं होंगे। .इसीलिए ये बहने अपने दुकानों का छत खुद मरम्त कर रही हैं... बहनों से मैं बात की। .बोली घर में सभी है, लेकिन क्यों किसी का इंतजार करेंगे , अपना काम खुद ही कर रहे हैं। .. मैंने पूछा, साल में कितना बार छत मरमत करते है -बोली जरुरत पड़ता है तो दो बार करते हैं, नहीं तो एक बार तो करना ही पड़ता हैं।
हालाँकि आदिवासी समाज में महिलांओं को घर का छापर पैर चढ़ना परम्परानुसार मनाही है। यदि घर बरसात में चू भी रहा है , तो महिलाएं छत चढ़ कर छत की मरमत नहीं कर सकती हैं. यदि कोई महिला छत चढ़ कर मरमत करती है. तो उससे परम्परा तोड़ने के नाम पैर कई गावो में दण्डित भी किया जाता है।
इन महिलाओं को देख कर थोड़ी देर के लिए सोने लगी --की आखिर इन महिलांओं के घर में पुरुष सदस्य हैं की नहीं, मन में आया सायद नहीं होंगे। .इसीलिए ये बहने अपने दुकानों का छत खुद मरम्त कर रही हैं... बहनों से मैं बात की। .बोली घर में सभी है, लेकिन क्यों किसी का इंतजार करेंगे , अपना काम खुद ही कर रहे हैं। .. मैंने पूछा, साल में कितना बार छत मरमत करते है -बोली जरुरत पड़ता है तो दो बार करते हैं, नहीं तो एक बार तो करना ही पड़ता हैं।
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