विकास, और प्रर्यावरण प्रदूषण असर हमारे भोजन पर पेड़ रहा है , जो पेड़ के फलों में दिखाई दे रहा है
जामुन फल पक तो गया है , लेकिन खाने लायक नहीं है। इस गुच्छा में जितना फल दिख रहा है., अधिकांश में कीड़ा लगा है , जो साफ दिखाई दे रहा है।
इस गुच्छा के फलों को ध्यान से देखेंगे , जो हरा है अभी तैयार नहीं हुआ है , इसमें भी काला दाग है, जिसके अंदर कीड़ा लग चूका है।
इस गुच्छा में फल हरा है, अभी तैयार नहीं हुआ है , लेकिन उसमे छेद हो गया है। इस पेड़ का जितना तक नजर गया , सभी फल का यही हाल है।
आज जब पूरा विश्व कोरोना महामारी से परेशान है। विश्व की बात कहें तो 60 लाख तक लोग कोरोना संक्रमित हैं और 4 लाख तक लोग महामारी से जान गांवा चुके हैं। जब भारत देश की बात करें तो 4 लाख तक संक्रमित हो चुके हैं और 13 हजार तक की जान जा चुकी है। एैसे परिस्थितियों ने हमे बहुत कुछ सीख दे चुका है। आज कोरोना महामारी ने बहुत कुछ बदल दिया है। हम बदलने को मजबूर हो गये है। आज सभी महसूस कर रहे हैं कि अगर स्वस्थ्य रहना है, स्वस्थ्य सामाज और राष्ट्र का निर्माण करना है, तब हमें आज के विकास मोडल से उत्पन्न विस्थापन और प्रर्यावरण प्रदूषण जैसे गंभीर मामलों पर गंभीरतापूर्वक विमार्श और चिंतन करना होगा। दुखद बात तो यह है कि हम स्वस्थ्य जीवन की कामना तो करते हैं, लेकिन प्रकृति और पर्यावरण संरक्षण और संर्वधण जैसे बुनियादी सवालों से बचना भी चाहते हैं। आज हमे इन मुददों पर ईमानदारी विमार्श और बहस की जरूरत है। तभी समाज और देश के भविष्य की कल्पना की जा सकती है।
आज का विकास मोडल ने राज्य और देश को जितना दिया है, उससे ज्यादा देश के नागरिकों से रोजगार छीना, घर, जंगल,जमीन, नदी, झील, झरना, स्वस्थ्य जिंदगी, शुद्व हवा, पानी, शुद्व भोजन सब छीना। हां अभी भी वक्त है, जो कुछ बचा है, उसको सुरक्षित रखना, और विकसित करना है। प्रकृति ओर प्र्यावरण को संरक्षित और संवर्धन से ही स्वस्थ्य सामाज और स्वस्थ्य राष्ट्र निर्माण संभव है। राज्य के ग्रामीण आवाम एवं किसान कोरोना का प्रकोप के पहले ओलावृष्टि का सामना किये। लाॅकडाउन ने तो ग्रामीण आवाम को 15 साल पिछे ढाकेल दिया। जून -जूलाई में फलदार वृक्षों से जामुन, आम, अमरूम आदि मौसमी फल आ रहे हैं। जो ग्रामीणों के लिए पोषाहार तो है ही, साथ ही नगदी फसल के रूप में बाजार उपलब्ध होता है। लेकिन इस साल आम, जामुन और अमरूद जैसे फलों में तैयार होने के पहले ही अंदर मे कीड़ा पैदा हो जा रहे हैं। इस कारण ग्रामीण ने तो खाने में उपयोग कर पा रहे हैं और न ही बाजार में बेच पा रहे हैं।
खूुटी जिला के जबड़ा के अनिल हेमरोम कहते हैं-इन साल किसानों को हानि ही हानि उठाना पड़ रहा है। पेड़ पर आम तों फला है लेकिन कच्चा में ही अंदर में कीड़ा पैदा हो जा रहा है। यह खाने लायक ही नहीं हैं। तोरपा मरचा के हादू तोपनो, तुरतन तोपनो, बासिल तोपना कहते हैं, इस साल क्या रोग आ गया है, आम , जामुन , अमरूद में तैयार होने के पहले ही अंदर में कीड़ी हो जा रहे हैं, बाहर से अच्छा दिखता है, लेकिन अंदर में कीड़ा है। गुमला के कमडारा प्रखंड के रमतोलया महुआ टोली के राजू लोहरा कहते हैं, जमुन फला है लेकिन जमुन खाने लायक नहीं है, कारण कि अंदर में कीड़ा पैदा हो जा रहा है। कहता है इसी तरह से अमरूद और आम का भी हो रहा है। सिमडेगा जिला के भूण्डूपानी के सेंतेंग कहती है, आम तो फला हैं, लेकिन सब आम में दाग है, कैसे एैसा हो रहा है, पत्ता नही लग रहा है। कहती हैं, दाग लगने के बाद सड़ जा रहा है।
जामुन फल पक तो गया है , लेकिन खाने लायक नहीं है। इस गुच्छा में जितना फल दिख रहा है., अधिकांश में कीड़ा लगा है , जो साफ दिखाई दे रहा है।
इस गुच्छा के फलों को ध्यान से देखेंगे , जो हरा है अभी तैयार नहीं हुआ है , इसमें भी काला दाग है, जिसके अंदर कीड़ा लग चूका है।
इस गुच्छा में फल हरा है, अभी तैयार नहीं हुआ है , लेकिन उसमे छेद हो गया है। इस पेड़ का जितना तक नजर गया , सभी फल का यही हाल है।
आज जब पूरा विश्व कोरोना महामारी से परेशान है। विश्व की बात कहें तो 60 लाख तक लोग कोरोना संक्रमित हैं और 4 लाख तक लोग महामारी से जान गांवा चुके हैं। जब भारत देश की बात करें तो 4 लाख तक संक्रमित हो चुके हैं और 13 हजार तक की जान जा चुकी है। एैसे परिस्थितियों ने हमे बहुत कुछ सीख दे चुका है। आज कोरोना महामारी ने बहुत कुछ बदल दिया है। हम बदलने को मजबूर हो गये है। आज सभी महसूस कर रहे हैं कि अगर स्वस्थ्य रहना है, स्वस्थ्य सामाज और राष्ट्र का निर्माण करना है, तब हमें आज के विकास मोडल से उत्पन्न विस्थापन और प्रर्यावरण प्रदूषण जैसे गंभीर मामलों पर गंभीरतापूर्वक विमार्श और चिंतन करना होगा। दुखद बात तो यह है कि हम स्वस्थ्य जीवन की कामना तो करते हैं, लेकिन प्रकृति और पर्यावरण संरक्षण और संर्वधण जैसे बुनियादी सवालों से बचना भी चाहते हैं। आज हमे इन मुददों पर ईमानदारी विमार्श और बहस की जरूरत है। तभी समाज और देश के भविष्य की कल्पना की जा सकती है।
आज का विकास मोडल ने राज्य और देश को जितना दिया है, उससे ज्यादा देश के नागरिकों से रोजगार छीना, घर, जंगल,जमीन, नदी, झील, झरना, स्वस्थ्य जिंदगी, शुद्व हवा, पानी, शुद्व भोजन सब छीना। हां अभी भी वक्त है, जो कुछ बचा है, उसको सुरक्षित रखना, और विकसित करना है। प्रकृति ओर प्र्यावरण को संरक्षित और संवर्धन से ही स्वस्थ्य सामाज और स्वस्थ्य राष्ट्र निर्माण संभव है। राज्य के ग्रामीण आवाम एवं किसान कोरोना का प्रकोप के पहले ओलावृष्टि का सामना किये। लाॅकडाउन ने तो ग्रामीण आवाम को 15 साल पिछे ढाकेल दिया। जून -जूलाई में फलदार वृक्षों से जामुन, आम, अमरूम आदि मौसमी फल आ रहे हैं। जो ग्रामीणों के लिए पोषाहार तो है ही, साथ ही नगदी फसल के रूप में बाजार उपलब्ध होता है। लेकिन इस साल आम, जामुन और अमरूद जैसे फलों में तैयार होने के पहले ही अंदर मे कीड़ा पैदा हो जा रहे हैं। इस कारण ग्रामीण ने तो खाने में उपयोग कर पा रहे हैं और न ही बाजार में बेच पा रहे हैं।
खूुटी जिला के जबड़ा के अनिल हेमरोम कहते हैं-इन साल किसानों को हानि ही हानि उठाना पड़ रहा है। पेड़ पर आम तों फला है लेकिन कच्चा में ही अंदर में कीड़ा पैदा हो जा रहा है। यह खाने लायक ही नहीं हैं। तोरपा मरचा के हादू तोपनो, तुरतन तोपनो, बासिल तोपना कहते हैं, इस साल क्या रोग आ गया है, आम , जामुन , अमरूद में तैयार होने के पहले ही अंदर में कीड़ी हो जा रहे हैं, बाहर से अच्छा दिखता है, लेकिन अंदर में कीड़ा है। गुमला के कमडारा प्रखंड के रमतोलया महुआ टोली के राजू लोहरा कहते हैं, जमुन फला है लेकिन जमुन खाने लायक नहीं है, कारण कि अंदर में कीड़ा पैदा हो जा रहा है। कहता है इसी तरह से अमरूद और आम का भी हो रहा है। सिमडेगा जिला के भूण्डूपानी के सेंतेंग कहती है, आम तो फला हैं, लेकिन सब आम में दाग है, कैसे एैसा हो रहा है, पत्ता नही लग रहा है। कहती हैं, दाग लगने के बाद सड़ जा रहा है।