Thursday, April 25, 2019

ग्रामीणों की समूदायिक जमीन को गांव सभा के बिना सहमति से ही 21 लाख एकड़ भूमि बैंक में शामिल कर दिया

                  जन आंदोलनों का संयुक्त मोर्चा

                     लोकतंत्र पर खतरा और हमारी जिम्मेदारी
                   (2019 के चुनाव में जनआंदोलनों की हिस्सेदारी)
        जागो-उठो        संगठित हो          संघर्ष करो
                     आज नहीं -तो कभी नहीं
मित्रों,
झारखंड को आबाद करने, सजाने, सवांरने के लिए हमारे पूर्वजों ने अपनी जान दी है। झारखंड की हरियाली, कलकल करते नदी-नाला, उचां-नीचा पहाड़, पर्वत, लहलहाते खेत-टांड को बचाने के लिए हमारे पूर्वजों ने सांप, बाघ, भालू जैसे जंगली जानवरो से लड़ाई लड़कर इस धरती को आबाद किया है। आज इस धरती को, यहां की माटी, पानी, जंगल-झाड़, नदी-नाला, खेत-टांड को देश-विदेश के पूंजीपतियों, कारपोरेट घरानों और सरकार के विनाशकारी नीतियों द्वारा किया जा रहा हमला और लूट से बचाना होगा। झारखंड में आज क्या हो रहा है, आप सभी जानते हैं। 
हमारे पूर्वज सिद्वू, कान्हू, सिंदराय, बिंदराय, तिंलका मांझी, वीर बुद्वु भगत, वीर बिरसा मुंडा, डोंका मुंडा, जतरा टाना भगत, मान्की मुंडा, फूलो, झानो, देवमनी जैसे हजारों वीर शहीदों के अंगे्रजों के खिलाफ सघंर्षकर देश को आजादी दी। आज भारत ने भारतीय संविधान में पांचवी अनुसूचि के तहत हम आदिवासी, मूलवासी, किसान, मजदूरों को विशेष अधिकार दिया है। इसकी रक्षा करना, अधिकारों को बहाल करनवाना हमारी जिम्मेदारी है। 
भाजपा सरकार ने अभी तक कुल चार मोमेंटम झारखंड का आयोजन कर हजारों कारपोट कंपनियों तथा पूंजि-पतियों के साथ झारखंड आदिवासी-मूलवासी किसानों के जल-जंगल-जमीन को उनके हाथ देने का समझौता कर लिया है। जो पूरी तरह से पांचवी अनुसूचि तथा पेसा कानून में प्रावधान ग्रामीणो्र के अधिकारों पर हमला किया है। वर्तमान में चल रहे रिविजन सर्वे, जिसके पूर्ण होते ही, जिसके आधार पर नया खतियान बनेगा, इसके साथ ही 1932 का खतियान स्वतः निरस्त हो जाएगा। जिससे यहां के आदिवासी-मूलवासी किसानों सभी समुदाय के परंपरागत अधिकार समाप््त होगें।
भूमि अधिग्रहण कानून 2017 के लागू होने तथा उपरोक्त तमाम कानूनों के लागू होने से राज्य की कृर्षि भूमि को गैर कृर्षि उपयोग के लिए तेजी से हस्तंत्रित किया जाएगा, फलस्वरूप राज्य की कृर्षि भूमि तेजी से घटेगी तथा खद्यान संकट बढेगा। बीते एक साल में राज्य में भूख से 8 लोगों की मौत हो चुकी है, तब आने वाले समय में राज्य में भूखमरी और मौत भी अपना विक्रांत रूप लेकर आएगा।
आज विस्थापन के खतरों से पूरा राज्य भयभीत है। पलामू-लातेहार, गुमला जिला के ग्रामीण प्रस्तावित नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज से होने विस्थापन, व्यघ्र परियोजना, वाईल्ड लाईफ कोरिडोर, से होने वाले विस्थापन के खिलाफ जूझ रहा है। हजारीबाग के बडका़गांव में कोयला परियोजना से होने विस्थापन के खिलाफ किसान संघर्षरत हैं। गोडडा में अडडानी पावर प्लांट द्वारा जबरन किसानों से जमीन छीन रही है। किसान विरोध कर रहे हैं उन्हें कहा जा रहा है-जमीन नहीं दोगे, तो इसी जमीन में गाड देगें, किसानों का लहलहाता धान खेत को बुलडोजर से रौंद दिया गया। राज्य के हर ईलाका में लोग विस्थापन के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे हैं। खूंटी-गुमला जिला के ग्रामीण पहले से ही मित्तल स्टील प्लांट, पूर्वी सिंहभूम के पोटका क्षेत्र में जिंदल स्टील प्लांट, भूषण स्टील प्लांट से, प0 सिंहभूम में कुजू डैम होने वाले विस्थापन के खिलाफ संघर्षरत हैं। खूटी क्षेत्र में आदिवासी समुदाय के सामूहिक एकता को तोड़ने के कई सडयंत्र चलाया जा रहा है। जाति-धर्म के नाम पर सामाज को एक दूसरे से लड़ाया जा रहा है। जो जनता के अधिकारों के रक्षा की बात करते हैं, उन पर देशद्रोह के केस में फंसा दिया जा रहा है। धर्म मानने की आजादी, बोलने की आजादी भी खत्म किया जा रहा है। झारखंडी सामाज पर चारों तरफ से हमला हो रहा है।  इन जनसंधर्षों के बीच रघुवर सरकार उपरोक्त जनविरोधी कानूनों को झारखंडी जनता के उपर थोपने का काम कर रही है।
विकास के नाम पर भाजपा सरकार ग्रामीण किसानों को विभिन्न प्रकार का प्रलोभन देकर, रैयतों से जमीन का पूरा विवरण, उनका वशंावली जमा करवा रही है। इसके साथ डायरेक्ट बिनिफिट ट्रासफर (डीबीटी व्यवस्था) लागू करने के लिए ग्रामीणों से शपथपत्र भरवा रही है। जबकि इसके बारे ग्रामीणों को किसी तरह की सही जानकारी नहीं दी गयी। जो आने वाले दिनों में ग्रामीणों के लिए कई कठिनाईयों को खड़ा करेगा।
राज्य बन 18 साल हो गये। राज्य में 13 मुख्यमंत्री बने, साथ ही सौकड़ों मंत्री बने। लेकिन पांचवी अनुसूची एवं पेसा कानून में ग्रास सभा को दिये अधिकारों को किसी ने लागू नहीं किया। जिसमें मुख्य तौर पर किसी भी तरह के जमीन अधिग्रहण के पहले रैयतों-गांव सभा की सहमति लेना अनिवार्य है, चाहे जमीन का अधिग्रहण सरकार करे, यह कंपनिया। लघू खनिज-जैसे बालू घाट, पत्थर खदान जैसे प्रकृतिक संसाधनों के प्रबंधन, विपणन और संचालन को अधिकार ग्राम सभा को नहीं दिया गया। इसी तरह से लघु वनोपज -जैसे केंदु पता, चार, महुंआ, डोरो, लाह जैसे जंगल अधारित वनोपज के नियंत्रण, बाजार-व्यवस्था, मूल्या निर्धारित करने का अधिकार गांव सभा का आज तक नहीं दिया गया। दुखद बात है कि-ग्राम सभा या गांव सभा को अधिकार देने के नाम पर भाजपा सरकार ने ग्रामीणों के साथ सिर्फ छल-प्रपंज ही किया है। 
दुखद बात है-कि पूरे झारखंड भाजपा सरकार जबरन किसानों का जमीन छीन रही है। पूरे राज्य में ग्रामीणों की समूदायिक जमीन को गांव सभा के बिना सहमति से ही 21 लाख एकड़ भूमि बैंक में शामिल कर दिया। जमीन संबंधित काम आॅनलाइन होने से, किसानों की परंपारिक खनदानी जमीन के रिकोर्ड में भारी गडबाडियां सामने आ रही है। किसानों का जमीन स्वतः खोता जा रहा है।
आज फिर से देश और राज्य में सरकार बनाने का समय आ गया है। सरकार बनाने की सारी जिम्मदारी आप के हाथ में है, कि आप किस तरह का सरकार बनाऐगे। झारखंड की धरती, जल-जंगल-जमीन, गांव, समाज को लबें समय से संघर्ष करते हुए हम लोगों ने बचाया है, उजड़ने से बचाया है। तब हम जनआंदोलनों की जिम्मेदारी भी है कि 2019 के लोक सभा और विधान सभा चुनाव में ठोंक-परख कर, अपना प्रतिनिधि-नेता चुन कर भेजेगें। हो सके तों अपने आंदोलन के बीच से भी अपना प्रतिनिधि भेजेगें।
चुनाव में हमारी एकता बिखरे नहीं, इसके लिए महागठबंधन ( कांग्रेस, जेएमएम, जेभीएम, राजद, माले, सीपीएम, सीपीआई आदि पार्टियों) से हम जनओदोलन अपील करते हैं कि-देश और राज्य को बचाने के लिए संगठित होकर लोकतंत्रिक शक्ति को मजबूत करें।
उपरोक्त तमाम खतरों एवं हमलों को रोकने के लिए 24 फरवरी को जनसंगठन के साथी रांची पुरूलिया रोड़ स्थित लोयला हाल में विचार-विमार्ष के लिएं आप सभी उपस्थित हांे।
हम सभी इन मांगों के लिए हमेषा संघर्षरत रहे हैं-और आगे भी संघर्ष जारी रहेगा।
1-सीएनटी एक्ट एसपीटी एक्ट को कडाई से लागू किया जाए।
2-5वीं अनुसूचि को कडाई्र से लागू किया जाए
2-गैर मजरूआ आम, गैर मजरूआ खास, जंगल-झाडी, सरना-मसना, अखड़ा , हडगड़ी, नदी-नाला, पाईन-झरना, चरागाह, परंपारिक-खेत जैसे भूत खेता, पहनाई, डाली कतारी, चरागाह, जतरा टांड, इंद-टांड, मांडा--टांड सहित सभी तरह के सामुदायिक  जमीन को भूमिं बैंक में शमिल किया गया है, को उसे भूमिं बैंक से मुक्त किया जाए तथा किसी भी बाहरी पूजिं-पतियों को हस्तंत्रित नही किया जाए
 3- भूमिं सुधार/भूदान कानून के तहत जिन किसानों को गैर मजरूआ खास जमीन का हिस्सा बंदोबस्त कर दिया गया है-उसे रदद नहीं किया जाए
4-जमीन अधिग्रहण कानून 2013 को लागू किया जाए
5-किसी तरह का भी जमीन अधिग्रहण के पहले ग्रांव सभा के इजाजत के बिना जमीन अधिग्रहण किसी भी कीमत में नहीं किया जाए।
6-प्रस्तावि हाथी कोरिडोर, वाईल्ड लाइफ कोरिडोर से होने वाले विस्थापन रोका जाय
7-भूमि अधिग्रहण कानून 2017 को रदद किया जाए
9-ग्रामीण क्षेत्रों से पलायन रोकने के लिए मनरेगा मजदूरों का मजदूरी दर 159 रू से बढ़ा कर 500 रू किया जाए
10-आदिवासी-मूलवासी विरोधी वर्तमान स्थानीयता नीति को खारिज किया जाए तथा सदियों से जल-जंगल-जमीन के साथ रचे-बसे आदिवासी-मूलवासियों के सामाजिक मूल्यों, संस्कृतिक मूल्यों, भाषा-संस्कृति इनके इतिहास को आधार बना कर 1932 के खतियान को आधार बना कर स्थानीय नीति को पूर्नभाषित करके स्थानीय नीति बनाया जाए।
11-पंचायत मुख्यालयों, प्रखंड मुख्यलयों, स्कूलों, अस्पतालों, जिला मुख्यलयों में स्थानीय बेरोजगार युवाओं को सभी तरह के नौकरियों में बहाली की जाए।
13-सरना कोड़ लागू किया जाए।
14-मानकी-मुंडाओं के परंपरागत अधिकारों को यथावत लागू किया जाए
नोट-कार्यक्रम स्थल लोयला हाॅल, पुरूलिया रोड़ रांची
समय-10 बजे से कार्यक्रम शुरू होगा।

                               निवेदक
                      जन आंदोलनों का संयुक्त मोर्चा
संपर्क-दयामनी बरला-9431104386, जेराम जेराल्ड कुजूर -9431705062, कुमार चंद मार्डी-9934165214, राजू लोहरा-8969503347, तुरतन तोपनो,  जगेश्वर लकड़ा-7739806699,   

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