रांची पहुंच गयी आठवी पास का सरटिफिकेट लेकर
कहां रहना है, क्या खाना है, ये कुछ भी पता नहीं था
मां पीपी कम्पांउड में प्रीतम सिंह सरदार के घर आया का
काम करती थी
उनके खपरैल मकान के ठीक पिछवाडे रोड के उस पार
सुजान सिंह का जमीन चारों ओर से घेरा बंदी किया हुआ था
उसके भीतर एक एसबेटस की छत का घर था
जिसमें तीन-चार गायें थीं, उसी में एक तरफ मेरे गांव
के दो परिवार, और उनके दूसरे रिस्तेदार रहते थे
डिबू दादा याने बड़ा भाई भी यहीं रह कर कुली का काम करते थे
खाना कहीं भी झोपड़ी हाटल में खा लेते थे
मेरे लिए भी सुजान सिंह का गाय गोहाल ही
शरणस्थल बना।
कहां रहना है, क्या खाना है, ये कुछ भी पता नहीं था
मां पीपी कम्पांउड में प्रीतम सिंह सरदार के घर आया का
काम करती थी
उनके खपरैल मकान के ठीक पिछवाडे रोड के उस पार
सुजान सिंह का जमीन चारों ओर से घेरा बंदी किया हुआ था
उसके भीतर एक एसबेटस की छत का घर था
जिसमें तीन-चार गायें थीं, उसी में एक तरफ मेरे गांव
के दो परिवार, और उनके दूसरे रिस्तेदार रहते थे
डिबू दादा याने बड़ा भाई भी यहीं रह कर कुली का काम करते थे
खाना कहीं भी झोपड़ी हाटल में खा लेते थे
मेरे लिए भी सुजान सिंह का गाय गोहाल ही
शरणस्थल बना।
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