Thursday, October 8, 2015

7 अगस्त की रात गांव की पांच निर्दोष आदिवासी महिलाओं को डायन-विसाही बता कर सबके घर के दरवाजा का तोड़ तोड़ कर घर से खिंच खिंच कर मारते -पीटते अखडा में ला कर लाठी-डंडा, बलुआ, टांगी से पीट पीट कर हत्या कर दिये। इन महिलाओं के हत्या का गवाह खून से सना अखडा का बालू-माटी के साथ धुमकुडिया, कटहल पेड़ और पीपर पेड़ भी बने।





कंजिया मराई टोली गांव में दो दिन--
कंजिया मराई टोली में सात अगस्त की रात पांच आदिवासी महिलाओं की डायन-विसाही के अरोप में निर्मम हत्या की गयी। राज्य में डायन बताकर हत्या करने का यह सबसे बड़ा मामला है। इससे समझने के लिए सोषंतो मुखर्जी और मैं  कंजिया मराई टोली 13 अगस्त को मोटरवाईक से पहुचे। राज्य की राजधानी से महज 25 किमी दूर है मांडर प्रखंड मूख्यालय। थाना से करीब दो किमी दूर है गांव कंजिया मराई टोली । जो उरांव आदिवासी बहुल गांव है। समतल भूमिं को मेंड ने  टांडों और खेतों में विभाजित कर कई परिवारों को उस जमीन का मलिकाना हक दिया है। चारों तरफ हरियालीं ही हरियाली।  खेत में लगे धान-मंडुआ के खेत भी हरियाली बिखेरा हुआ है। हरियाली खेतों के बीच महुंआ का पड़े भी दिखाई देता है। कई खेतों में किसान धान रोप रहे हैं। रोड़ से ही गांव दिखाई देता है। गांव के चारों ओर बड़े बड़े आम, बरगद, कटहल, महुंआ, जामून, बरहड, पीपल, इमली, बरगद आदि फलदार पेडों से पटा हुआ है। बांस का तो जंगल ही लगा हुआ है।
गांव में  करीब 80 परिवार है। गांव पूरी तरह से परंपारिक तरीके से बसा हुआ है। एक घर से सटा दूसरा घर। पुरना अखड़ा के बाद कई घर चटटान बना हुआ है। टोली का गंदा पानी बहने के लिए कोई नली नहीं दिखता है। फैला चटटान में घर के आगे-पिछवाडे जिधर चटटान थोड़ा ढलान है-घरों को टोली का गंदा पानी उधर ही बह रहा है। एक घर के बाद अगला घर जाने के लिए किसी के आंगन से तो किसी घर के पिछवाडें से होकर ही जाना है। चटटानों पर बने घरों के बाद गांव के भीतर भी सभी घरों के आंगन में, पिछवाडें में, गली  में आम, कटहल, बांस का बाखोड़, कोयनार, ईमली, डाहू आदि फलदार पेड़ हैं। अखड़ा में एक कटहल और पीपल का पेड़ है। अखड़ा के पास ही धुमकुडिया का टुटा मकान है।
7 अगस्त की रात गांव की पांच निर्दोष आदिवासी महिलाओं को डायन-विसाही बता कर सबके घर के दरवाजा का तोड़ तोड़ कर घर से खिंच खिंच कर मारते -पीटते अखडा में ला कर लाठी-डंडा, बलुआ, टांगी से पीट पीट कर हत्या कर दिये। इन महिलाओं के हत्या का गवाह खून से सना अखडा का बालू-माटी के साथ धुमकुडिया, कटहल पेड़ और पीपर पेड़ भी बने।  8 अगस्त के अहले सुबह खबर मिला कि कंजिया गांव में पांच आदिवासी महिलाओं को डायन-बिसाही करार कर उनकी हत्या कर दी गयी। यह भी खबर आ रहा था मीडिया -चैनल के माध्यम से कि जघन्य घटना को पूरे ग्रामीणों मिल कर दिया है। और इन्हें किसी तरह का अफसोस नहीं है कि हमने पांच लोगों की हत्या कर गलत किये हैं। इस खबर ने राज्य के साथ पूरे   देश को झकझोरा दिया। कि आज जब समाज और देश  विकास के रास्त्ेा चांद तक पहूंच गया वहीं दूसरी ओर आदिवासी समाज अधंविशस में डुबा हुआ है। अधंविशस आदिवासी समाज के लिए अभिषाप बना हुआ है।
जसिंता टोप्पो का परिवार तो शिक्षित है ही, साथ समाज को शिक्षित बनाना चाहते थे-शयद इसीलिए गांव में आंगनबाड़ी स्कूल के लिए जगह खोजने की बात आयी तो, जसिंता ने पहल कर अपने खनदान वालों को जमीन देने के लिए राजी करवायी। और आज स्कूल भवन इसी जमीन पर खड़ा है। जहां गांव के बच्चे पढ़ रहे हैं और उन्हें पोषाहार भी उब्लध कराया जाता है। जसिंता का एक बेटा अर्मी में रह कर देश  सेवा कर रहा है, वहीं एक बेटी फरमेशी  में काम करते लोगों का स्वास्थ्य लाभ पहुंचा रही है। छोटी बेटी अभी पढ़ ही रही है। अर्मी बेटा ने अपने कमाई से एसबेसटस का मकान बनया जहां जसिंता का परिवार रहता है।
स्व0 एतवा खलखो की विधवा थी रकिया खलखो। रकिया के चार बेटे हैं। रकिया की बेटी थी तेतरी। तेतरी के पति दस साल पहले गुजर चुके हैं। विवधा होने के बाद तेतरी अपनी मां घर वापस रहने आ गयी। रकिया का एक बेटा पुलिस विभाग में कार्यरत है जो चांडिल में पोस्टेट है। रकिया के परिवार वाले बताते हैं-मां अपने बहु और नाती के साथ करीब पांच साल से रांची में रहती थी। कभी-कभी गांव आते जाते रही थी।  इस साल जून माह में घर आयी थी। बच्चों का छुटटी था इसलिए बहु भी घर आयी थी। रकिया की बहु सामने कुंआ की ओर इशारा करते बताती है-उस कुंआ को इसी गर्मी में फिर से खोदवाये हैं ताकि गांव वालों को पानी को दिक्कत न हो। कुंआ धंस गया था, पानी सूख गया था। इसलिए फिर से बनवाये हैं।
इन्होंने बतायी-रकिया का बेटा घटना के दो दिन पहले घर आया था, तब मां रांची जाने का इच्छा जतायाी थी नाती को देखने का मन कर रहा है बोली। लेकिन बेटा यह कहते हुए कि अभी दीदी धान लगा रही है-इसलिए बाद में ही ले जाने की बात बोल कर घर में छोड़ दिया। रकिया की बहु बतायी-दीदी तेतरी यहीं रहती थी इस साल हमारा हिस्सा का खेत में दीदी ही खेती का काम सम्भाली हुई थी।
पीडित परिवार स्व0 मदनी के पति बताते हैं-हम हर साल नोवेंबर में बंगाल जाते हैं और जून में वापस गांव खेती बारी करने के लिए आते हैं। एक दिन में 200 मिलता है। अकेले आते जाते हैं। वहां गर्मी बहुत ज्यादा रहता है। इसकारण लोग टिक नहीं पाते हैं। जो तकलीफ सह सकता है-वही वहां कमा सकता है। बंगाल का कमाई से डेढ एकड़ जमीन गांव में खरीदे हैं। उस खेत में हर साल 45 मन तक फसल होता है। घर का बाप का जमीन को अभी बखरा नहीं कियें हैं। एक भाई जया, और दूसरा प्रहलाद है। यही दोनों बाप का जमीन पर खेती बारी करते हैं। गांव वाले जिस जमीन को खेती नहीं कर सकते हैं- मेरा परिवार उस खेत को साझा में खेती करता है।
मदनी को बेटा -बताता है-बरसात के दिन आदी, खाीरा, भेंण्डी, अदरक , झींगी, बीन खेती करते हैं। गर्मी में खीरा, टमाटर, गेंहूं, प्याज, आलू लगाते हैं। बाजार में भी सब्जी बेचते हैं। माटी तेल जला कर खेत पटाते हैं। माटी तेल गर्मी में 45 रू लीटर रहता है। बिजली तो इस साल 2015 में आया है। सूना-कहते हैं-धान काट कर फिर हम चले जाएगें बंगाल काम करने। जो हो गया अब क्या करेगें।
पीडिती एतवारिया का पति 2012 में ही गुजर चुका है। बेटा सुकुमार, कहता है-पिताजी बीमारी से मर गये, गरीबी के कारण सही इजाल नहीं हो सका। एतवारिया को बेटा आशीष 8 संत जेवियर स्कूल में क्लास 8वीं में पढ रहा है। पिता का निधन के बाद बड़ा बेटा का पढ़ाई रूक गया ।  बेटा बताता है-मेरा बाबा बड़ा था। तीन चाचा थे। बीच का दो चाचा भी मर चुके हैं।
                                                  दयामनी बरला

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