Tuesday, June 24, 2014

चिलचिलाती धूप में तापती धरती की ताप में तुफान की झोंकों में ओला के गोलों की मार में भी शांत खड़ी सब सह लेती हो तुम काश मै तुम से सिख सकती

पुटुस तुम को
लोग जंगली कहते हैं
लेकिन मैं ही जानती हुं
की तुम कितना महान हो
तुम लोगों की निगह में जंगली हो
जहां-तहां तुम जन्म लेते हो
गंदगी के बीच
कीचड़ के बीच
खेत में 
खलिहान में
टांड में आड़ में
पहाड़ पर
टोंगरी पर
जंगल में
गांव में, टोला में
महला में
सभी जहग मौजूद हो
सभी हर जगह तुम्हारा है
जड़ा में
गरमी में
बरसात में
तुम खिलते हो
फलते हो
हरियाली, सफेद,
लाल-पीला
सबके  मन को खिंच लेते
बच्चों के मन में 
फूल के नन्हीं
नलों में
मीठी मीठी रस की बुंदे
कभी छोटी नन्हीं
चिंटी आती रस चुसने
तो कभी आप पर छोटी तितली
प्यार से चिपकती
हर फूल के
डंडी पर बीसियों 
छोटे छोटे हरी हरी
गोल गोल पुटुस 
फलों की बंधी मुठी
हरे गोल गोल
अब धीरे धीरे भूरापन
भूरापन अब अहिस्ते अहिस्ते
काला काला
कुछ तो नीलापन लिये-काला
अब मैना, गेंरवा, गिलहरी
चुटिया-मुसा 
बच्चें-बच्चियाॅं
युवा-बुजूर्ग 
पुटुस का पक्का मीठ
फल का स्वाद अपने
अंदाज के साथ 
ले रहे हैं
पेट भी ’ाांत होता है
पेट अब भूख भूख नहीं चिलाएगा
जब लोग असुरक्षित
महसुस करते हैं
अपने घर आंगन में
धान, मंडुआ, गोडा खेत में
तब तुम उनका रक्षक
बन कर चारों ओर उनके
खड़े हो कर
डनको पहरा देते हो 
घोरना बन कर
जब भी चुरू में भात
पकाना हो तुम 
हाजिर हो इंधन बन कर
और पकता है भात
तुम झुरी लकड़ी 
के बिना परिवार भूखे
पेट सोता है
तो फिर तुम कहां कमजोर हो??
नहीं नहीं कमजोर नहीं
तुम महान हो
सुबह बासी मुंह
को साफ करना हो
गांव कंपनी को
पुटुस दतवन आप 
के सामने खड़ा रहता है
गाय, बकरी चराते 
पैर की अंगुलियांे
पर ठेस लगता है
दर्द करहा रहा है
देशी  दवा पुटुस 
पत्ता को हाथ से
मल कर रस निचोड़
कर जख्म को राहत 
पहुंचाती हो तुम
चिलचिलाती धूप में
तापती धरती की ताप में 
तुफान की झोंकों में
ओला के गोलों की 
मार में भी
शांत खड़ी सब सह
लेती हो तुम
काश मै तुम से सिख सकती 


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