अगर आप अपना हक-अधिकार की रक्षा करना चाहते हैं, तो अपना वोट मत बेचिये। आप का एक वोट से राज्य का भविष्य तय होता है और आप का एक वोट से ही आप के अपनों का भविष्य नष्ट होता है। अलग राज्य बनने के बाद झारखंड विधान सभा में प्रतिनिधि भेजने के लिए 2005 में, 2009 में दो बर हम प्रतिनिधि चुन कर विधानसभा भेज चुके हैं। 2014 में यह तीसरा चुनाव है। झारखंड अलग राज्य के आंदोलन का सपना आज भी पूरा नहीं हो सका है। न ही वीर शहीदों के सपने अपन गांव में अपन राईज-अबुआ हातु-दिशुम रे अबुआ राईज का दिशा राज्य में तय नहीं किया जा सका है। आज अत्ममंथन की जरूरत है कि आखिर क्या करण है? कौन इसके लिए जिम्मेदार है? । निष्चित रूप से इसके लिए नेता -मंत्रियों के साथ हम आम जनता भी जिम्मेदार हैं। नेता और राजनीतिक पार्टियां अपना हित साधने के लिए मतदाताओं से वोट खरीदने की बोली लगाते हैं। एक-एक वोट पर बोली लगाते हैं। जो जितना बड़ा रकम देता है-वोट उसकी को मिलता है। योग्य उम्मीदवार का मापदंण्ड क्या हो, इस पर भी आम लोगों को ही चिंतन करना चाहिए। राज्य को चलाने वाला योग्य उम्मीदवार क्या धनकुबेर-करोड़पति, दहशतगर्दी, करपोरेटी पूंजि, राज्य को खरीद-फरोक्त के लिए तमाम साम-दाम-दंण्ड-भेद अपना सकने वाले ही हो सकते है, यह राज्य के ईमानदार, राज्य के आम लोगों के जिंदगी के साथ सरोकार रखने वाले, राज्य की धरोहर की रक्षा करने वाले भी झारखंड विधान सभा के योग्य उम्मीदवार हो सकते हैं। यह आम जनता को तय करना है। आज देश और राज्य की राजनीति ठीका-पठा, ठेकेदारी और ठेंगाधारी की हो गयी है। आज जनादेश आम लोगों के विवेकपूर्ण मतदान तय नहीं करता है-बल्कि रूपया, बंदूक, और आतंक ही तय करता है।
विधान सभा चुनाव के लिए प्रशासन, मीडिया, जागरूक नागरिक सभी मतदाता जगरूकता अभियान चला रहे हैं शहरों में। अपील किया जा रहा है सबको मतदान करने के लिए यह सरहनीय है। लेकिन कोई यह कहने का साहस नहीं जुटा रहा है कि-भ्रष्टाचारियों को, ठिके पर वोट का सौदा करने वालों को मतदान नहीं करें, भय से मतदान नहीं करें । ताकि राज्य से भ्रष्टाचार खत्म हो, खरीद-फरोक्त की राजनीतिपरंपरा की कमर तोडी जा सके, ताकि आम लोगों के बुनियादी विकास के साथ राज्य की राजनीतिक दिशा को सही दिशा दे सके। आज जब राज्य में राजनीतिक तुफान चला हुआ है-तब आम मतदाताओं को चाहिए कि अपने हक-अधिकारों की रक्षा के लिए दृढइच्छाशत्कि के साथ अपना मतदान करें। अपना जनप्रतिनिधि हम ठोक-बजा कर ईमानदारी से चुनें। आप जब बाजार से घड़ा खरीदते हैं-तो एक-एक करके कई घड़ों को टोकना-टोकना कर, बजा-बजा कर देखते हैं कि घड़ा सही है या नहीं। जब बेटी का रिस्ता आता है-तब हम कई विशवस्त सूत्रों से पता लगाते हैं कि-लड़का सही है या नहीं, खनदान सही है या नहीं। जब आप अपना भविष्य के साथ, राज्य का भविष्य तय करने जा रहे हैं , अपना मतदान करके, तब हमे पूरी ईमानदारी से अपने लिये जनप्रतिनिधि का चयन करने की जरूरत है जो आप के जिंदगी के सवालों के साथ माय-माटी-हासा-भाषा का भी प्रतिनिधित्व कर सके।
हर मतदाताओं को सझना चाहिए कि-एक बार हम अपना वोट बेचते हैं-तो हमने अपना हक-अधिकार को बेच दिया। याद रखना चाहिए कि-जब हम किसी वस्तु को एक बार बेच देते हैं-तब उस पर हमारा अधिकार हमेषा के लिए खत्म हो जाता है। जब हम पैसा से, दारू-खसी मांस से अपना वोट बेच देते हैं-तब वह नेता कभी भी आप का सुख-दुख का साथी, आप के हक-अधिकारों की रक्षा की बात करने वाला नहीं होगा, क्योंकि वो आप के अधिकर को खरीद चुका हैं। राज्य की दशा और दिशा जगरूक मतदाता ही बदल सकते हैं। और यह कार्तव्य और अधिकार आप-प्रत्येक मतदाता को है।
विधान सभा चुनाव के लिए प्रशासन, मीडिया, जागरूक नागरिक सभी मतदाता जगरूकता अभियान चला रहे हैं शहरों में। अपील किया जा रहा है सबको मतदान करने के लिए यह सरहनीय है। लेकिन कोई यह कहने का साहस नहीं जुटा रहा है कि-भ्रष्टाचारियों को, ठिके पर वोट का सौदा करने वालों को मतदान नहीं करें, भय से मतदान नहीं करें । ताकि राज्य से भ्रष्टाचार खत्म हो, खरीद-फरोक्त की राजनीतिपरंपरा की कमर तोडी जा सके, ताकि आम लोगों के बुनियादी विकास के साथ राज्य की राजनीतिक दिशा को सही दिशा दे सके। आज जब राज्य में राजनीतिक तुफान चला हुआ है-तब आम मतदाताओं को चाहिए कि अपने हक-अधिकारों की रक्षा के लिए दृढइच्छाशत्कि के साथ अपना मतदान करें। अपना जनप्रतिनिधि हम ठोक-बजा कर ईमानदारी से चुनें। आप जब बाजार से घड़ा खरीदते हैं-तो एक-एक करके कई घड़ों को टोकना-टोकना कर, बजा-बजा कर देखते हैं कि घड़ा सही है या नहीं। जब बेटी का रिस्ता आता है-तब हम कई विशवस्त सूत्रों से पता लगाते हैं कि-लड़का सही है या नहीं, खनदान सही है या नहीं। जब आप अपना भविष्य के साथ, राज्य का भविष्य तय करने जा रहे हैं , अपना मतदान करके, तब हमे पूरी ईमानदारी से अपने लिये जनप्रतिनिधि का चयन करने की जरूरत है जो आप के जिंदगी के सवालों के साथ माय-माटी-हासा-भाषा का भी प्रतिनिधित्व कर सके।
हर मतदाताओं को सझना चाहिए कि-एक बार हम अपना वोट बेचते हैं-तो हमने अपना हक-अधिकार को बेच दिया। याद रखना चाहिए कि-जब हम किसी वस्तु को एक बार बेच देते हैं-तब उस पर हमारा अधिकार हमेषा के लिए खत्म हो जाता है। जब हम पैसा से, दारू-खसी मांस से अपना वोट बेच देते हैं-तब वह नेता कभी भी आप का सुख-दुख का साथी, आप के हक-अधिकारों की रक्षा की बात करने वाला नहीं होगा, क्योंकि वो आप के अधिकर को खरीद चुका हैं। राज्य की दशा और दिशा जगरूक मतदाता ही बदल सकते हैं। और यह कार्तव्य और अधिकार आप-प्रत्येक मतदाता को है।