Friday, November 21, 2014

राज्य की दशा और दिशा जगरूक मतदाता ही बदल सकते हैं। और यह कार्तव्य और अधिकार आप-प्रत्येक मतदाता को है।

अगर आप अपना हक-अधिकार की रक्षा करना चाहते हैं, तो अपना वोट मत बेचिये। आप का एक वोट से राज्य का भविष्य तय होता है और आप का एक वोट से ही आप के अपनों का भविष्य नष्ट होता है। अलग राज्य बनने के बाद झारखंड विधान सभा में प्रतिनिधि भेजने के लिए 2005 में, 2009 में दो बर हम प्रतिनिधि चुन कर विधानसभा भेज चुके हैं।  2014 में यह तीसरा चुनाव है। झारखंड अलग राज्य के आंदोलन का सपना आज भी पूरा नहीं हो सका है। न ही वीर शहीदों के सपने अपन गांव में अपन राईज-अबुआ हातु-दिशुम रे अबुआ राईज का दिशा  राज्य में तय नहीं किया जा सका है।  आज अत्ममंथन की जरूरत है कि आखिर क्या करण है? कौन इसके लिए जिम्मेदार है? । निष्चित रूप से इसके लिए नेता -मंत्रियों के साथ हम आम जनता भी जिम्मेदार हैं। नेता और राजनीतिक पार्टियां अपना हित साधने के लिए मतदाताओं से वोट खरीदने की बोली लगाते हैं। एक-एक वोट पर बोली लगाते हैं। जो जितना बड़ा रकम देता है-वोट उसकी को मिलता है। योग्य उम्मीदवार का मापदंण्ड क्या हो, इस पर भी आम लोगों को ही चिंतन करना चाहिए। राज्य को चलाने वाला योग्य उम्मीदवार क्या धनकुबेर-करोड़पति, दहशतगर्दी, करपोरेटी पूंजि, राज्य को खरीद-फरोक्त के लिए तमाम साम-दाम-दंण्ड-भेद अपना सकने वाले ही हो सकते है, यह राज्य के ईमानदार, राज्य के आम लोगों के जिंदगी के साथ सरोकार रखने वाले, राज्य की धरोहर की रक्षा करने वाले भी झारखंड विधान सभा के योग्य उम्मीदवार हो सकते हैं। यह आम जनता को तय करना है। आज देश  और राज्य की राजनीति ठीका-पठा, ठेकेदारी और ठेंगाधारी की हो गयी है। आज जनादेश  आम लोगों के विवेकपूर्ण मतदान तय नहीं करता है-बल्कि रूपया, बंदूक, और आतंक ही तय करता है।
विधान सभा चुनाव के लिए प्रशासन, मीडिया, जागरूक नागरिक सभी मतदाता जगरूकता अभियान चला रहे हैं शहरों में। अपील किया जा रहा है सबको मतदान करने के लिए यह सरहनीय है। लेकिन कोई यह कहने का साहस नहीं जुटा रहा है कि-भ्रष्टाचारियों को, ठिके पर वोट का सौदा करने वालों को मतदान नहीं करें, भय से मतदान नहीं करें । ताकि राज्य से भ्रष्टाचार खत्म हो, खरीद-फरोक्त की राजनीतिपरंपरा की कमर तोडी जा सके, ताकि आम लोगों के बुनियादी विकास के साथ राज्य की राजनीतिक दिशा  को सही दिशा  दे सके। आज जब राज्य में राजनीतिक तुफान चला हुआ है-तब आम मतदाताओं को चाहिए कि अपने हक-अधिकारों की रक्षा के लिए दृढइच्छाशत्कि के साथ अपना मतदान करें। अपना जनप्रतिनिधि हम ठोक-बजा कर ईमानदारी से चुनें। आप जब बाजार से घड़ा खरीदते हैं-तो एक-एक करके कई घड़ों को टोकना-टोकना कर, बजा-बजा कर देखते हैं कि घड़ा सही है या नहीं। जब बेटी का रिस्ता आता है-तब हम कई विशवस्त सूत्रों से पता लगाते हैं कि-लड़का सही है या नहीं, खनदान सही है या नहीं।  जब आप अपना भविष्य के साथ, राज्य का भविष्य तय करने जा रहे हैं , अपना मतदान करके, तब हमे पूरी ईमानदारी से अपने लिये जनप्रतिनिधि का चयन करने की जरूरत है जो आप के जिंदगी के सवालों के साथ माय-माटी-हासा-भाषा का भी प्रतिनिधित्व कर सके। 
हर मतदाताओं को सझना चाहिए कि-एक बार हम अपना वोट बेचते हैं-तो हमने अपना हक-अधिकार को बेच दिया। याद रखना चाहिए कि-जब हम किसी वस्तु को एक बार बेच देते हैं-तब उस पर हमारा अधिकार हमेषा के लिए खत्म हो जाता है। जब हम पैसा से, दारू-खसी मांस से अपना वोट बेच देते हैं-तब वह नेता कभी भी आप का सुख-दुख का साथी, आप के हक-अधिकारों की रक्षा की बात करने वाला नहीं होगा, क्योंकि वो आप के अधिकर को खरीद चुका हैं। राज्य की दशा  और दिशा  जगरूक मतदाता ही बदल सकते हैं। और यह कार्तव्य और अधिकार आप-प्रत्येक मतदाता को है।

Saturday, October 11, 2014

बस शर्त इतना ही है कि-अपने भीतर व्यप्त बेईमानी और भ्रष्ट मानसिकता को खुद धों दें

आज देश  के हर नेता, मंत्री, आॅफसर, कार्मचारी, सामाजिक कार्यकर्ता, संस्था-संगठन सभी  हाथ में झाडू लेकर कोई रोड़ पर झाड़ू लगा रहे  है, कोई अपने कार्यालय के कैम्पस में, कोई चैक-चैराहों पर तो और कहीं। सभी अपने साथ में झाड़ू लेकर समाज, राज्य और देश  को स्वच्छ बनाने का संकल्प ले रहे हैं, दूसरों को भी संकल्प दिला रहे हैं। यह बहुत ही अजीब लगता है-क्योंकि शहर-नगर, और पूरे राज्य की सफाई के लिए हर साल करोड़ो रूपया सरकार खर्च करता हे। सफाई के लिए नगर निगम करोड़ो राषि खर्च कर रहा है। इसके लिए कई एनजीओ को ठेका दिया है। सभी विभाग के सभी दफतरों में सफाई के लिए कार्मचारी पदस्थापित हैं। हर विभाग इन कार्मचारियों में हर माह रूपया खर्च कर रही है। लेकिन फिर भी न गली, महला, गांव, शहर की गांदगी को साफ नहीं कर सके।  अगर हर व्यत्कि अपना जिम्मेवारी ईमानदारी के साथ निभाए। हर कदम में व्यप्त बेईमानी और भ्रष्टाचार की गंदगी को साफ कर दे ंतो सामाज, गली, महला, गांव, शहर की गंदगी भी अपने आप साफ हो जाएगा बिना हाथ में झाड़ू उठाये। बस शर्त इतना ही है कि-अपने भीतर व्यप्त बेईमानी और भ्रष्ट मानसिकता को खुद धों दें

Friday, October 10, 2014

जिस धरती में कभी आदिवासियों ने अंग्रेज-जमींदारों के शोषण -दमन से मुक्ति के लिए बिरसा मुंडा, गया मुडा, डोका मुंडा, नरसिंग मुंडा, भरमी मुंडा, सुगना मुंडा, माकी मुंडा जैसे हजारों नायकों की अगुवाई में उलगुलान किया था। इसका गवाह चलकद, उलीहातू, डोम्बारी बुरू, सिंबुआ बुरू, साईल रकब, कोंचांग, सिंजुड़ी जैसे इतिहासिक गांव हैं। मुंडा आदिवासियों के उलगुलान ने ही राज्य में छोटानागपुर काष्तकारी कानून को बनवाया यही नहीं मुंडारी खूंटकटी अधिकार को भी स्थापित करवाया। आज इसी धरती में अपना बरचस्व स्थापित करने के लिए...एक आदिवासी अपने ही भाई-बहनों के खिलाफ हथियार उठा रहा है। आदिवासी-मूलवासी एक दूसरे के खून पी रहे हैं। गांव-गांव में आतंक है। गांव खाली होता जा रहा है। इस लडाई में अरोपी बन कर हजारों लोग जेल में बंद जिंदगी जी रहे हैं। जहारों जेल भेजे जा रहे हैं।. सबसे बड़ा सवाल है-आज जिनको गांव-समाज और राज्य में सामाजिक, आर्थिक, संस्कृतिक, राजनीतिक विकास में लीडरषीप देना था चाहे तो उनकी हत्या की जा रही है, या वो जेल की जिंदगी काट रहे हैं। इस लड़ाई में हजारों बेकसूर भी जेल में बंद हैं और बंद होते जा रहें हैं।

झारखंड अलग राज्य की मांग सिर्फ जिलों के सीमाओं से बने एक मात्र राज्य की परिकल्पना नहीं थी। परंतु यहां के आदिवासी-मूलवासी समूदाय के हमारे गांव में हमारा राज , जंगल-जमीन, नदी-पहाडों सहित अपने भाषा-संस्कृति और इतिहास पर अपना परंपारिक स्वाषसन अधिकार की मांग थी। 15 नवंबर 2000 को 18 जिलों  का झारखंड अलग राज्य बना। झारंखड के नक्से में खूंटी इलाके के मुंडा आदिवासियों के अबुआ राइज के संघर्ष का अपना इतिहास रहा है। यह वह धरती है -जब देश  अंगे्रज हुकूमत के जंजीरों से जकड़ा हुआ था, और देष आजादी के लिए छटपटा रहा था। तब 1800 के दशक में मुंडा सरदारों ने अंगे्रज हूकूमत और जमीनदारी लूट के खिलाफ जंग छेडा था। 15 नबंमर 1875 में उलीहातू में वीर बिरसा मुंडा पैदा हुआ। बड़ा हुआ, अंग्रेजों और जमींदरों के शोषण  और दमन को महसूस किया। जमीन-जंगल की लूट, बेटी-बहूओं पर हो रहे शोषण  के खिलाफ उलगुलान का हथियार थामा। उलगुलान के बिंगूल से समुचा मुंडा इलाका डोल उठाा। 9 जनवारी को अंग्रेज सैनिकों ने डोम्बारी में गोलियों की बैछावार की, इस रक्तरंजित संघर्ष में हजारों आदिवासी स्त्री-पुरूष, बच्चे और युवा डोम्बारी बुरू में शहिद हुए। उलगुलान के वीर नायक वीर बिरसा मुंडा के जयंती दिवस के दिन को राज्य का पूर्नठन किया गया-इसलिए कि झारखडं में आदिवासियों का अपना इतिहास है, जिनका संबंध जल-जंगल-जमीन, भाषा-संस्कृतिक, नदी और पहाड़ों है।  
 राज्य के ग्रामीण इलाकों का सपंूर्ण विकास के लिए राज्य पूर्नगठन के बाद कई जिले बने। इसी क्रम में बिरसा मुंडा जन्म और उलगुान की धरती खूंटी को भी 12 सितंबर 2007 को जिला के रूप में स्थापित किया गया। खूंटी जिला पूरी तरह कृर्षि प्रधान जिला है। यहां की आबादी 5,30,299 है।  जिला में अड़की प्रखंड, मूरूहू प्रंखड, रनिया प्रखंड पूरी तरह से जंगल से पटा हुआ है। इस क्षेत्र से लाखों -करोड़ों का वनोउपज हर साल बाहार जाता है। माइनर मिनिरल्स के रूप में करोड़ों के सैकड़ों पत्थर के खदान चलाये जा रहे हैं, । लाखों-करोंडो के कई दर्जन बालू घाट बाम्बे की कंपनी को बेची जा चूकी है। खूंटी, मुरूह का इलाका लाह की खेती के लिए देश  प्रसिद्व है। लेकिन दुखद बात तो यह है कि इन वनोपजों, माइनर मिनिरल्स के मारकेटिंग से जोड़ने के लिए स्थानीय समुदाय की कोई कोपरेटिब आज तक नहीं बनायी गयी। न ही कोई फूड प्रोसेशिग यूनिट खड़ी की गयी। वनसमंपदा आधारित कोई कुटीर उद्योग नहीं खड़ा किया गया। ताकि जिला का जनमुखी एवं पर्यावरणीय आधारित विकास हो।
जिला बनने के पहले और आज भी षिक्षा, स्वास्थ्य, कृर्षि, कुटीर उद्योग, के क्षेत्र में कोई सकारात्मक पहल नहीं हुई है। केंन्द्र की विकास योजनाएं भी जमीनाी स्तर पर कहीं दिखाई नहीं देती हैं। मनरेगा योजना सहित तमाम विकास योजनाएं सरकारी अधिकारियों, माफियाओं, ठेकेदारों का लूट का अखाडा  बन गया है। विकास के नाम पर जिला ने कितना कदम आगे बढ पाया है यह नहीं, यह किसी से छिपा हुआ नहीं है, लेकिन जिला में सरकार के समान्तर चलने वाले कई उग्रवादी संगठनों का विकास और विस्तार खूब हुआ है। अपना वरचस्व कायम करने के लिए सभी संगठन अपनी ताकत का खूब विस्तार किया है। प्रषासन और विधि व्यवस्था जिला के नागरिकों को सुरक्षा देने और षांति व्यचस्था बनाये रखने दंभ भरते रही हैं जबकि हत्याओं, अपराधिक घटनाओं और उग्रवादी हिंसाओं से बिरसा मुंडा की धरती लाल होते जा रही है। कोई एैसा दिन नहीं, जिस दिन जिला के किसी गांव क्षेत्र में हत्या और कोई अपराधिक घटना न हो। जिला बने सात साल हुए। इस सात साल में जिला में जमीन विवाद, उग्रवादी हिंसा, डायन हत्या तथा अन्य घटनाओं में हजारों लोगों की हत्या हो चुकी
जिस धरती में कभी आदिवासियों ने अंग्रेज-जमींदारों के शोषण  -दमन से मुक्ति के लिए बिरसा मुंडा, गया मुडा, डोका मुंडा, नरसिंग मुंडा, भरमी मुंडा, सुगना मुंडा, माकी मुंडा जैसे हजारों नायकों की अगुवाई में उलगुलान किया था। इसका गवाह चलकद, उलीहातू, डोम्बारी बुरू, सिंबुआ बुरू, साईल रकब, कोंचांग, सिंजुड़ी जैसे इतिहासिक गांव हैं। मुंडा आदिवासियों के उलगुलान ने ही राज्य में छोटानागपुर काष्तकारी कानून को बनवाया यही नहीं मुंडारी खूंटकटी अधिकार को भी स्थापित करवाया। आज इसी धरती में अपना बरचस्व स्थापित करने के लिए...एक आदिवासी अपने ही भाई-बहनों के खिलाफ हथियार उठा रहा है। आदिवासी-मूलवासी एक दूसरे के खून पी रहे हैं। गांव-गांव में आतंक है। गांव खाली होता जा रहा है। इस लडाई में अरोपी बन कर हजारों लोग जेल में बंद जिंदगी जी रहे हैं। जहारों जेल भेजे जा रहे हैं।. सबसे बड़ा सवाल है-आज जिनको गांव-समाज और राज्य में सामाजिक, आर्थिक, संस्कृतिक, राजनीतिक विकास में लीडरषीप देना था चाहे तो उनकी हत्या की जा रही है, या वो जेल की जिंदगी काट रहे हैं। इस लड़ाई में हजारों बेकसूर भी जेल में बंद हैं और बंद होते जा रहें हैं।
हिंसा और अपराधिक घटनाओं का इतिहास देखा जाए तो राज्य बनने के बाद से लगातार बढ़ता जा रहा है। हर साल घटनाओं का ग्राफ बढ़ता जा रहा है। इस इलाके की जनता नेता, मंत्री, विधायक, संसद, शासन-प्रशसन से सबसे बड़ा सवाल है कि आखिर आप गांव-समाज सहित इस इलाके को  कहां जो रहे हैं?  आम जनता को भी सोचना है कि हम अपना गांव-समाज को कहां ले जा रहे हैं? किन लिए गांव खाली कर रहे हैं?
जिला बनने के बाद हुई पुलिस के अनुसार उग्रवादी हिंसा में हुइ हत्या इस तरह से है
क्ब संख्या/घटना आदिवासी-हत्या गैरआदिवासी/मूलवासी
2007 6-------            1 ---------------6
2008 4------ -   -----              ----4
2009 8--------------     7 ---------        5
2010 13 -------------14           -------3
2011 20 -------------12     -----------11
2012 37 -------------32      ----------10
2013 26 ----------    17 -------------12
2014.मई तक --10  --------2                 ----
2014-सिर्फ जून में -   15 ---------------2
नोट-इस घटना में 10 अज्ञात है
अन्य मामलों हुई हत्या
कब स्ंाख्या-घटना आदिवासी---- गैर आदिवासी अज्ञात
2007 84                   9       -----         --67
2008 61            50                  14             --5
2009 69                    35                    17        -----15
2010 66 -                  46 -                  11 -      -----18
2011 101-                    66 -                  29 -          --12
2012 89 --                 65 --                 13 -            -11
2013 75 --                  53           --12     --12
2014-मई तक 40 --          26             --4       --9

अन्य मामलों में हत्या का प्रखंडवार अंकडा
प्रखंड ----2007--- 2008 2009 -2010 -2011 -2012 -2013 -2014
तोरपा 15          ---5         --7   --6          --8          --14           --10 --6
रनिया 8           ---9         ---3  ---6          --5            --7           --11 --2
कर्रा -----21            --4       --15 --16           --19   --13   --17 --9
खंूटी 10 --          13 --14 --19            --35    --23    --16 --10
मूरहू --     26           --18 --25 --13           --21    --19    --19 --11
अड़की 5             --9 --5    --6             --13    --13       --2    --2

नोट-अज्ञात घटनाएं है जो यहां अंकित किया गया है, इसमें प्रत्येक घटना में कितने लोगों की हत्या की गयी है यह स्पस्ट नहीं किया गया है। हो सकता है किसी घटना में ण्क की हत्या हुई और किसी घटना में एक साथ दो-तीन लोगों की हत्या हुई हो।
डायन हत्या -2007-2014 मई तक-कुल 20 घटनाएं हुई, इसमें 10 लोगों के नाम के जिक्र है जबकि 10 अज्ञात हैं।
जमीन विवाद में हुइ्र हत्या-2007 से 2014 मई के बीच खूंटी थाना में सिर्फ एक, कर्रा थाना में एक तथा मुरूहू थाना क्षेत्र में की हुई।
                                         दयामनी बरला

आखिर आप गांव-समाज सहित इस इलाके को कहां जो रहे हैं?

झारखंड अलग राज्य की मांग सिर्फ जिलों के सीमाओं से बने एक मात्र राज्य की परिकल्पना नहीं थी। परंतु यहां के आदिवासी-मूलवासी समूदाय के हमारे गांव में हमारा राज , जंगल-जमीन, नदी-पहाडों सहित अपने भाषा-संस्कृति और इतिहास पर अपना परंपारिक स्वाषसन अधिकार की मांग थी। 15 नवंबर 2000 को 18 जिलों  का झारखंड अलग राज्य बना। झारंखड के नक्से में खूंटी इलाके के मुंडा आदिवासियों के अबुआ राइज के संघर्ष का अपना इतिहास रहा है। यह वह धरती है -जब दे अंगे्रज हुकूमत के जंजीरों से जकड़ा हुआ था, और देष आजादी के लिए छटपटा रहा था। तब 1800 के दशक में मुंडा सरदारों ने अंगे्रज हूकूमत और जमीनदारी लूट के खिलाफ जंग छेडा था। 15 नबंमर 1875 में उलीहातू में वीर बिरसा मुंडा पैदा हुआ। बड़ा हुआ, अंग्रेजों और जमींदरों के शोषण  और दमन को महसूस किया। जमीन-जंगल की लूट, बेटी-बहूओं पर हो रहे शोषण  के खिलाफ उलगुलान का हथियार थामा। उलगुलान के बिंगूल से समुचा मुंडा इलाका डोल उठाा। 9 जनवारी को अंग्रेज सैनिकों ने डोम्बारी में गोलियों की बैछावार की, इस रक्तरंजित संघर्ष में हजारों आदिवासी स्त्री-पुरूष, बच्चे और युवा डोम्बारी बुरू में शहीद  हुए। उलगुलान के वीर नायक वीर बिरसा मुंडा के जयंती दिवस के दिन को राज्य का पूर्नठन किया गया-इसलिए कि झारखडं में आदिवासियों का अपना इतिहास है, जिनका संबंध जल-जंगल-जमीन, भाषा-संस्कृतिक, नदी और पहाड़ों है।   
 राज्य के ग्रामीण इलाकों का सपंर्ण विकास के लिए राज्य पूर्नगठन के बाद कई जिले बने। इसी क्रम में बिरसा मुंडा जन्म और उलगुान की धरती खूंटी को भी 12 सितंबर 2007 को जिला के रूप में स्थापित किया गया। खूंटी जिला पूरी तरह कृर्षि प्रधान जिला है। यहां की आबादी 5,30,299 है।  जिला में अड़की प्रखंड, मूरूहू प्रंखड, रनिया प्रखंड पूरी तरह से जंगल से पटा हुआ है। इस क्षेत्र से लाखों -करोड़ों का वनोउपज हर साल बाहार जाता है। माइनर मिनिरल्स के रूप में करोड़ों के सैकड़ों पत्थर के खदान चलाये जा रहे हैं, । लाखों-करोंडो के कई दर्जन बालू घाट बाम्बे की कंपनी को बेची जा चूकी है। खूंटी, मुरूह का इलाका लाह की खेती के लिए देष प्रसिद्व है। लेकिन दुखद बात तो यह है कि इन वनोपजों, माइनर मिनिरल्स के मारकेटिंग से जोड़ने के लिए स्थानीय समुदाय की कोई कोपरेटिब आज तक नहीं बनायी गयी। न ही कोई फूड प्रोसेषिंग यूनिट खड़ी की गयी। वनसमंपदा आधारित कोई कुटीर उद्योग नहीं खड़ा किया गया। ताकि जिला का जनमुखी एवं पर्यावरणीय आधारित विकास हो। 
जिला बनने के पहले और आज भी शिक्षा, स्वास्थ्य, कृर्षि, कुटीर उद्योग, के क्षेत्र में कोई सकारात्मक पहल नहीं हुई है। केंन्द्र की विकास योजनाएं भी जमीनाी स्तर पर कहीं दिखाई नहीं देती हैं। मनरेगा योजना सहित तमाम विकास योजनाएं सरकारी अधिकारियों, माफियाओं, ठेकेदारों का लूट का अखाडा  बन गया है। विकास के नाम पर जिला ने कितना कदम आगे बढ पाया है यह नहीं, यह किसी से छिपा हुआ नहीं है, लेकिन जिला में सरकार के समान्तर चलने वाले कई उग्रवादी संगठनों का विकास और विस्तार खूब हुआ है। अपना वरचस्व कायम करने के लिए सभी संगठन अपनी ताकत का खूब विस्तार किया है। प्रषासन और विधि व्यवस्था जिला के नागरिकों को सुरक्षा देने और शांति  व्यचस्था बनाये रखने दंभ भरते रही हैं जबकि हत्याओं, अपराधिक घटनाओं और उग्रवादी हिंसाओं से बिरसा मुंडा की धरती लाल होते जा रही है। कोई एैसा दिन नहीं, जिस दिन जिला के किसी गांव क्षेत्र में हत्या और कोई अपराधिक घटना न हो। जिला बने सात साल हुए। इस सात साल में जिला में जमीन विवाद, उग्रवादी हिंसा, डायन हत्या तथा अन्य घटनाओं में हजारों लोगों की हत्या हो चुकी 
जिस धरती में कभी आदिवासियों ने अंग्रेज-जमींदारों के शोषण  -दमन से मुक्ति के लिए बिरसा मुंडा, गया मुडा, डोका मुंडा, नरसिंग मुंडा, भरमी मुंडा, सुगना मुंडा, माकी मुंडा जैसे हजारों नायकों की अगुवाई में उलगुलान किया था। इसका गवाह चलकद, उलीहातू, डोम्बारी बुरू, सिंबुआ बुरू, साईल रकब, कोंचांग, सिंजुड़ी जैसे इतिहासिक गांव हैं। मुंडा आदिवासियों के उलगुलान ने ही राज्य में छोटानागपुर काष्तकारी कानून को बनवाया यही नहीं मुंडारी खूंटकटी अधिकार को भी स्थापित करवाया। आज इसी धरती में अपना बरचस्व स्थापित करने के लिए...एक आदिवासी अपने ही भाई-बहनों के खिलाफ हथियार उठा रहा है। आदिवासी-मूलवासी एक दूसरे के खून पी रहे हैं। गांव-गांव में आतंक है। गांव खाली होता जा रहा है। इस लडाई में अरोपी बन कर हजारों लोग जेल में बंद जिंदगी जी रहे हैं। जहारों जेल भेजे जा रहे हैं।. सबसे बड़ा सवाल है-आज जिनको गांव-समाज और राज्य में सामाजिक, आर्थिक, संस्कृतिक, राजनीतिक विकास में लीडरषीप देना था चाहे तो उनकी हत्या की जा रही है, या वो जेल की जिंदगी काट रहे हैं। इस लड़ाई में हजारों बेकसूर भी जेल में बंद हैं और बंद होते जा रहें हैं। 
हिंसा और अपराधिक घटनाओं का इतिहास देखा जाए तो राज्य बनने के बाद से लगातार बढ़ता जा रहा है। हर साल घटनाओं का ग्राफ बढ़ता जा रहा है। इस इलाके की जनता नेता, मंत्री, विधायक, संसद, षासन-प्रशासन से सबसे बड़ा सवाल है कि आखिर आप गांव-समाज सहित इस इलाके को  कहां जो रहे हैं?  आम जनता को भी सोचना है कि हम अपना गांव-समाज को कहां ले जा रहे हैं? किन लिए गांव खाली कर रहे हैं? 
जिला बनने के बाद हुई पुलिस के अनुसार उग्रवादी हिंसा में हुइ हत्या इस तरह से है
क्ब संख्या/घटना आदिवासी-हत्या गैरआदिवासी/मूलवासी
2007 - 6               --1                                 -  6
2008 -4                 -                                    -4
2009 8                  -7                                    -5
2010 13               -14                                    -3
2011 20              -12                                  -11
2012 37               -32                                  -10
2013 26                -17                                  -12
2014.मई तक -
2014-सिर्फ जून में 11   -15                            ------ 2
नोट-इस घटना में 10 अज्ञात है
अन्य मामलों हुई हत्या
कब स्ंाख्या-घटना आदिवासी गैर आदिवासी अज्ञात
2007 84              -            -9         -67
2008 61            -50        -14                - 5
2009 69           -35          -17                -15
2010 66 -         -46 -       -11                -18
2011 101 -          -66 -29                -12
2012 89 -         -65         -13                -11
2013 75 -        -53         -12                -12
2014-मई तक          - 40    -26       -4 -9

अन्य मामलों में हत्या का प्रखंडवार अंकडा
प्रखंड     2007 200  -200 - 2010-  2011- 2012- 2013-2014
तोरपा-    15-     -       7       -6 -8 -14 -10        -6
रनिया 8 9 3 6 5 7 11          2
कर्रा        21   15     16    19 13  17   9
खंूटी 10 13 14 19 35 23 16      10
मूरहू        26 18 25 13 21 19 19      11
अड़की 5 9 5 6 13 13 2 2

नोट-अज्ञात घटनाएं है जो यहां अंकित किया गया है, इसमें प्रत्येक घटना में कितने लोगों की हत्या की गयी है यह स्पस्ट नहीं किया गया है। हो सकता है किसी घटना में ण्क की हत्या हुई और किसी घटना में एक साथ दो-तीन लोगों की हत्या हुई हो।
डायन हत्या -2007-2014 मई तक-कुल 20 घटनाएं हुई, इसमें 10 लोगों के नाम के जिक्र है जबकि 10 अज्ञात हैं।
जमीन विवाद में हुइ्र हत्या-2007 से 2014 मई के बीच खूंटी थाना में सिर्फ एक, कर्रा थाना में एक तथा मुरूहू थाना क्षेत्र में की हुई।
                                         दयामनी बरला

आदिवासी समुदाय को अपने सामाजिक, संस्कृतिक, आर्थिक राजनीतिक और ऐतिहासिक अधिकारों से बंचित करने की कोशिश की जा रही है



 सेवा में,
उपायुक्त महोदय                               दिनांक-23/9/2014
जिला-खूंटी                                    पत्रांक-01

विषय-खूंटी जिला आदिवासी बहुल जिला है, लेकिन जिला की आदिवासी आबादी की संख्या को गलत तरीके से हाईकोर्ट में कम दिखाकर, जिला को ननषिडयूल एरिया बताया जा रहा है, पर हस्तक्षेप किया जाए।
12 सितंबर 2014 के प्रभात खबर में प्रकाषित समाचार से जानकारी मिली है कि प्राथी मो आषिक अहमद, उपेंन्द्र नाथ महतो व कर्नल लाल ज्योतिंद्र देव व अन्य ने हाईकोर्ट में षिडयूल एरिया निर्धारण के मामले में सवाल उठाया है कि जिलों में आदिवासी आबादी 50 प्रतिषत से कम है, एैसे जिलों को भी किस आधार पर षिडयूल एरिया घोषित किया गया है। इसमें खूंटी जिला को भी षामिल किया गया है, जिसमें रांची और खूंटी जिला दोनों को मिलाकर आदिवासी आबादी 41.81 दिखाया गया है। जिसकी अगली सुनवाई 25 सिंतबर को होने वाला है। 
12 सिंतबर 2007 को खूंटी को जिला बनाया गया। खूंटी जिला में 6 प्रखंड हैं। ये सभी प्रखंड़ों में आदिवासी बहुल है। अब खूंटी जिला का अपना अस्तित्व है। 2001 की जनगणा कें आधार पर खूंटी जिला की आबादी 5,30,299 है।
2001 के आधार -जिले में प्रखंडवार आदिवासी आबादी का प्रतिषत है-
1-आड़की प्रखंड--------------79.36
2-खूंटी प्रखंड---------------65.91
3-मुरहू प्रखंड---------------80.64
4-कर्रा प्रखंड---------------73.08
5-तोरपा प्रखंड--------------69.26
6-रनिया प्रखंड--------------70.71
भारत सरकार का 2011 का सेंस्स के आधार पर खूंटी जिला की आदिवासी आबादी 73 प्रतिषत है।
केंन्द्र सरकार के नियम के अनुसार जिन क्षेत्रों में आदिवासी आबादी 50 प्रतिषत यह 50 प्रतिषत से अधिक है, एैसे क्षेत्रों को षिडयूल एरिया के अतंर्गत रखा है। उपरोक्त आंकड़े बताते हैं-कि खूंटी जिला पूरी तरह आदिवासी बहुल है, और षिडयूल एरिया के अतंर्गत आता है। 
हम यहां यह भी बताना चाहते हैं कि झारखंड में खूंटी जिला ही एक मात्र मुंडा आदिवासी बहुल क्षेत्र है। राजनीति में खूंटी जिला से खूंटी विधानसभा और तोरपा विधानसभा में मुंडा आदिवासी समुदाय हमेषा से नेतृत्व देते आ रहे हैं। यही नहीं खूंटी जिला के आदिवासी समुदाय ने भारत के स्वतं़त्रता संग्राम में बिरसा मुंडा के नेतृत्व में अग्रेजो के खिलाफ उलगुलान कर देष के इतिहास में अपना परचम हलराया है। 
परंपरागत से खूंटी जिला आदिवासी बहुल ़क्षेत्र रहा है। इ़स क्षेत्र के आदिवासी समुदाय के जल-लंगल-जमीन पर परंपरागत हक-अधिकार को खूंटकटी अधिकार और सीएनटी एक्ट में प्रावधान किया गया है। यहां के आदिवासी समुदाय के परंपरागत अधिकार  के आधार पर ही इस क्षेत्र को पंाचवी अनुसूची क्षेत्र में रखा गया है। 
हम खूंटी जिला के आदिवासी-मूलवासी आप से अग्राह करते हैं-कि आदिवासी समुदाय को अपने सामाजिक, संस्कृतिक, आर्थिक राजनीतिक और ऐतिहासिक अधिकारों से बंचित करने की कोषिष की जा रही है, इस पर जिला प्रषासन हत्सक्षेप करे, ताकि आदिवासी समुदाय का हम-अधिकारों की रक्षा की जा सके। 
                                                 निवेदक-
 संयोजक-                                    आदिवासी मूलवासी अस्तित्व रक्षा मंच
                                    अध्यक्ष-
                                    सचिव--
काॅपी-
मुख्यमंत्री श्री हेमंत सोरेनजी
राज्यपाल महोदय-
कष्मिनर महोदय-
मुख्य सचिव---






















सेवा में,
डपायुक्त महोदय                               दिनांक-23/9/2014
जिला-खूंटी                                    पत्रांक-01

विषय-खूंटी जिला आदिवासी बहुल जिला है, लेकिन जिला की आदिवासी आबादी की संख्या को गलत तरीके से हाईकोर्ट में कम दिखाकर, जिला को ननशिडयूल  एरिया बताया जा रहा है, पर हस्तक्षेप किया जाए।
केस संख्य ..........................................................................................में प्रार्थी ने हाईकोर्ट में षिडयूल एरिया निर्धारण के मामले में सवाल उठाया है कि जिलों में आदिवासी आबादी 50 प्रतिशत से कम है, एैसे जिलों को भी किस आधार पर शिडियुल  एरिया घोषित किया गया है। इसमें खूंटी जिला को भी शामिल किया गया है, जिसमें रांची और खूंटी जिला दोनों को मिलाकर आदिवासी आबादी 41.81 दिखाया गया है। जिसकी अगली सुनवाई 25 सिंतबर को होने वाला है। 
12 सिंतबर 2007 को खूंटी को जिला बनाया गया। खूंटी जिला में 6 प्रखंड हैं। ये सभी प्रखंड़ों में आदिवासी बहुल है। अब खूंटी जिला का अपना अस्तित्व है। 2001 की जनगणा कें आधार पर खूंटी जिला की आबादी 5,30,299 है।
2001 के आधार -जिले में प्रखंडवार आदिवासी आबादी का प्रतिशत है-
1-आड़की प्रखंड--------------79.36
2-खूंटी प्रखंड---------------65.91
3-मुरहू प्रखंड---------------80.64
4-कर्रा प्रखंड---------------73.08
5-तोरपा प्रखंड--------------69.26
6-रनिया प्रखंड--------------70.71
भारत सरकार का 2011 का सेंस्स के आधार पर खूंटी जिला की आदिवासी आबादी 73 प्रतिषत है।
केंन्द्र सरकार के नियम के अनुसार जिन क्षेत्रों में आदिवासी आबादी 50 प्रतिशत यह 50 प्रतिषत से अधिक है, एैसे क्षेत्रों को शिडयूल एरिया के अतंर्गत रखा है। उपरोक्त आंकड़े बताते हैं-कि खूंटी जिला पूरी तरह आदिवासी बहुल है, और शिडयूल एरिया के अतंर्गत आता है। 
हम यहां यह भी बताना चाहते हैं कि झारखंड में खूंटी जिला ही एक मात्र मुंडा आदिवासी बहुल क्षेत्र है। राजनीति में खूंटी जिला से खूंटी विधानसभा और तोरपा विधानसभा में मुंडा आदिवासी समुदाय हमेशा  से नेतृत्व देते आ रहे हैं। यही नहीं खूंटी जिला के आदिवासी समुदाय ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में बिरसा मुंडा के नेतृत्व में अग्रेजो के खिलाफ उलगुलान कर देश  के इतिहास में अपना परचम हलराया है। 
परंपरागत से खूंटी जिला आदिवासी बहुल क्षेत्र रहा है। इ़स क्षेत्र के आदिवासी समुदाय के जल-लंगल-जमीन पर परंपरागत हक-अधिकार को खूंटकटी अधिकार और सीएनटी एक्ट में प्रावधान किया गया है। यहां के आदिवासी समुदाय के परंपरागत अधिकार  के आधार पर ही इस क्षेत्र को पंचवी अनुसूची क्षेत्र में रखा गया है। 
हम खूंटी जिला के आदिवासी-मूलवासी आप से अग्राह करते हैं-कि आदिवासी समुदाय को अपने सामाजिक, संस्कृतिक, आर्थिक राजनीतिक और ऐतिहासिक अधिकारों से बंचित करने की कोशिश  की जा रही है, इस पर जिला प्रशासन हत्सक्षेप करे, ताकि आदिवासी समुदाय का हम-अधिकारों की रक्षा की जा सके। 
                                                 निवेदक-
 संयोजक-                                    आदिवासी मूलवासी अस्तित्व रक्षा मंच
                                    अध्यक्ष-
                                    सचिव--
 काॅपी-
मुख्यमंत्री श्री हेमंत सोरेनजी
राज्यपाल महोदय-
कष्मिनर महोदय-
मुख्य सचिव---

हम बाल मजदूर नहीं-देश की सम्मानित नागरिक हूँ


हम बाल मजदूर नहीं-देश की सम्मानित नागरिक हूँ 



Wednesday, July 16, 2014

आज अच्छ दिन तो आ गये हैं लेकिन किनका अच्छा दिन? आम आदमी को, किसानों का, आदिवासियों को, मूलासियों का यह फिर कारपोरेट घरानों का ?

अच्छे दिन आएंगे का सपना देश  के नागरिकों को दिखा कर मोदी सरकार ने सत्ता में आयी। सत्ता में आने के पहले जनता को वादा किया गया था कि देश  में बढ़ती मंहगाई को रोका जाएगा। गदी पर बैठने के एक माह में कई महत्वपूर्ण लिये। इन निर्णयों में कोई भी निर्णय देश  की आम जनता के हित में नहीं लिया गया। मोदी सरकार की विकास की गाड़ी पटर पर सरपट दौड़ना  शुरू कर दिया है। एक माह में 
1-डिजल का कीमत बढ़ा दिया गया
2-पेट्र्रोल का कीमत बढ़ा दिया
3-चीनी का कीमत बढा
4-रेल भाड़ा बढाया
5-रसवाई गैस का कीमत बढ़ा
देश  के विकास योजनाओं को तैयार करने में सबकी भागीदारी सुनिच्’िात करने के लिए पिछली सरकारों ने योजना आयोग में नेता-मंत्री के अलावे देश  के बुधिजीवि, अर्थस्त्री, सामाजिक कार्यकर्ताओं को भी शमिल किया गया था। मोदी सरकार के सत्ता पर बैठते ही योजना आयोग का आकार छोटा करने का निर्णय लिया गया। अब उम्मीद है योजना आयोग में उन्हीं लोगों को केवल रखा जाएगा-जिन कारपोरेट घरानों ने चुनाव लड़ने के लिए रूप्या दिये थे। 
देश  में विभिन्न योजनाओं के लिये जमीन अधिग्रहण को जनपक्षी तथा जमीन मालिकों के हितों की सुरक्षा को देखते हुए पिछली सरकार ने भू-अधिग्रहण कानून बनाया गया था। इस कानून में एक क्लाॅज था जिसमें जमीन अधिग्रहण के पहले -उस क्षेत्र के सामाजिक अस्तित्व को अक्षुण रखने के लिए -जमीन अधिग्रण से होने वाले प्रभाव को अकलन करने के लिए ‘’शोशल एशेषमेन्ट समेंट का प्रावधान किया गया है-को जमीन अध्रिग्रहण में देरी को कारण बताते हुए इसे खत्म करने का निर्णय लेने की तैयारी चल रही है। 
यही नहीं इसी कानून में जमीन अधिग्रहण के पहले ग्राम सभा को जो अधिकार दिया गया था-जिसके तहत प्रावधान था-यदि कंपनी के लिये जमीन अधिग्रहण करना हो तो-70 प्रतिशत ग्राम सभा की सहमति पर ही जमीन अधिग्रहण हो सकता है। इसी कानून में कहा गया है-यदि जमीन सरकार अधिग्रहण करेगा-तो 80 प्रतिशत ग्राम सभा की सहमति के बाद ही जमीन अधिग्रहण किया जा सकेगा। 
इन दोनों क्लोज को जमीन अधिग्रहण में बाधा मानते हुए दोनों क्लोज को खत्म कर जमीन अधिग्रहण प्रक्रिया में ग्राम सभा को दिये गये कानूनी प्रावधान को ही खत्म करने का निर्णय लिया जा रहा है। 
रेल बजट तथा आम बजट में झारखंड प्रदेश  को पूरी तरह से दर किनार किया गया। सबसे खतरनाक बात तो यह है कि-मोदी सरकार के आम बजट में आदिवासी, मूलवासी किसान, गांव-देहात के ग्रामीणों तथा विस्थापितों का नमोनिशान  नहीं है। बजट का हर पहलू सिर्फ कारपोरेट घरानों का विकास को केंन्द्र माना गया है। बजट में देश  की आम आदमी कहीं भी नहीं हैं। आज अच्छ दिन तो आ गये हैं लेकिन किनका अच्छा दिन? आम आदमी को, किसानों का, आदिवासियों को, मूलासियों का यह फिर कारपोरेट घरानों का ?

Sunday, June 29, 2014

यह निश्चित रूप में अंग्रेज सरकार के समय ही लगायी गयी थी ताकि यात्रा करते समय यात्री फल भी खा संके और धुप के दिन छाया भी मिल सके. निश्चित रूप इस मामले में अंग्रेज सरकार रोड को केवल गाड़ी दौडने के लिए नहीं बनती थी, लेकिन आम यात्रिओं के भोजन-पानी, के साथ और भी बुनियादी जरूरतों के साथ जोड़ कर देखती थी।

बिकास कर नाम पर उजड़ता पर्यावरण 
बिकास कर नाम पर उजड़ता पर्यावरण --सरकार राज्य में बिकास के नाम पर सैकड़ो सड़कें बन रही है, दर्जनो हाईवे बन राहे हैं।  इसके लिए लाखों पेड़ -पौधे, जंगल झाड़ कटे जा रहे हैं ,  विदित हो की जितने भी सड़कें  हैं - इन सड़कों के किनार दोनों ओर फलदार और छायादार पेड़ लगाये  हैं।  यह निश्चित रूप में अंग्रेज सरकार के समय ही लगायी गयी थी ताकि यात्रा करते समय यात्री फल भी खा संके और धुप के दिन छाया भी मिल सके. निश्चित रूप इस मामले में अंग्रेज सरकार रोड को केवल गाड़ी दौडने के लिए नहीं बनती थी, लेकिन आम यात्रिओं के भोजन-पानी, के साथ और भी बुनियादी जरूरतों के साथ जोड़ कर देखती थी।  
लेकिन आज हमारी सरकार रोड के किनारे सॉ साल से खड़े बिशाल पेड़ों को रोड चुड़ीकरण करण के नाम पर लाखों पेड़ों को काट कर खत्म कर दे रही है ,,जिससे पर्यावण की आपुनिये छाती हो रही है।इसे सिर्फ आम लोगों का ही केवल हानि नहीं है लेकिन। .पूरी पर्यावरण को उजाड़ने की साजिश ही है 

Wednesday, June 25, 2014

खूंटी की जनता के समक्ष घोषणा करती हुं कि मैं संविधान और बिरसा मुंडा को साक्षी मान कर घोषणा करती हुं कि आखिरी सांस तक इन मुददों पर संघर्ष में आप के साथ रहंुगी।

मेरा घोषणा पत्र
लोक सभा चुनाव 2014
खूंटी की धरती से ही बिरसा के अबुआ राइज का नारा पूरी दुनिया में गुजा था। अब उसे और बुलंद करना है। पूंजीपतियों की लूट और पूंजिनतियों की गोद में बैठे नेताओं से मुक्त झारखंड बनाने की यह लड़ाई हम सब के लिए एक साथ लड़ने और जीतने की चुनौती दे रहा है। 
पिछले 14 सालों में झारखंड में ग्रामीणों की स्थिति बद से बदत्तर हो गयी है। सरकारी कार्यक्रमों में बड़े पैमाने में व्यप्त भ्रष्टाचार, ग्रामीणों के प्रति सरकार एवं राज-नेताओं की उदासीनता दशार्ती है। स्थानीय शासन तथा सरकारी कार्यक्रमों में लोगों की भागीदारी सुनिशचत नहीं की जाती है तथा पंचायतों को अधिकार देना कोई प्राथमिकता नहीं है। 
जनता के आम मुदे जैसे भूख, कुपोषण, आदिवासी, महिला, किसानों के उपर हिंसा, विस्थापन, पलायन, बेरोजगारी, सिंचाई एवं पेचजल की कमी, इत्यादि किसी पार्टियाॅं नागरिकों को धर्म, जाति, एवं संप्रदाय के आधर पर बांट कर वोट की राजनीति कर रहे हैं।
दयामनी ग्रामीणों के मूल मुददों से लम्बें समय से जुड़ी हुई है। दयामनी ने बड़े विस्थापन की परियोजना के खिलाफ लंबा संघर्ष किया है, जिसमें लाखों आदिवासी-मूलवासी परिवार बेघर होने की संभावना थी। अब उन्होंने अपने कंधे पर पूरे क्षेत्र का आम सहमति से विकास की रणनीति बनायी है। वे पारंपरिक ग्राम सभा और महिला समूहों को जीवित कर विकास की ओर आगे बढ़ने की पे्ररणा देती रही है।
इस चुनाव में दयामनी नीचे उल्लेखित मुददों के साथ आप पार्टी की ओर से खड़ी है।
भ्रष्टाचार, विस्थापन, पलायन मुक्त झारखंड
जल, जंगल, जमीन के साथ स्थानीय स्तर पर प्रगती और रोजगार के अवसर के सृजन करना होगां
सीएनटी, एसपीटी एक्ट को चाने के लिए हम संकल्पबद्व हैं। हमारा मकसद इसे और मजबूत बनाने के लिए है।
खनिज और तमाम प्राकृतिक संसाधनों की लूट खत्म की जाएगी एवं कृर्षि एवं सिचाई की समुचित व्यवस्था की जाएगी।
खनिज, जंगल और वन संसाधन पर ग्राम सभा का अधिकार निशिचत किया जाएगा।
आदिवासियों और मूलवासियों के भूंमि कानूनों और खतिचानों में कोई दखल नहीं दिया जाए।
विस्थापन आयोग का गठन हो ताकि अबं तक विस्थापित हुए लोगों की पचहचान हो और उन्हें सुविधाएं दी जाए।
देशज विकास का झारखंड जिसमें सारे निर्णय के अधिकार ग्रामसभाओं के होंगें।
पेसा (झएड) कानून के तहत स्थानीय स्व-शासन एवं पंचायतों को अधिकार विकेन्द्रित करें।
शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार की गारंटी के लिए समुचित पहल की जाएगी।
खाद्यय सुरक्षा और जन वितरण प्रणाली तथा वृद्वा पेंशन इंदिरा अवास की सहज उपलब्धता और हर गांव में आंगनबाड़ी के लिए पुरजोर आवाज उठाया जाएगा।
झारखंड को कुपोषण मुक्त बनाया जाएगा।
काॅमन स्कूल सिस्टम लागू किया जाएगा एवं सरकारी स्कूलों को शिक्षा का कारगर केंन्द्र बनाया जाएगा एवं स्थानीय भाषाओं में प्राथमिक ’िाक्षा की गारंटी की जाएगी।
रोजगार का स्थानीय स्तर पर सृजन के लिए लघु और कुटीर उद्योगों को प्राथमिकता दी जाएगी। 
महिलाओं को सुरक्षा, सम्मान एवं विकास के कामों को महिला संगठनों के द्वारा अगुवाई।
भाषा-संस्कृति और सामािजक सदभाव की रक्षा।
आदिवासियों और मूलवासियों की पहचान को बचाना हर कीमत पर जरूरी है कि स्थानीय नीति तुरंत बनाया जाए और इसके लिए जनांदोलन को समझौताविहीन किया जाएगा। 
शाति, सदभाव और हर एक का सम्मान हमारी प्राथमिकता रहेगी।
समाज कमजोर समुहों की आर्थिक निर्णय प्रक्रिया में भागीदारी सुनि’िचत की जाएगी।
विकास के विस्थापनमूलक नीति को बदलने के लिए सामुहिक पहल की जाएगी।
पर्यावरण को नुकसान किसी भी हालत में नहीं पहुंचाया जाय एवं नदियों और झरनों को स्वाभविक रूप से बहने दिया जाएगा।
झारखं डमें अब तक हुए एमओयू की न्याचिक समीक्षा की जाए और इसमें हुए भ्रष्टाचार के लिए दोषी नेताओं और अफसरों को सजा दिया जाए।
ज्ेल में बंद पड़े निर्दोष झारखंडियों की तुंरत रिहाई का प्रयास किया जाएगा।
ग््रामीणों न्यूनतम मजदूरी को सम्मानजनक किया जाए और उसके तुरंत भुगतान की गारंटी की जाएगी।
थ्कसी भी निर्माण कार्य का भुगतान तब ही जा जब उस की गुणवता ग्रास सभा प्रमाणित कर दे।
आम लोग ही तब करेंगे कि उनके गांव की उन्नति के लिए योजना कैसी होनी चाहिए।
खूंटकटी ग्रामों की पहचान रखी जाए एवं 4 हजार गांवों को पूण्र खूंटकटी गांव का दरजा दिलाने के लिए संघर्ष होगा।
हाथियों से प्रभावित गांवों और खेती के नुकसान के सवाल पर गंभीरता से पहल किया जाएगा। 
आदिवासियों को वनवासी कहने का विरोध किया जाएगा। 
कमीशन और भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई की जाएगी।
यह चुनाव खूंटी के लोगों को ही लड़ना है ताकि वे खुद निर्णय करने के हकदार बनें। 
आइए राजनति बदलें और समाज बदलें
आइए कारपोरेट और राजनीतिक लूट को खत्म करें
आइए मिल कर हर नागरिक को सशक्त बनाएं
आइए कारपोरेट एजेंटों से राजनीति को मुक्त करें
आइए एक नए झारखंड लेकिन समुन्नत झारखंड के लिए एकजुट हों
आइए हम सब मिल कर अपने शहीदों के अरमानों को पूरा करने की दिशा  में कदम उठाएं, चुनाव को हम बदलाव के तुफान में बदल दें। 
मैं दयामनी बरला खूंटी की जनता के समक्ष घोषणा करती हुं कि मैं संविधान और बिरसा मुंडा को साक्षी मान कर घोषणा करती हुं कि आखिरी सांस तक इन मुददों पर संघर्ष में आप के साथ रहंुगी। 
लड़ेगें-जीतेंगें