Friday, June 19, 2020

सुबह -शाम हमारे भोजन के टेबल पर तरह तरह के भोजन सजे होते है, गेंहू की रोटी, बाजरे की रोटी, भात , दाल , सरसों सैग, पत्ते दर सब्जी , पत्ता गोभी की सब्जी, भेंडी की सब्जी , टमाटर की चटनी , प्याज़ सैग का पकौड़ा आदि आदि --कहते समय क्या हमने सोचा है, इस हाथों को

 जल , जंगल , जमीन  और जिंदगी ---यंहा कुछ आप देख रहे हैं , घर का आंगन है, घर मालकिन अपने आंगन में अपने घर के लिए साथ ही आप और मेरे लिए भी खाने के लिए चावल तैयार करने में ब्यस्त है. दो लकड़ी की चूल्हा में अलग अलग सामान तैयार कर रही है. एक में धन से चावल निकलने के लिए धान उबाल रही है. दूसरे में घर की रंगाई-पोताई के लिए करड़ा छल उबाल रही है. घर में शादी का प्रोग्राम है. घर की साफ -सफाई जरुरी है।  घर को छल से तैयार मेरून कलर से पोताई की जाएगी. मिट्टी का घर चमकने लगा।  दूर -दूर से आने वाले मेहमान रेंज-पुते घर के फर्श और दीवाल को निहारने लगेंगे।  मन मन बोलेंगे , कितना सुन्दर घर।  आज कल शहरी जीवन शैली के कारन लोगों को शुगर की बीमारी आम बात हो गयी है।  लोग अब चमकदार पुलिस किया चावल खाने से बचना चाहते हैं. शुगर मुक्त चावल तलाशते हैं. लोग बोलते है. पानी में पका कर पानी निकला गया , चावल खाने से शुगर नहीं बढ़ता है।  यह सून कई बार मैं सोचती ,ग्रामीण आदिवासी -मूलवासी सामुदाय तो उसना चावल ही हमेशा कहते हैं, इसलिए की खेत में शारीरिक श्रम करने वालों के लिए यह चावल देर तक शारीर को सपोर्ट करता है.है, इसलिए इसे ही खाना पसंद करते हैं. लेकिन या नहीं जानते थे की , उसना चावल डाइबिटीज़ के लिए उपयुक्त भोजन है. अब शहर वाले भी इसी चावल को पसंद करने लगे हैं.
 किसान के घर में पाने खेत का धान से चावल बनती महिला--हम सुबह -शाम जीवित रहने के लिए भोजन करते है , सुबह -शाम हमारे भोजन के टेबल पर तरह तरह के भोजन सजे होते है, गेंहू की रोटी, बाजरे की रोटी, भात , दाल , सरसों सैग, पत्ते दर सब्जी , पत्ता गोभी की सब्जी, भेंडी की सब्जी , टमाटर की चटनी , प्याज़ सैग का पकौड़ा आदि आदि --खाते समय क्या हमने सोचा है, इस हाथों को? जो हाथ हमारे लिए आनाज उपजाते हैं, शायद नहीं न.. . उस जंगल, जमीन , नदी -झील -झरनों को भी शायद ही हम आदर से याद करते हैं, जरुरत है इन्हे सम्मान देने की, इनको सुरक्छित रखने की, ताकि ये धरती हमारे आने वाले पीढ़ी याने जेनेरेशन को भी हमारी तरह तरह तरह का पौस्टिक भोजन , पानी दे सके।

 इस सिस्टम को जिन्दा रखना है, जो हमें स्वथ्य जिंदगी दे सके। . यह सिस्टम पुराणी है, लिकेन पिछड़ा सिस्टम का हिस्सा नहीं हैं , या सस्टेनेबल डेवलपमेंट का बेसिक आधार है।
       छाल , मट्टी और पत्थर से घर की दिवार को चिकना और रंगाई -पोताई करती आदिवासी लड़कियां।                       
 आप के घर की तरह कांक्रिटी का महल नहीं है, देखने में आप को अच्छा न लगे , लिखे हमारे लिए तो यह पूर्वजो का दिया महल है, इस घर में अददिंग ओड़ा है, इसके पीछे सरना-मासना, ससंदिरी  भी है। .इसी मिटटी में सना आदिवासी -मूलवासी ,किसानों का गौरवशैली इतिहास भी है.

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