Tuesday, June 16, 2020

-यह मट्टी , यह पेड़, यह चटान , यह पथल का टुकड़ा का जुड़ाव आदिवासी गांव के सामाजिक अस्थित्वा के साथ आत्मीय समबन्ध है. आज भी आदिवासी समुदाय कई सामाजिक मुद्दों पर सामूहिकता पर विश्वाश करता है। गांव के मुद्दों पर एक साथ बैठ कर बिचार विमर्श करता है. समूह में निर्णय लेते हैं. प्रकृति के साथ जुड़ा समुदाय बड़ा बड़ा निर्णय किसी ताम -झाम वाले मंच पर नहीं लेता , गांव के इसी मिटटी, चट्टान पर गांव सभा , अखड़ा में बैठ कर लेता है।

 मुंडा आदिवासी गांव ---यह मट्टी , यह पेड़, यह चटान , यह पथल का टुकड़ा का जुड़ाव आदिवासी गांव के सामाजिक अस्थित्वा के साथ आत्मीय समबन्ध है. आज भी आदिवासी समुदाय कई सामाजिक मुद्दों पर सामूहिकता पर विश्वाश करता है।  गांव के मुद्दों पर एक साथ बैठ कर बिचार विमर्श करता है. समूह में निर्णय लेते हैं. प्रकृति के साथ जुड़ा समुदाय बड़ा बड़ा निर्णय किसी ताम -झाम वाले मंच पर नहीं लेता , गांव के इसी मिटटी, चट्टान पर गांव सभा , अखड़ा में बैठ कर लेता है।  अखड़ा जंहा परब -तयोहार में नाच -गान भी करते हैं. सामान्य समय में सुबह -शाम गाँव के लोग बैठे -उठते हैं. खेत -टांड के काम से लौट कर यँही बैठ गैप-शाप कर थकन भी मिटाते  हैं। गांव का दुःख-सुख भी आपस में बांटते हैं.

यह बड़ा सा फैला हुवा चट्टान , जिसमे में गाढ़े हैं, आखिर ये क्या है, सायद आप को जिग्यसा हो रही होगी की ये क्या है...है। इस अखड़ा के बगल में ये बड़ा बिछा हुवा चट्टान , जिसमे कई गड्ढ़े बने हैं।  गांव की महिलाएं धान इसी चट्टान के गाढ़े में धान कूटती  और चावल निकलती हैं. पुरे गांव की महिलाएं बारी बारी से धान लेकर कूटने आती हैं। एक साथ तीन-चार महिलाएं साथ में कूटने आती है. धान कुटते गांव  घर के दुःख सुख पर चर्चा भी और काम भी. किसी को मनाही नहीं है. महिलाएं मिल कर इस जगह को साफ -सुथरा भी करती हैं.
हाँ अभी तो चावल निकलने का मिल सभी जगह बैठा दिया गया है. गांव वालों को इससे सुविधा भी हो गयी है।  फिर भी ये धान कूटने का काम एमरजेंसी में चलता ही है. लोग इसका उपयोग करते ही हैं. आदिवासी समाज के बिकास यात्रा का जीवंत पहचान भी है.

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