Wednesday, June 10, 2020

एैसे ही किसान पहले से लोन -कर्ज से दबे हुए हैं। सरकार को इस ओर ध्यान देना चाहिए, समय पर कमजोर किसान परिवार को बीज और खाद उपलब्ध कराना चाहिए, तभी किसान खेती कर पायेगें। यदि किसान खेती नहीं कर पायेगें, तो आने वाले समय में अथ्रिक संकट का सामना करना पड़ेगा।

भारत गांवों का देश  है। देश  की 80 फीसदी आबादी गांवों रहती है।  कोरोना महामारी ने ग्रामीण अर्थव्यवस्था को 15 साल पिछे ढाकेल दिया है। ग्रामीण अर्थव्यवस्था खेत-खलिहान, जंगल-झाड, नदी-नालों तथा पेड़-पौधों पर आधारित है। वर्ष के छह महिने खेती के पैदवार पर तथा बाकी छह माह जंगल, झाड़, और फलदार वृक्षों एवं पर्यावरण पर अर्थव्यवस्था टिका होता है। धान कटनी के बाद किसान खेतों में सब्जी  खेती करना शुरू कर देते हैं। राज्य के सभी ग्रामीण इलाकों में फरवरी माह तक हर तरह की सब्जी खेती तैयारी हो जाती है। लाॅकडाउन के कारण राज्य के लाखों किसानों के सब्जी की तैयार फसल ग्रहक नहीं मिलने के कारण करोड़ो की फसल बरबाद हो गयी। पाषुपालक, दुध उत्पादकों को भी करोड़ो का नुकसान उठाना पड़ा। मुर्गी फर्म चलाने वालों को भी भारी छति हुआ। फरवरी, मार्च और अप्रैल माल में वनोउत्पाद या मौसमी नगदी फसल इमली, महुंआ, कटहल, लीची, चार, केउंद, पुटकल साग, कोयनार साग, जीलहूर फूल, आम, पपीता, बेल आदि बहुत अधिक मात्रा में राज्य के सभी इलाकों से निकलता है। लेकिन लाॅकडाउन के कारण इन सभी उत्पादों को बाजार नहीं मिलने के कारण किसानों का अर्थिक स्थिाति कमजोर हो गयी है। लाॅकडाउन के बीच इमली, महुंआ, कटहल, पपीता के स्थानीय खरीददार किसी किसी गांव में पहुंचे और मनमाने कीमत देकर किसानों के मजबूरी का लाभ उठाया। 

                                                  धान रोपने की तयारी करते किसान -२०१९ 
                                                              कटहल --किसानों का नगदी फसल 
70 प्रतिषत किसान इन मौसमी नगदी उत्पाद बेच कर लाखों आय कमाते हैं। बच्चों के पढ़ाई के साथ अगले साले के कृषि कार्य में इसी धन राशि को निवेष करते हैं। खाद-बीज खरीदने, खेत तैयार करने से लेकर बीज लगाने तक इसी पैसो से किया जाता है। जहां पानी उपलब्ध है नदी-नालों में, किसान गरमा धान की खेती भी फरवरी -मार्च में करते हैं। लेकिन गरमा खेती पर भी लाॅकडाउन का प्रतिकूल असर रहा। बाजार बंद रहने के कारण किसान खाद-बीज का प्रबंध नहीं कर पाने के कारण खेती भी नहीं हो सका। मई-जून माह से धान की खेती शुरू करते हैं। मई-जून में गडहा दोन में धान बो दिया जाता है। जुलाई के प्ररंभ में गोड़ा, गोंदली, मडुआ सहित सभी चांवरा और टांड खेती प्ररंभ करते हैं। खूंटी जिला के कर्रा प्रखंड के किसान शिवशरण मिस्त्रा जी कहते हैं, लाॅकडाउन का सबसे बड़ा मार तो किसानों पर पड़ा है। किसान अपना उपज बेच नही पाने के कारण खेती करने के लिए खाद-बीज नहीं जुटा पा रहे हैं। जिनके पास थोड़ा बहुत पौसा है भी तो दुकान नहीं खुलने के कारण खाद-बीज समय से खरीद नहीं पा रहे हैं। इस कारण समय पर खेती नहीं करेगें, तो 2021 में भूखमरी का सामना करना पड़ेगा।   परिणामता 2021 में राज्य में खाद्यान की कमी होगी। 
किसान गर्मी के आगमन की तैयारी अपने तरह से करते हैं। गर्मी में किसान बड़े पौमाने पर तरबूज, खीरा, ककडी, कददू, प्याज आदि की खेती करते हैं। खूंटी जिला के कर्रा प्रखंड अतंर्गत सुवारी, कांटी, बाला आदि गांवों में बहुत अधिक मात्रा में नदी-नालों के किनारे खेती करते हैं। कोरकोटोली के बंधना तोपनो, बुधवा तोपनो, बिरसा तोपनो कहते हैं-जनवरी से जून महिना तक नदी के किनारे हर साल तरबूज, बोदी, निनवा, करेला, झिंगा, टमाटर, मुली, बीन, पालक साग, कदू, ककडी खेती करते हैं उसी बच्चों का षिक्षा, और खेती बारी के लिए पैसा एकत्र करते थे। लेकिन इस बार तो सारा सब्जी खेत में ही रह गया। गाय-बैल को खिलाये।  तोरपा पं्रखंड के रायसेमला, कनकलोया, सटाल, कुलडा, कोरकोटोली, सुंदारी आदि गांव के किसान बड़े पौमाने पर अपना उपज दूसरे जिलों  को सप्लाई करते हैं। लेकिन लाॅकडाउन ने किसानों को उपनी फसल मावेषियों को खिलाने को मजबूर किया। 

 जंगल --जंहा से ग्रामीण लाह , चार, महुवा , केन्दु , बीड़ी पता , डोरी , चिरौंजी , साल  आदि बनोपज एकत्र करते हैं 
इमली -हर गाव में सैकड़ों पेड़ है --जंहा से प्रति वर्ष लाखों रुपये का इमली निकलता है 

 लोहरदगा जिले में लगभग 400 एकड़ जमीन पर गन्ने की खेती होती है। किसान कर्ज लेकर गन्ने की खेती किये अब बाजार नहीं रहने से खेत में ही फसल सूख गये, मजबूर किसानों को फसलों को खेत में ही जलाना पड़ा। हजारीबाग, गामगढ़, ब्रंबे व पलामू समेत राज्य के विभिन्न हिस्सों में लाॅकडाउन ने किसानों की कमर तोड़ दी है। उपर से मौसम की मार, अलग पड़ रही है। मखमुदरों, ब्रांबे और बीजुपाड़ा, हुटार में खरीदार नहीं मिल रहे हैं। चान्हो  गांव के किसान दर्द बयां किया, कहते हैं-कोरोना वासरस और लाॅकडाउन ने जिंदगी तबाह कर दी। इस सीजन में साढ़े चार लाख रूपये खर्च कर खेती की, लेकिन हाथ आये सिर्फ 28000 रूपये । कर्ज लेकर किसानों ने खेती किया था, लाॅकडाउन ने उन्हें कर्जदार बना दिया। 
सिल्ली के नीचे टोला, ब्राहमणडीह, जोबला व छाताटांड इलाके के किसान सब्जियों को खेतो में ही छोड़ दिया। लाॅकडाउन के पहले किसानों को ओलावृष्टि से  नुकसान हुआ। अब लाॅकडाउन के चलते व्यापारी नहीं आने सेे सब्जियां खेतों मे ही पड़ी रह गयी। 
स्थानीय बाजार में इतनी खपत नही हो सकती, कदु व नेनुआ सकहत अन्य सब्जियां खेतों में ही सड़ गया। मिर्च तो सूख गया। खेत में भिंड़ी, लौकी, मिर्चा, नेनुवा, करैला व कीवा आदि तैयार हैं, लेकिन इन्हें मंडी तक भी पहंचा नहीं सकते। किसानों ने कहा कि इलाके में एकमात्र कोल्ड स्टोर कृषि विभाग द्वारा बन कर तैयार है, लेकिन इसे अबतक चालू नहीं किया गया है। अगर कोल्ड स्टोर चालू रहता तो किसानों का राहत मिल सकती थी। 
लाॅकडाउन से बुडमू प्रखंड के दूध विकें्रताओं को भारी परेषानी का सामना करना पड़ा। होटलों के बंद हो जाने के कारण मेघा डेयरी ने खपत घटने से 27 मार्च से यहां के किसानों से दूध लेना बंद कर दिया।  दुध मित्र सदस्यों के अनुसार बुडमू प्रखंड में कोटारी, कंडेर, बंड़बारी व बरौदी में दुग्ध षीतक केंन्द्र है। 
कोटारी, मुरूवे, साड़म, मुरवे, मुर्गी, आरा, बुढतू, पिरागुटू, मतवे, मक्का, सोसई, उमेडंडा, लावागड़ा, गुरूगाई, मनातु,, सालाहन सहित अन्य गांवों के एमपीपी केंन्द्र में किसानों द्वारा, रोजाना जमा किये गये लगभग पांच हजार लीटर दूध को लाकर ठंडा किया जाता था। जिसे मेघा डेयरी की गाड़ी ले जाती थी। लेकिन 27 मार्च से दुध का उठाव बंद हो गया। लाॅकडाउन के कारण दर्रा, खल्ली व कुटी की दुकान बंद होने से 24 मार्च से पषुओं के लिए दर्रा खल्ली व कुटी भी मिलना बंद था। किसान इस संबंध में प्रखंड पषुपालन पदाधिकारी से मांग किये कि दूध उत्पादकों की समस्या के समाधान किया जाए।  

                                       मुरहू बाजार में --महुवा और इमली खरीद कर रखा है खरीददार 
                   मुरहू बाजार में ग्रामीण महिलाएं अपना उपज-केला, कुटुम्बा आदि बाजार में बेचते 
दुग्ध की खरीद बंद रहने से चान्हो व मांडर प्रखंड में दुग्ध उत्पादन से जुड़े 2500 से अधिक किसानों की आर्थिक स्थिति गडबडा गयी है। जनकारी के अनुसार चान्हो व मांडर प्रखंड में प्रतिदिन 20 से 25 हजार लीटर दूध का उत्पादन होता है। जिसे बोरेया, लेपसर, बीजूपाड़ा, कैमबो, हुरहुरी , पतरातू, ओपा, कारगे, बरगड़ी, मजुआजाड़ी, झिझरी सहित अन्य गांव में बने 14 दुग्ध षीतक सह ग्रहण कें्रनद्र के माध्यम से झारखंड मिल्क फेडरेषन दुग्ध उतपादकों से खरीदने का कार्य करती है। बताया जा रहा है कि फेडरेषन द्वारा 27 मार्च से तीन दिन तक किसानों से दूध नहीं खरीदने की घोषणा के बाद दोनों प्रखंड के तमाम दुग्ध षीतक केंन्द्रों को बंद कर दिया गया है, जिस कारण वैसे किसान जिनके यहां अधिक मात्रा में दुध का उत्पादन होता है, वे भारी परेषानी में रहे। किसानों का कहना है कि गांव में 10 रूपये लीटर भी कोई दूध खरीदने को तैयार नहीं है। 
इटकी क्षेत्र से प्रतिदिन 10-15 टन फ्रेजबीन बिक्री के लिए हाट-बाजार आ रही है, परंतु लाॅकडाउन के कारण बिक्री नहीं हो पा रही है। मालवाहक बाहनों के बंद रहने व सरकार द्वारा सब्जियों को अन्य़त्र भेजे जाने के संबंध में सरकार स्पष्ट नीति तय नहीं हाने के कारण किसान अपनी फसल बाहर भे नहीं पा रहे हैं।  छोटे व फुटकर व्यापारी ही औन-पौने दाम पर आवष्यकतानुसार खरीद रहे हैं। वहीं बिक्री के अभाव में फूलगोभी, पतागोभी व मटर सेमी किसान खेतों में ही छोड़ दे रहे हैं। 
ग्रामीण इलाकों के पषुपालकों के साथ-साथ षहरी इलाकों के खटाल वालों के समक्ष संकट की घड़ी आ गयी है। कांके, टाटीसिलवे, रातू रोड़, नामकुम, चुटिया आदि में जानवरों के खाने के सामान का कारोबार करने वालों के यहां पषुपालकों की भीड़ लगी रही।  पांच रूपये प्रति किलो मिलने वाले कुटी के लिए 18-20 रू0 किलो तक वसूले गये। इसमें भी राषनिंग की जा रही थी। इसी तरह आम तौर पर 22 से 25 रू0 किलो मिलने वाला चोकर 40 रू0 में बेचा गया। 
दुध उत्पादकों के अनुसार प्रतिदिन करीब 35 हजार लीटर दूध की मांग हो रही थी, जबकि उत्पादन क्षमता 1.35 लाख लीटर प्रतिदिन है। लेकिन खरीददार नहीं रहे। 

रांची षहर की आबादी 1073,872 है को ग्रामीण इलाके के किसान सब्जी पूरा करते हैं। इस षहरी आबादी में जहां रोजाना करोड़ो का सब्जी खपत होता था।  लाॅकडाउन में कारोबार पूरी तरह ठप रहा। डेली मार्केट सब्जी, हरमू फल, सब्जी मंडी, लालपूर, बहुबाजार, डोरांडा, चुटिया, मोरहबादी, रातू रोड़, नागाबाबा खटाल सब्जी बाजार, सतरंजी, नामकोम, हटिया, ध्रुवा आदि षहरी फल, सब्जी बाजार को बेड़ो, नगड़ी, मांडर, इटकी, तोरपा, सिमडेगा, बानो, कर्रा, खूंटी, तमाड, बुडु, नामकोम, अनगड़ा, कांके आदि इलाकों के किसान लाखों टन अपनी उपज उपलब्ध कराते हैं। लाॅकडाउन में सभी इलाके का बाजार ढप रहने से ग्रामीण अर्थव्यस्था चरमरा गया।  लाॅकडाउन में यहां 50 हजार का भी कारोबार नहीं हो सका।  हरमू फल मंडी से ग्राहक और व्यापारी नदारद है। थोक विक्रेता बताते हैं कि सामान्य दिनों में मंडी में लगभग 40 लाख रूपये का कारोबार होता था, मौजूदा समय में 50,000 रूपये का भी फल बेचना मुष्किल हो रहा है। लाॅकडाउन के कारण दूसरे जिलों के व्यापारी बाजार में नहीं पहुंच पा रहे हैं। छिटपुट विके्रता ही फल ले जाकर बाजारों में बेच रहे हैं। वहीं, राजधानी में सब्जियों की आवक भी नहीं सुधर रही है। मांग होने के बावजूद बाजार में प्रर्याप्त सब्जियां नहीं लाना चाह रहे हैं, इनका कहना है कि जब तब आवागमन में सहूलियत नहीं होगी, तब तक यही स्थिति रहेगी। 
लाॅकडाउन में खरीददार नहीं रहने के कारण फल विक्रेताओं को बाजार में लाया फलों को वापस कोल्ड स्टोरेज भेजना पड़ा। हरमू फल मंडी आदि सामान्य दिन 20-25 दुकानें लगती है, वहां सिर्फ 2-3 दुकाने ही लगती थी। यह स्थिति पहली लाॅकडाउन में रही। दूसरी लाॅकडाउन में भी किसानों की स्थिति वैसी ही रही। तीसरी लाॅकडाउन के बाद किसानों को थोड़ी राहत मिली। उसमें भी वो कीमत नहीं मिला जो, उन्हें मिलना चाहिए था। 
सिमडेगा जिला, खूंटी जिला, गुमला जिला और रांची जिला के ग्रामीण किसानों ने बताया महुआ का कीमत 30-40 रू0 किलो बिकता था, लेकिन लाॅकडाउन के कारण महुआ 10-12 रू किलो बिका। इसी तरह इमली और समय 30-50 रू किलो बिकता था, लाॅकडाउन में कुछ के्रता गांव आकर मनमना कीमत देकर माल बटोर लिये। तुरतन तोपनो, राजू लोहरा-कमडारा गुमला, सलमोन बरला-भूण्डूपानी सिमडेगा, बासिल तोपनो-मरचा खूुटी, बिरतुस, फुलचंद मुंण्डा, बुधराम बोदरा, सनिका मुंडा कहते हैं-लाॅकडाउन ने सबसे ज्यादा किसान और मेहनत मजदूरी करने वाले सामूदाय को प्रभावित किया है। इससे बाहर निकलने में समाज को दो साल लगेगा। इन्होंने बताया किसानों ने कर्ज लेकर खेती किया था, सब डूब गया। एैसे ही किसान पहले से लोन -कर्ज  से दबे हुए हैं। सरकार को इस ओर ध्यान देना चाहिए, समय पर कमजोर किसान परिवार को बीज और खाद उपलब्ध कराना चाहिए, तभी किसान खेती कर पायेगें। यदि किसान खेती नहीं कर पायेगें, तो आने वाले समय में अथ्रिक संकट का सामना करना पड़ेगा। 


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