लव-लश्कर, ताम-झाम का जीवन जीने के लिए धनसंग्राह के लिए आज के राजनीतिक, लूट-झूठ, गुंडा-गर्दी, गबन-भ्रष्टाचार जैसे गैर-कानूनी और घृणित कार्या को आज के नेता अपना राजनीतिक क्षमता का मापदंड बना लिये हैं। कम से कम समय मे पूरे जीवन भर के लिए धन कमाने को ही आज के अवसरवादी तथा स्वार्थीपरस्तराजनीतिकों ने अपना लक्ष्य मान लिया है। दो-तीन साल के विधायक काल में करोड़ों का बंगला, मोटर-कार, जमीन-जयदाद बनाना ही एक मात्र लक्ष्य होता है। इसके लिए वह अपना इमान-मानवता, इजात, समाज और राज्य को भी झोंक दे रहे हैं। जिन्हें अपने माटी, समाज की अस्तित्व का सौदा करोड़ों में करने में कोई हिचक नही है। इसके विपरित झारखंड की राजनीति में एक स्वाच्छ राजनीतिक अदार्श-सिद्वातं के जीवंत मिशाल हैं-श्री निरल एनेम होरो। जिनका राजनीतिक अदार्श और सिद्वातं झारखंड को भ्रष्टाचार मुत्क बनाने के साथ झारखंड को स्वास्थ राजनीतिक दिशा दे सकता है।
झारखंड के भीष्मपितामाह श्री निरल एनेम होरो कहते थे -आज की राजनीति में जितना लूट रहा है, गाड़ी खरीद रहा है, बंगला बना रहा है-वही आज की राजनीति है। कहते थे -आज के नेता सिर्फ खाउ लोग हैं-लूटने वाले है, इसी को लोग अपना नेता मानते हैं, हां नेता ही नहीं-अच्छा नेता मानते हैं। श्री होरो के राजनीतिक जीवन को नजदीक से देखने पर कई शिक्षाएं मिलती हैं-जो आज सही मायने में समाज नवनिर्माण की बात करते हैं, उन्हें इसे समझने की जरूरत है। इनकी अपने पार्टी के सिद्वांत के प्रति प्रतिब्द्वता, इमानदारी, लूट-झूठ और भ्रष्टाचार की गंदगी से दूर रहने के कई मिशाल उनके जीवन शैली से झलकता है। इन्होंने अपनी राजनीतिक जीवन की शुरूआत जीईएल चर्च कम्पांउड के जिस खरैला कच्चा कमान से शुरू किये थे-आज भी उनका अशियाना वही है। बिदित हो की .इन्होंने अंतिम सवांस भी यंहीली. किराये के इस मकान के बरामदानुमा जिस कार्यालय से इन्होंने सामाजिक-राजनीतिक गतिविधि शुरू किये थे- आज भी वह उसी रूप में है। इन्होंने स्वार्थ और अवसरपरस्ती को अपने राजनीतिक जीवन के करीब भटने के अवसर नहीं दिया।
झारखंड आंदोलन जल-जंगल-जमीन के साथ आदिवासी-मूलवासियों के भाषा-सास्कृति-सामाजिक अस्तित्व की रक्षा के संकल्प की उपज थी। सिद्वू-कान्हू का हूल और बिरसा मुंडा का उलगुलान इसी की पहली कड़ी था, जिसका विस्तार आदिवासी महासभा से लेकर झारखंड अलग राज्य का आंदोलन तक हुआ। 1963 में जब झारखंड पार्टी का विलय जयपाल सिंह ने कांग्रेस में किया, इस विलय का विरोध भी हुआ। विलय के बाद नये सिरे से झारखंड पार्टी का पुर्नगठन किया और इसका झंडा निरल ऐनेम ने थाम लिया और आज तक थामे रहे।
रांची जिला के गोविन्दपुर में 31 मार्च 1925 को पिता अब्राहम और मां सुलामित के गोद में निरल का जन्म हुआ था। स्कूली शिक्षा ग्रामीण क्षेत्र में ही हुआ। पिता और मां दोनों टकरमा स्कूल में शिक्षक थे। काॅलेज की पढ़ाई संत कोलंबस कालेज हजारीबाग से की। बीएड भी यहीं से किये। लो की पढ़ाई छोटानागपुर ला कालेज रांची से की। 1948-49 में इन्होंने रांची के गोस्सनर हाईस्कूल में टीचर का काम किये। इस दौरान चर्च के कई कामों में सक्रिया रहे। 1949-53 में बिहार सरकार के काॅ-अपरेटिव सोसाईटी के इंस्पेक्टर भी रहे। 1953-60 तक गोस्सनर लूथेरन चर्च छोटानागपुर-असाम के सचिव के रूप में काम किये। 1960-67 तक श्री होरो ने गोस्सनर एवेंजेलिकल लूथेरन चर्च में सुप्रिटेनडेंट सेंट्रल व्यूरो के रूप में भी सेवा किये। इन्होंने मुंडारी भाषा-सांस्कृति को भी बढ़ावा देने का काम किये। इन्होंने मुडंारी में मासिक पत्रिका ”जगर साड़ा“ का संपादन किये। झारखंड के सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक समाचार आम लागों तक पहुंचाने के लिए झारखंड टाईम्स समाचार पत्र निकालने का भी काम किये। 1968 में बिहार सरकार में योजना और जनसंपर्क विभाग के मंत्री रहे।
झारखंड पार्टी हमेशा वृहत झारखंड राज्य की मांग करता रहा। वृहत झारखंड के रूप में छोटानागपुर संतालपरगना क्षेत्र के साथ तीन राज्यों उडीसा, मध्यप्रदेश और पच्शिम बंगाल के आदिवासी बहुत क्षेत्रों को मिलाकर, जिसमें पच्शिम बंगाल के पुरूलिया, बांकुडा+ और मिदनीपुर, उडीसा के मयुरभंज, क्योंझार, सुन्दगढ़ और सम्बलपुर, मध्यप्रदेश के सुरगुजा और रायगढ़ को शामिल किया गया था। श्री होरो वृहत झारखंड राज्य की मांग पर हमेशा अड़े रहे। श्री होरो का अपने पार्टी के सिद्वांत के प्रति कटिब्द्वता का प्रमाण उनके राजनीतिक जीवन के प्रथम चुनाव परिणाम भी सिद्व करता है। 1963 में झारखंड पार्टी का विलय कांग्रेस में किया गया, तब जयपाल सिंह के साथ सुशील कुमार बागे भी शामिल हो गये थे। 1967 के बिहार विधान सभा चुनाव में झारखंड पार्टी के नीति घोषणा पर श्री निरल जी कोलेबिरा विधान सभा चुनाव लडे और सुशील कुमार बागे को भारी मतो से पराजित किये, जबकि यह सुशील कुमार बागे का घरेलू विधान सभा क्षे+त्र था। श्री होरो कहते हैं-झारखंड का मतलब सिर्फ आदिवासी हित का बात नहीं है, पूरे क्षेत्र के शोषित-पीडि़तो के हक-अधिकार का सवाल है। इसी लिए तो जब हमने इंदिरा गांधी से मिले थे-तब आदिवासी और पिछड़े वर्ग के समस्याओं का जिक्र करते हुए अलग राज्य के गठन की मांग किये थे। झारखंड अलग राज्य के मांग को श्री एनई होरो सदा बुलंदी से उठाते रहे। इनके अगुवाई मेंआन्दोलनकारियों ने सरकार को चेतैनी दिये थे कि-यदि 15 अगस्त 1978 तक अलग राज्य की स्थापना नहीं कि गयी, तो सीधी कार्र कार्रवाई की जाएगी।
1970 में जयपाल सिंह की निधन हुई। इनके निधन के बाद खूंटी लोक सभा सीट खाली हुआ। इसकी पूर्ति के लिए उपचुनाव होना था। इस उपचुनाव में भी श्री होरो झारखंड अस्तित्व का झांडा ढ़ोये चुनावी मैदान में उतरा। आम लोगों में अपने राज्य-अस्मिता की पड़प तो थी ही, आम जनता ने अपना जनादेश श्री होरो के पक्ष में देकर साबित किया कि झारखंडी जनता के असली प्रतिनिधि यहीं कर सकते हैं। स्व. जयपाल सिंह के खाली स्थान कीपूर्ति श्री होरो की जीत ने की, तब लोगों ने इसे ”मरंग गोमके“ से संबोधित किये 1970 के उपचुनाव के बाद 1971 के मध्यवधि लोकसभा चुनाव में भी खूंटी सीट पर जनता ने दूबारा होरो साहब को अपना प्रतिनिधि चुना। 1980 में तीसरा बार खूंटी लोक सभा सीट का प्रतिनिधित्व किये। खूंटी संसादीय क्षेत्र के तोरपा विधान सभा क्षेत्र जो झारखंड पार्टी का गढ माना जाता रहा है। इस सीट से श्री होरो 1969, 1977, 1985, 1990 और 1995 तक लगातार विधान सभा में प्रतिनिधित्व देते रहे। 2000 के विधानसभा चुनाव में पहली बार झारखंड पार्टी के इस गढ़ में भाजपा ने सेंधमारी करके अपना कब्जा जमा लिया।
सत्ता की राजनीति में सभी नेताएं अवसर के साथ अपनी राजनीतिक स्टैंड बदलते रहे। झारंखड अलग राज्य के नाम पर राजनीति करने वाले झारखंड आंदोलन में भी कई टुट-फूट के बाद कई झारखंड नामधारी पार्टियों का उदय हुआ। जिसमें अखिल भारतीय झारखंड पार्टी-जिसके नेता बगुन सुमराई थे। दूसरा हूल झारखंड पार्टी-जिसका नेता सेत हेम्ब्रोम थे। और तीसरा झारखंड पार्टी-जिसका नेता श्री निरल ऐनेम होरो थे। जब-जब नेताओं को कुर्सी और सत्ता सुख आर्कषित किया, जनता के सवालों-समस्याओं का हल सत्ता के साथ मिल कर ही किया जा सकता है-यह दलील देते हुए सत्ता सुख-भोग में डूब जाते हैं। इसे अपने को कोई झारखंडी नेता नहीं बचा पाया। यही कारण है कि सभी झारखंडी नेताएं जीवन में कपड़ें की तरह पार्टी बहते रहे। लेकिन झारखंड आंदोलन के पोरोधा श्री एनई होरो ने इस मानसिकता को अपने जीवन के करीब कभी फटकने तब नहीं दिया। झारखंड पार्टी का विलय भी कांग्रेस में इसी तर्क के साथ किया गया था कि- सत्ता के साथ रह कर ही झारखंड अलग राज्य हासिल किया जा सकता है। लेकिन वास्वविकता इन नेताओं के तर्क के विपरित था। दूसरी ओर श्री होरो एवं उनके साथियों को आम जनता की एकता-उनकी आकांक्षाओं से उभरी जनसंर्घष पर भरोसा था।
1963 के विलय के बाद, कोलेबिरा विधानसभा सीट से 1967 में चुनाव जीत कर झारखंड पार्टी के नीति-सिद्वांत और झारखंडी जजबातों से लैस राजनीति की नींव डाली थी। इसी विधानसभा सीट से 2004 के विधान सभा चुनाव में झारखंड पार्टी के टिकट से चुनाव जीतने वाले उम्मीदवार श्री एनोस एक्का ने अर्जुन मुंडा के नेतृत्व में बनने वाले एनडीए सरकार में शामिल होने को लेकर श्री होरो सहमत नहीं थे। इसको लेकर होरो साहब को अरोप-प्रत्यारोपों को झेलना पड़ा। आठ दिनों तक चले इस जंग में श्री होरो अपने पुराने सिद्वातों पर ही अड़े रहे, कि वह राज्य में साप्रादायिक सरकार को समार्थन नहीं देगें। जब निर्दलीय उम्मीदवारों को एनडीए सरकार को समार्थन देने के लिए-उन लोगों को जयपुर-राजस्थान घुमाया जा रहा था, तब श्री होरो का घर उनके समार्थकों का विचार विमार्श का केंन्द्र बना हुआ था। देखते-ही देखते उनके कई समार्थक विधायक के साथ एनडीए सरकार के साथ चले गये। इस समय भी नेताओं ने तर्क दिया कि-इतना दिन के बाद हम फिर एक सीट जीत पाये है, तब हमें विकास का काम करने के लिए, जनता का सेवा करने के लिए सत्ता के साथ जाना ही होगा। इस तर्क ने भी वयोवृद्व श्री होरो को हिला नहीं सका, और वह आज भी झारखंड पार्टी का केंन्द्रीय अध्क्षय के रूप में अपने उसुलों में कामय है। यह सर्वविदित है कि एनडीए को समार्थन को लेकर एनोस एक्का, श्री होरो के पार्टाै से अलग होकर अपना गुट बना लिए हैं, जो अपने को असली और दूसरे को नकली बताने में पीछे नहीं है। राजनीतिक उठा-पटक के इस खेल में श्री एनई होरो फिर एक बार समाज और राज्य हित में अपना निर्णय लेकर राज्य में यूपीए की सरकार बनाने में अहम भूमिका निभायी, लेकिन सत्ता सुख से अब भी दूर हैं।
अपने घर के बरमदे में बैठे श्री होरो अधिकांश समय पेपर पढ़ने में बिताते थे । वह अभी करीब डेढ़ माह से अस्वास्थ्य रहे । आप इतने लंम्बे समय तक संसद और विधायक रहे-आप अपने परिवार के लिए कितना जमीन रखीदे- इस पर श्री होरो मुस्कुराते हुए कहते हैं-हां तो तुम मेरा सब कुछ जानना चाहती हो-आगे कहते हैं-गोविन्दपुर में अपने पत्नी के नाम पर एक एकड़ खरीदे हैं और 10-15 डिसमिल हेसाग में लिये हैं। आपने मकान बनाये हैं-इस सवाल पर श्री होरो जी अपने पुराने खपरैला मकान की ओर इसारा करके कहते हैं-इतना बड़ा बंगला है, और क्या करेगें। इन्होनें बताया कि पूरे विधायक काल में इन्होंने एक फियेट कार खरीदा था, जब फियेट बैठ गया तब एक सेकेन्ड हेन्ड एम्बेसेडर खरीदे हैं। जिसे आज भी वे क्षेत्र का दौरा करते हैं। आज जो मंत्री बन रहे हैं-तीन-चार गाड़ी रखते हैं, आप तो एक ही गाड़ी से काम चलाते रहे-इसके जावब में श्री होरो कहते हैं-ई गाड़ी क्या है, पूरा राज-पाट तो लूटा गया। होरो साहब कुछ सोचने में लीन हो जाते हैं-फिर कहते हैं लोग इतनी जल्दी बदलेंगे पैसा के पीछ हमको विश्वास ही नहीं था, कहते हैं सब बदल गये। आप को तो कई आॅफर आया होगा-इस पर होरो सहाब कहते हैं- आफर तो इंदिरा गांधी भी दी थी-बोली कुछ लेना-देना कर लो-क्या करोगे झारखंड को, मैंने कहा-नहीं, एनई होरो के दरबार में कोई लेना-देना नहीं होगा। आगे कहते हैं-आफर तो कई लोग लेकर आये थे, ललित बाबू भी आफर लेकर आया था, कहते हैं-जब मैं प्रेसीडेन्ट के लिए लड़ रहा था, तब भी आफर मिला था-जो चाहोगे-देगें, हमने कहा-एैसा नहीं होगा। होरो साहब कहते हैं- नेता सोचते हैं, राजनीति हमारा अपना है, लेकिन ऐसा नहीं है- राजनीति जनता का कमाई होेता है, जनता का त्याग-तपस्या और संघर्ष का परिणाम होता है। कहते हैं-आज नेता दूसरों के पैसा से चूनाव लड़+ते है।
आज के भ्रष्ट राजनीतिक लूट-खसोट की परंपरा, से आम जनता पीडि़त है-एैसे समय में आप जनता को क्या संदेश देना चाहते हैं-इस पर श्री होरो कहते हैं-कुछ नहीं कहना चाहेगें, जनता को स्वयं वार्कआट करना होगा, राजनीति खिलाने-पिलाने का चीज नहीे है, इसके लिए खुद मेहनत करना होगा, जनता को खुद मेहनत करके उर्जा तेैयार करना होगा-यही असल राजनीति है। आज नेता लोग दूसरों का हक-कमाई लूट कर बांट रहे हैं। एनई होरो झारखंड की माटी के साथ इस माटी की रक्षा के लिए हुए शहीदो के प्रति भी अटूट श्रद्वा रखते हैं। झारखंड पार्टी के इतिहास में 2 मार्च का अपना महत्व है, इसी दिन 1946 को तपकरा बाजार टांड के पास झारखंड पार्टी के समार्थकों को गोली से भून दिया गया था। जहां लोगों की मौत हुई थी। इसके बाद से हर साल 2 मार्च का झारखंड पार्टी इस शहीद स्थल पर श्राधंजलि सभा आयोजित करते आयी है। हर साल श्री होरो साहब इन शहीदो श्रधासुमन चढ़ाने आते हैं। जबकि 2006 के 2 मार्च को वे तपकारा न जाकर खूंटी शहीदों के कब्र में श्रधंजलि चढ़ाये। आप क्यों इस साल तपकारा शाहीद स्थल नहीं गये-पूछने पर श्री होरो कहते हैं-इसलिए कि जिस एनडीए सरकार ने कोयलकारो जनसंगठन के आंदोलनकारियों को गांलियों को छलनी किया, उसी सरकार का मंत्री शाहीदों को श्राधंजलि देने आने वाला था, जो झारखंड के शाहीदों का मात्र अपमान ही था, इसी लिए मैं वहां नहीं गया।
आप के पार्टी का मूख्य ऐजेन्डा क्या है-इसके जवाब में श्री होरो कहते हैं-बिरसा मुंडा ने जल-जंगल-जमीन के साथ भाषा-सांस्कृति की रक्षा के लिए लड़ाई लड़ा था-यही हमारे पार्टी का भी ऐजेन्डा है। विदित हो कि तोरपा विधानसभा क्षेत्र से होकर कारो नदी बहती है। इसी नदी पर लोहाजिमि के पास बांध बना कर सरकार बिजली पैदा करने की योजना बनायी थी। इस परियोजना के तहत सिसाई विधान सभी क्षेत्र से बहने वाली कोयल नदी पर बसिया प्रखंड के तेतरा गांव के पास बांध बनाने की योजना थी। इसे 710 मेगावाट बिजली उत्पन्न करने की योजना थी। इस परियोजना के बनने से दो लाख क्षेत्रिय जनता विस्थापित होती। श्री एनई होरो अपने पार्टी स्तर पर हमेशा इस विस्थापनमूलक परियोजना का विरोध करते रहे। यही नहीं कोयलकारो जनसगंठन के संधर्ष को पार्टी से उपर उठकर भी समार्थन देते रहे। जब 5 जुलाई 1995 को तत्कालीन राव सरकार और लालू सरकार कोयलकारो परियाजना का सिलान्याश का घोषणा किये थे, तब 21 जून को दियांकेल मैंदान में परियोजना के विरोध आम सभा का आयेजन किया गया था। इस सभा में श्री होरो बोल रहे थे-यदि आप लोग सबकोइ्र्र 99 प्रतिशत लोग परियोजना का समार्थन करेगें, फिर भी मैं एक प्रतिशत होकर अकेले भी इस परियोजना का विरोध करूंगा। श्री होरो के विस्थापन के खिलाफ संघर्ष का उल्लेख बरिष्ट पत्रकार श्री बलवीर दत ने भी अपनी पुस्तक में किया है-कि वह संसद रहते हुए भी स्वर्ण रेखा परियोजना का विरोध किया था।
झारखंड के भीष्मपितामाह स्व. निरल ऐनेम होरो को क्या हम सच्ची श्राद्वांंजलि दे सकते हैं। धन -बंगला-गाड़ी के लोभ से दूर, लव-लश्कर, ताम-झाम के जीवन से परहेज कर, समझौताविहीन सादा जीवन के साथ स्वाच्छ राजनीतिक जीवन जी कर झारखंड की राजनीति को भ्रष्टाचार मुत्क राजनीतिक दिशा देने का काम किये थे। जल-जंगल-जमीन, भाषा-सांस्कृति की रक्षा तथा इसको विकसित करना ही इनका राजनीतिक एजेंडा था। इनके बताये रास्ते एवं इनके अदार्श को क्या हम अपने जीवन में स्थान दे सकते हैं। यदि हां -तभी हम अपने दिगवंत नेता को सच्ची श्राद्वांजलि दे पाएयेगें। जी ई एल चर्च स्थित किराये के जिस खपरैल मकान स्व. होरो ने अपनी सामाजिक-राजनीतिक यात्रा शुरू की थी, इसी मकान में रहते हुए राजनीतिक यात्रा के साथ जिंदगी की अंतिम यात्रा भी पूरी की। इन्होंने अपने नीति-सिद्वांत के साथ कभी समझौता नहीं किया।
जीने के लिए धनसंग्राह के लिए आज के राजनीतिक, लूट-झूठ, गुंडा-गर्दी, गबन-भ्रष्टाचार जैसे गैर-कानूनी और घृणित कार्याें को आज के नेता अपना राजनीतिक क्षमता का मापदंड बना लिये हैं। कम से कम समय मेें पूरे जीवन भर के लिए धन कमाने को ही आज के अवसरवादी तथा स्वार्थीपरस्त राजनीतिाकंोें ने अपना लक्ष्य मान लिया है। दो-तीन साल के विधायक काल में करोड़ों का बंगला, मोटर-कार, जमीन-जयदाद बनाना ही एक मात्र लक्ष्य होता है। इसके लिए वह अपना इमान-मानवता, इजात, समाज और राज्य को भी झोंक दे रहे हैं। जिन्हें अपने माटी, समाज की अस्तित्व का सौदा करोड़ों में करने में कोई हिचक नही है। इसके विपरित झारखंड की राजनीति में एक स्वाच्छ राजनीतिक अदार्श-सिद्वातं के जीवंत मिशाल थे-श्री निरल एनेम होरो। जिनका राजनीतिक अदार्श और सिद्वातं झारखंड को भ्रष्टाचार मुत्क बनाने के साथ झारखंड को स्वास्थ राजनीतिक दिशा देने का प्रयास किया।
मैं कई बार स्व. होरो साहब के साथ बैठकक कर उनके कई चीजों को समझने का कोशिश की थी। इस दोरान जो मैने कई सवाल किया था-जिनका जवाब पूरे के लिए एक मार्गदशक है जिससे मैं इनके संस्मरण आप के सामने रखना चाहती हुं। झारखंड के भीष्मपितामाह स्व. निरल एनेम होरो कहत थे, आज की राजनीति में जितना लूट रहा है, गाड़ी खरीद रहा है, बंगला बना रहा है-वही आज की राजनीति है। कहते थे-आज के नेता सिर्फ खाउ लोग हैं-लूटने वाले है, इसी को लोग अपना नेता मानते हैं, हां नेता ही नहीं-अच्छा नेता मानते हैं। श्री होरो के राजनीतिक जीवन को नजदीक से देखने पर कई शिक्षाएं मिलती हैं-जो आज सही मायने में समाज नवनिर्माण की बात करते हैं, उन्हें इसे समझने की जरूरत है। इनकी अपने पार्टी के सिद्वांत के प्रति प्रतिब्द्वता, इमानदारी, लूट-झूठ और भ्रष्टाचार की गंदगी से दूर रहने के कई मिशाल उनके जीवन शैली से झलकता है। इन्होंने स्वार्थ और अवसरपरस्ती को अपने राजनीतिक जीवन के करीब भटने के अवसर नहीं दिया।
झारखंड आंदोलन जल-जंगल-जमीन के साथ आदिवासी-मूलवासियों के भाषा-सास्कृति-सामाजिक अस्तित्व की रक्षा के संकल्प की उपज थी। सिद्वू-कान्हू का हूल और बिरसा मुंडा का उलगुलान इसी की पहली कड़ी था, जिसका विस्तार आदिवासी महासभा से लेकर झारखंड अलग राज्य का आंदोलन तक हुआ। राजनीतिक हस्तक्षेप के लिए झारखंड पार्दी को जन्म दिया। 1952 के पहले चुनाव में झारखंड पार्टी से 32 विधायक जीते। 1963 में जब झारखंड पार्टी का विलय जयपाल सिंह ने कांग्रेस में किया, इस विलय का विरोध श्री होरो ने भी किया था। विलय के बाद नये सिरे से झारखंड पार्टी का पुर्नगठन किया और इसका झंडा निरल ऐनेम ने थाम लिया और आज तक थामे रहे। स्व. होरो कहते थे-पार्टी का विस्तार के लिए गांव मे पार्टी के साथियों को वैसे किसानों के खेतों में काम करने के लिए कहते थे, जिनके घरों में कम लोग होते थे।
रांची जिला के गोविन्दपुर में 31 मार्च 1925 को पिता अब्राहम और मां सुलामित के गोद में निरल का जन्म हुआ था। स्कूली शिक्षा ग्रामीण क्षेत्र में ही हुआ। पिता और मां दोनों टकरमा स्कूल में शिक्षक थे। काॅलेज की पढ़ाई संत कोलंबस कालेज हजारीबाग से की। बीएड भी यहीं से किये। लाॅ की पढ़ाई छोटानागपुर लाॅ कालेज रांची से की। 1948-49 में इन्होंने रांची के गोस्सनर हाईस्कूल में टीचर का काम किये। इस दौरान चर्च के कई कामों में सक्रिया रहे। 1949-53 में बिहार सरकार के काॅ-अपरेटिव सोसाईटी के इंस्पेक्टर भी रहे। 1953-60 तक गोस्सनर लूथेरन चर्च छोटानागपुर-असाम के सचिव के रूप में काम किये। 1960-67 तक श्री होरो ने गोस्सनर एवेंजेलिकल लूथेरन चर्च में सुप्रिटेनडेंट सेंट्रल व्यूरो के रूप में भी सेवा किये। इन्होंने मुंडारी भाषा-सांस्कृति को भी बढ़ावा देने का काम किये। इन्होंने मुडंारी में मासिक पत्रिका ”जगर साड़ा“ का संपादन किये। झारखंड के सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक समाचार आम लागों तक पहुंचाने के लिए झारखंड टाईम्स समाचार पत्र निकालने का भी काम किये। 1968 में बिहार सरकार में योजना और जनसंपर्क विभाग के मंत्री रहे। 1969 में शिक्षा मंत्री हुए। 1980 से 84 तक संसद सदस्य रहे। 1975 में वे उपराष्ट्रपति के दावेदार रहे। कहते थे-झारखंड के मुख्यमंत्री को इतना मजबूत सिद्वान्तनिष्ठ होना चाहिए कि भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़कर झारखंड की जनता को न्याय दिला सके।
झारखंड पार्टी हमेशा वृहत झारखंड राज्य की मांग करता रहा। वृहत झारखंड के रूप में छोटानागपुर संतालपरगना क्षेत्र के साथ तीन राज्यों उडीसा, मध्यप्रदेेश और पच्शिम बंगाल के आदिवासी बहुत क्षेत्रों को मिलाकर, जिसमें पच्शिम बंगाल के पुरूलिया, बांकुडा+ और मिदनीपुर, उडीसा के मयुरभंज, क्योंझार, सुन्दरगढ़ और सम्बलपुर, मध्यप्रदेेश के सुरगुजा और रायगढ़ को शामिल किया गया था। श्री होरो वृहत झारखंड राज्य की मांग पर हमेशा अड़े रहे। श्री होरो का अपने पार्टी के सिद्वांत के प्रति कटिब्द्वता का प्रमाण उनके राजनीतिक जीवन के प्रथम चुनाव परिणाम भी सिद्व करता है। 1963 में झारखंड पार्टी का विलय कांग्रेस में किया गया, तब जयपाल सिंह के साथ सुशील कुमार बागे भी शामिल हो गये थे। 1967 के बिहार विधान सभा चुनाव में झारखंड पार्टी के नीति घोषणा पर श्री निरल जी कोलेबिरा विधान सभा चुनाव लडे और सुशील कुमार बागे को भारी मतो से पराजित किये, जबकि यह सुशील कुमार बागे का घरेलू विधान सभा क्षे+त्र था। श्री होरो कहते थे-झारखंड का मतलब सिर्फ आदिवासी हित का बात नहीं है, पूरे क्षेत्र के शोषित-पीडि़तो के हक-अधिकार का सवाल है। इसी लिए तो जब हमने इंदिरा गांधी से मिले थे-तब आदिवासी मूलवासी और पिछड़े वर्ग के समस्याओं का जिक्र करते हुए अलग राज्य के गठन की मांग किये थे। झारखंड अलग राज्य कंे मांग को श्री एनई होरो सदा बुलंदी से उठाते रहे। इनके अगुवाई में आंदोलनकारियों ने सरकार को चुनौती दिये थे कि-यदि 15 अगस्त 1978 तक अलग राज्य की स्थापना नहीं कि गयी, तो सीधी कार्रवाई की जाएगी।
1970 में जयपाल सिंह की निधन हुई। इनके निधन के बाद खूंटी लोक सभा सीट खाली हुआ। इसकी पूर्ति के लिए उपचुनाव होना था। इस उपचुनाव में भी श्री होरो झारखंड अस्तित्व का झांडा ढ़ोये चुनावी मैदान में उतरा। आम लोगों में अपने राज्य-अस्मिता की पड़प तो थी ही, आम जनता ने अपना जनादेश श्री होरो के पक्ष में देकर साबित किया कि झारखंडी जनता के असली प्रतिनिधि यहीं कर सकते हैं। स्व. जयपाल सिंह के खाली स्थान की पूर्तीि श्री होरो की जीत ने की, तब लोगों ने इसे ”मरंग गोमके“ से संबोधित किये 1970 के उपचुनाव के बाद 1971 के मध्यवधि लोकसभा चुनाव में भी खूंटी सीट पर जनता ने दूबारा होरो साहब को अपना प्रतिनिधि चुना। 1980 में तीसरा बार खूंटी लोक सभा सीट का प्रतिनिधित्व किये। खूंटी संसादीय क्षेत्र के तोरपा विधान सभा क्षेत्र जो झारखंड पार्टी का गढ माना जाता रहा है। इस सीट से श्री होरो 1969, 1977, 1985, 1990 और 1995 तक लगातार विधान सभा में प्रतिनिधित्व देते रहे। 2000 के विधानसभा चुनाव में पहली बार झारखंड पार्टी के इस गढ़ में भाजपा ने सेंधमारी करके अपना कब्जा जमा लिया।
सत्ता की राजनीति में सभी नेताएं अवसर के साथ अपनी राजनीतिक स्टैंड बदलते रहे। झारंखड अलग राज्य के नाम पर राजनीति करने वाले झारखंड आंदोलन में भी कई टुट-फूट के बाद कई झारखंड नामधारी पार्टियों का उदय हुआ। जिसमें अखिल भारतीय झारखंड पार्टी-जिसके नेता बगुन सुमराई थे। दूसरा हूल झारखंड पार्टी-जिसका नेता सेत हेम्ब्रोम थे। और तीसरा झारखंड पार्टी-जिसका नेता श्री निरल ऐनेम होरो थे। जब-जब नेताओं को कुर्सी और सत्ता सुख आर्कषित किया, जनता के सवालों-समस्याओं का हल सत्ता के साथ मिल कर ही किया जा सकता है-यह दलील देते हुए सत्ता सुख-भोग में डूब जाते हैं। इसे अपने को कोई झारखंडी नेता नहीं बचा पाया। यही कारण है कि सभी झारखंडी नेताएं जीवन में कपड़ें की तरह पार्टी बहते रहे। लेकिन झारखंड आंदोलन के पोरोधा श्री एनई होरो ने इस मानसिकता को अपने जीवन के करीब कभी भटकने तब नहीं दिया। झारखंड पार्टी का विलय भी कांग्रेस में इसी तर्क के साथ किया गया था कि- सत्ता के साथ रह कर ही झारखंड अलग राज्य हासिल किया जा सकता है। लेकिन वास्वविकता इन नेताओं के तर्क के विपरित था। दूसरी ओर श्री होरो एवं उनके साथियों को आम जनता की एकता-उनकी आकांक्षाओं से उभरी जनसंर्घष पर भरोसा था।
कोलेबिरा विधानसभा सीट से 2006 के विधान सभा चुनाव में झारखंड पार्टी के टिकट से चुनाव जीतने वाले उम्मीदवार श्री एनोस एक्का ने अर्जुन मुंडा के नेतृत्व में बनने वाले एनडीए सरकार में शामिल होने को लेकर श्री होरो सहमत नहीं थे। इसको लेकर होरो साहब को अरोप-प्रत्यारोपों को झेलना पड़ा। आठ दिनों तक चले इस जंग में श्री होरो अपने पुराने सिद्वातों पर ही अड़े रहे, कि वह राज्य में साप्रादायिक सरकार को समार्थन नहीं देगें। जब निर्दलीय उम्मीदवारों को एनडीए सरकार को समार्थन देने के लिए-उन लोगों को जयपुर-राजस्थान घुमाया जा रहा था, तब श्री होरो का घर उनके समार्थकों का विचार विमार्श का केंन्द्र बना हुआ था। देखते-ही देखते उनके कई समार्थक विधायक के साथ एनडीए सरकार के साथ चले गये। इस समय भी नेताओं ने तर्क दिया कि-इतना दिन के बाद हम फिर एक सीट जीत पाये है, तब हमें विकास का काम करने के लिए, जनता का सेवा करने के लिए सत्ता के साथ जाना ही होगा। इस तर्क ने भी वयोवृद्व श्री होरो को हिला नहीं सका, और वह आज भी झारखंड पार्टी का केंन्द्रीय अध्यक्ष के रूप में अपने उसुलों में कामय रहे। यह सर्वविदित है कि एनडीए को समार्थन को लेकर एनोस एक्का, श्री होरो के पार्टाै से अलग होकर अपना गुट बना लिए हैं, जो अपने को असली और दूसरे को नकली बताने में पीछे नहीं है। राजनीतिक उठा-पटक के इस खेल में श्री एनई होरो फिर एक बार समाज और राज्य हित में अपना निर्णय लेकर राज्य में यूपीए की सरकार बनाने में अहम भूमिका निभायी, लेकिन सत्ता सुख से अब भी दूर रहे।
अपने घर के बरमदे में बैठे श्री होरो अधिकांश समय पेपर पढ़ने में बिताते रहे। आप इतने लंम्बे समय तक संसद और विधायक रहे-आप अपने परिवार के लिए कितना जमीन रखीदे- इस पर श्री होरो मुस्कुराते हुए बताये थे-हां तो तुम मेरा सब कुछ जानना चाहती हो-आगे कहते हैं-गोविन्दपुर में अपने पत्नी के नाम पर एक एकड़ खरीदे हैं और 10-15 डिसमिल हेसाग में लिये हैं। आपने मकान बनाये हैं-इस सवाल पर श्री होरो जी अपने पुराने खपरैला मकान की ओर इसारा करके कहते हैं-इतना बड़ा बंगला है, और क्या करेगें। इन्होनें बताया कि पूरे विधायक काल में इन्होंने एक फियेट कार खरीदा था, जब फियेट बैठ गया तब एक सेकेन्ड हेन्ड एम्बेसेडर खरीदे हैं। जिसे आज भी वे क्षेत्र का दौरा करते हैं। आज जो मंत्री बन रहे हैं-तीन-चार गाड़ी रखते हैं, आप तो एक ही गाड़ी से काम चलाते रहे-इसके जावब में श्री होरो कहे थे-ई गाड़ी क्या है, पूरा राज-पाट तो लूटा गया। होरो साहब कुछ सोचने में लीन हो जाते हैं-फिर कहते हैं लोग इतनी जल्दी बदलेंगे पैसा के पीछ हमको विश्वास ही नहीं था, कहते हैं सब बदल गये। आप को तो कई आॅफर आया होगा-इस पर होरो सहाब कहते हैं- आफर तो इंदिरा गांधी भी दी थी-बोली कुछ लेना-देना कर लो-क्या करोगे झारखंड को, मैंने कहा-नहीं, एनई होरो के दरबार में कोई लेना-देना नहीं होगा। आगे कहते हैं-आफर तो कई लोग लेकर आये थे, ललित बाबू भी आफर लेकर आया था, कहते हैं-जब मैं प्रेसीडेन्ट के लिए लड़ रहा था, तब भी आफर मिला था-जो चाहोगे-देगें, हमने कहा-एैसा नहीं होगा। होरो साहब कहते थे- नेता सोचते हैं, राजनीति हमारा अपना है, लेकिन ऐसा नहीं है- राजनीति जनता का कमाई होेता है, जनता का त्याग-तपस्या और संघर्ष का परिणाम होता है। कहते हैं-आज नेता दूसरों के पैसा से चूनाव लड़+ते है।
आज के भ्रष्ट राजनीतिक लूट-खसोट की परंपरा, से आम जनता पीडि़त है-एैसे समय में आप जनता को क्या संदेश देना चाहते हैं-इस पर श्री होरो कहा था-कुछ नहीं कहना चाहेगें, जनता को स्वयं वार्कआट करना होगा, राजनीति खिलाने-पिलाने का चीज नहीे है, इसके लिए खुद मेहनत करना होगा, जनता को खुद मेहनत करके उर्जा तेैयार करना होगा-यही असल राजनीति है। आज नेता लोग दूसरों का हक-कमाई लूट कर बांट रहे हैं। एनई होरो झारखंड की माटी के साथ इस माटी की रक्षा के लिए हुए शहीदो के प्रति भी अटूट श्रद्वा रखते थे। झारखंड पार्टी के इतिहास में 2 मार्च का अपना महत्व है, इसी दिन 1946 को तपकरा बाजार टांड के पास झारखंड पार्टी के समार्थकों को गोली से भून दिया गया था। जहां लोगों की मौत हुई थी। इसके बाद से हर साल 2 मार्च का झारखंड पार्टी इस शहीद स्थल पर श्राद्वांजलि सभा आयोजित करते आयी है। हर साल श्री होरो साहब इन शहीदो श्रधासुमन चढ़ाने आते थे। जबकि 2006 के 2 मार्च को वे तपकारा न जाकर खूंटी शहीदों के कब्र में श्रधंजलि चढ़ाये। आप क्यों इस साल तपकारा शाहीद स्थल नहीं गये-पूछने पर श्री होरो कहे थे-इसलिए कि जिस एनडीए सरकार ने कोयलकारो जनसंगठन के आंदोलनकारियों को गांलियों को छलनी किया, उसी सरकार का मंत्री शाहीदों को श्राद्वांजलि देने आने वाला था, जो झारखंड के शाहीदों का मात्र अपमान ही था, इसी लिए मैं वहां नहीं गया।
आप के पार्टी का मूख्य ऐजेन्डा क्या है-इसके जवाब में श्री होरो कहते हैं-बिरसा मुंडा ने जल-जंगल-जमीन के साथ भाषा-सांस्कृति की रक्षा के लिए लड़ाई लड़ा था-यही हमारे पार्टी का भी ऐजेन्डा है। विदित हो कि तोरपा विधानसभा क्षेत्र से होकर कारो नदी बहती है। इसी नदी पर लोहाजिमि के पास बांध बना कर सरकार बिजली पैदा करने की योजना बनायी थी। इस परियोजना के तहत सिसाई विधान सभी क्षेत्र से बहने वाली कोयल नदी पर बसिया प्रखंड के तेतरा गांव के पास बांध बनाने की योजना थी। इसे 710 मेगावाट बिजली उत्पन्न करने की योजना थी। इस परियोजना के बनने से दो लाख क्षेत्रिय जनता विस्थापित होती। श्री एनई होरो पार्टीसे उपर उठकर कोयलकारो जनसगंठन के संधर्ष समार्थन देते रहें। एक बार मैं स्व. होरो से पूछी थी कि झारखड का विकास किस तरह होना चाहिए- इसके जबाव में कहा-झारखंड की आर्थिक समृद्वि कृर्षि से ही सुधरेगी। वर्तमान सरकार को इसे समझना चाहिएं नदियों में छोटे-छोटे बांध बना कर सिंचाई क्षेत्र बढ़ाया जा जाए और समृद्वि एंव खुशहाली का सपना साकार किया जा सकता है। विकास की दिशा तय करते हुए सांस्कृतिक प्रदूष से बचाव का तरीका भी निकालना चाहिए। आदिवासी स्वच्छंदता खत्म नहीं हो और नृत्य-गीत का सरकारीकरण न हो, या भी समझना चाहिए।