जिंदगी में हर कदम यह एहसास दिलाता है ,की बाघ ,भालू ,सांप ,बिच्छू जैसे जंगली जानवरों से लडकर जंगल को साफ किया, झाड़ी को साफ किया, और जमीन बनाया, खेत बनाया, गांव बसाया, उस जंगल जमीन को आखिर आदिवासी समुदाय छोड़ेंगे?
जबकि रात भर की यात्रा के लिए एक सीट रिजर्व
करने वाले अपना रिजर्व सीट नहीं छोड़ सकते हैं। तब हम अपने विरासत हमेशा के लिए दूसरों के विकास के लिए ,दूसरों की उन्नति के लिए, दूसरों के फायदे के लिए क्यों छोड़े? जिन्दगी की घटनाओं से ही हम बहुत कुछ सीखते है।
कल 19 अप्रैल 2022 की रात 8.53 बजे साहेबगंज रेलवे स्टेशन पर भगलपुर वनांचल एक्सप्रेस के बोगी no.एस 3 में रांची आने के लिए चढ़े। हम दो लोग थे । टिकट मेरे साथी के पास था । उन्होंने बोला हम दोनों का बर्थ 32और 33 है। मैं अपने साथी के बताइए नंबर के अनुसार बर्थ नंबर 32 में बैठ गई । थोड़ी देर के बाद मैं लेट गई । करीब आधा घंटा के बाद एक लड़की आयी और तेज आवाज में बोली ,यह मेरा जगह है खाली करो ! मैं उठ कर बैठ गई और अपने साथी से बोली, एक बार टिकट देखिए 32 नंबर हम लोगों का हैं या नहीं ? मैं यह बात पूरी भी नहीं की थी तब तक फिर से जोर से चिल्लाकर बोलने लगी सुनते नहीं हैं जल्दी से खाली करो।
मेरे साथी ने अपने पॉकेट से टिकट है निकाल कर फिर से देखा तो हम दोनों का सीट नंबर 22 और 33 था। मैं तुरंत अपना सिरहाना में रखा बैग और बाकी सामान उठाई और बगल वाले बर्थ नंबर 22 में चली गई ।तब मुझे भीतर यह एहसास होने लगा की जब हम किसी के बुक किए गए सीट पर थोड़ी देर भी बैठ नहीं सकते हैं हमें यह आधिकार नहीं है, तब हम आदिवासी समुदाय से हमारे पूर्वजों द्वारा आबाद किया गया जंगल, जमीन ,नदी ,पहाड़ ,गांव ,खेत, खलिहान से विकास के नाम पर बेदखल किया जाता है । हमें बेदखल करने का आधिकार आखिर किसने दिया है।
एक सीट क्या? हमारा तो पूरा झारखंड ही लूटा जा रहा है। मैं सोचती हूं इसके लिए शायद हम और हमारा समाज ही जिम्मेवार है, हम अपने हक, आधिकार को नहीं समझ पाते हैं, इसकी रक्षा नहीं कर पा रहे हैं।
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