केंन्द्र की मोदी सरकार द्वारा काॅरपोरेट घराणों एवं पूंजिपतियों के लिए लायी जा रही स्वामित्व योजना के तहत प्रोपटी/ संपति कार्ड नहीं चाहिए
झारखंड में सीएनटी एक्ट, एसपीटी एक्ट, मुंडारी खुंटकटी एवं 5वीं अनुसूचि के आदिवासी बहुल खॅटी जिला में प्राॅपर्टी कार्ड बनाने के ड्रोन से जमीन का सर्वे किया जा रहा है, को रोकने की मांग
एवं
आदिवासी-मूलवासी किसानों के परंपरागत अधिकार सीएनटी एक्ट, एसपीटी एक्ट, मुंडारी खूंटी अधिकार, हो इलाके के विलकिनसन रूल्स एवं 5वीं अनुसूचि में प्रावधान अधिकारों को कड़ाई से लागू करने की मांग को लेकर 28 फरवरी 2022 को विधानसभा के समक्ष धरना।
इतिहास गवाह है कि झारखंड में जल, जंगल, जमीन को आबाद करने का आदिवासी-मूलवासी किसान समुदाय का अपना गैरवशाली इतिहास है। आदिवासी समुदाय खतरनाक जंगली जानवरों से लड़ कर जंगल-झाड़ को साफ कर गाॅंव बसाया, जमीन आबाद किया है। आदिवासी-मूलवासी किसान समुदाय जंगल, नदी, पहाडों की गोद में ही अपने इतिहास, भाषा-संास्कृतिक पहचान के साथ विकसित होता है।
प्रकृतिक-पर्यावरण जीवन मूल्य के साथ आदिवासी -मूलवासी समुदाय के ताना-बाना को संरक्षित और विकसित करने के लिए ही छोटानापुर काश्तकारी अधिनियम 1908, संताल परगना काश्तकारी अधिनियम 1949 बनाया गया है। साथ ही भारतीय संविधान में पेसा कानून 1996 एवं पांचवी अनुसूचि में आदिवासी समुदाय के जल, जंगल, जमीन पर इनके खूंटकटी अधिकार सहित अन्य परंपरागत अधिकारों का प्रावधान किया गया है।
सर्व विदित है कि आदिवासी समुदाय के जंगल, जमीन, सामाजिक-संस्कृतिक, आर्थिक आधार को संरक्षित एवं विकसित करने के लिए भारतीय संविधान में विशेष कानूनी प्रावधान किये गये हैं। सीएनटी, एसपीटी एक्ट, पेसा कानून 1996, 1932 के खतियान में, एवं वन अधिकार कानून 2006 में भी विशेष प्रावधान दर्ज है। गांव के सीमा के भीतर एवं बाहर जो प्रकृतिक संसाधन है जैसे गिटी, मिटी, बालू, झाड़-जंगल, जमीन, नदी-झरना, सभी गांव की सामुदायिक संपति है। इस पर क्षेत्र के ग्रामीणों का सामुदायिक अधिकार है।
ये सभी समुदायिक अधिकार को सीएनटी एक्ट, एसपीटी एक्ट, पेसा कानून, कोल्हान क्षेत्र के लिए विलकिनसन रूल, मुंडारी खूुंटकटी अधिकार में कानूनी मन्यता मिला हुआ है। ये सभी अधिकार आदिवासी समुदाय के लंबे संघर्ष और शहादत के बाद मिला है। खतियान एवं वीलेज नोट में दर्ज सामुदायिक एवं खूंटकटी अधिकार को बचाना जगरूक नागरिकों के साथ राज्य की कल्याणकारी सरकार की भी जिम्मेदारी है। 5वीं अनुसूचि क्षेत्र का संरक्षक राज्यपाल महोदय हैं, उनकी जिम्मेवारी है हमारे अधिकारों को संरक्षित करने का।
वर्तमान में लाया जा रहा स्वामित्व योजना के तहत प्राॅपर्टी बनायी जायेगी।
सबसे बड़ा सवाल -1-है-आदिवासी सामुदाय के जल, जंगल, जमीन जैसे भईहरी खेत, भूत खेता, डालीकतारी जैसे बेलगान जमीन, नदी-नाला, आहर-पोखर, ससनदीरी, सरना, मसना, मंदिर, मसजिद, जतरा टांड, खेल मैदान आदि का प्राॅपर्टी कार्ड किसके नाम से बनेगा?
सवाल 2-रघुवर सरकार के समय गांव के समुदायिक जमीन को लैंण्ड बैंक में शामिल कर दिया गया है-इस जमीन का स्वामित्व कार्ड किसके नाम पर बनेगा?
सवाल -3-1932 के खतियान में आॅनलाइन छेडछाड़ किया गया है-जिसमें खतियानधारियों का नाम गलत दर्ज किया है, किसी में खाता संख्या गलत हे, किसी में प्लाॅट गायब है, गलत अपडेट के कारण जमीन मालिकों का रसीद नहीं कट रहा है, इस जमीन का संपति कार्ड किसके नाम से बनेगा?
ये सभी गंभर सवाल है- जमीन का आॅनलाइन व्यवस्था होने के बाद भारी संख्या में आॅनलाइन जमीन का लूट, नजायज कब्जा चल रहा है, इसको ठीक करने के लिए किसान प्रज्ञा केंन्द्र से सीओ, अंचल कार्यालय, अमीन के पास दौड़ते दौडते दो-तीन साल बित गया, लेकिन गलती ठीक नहीं हो रहा है। इसके लिए कौन जिम्मेदार हैं?
प्राॅपर्टी कार्ड बनने के लिए ड्रोन से जो सर्वे किया जा रहा है, इसके साथ ही डिजिटल नाक्सा बनेगा। इस दौरान जमीन संबंधी कई पुराने दस्तावेज बदले जाएगें। इस दौरान जमीन मालिकों से, अपना जमीन का मालिकाना हक साबित करने के लिए दस्तावेज मांगें जाएगें। जब जमीन मालिक दस्तावेज पेस नहीं कर पायेगा, तब क्या होगा? इन सभी सवालों का जवाब तो चाहिए ही, चाहिए।
संपति कार्ड -मकान के साथ, उनके सभी जमीन को एक में लिंक किया जाएगा, तब इसका संपति कार्ड बनेगा। (जिस जमीन पर अपना मालिकाना हक साबित कर पाएगा)। जो डिजिटल नाक्सा में रखा जाएगा।
भारत सरकार पंचायत मंत्रालय की स्वामित्व योजना नियामवली के अनुसार अब जमीन का स्वामित्व पंचायत मंत्रालय के हाथ में दिया जाएगा। यहां समझने की जरूरत है कि-जो परंपरागत गांव समुदायक के हाथ में जो अधिकार था-उसको सरकारी पंचायती व्यवस्था के अधिन किया जाएगा।
यह नयी व्यवस्था लागू होने पर निश्चि तौर पर कागजों में सीएनटी एक्ट, एसपीटी एक्ट, पांचवीं अनुसूचि, मुंडारी खूंटकटी अधिकार सहित सभी परंपरागत व्यवस्था दर्ज रहेगा। लेकिन जमीनी अधिकार स्वतः कमजोर हो जाएगा। सामाजिक, संस्कृतिक, आर्थिक तौर प्रतिकुल असर डालेगा। ग्रामीणों के सामुदायिक जमीन का मौद्रिकरण किया जाएगा, इससे ग्रामीण क्षेत्र के जमीन का व्यवसायीकरण को बढ़ावा दिया जाएगा। इसे ग्रामीणों पर टैक्स का बोझ बढेगा। जमीन, जंगल सहित अन्य सभी संसाधनों के खरीद-फरोक्त, एंव लूट-भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलेगा।
संपति कार्ड/प्राॅपर्टी कार्ड लागू होने से आदिवासी इलाके में निम्नलिखित खतरे भविष्य में होगें।
1-परंपरागत ग्रामीण आदिवासी इलाके का डेमोग्राफी-भौगोलिक स्थिति पूरी तरह बदल जाएगा।
2-5वीं अनुसूचि, सीएनटी एक्ट, एसपीटी एक्ट, मुंडारी खूंटकटी एवं विलकिसन रूल्स के तहत गांव के सीमा के भीतर के गैर मजरूआ आम, खास, जंगल-झाड़ी, परती-झरती, नदी-नाला आदि सामुदायिक जमीन पर बाहरी सामुदाय का प्रावेष एवं कब्जा होगा।
3-प्रकृतिक जीवनशैली से जुडे आदिवासी-मूलवासी किसान, दलित समुदाय का परंपरागत सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, आधार टूट जाएगा।
4-ड्रोन सर्वे पूरा होने के साथ ही गांव का डिजिटल नक्सा बनेगा। डिजिटल नक्सा होगा तो खतियान भी होगा। तब सवाल है, आदिवासी-मुलवासी समुदाय को, समुदायिक अधिकार देने के साथ एैतिहासक पहचान देने वाला 1932 का खतियान अस्तित्व बना रहेगा?
5-सीएनटी एक्ट, एसपीटी एक्ट, पांचवी अनूसूचि के होते हुए-ग्रामीणों के सामुदायिक जमीन का भूमि बैंक बनाकर, सिंगल विंडि व्यवस्था माध्यम से सामुदाय से बाहर के लोगों को गांव का जमीन, स्थानीय ग्राम सभा के सहमति के बिना कब्जा दिलाना, निश्चित तौर पर आदिवासी समुदाय के अधिकार, सीएनटी एक्ट, एसपीटी एक्ट, पांचवी अनूसूची, मुंडारी खूंटकटी अधिकार, कोल्हान क्षेत्र का विल्किनसन रूल्स स्वता कमजोर किया जा रहा है।
6-ड्रोन से सर्वे के समय या बाद में जमीन का मालिकाना हक क्लेम-दावा करने के लिए ग्रामीणों से कहा जाएगा, तब जिस जमीन का मलगुजारी रसीद काटा रहा है, उसका फू्रफ पेस करेगें, लेकिन ग्रामीणों का सामुदायिक जमीन जिसका रसीद नहीं काटा जाता है, उसका क्या होगा?
7-ग्रामीण इलाके में बढ़ते शहरी आबादी के कारण ग्रामीण कृषि अर्थव्यवस्था, वन व्यवस्था, जल स्त्रोत एवं पर्यावरणीय व्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।
8-प्राॅपटी कार्ड योजना के तहत ग्रामीण आदिवासी इलाके में बड़ी संख्या में बाहरी आबादी के प्रवेश होने से, राज्य में आदिवासी आबादी तेजी से घटेगी, परिणाम स्वरूप आदिवासी सामुदाय की सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक एवं राजनीतिक शक्ति स्वतः कमजोर होगा।
ज्ञात हो कि झारखंड में भूमि सुधार कानून के तहत राज्य में लाखों छोटे किसानों को एक-एक एकड, कहीं कहीं दो-तीन एकड़ तक जमीन बंदोबस्त कर दिया गया था। लोग इस जमीन का मजगूजारी रसीद भी काटते थे, लेकिन अब कई इलाके में इस जमीन का रसीद काटना बंद कर दिया गया, और किसानों को उक्त जमीन की बंदोबस्ती संबंधित कई तरह के कागजात मांगें गाये, लोग अधिकारियों के समुख कागजात पेस नहीं कर पा रहे हैं।
राज्य में जमीन संबंधित काम-कागज 2014-15 तक आॅफलाइन हो रहा था। जमीन मालिक आॅफलाइन रसीद हल्का करमचारी द्वारा कटवा रहे थे। आॅनलाइन व्यवस्था होने के बाद जमीन का खतियान में भारी गडबडियां हो गयी हैं। किसी का खतियान में रैयत का नाम गलत है, खाता नबंर गलत है, प्लोट नंबर गलत है, जमीन का रकबा भी गलत है। इसको सुधरवाने के लिए लोग अमीन के पास, सीओ के पास दौडते दौडते थक रहे हैं-कोई कार्रवाई नहीं हो रहा है।
आॅनलाइन खतियान में गलती के कारण-बहुत से किसान जमीन का मलगुजारी रसीद 4-5 सालों से नहीं कटवा पा रहे हैं।
यहीं दूसरी तरफ खतियान से परंपरागत रैयातों का नाम हटाकर रातों-रात पांजी दो में जमीन मालिक बदल दिये जा रहे हैं। कम पढ़े-लिखे, सीधे-साधे आदिवासी किसानों को नहीं समझ में आ रहा है कि ये क्या हो रहा है। आखिर इसके लिए कौन जिम्मेवार हैै?
ये सारी दिक्कतें तब हो रही है-जब जमीन-जंगल हमारा है, 1932 का खतियान हमारे पास है, विलेज नोट हमारे पास है, गांव का नक्सा हमारे पास है। आखिर ऐसा क्यों हो रहा है? सच्चाई है कि जब तक जमीन संबंधित व्यवस्था आॅफलाइन था, ग्रामीण इलाके में जमीन का हेराफरी, भ्रष्टाचार, जमीन का लूट कम होता था। गांव वाले अपने क्षेत्र की रक्षा अपने तरह से करते आ रहे थे। अब ग्रामीणों के इस व्यवस्था पर डिजिटल हमला हो रहा है।
इस तरह से आदिवासी -मुलवासी, किसान, दलित समाज से जमीन निकलता जा रहा है यही नहीं समुदाय का सुरक्षा कवच सीएनटी, एसपीटी एक्ट स्वतः टुटने लगेगा, पेसा कानून में मिला अधिकार खत्म हो जाएगा, मुंडारी खूंटकटी अधिकार खत्म हो जाएगा। जमीन का लूट बढेगा। परिवार और समाज में अषांति बढ़ेगा। इससे उत्पन्न परिस्थ्यिों से विस्थापन, पलायन, बेरोजगारी, भूख, भूमिहीन, अस्वस्थ्य, सूखा-आकाल एवं प्रदूषण जैसे महामारी का ही सामना करना पड़ेगा, इसके लिए जिम्मेवार कौन होगा?। बहुत सारे गंभीर सवाल हैं।
हमारी मांगें हैं-
1-केंन्द्र सरकार की नयी स्वामीत्व योजना /प्रोपटी/संपति कार्ड बनाने के लिए आदिवासी बहुल खूंटी जिला में परंपरागत ग्राम सभी एवं आदिवासी किसान संगठनों के मांग को अनसुनी करके, ड्रोन द्वारा जमीन का सर्वे किया जा रहा है, को रोका जाए।
2-मोदी सरकार द्वारा काॅरपोरेट घराणों एवं पूंजिपतियों के लिए लाया जा रहा स्वामित्व योजना को झारखंड में लागू नहीं किया जाए। साथ ही इस योजना को झारखंड में लागू नहीं किया जाए।
3-सीएनटी एक्ट, एसपीटी एक्ट, मुंडारी खूंटकटी एवं 5वीं अनुसूची में प्रावधान ग्राम सभा के अधिकारों को कड़ाई से लागू किया जाएं एवं आदिवासी-मूलवासी समुदाय के सामुदायिक अधिकारों को संरक्षित किया जाए।
4-रघुवर सरकार ने गैर मजरूआ आम, गैर मजरूआ खास जमीन, को भूमि बैंक में शमिल किया गया है, इस भूमि बैंक को रदद किया जाए।
5-क्षेत्र के सभी जलस्त्रोतों, नदी-नाला का पानी लिफट ऐरिगेशन के तहत पाइप लाइन द्वारा किसानों के खेतों तक कृषि विकास के लिए पहुंचाया जाए।
6-आॅनलाइन जमीन के दस्तावेजों का हो रहा छेड़-छाड़ एवं जमीन का हेरा-फेरी बंद किया जाए।
नोट-धरना 11 बजे से शुरू होगा,
स्थान-विधानसभा के पीछे, कुटे मैदान
दिनांक- 28 फरवरी 2022
निवेदक-आदिवासी मूलवासी अस्तित्व रक्षा मंच
मुंडारी खुंटकटी परिषद
आदिवासी एकता मंच-
(संपर्क-दयामनी-बरला-9431104386, तुरतन तोपना-7091128043, राजू लोहरा, अल्र्बट होरो, छोटन पाहन, नियरजन तोपनो, ज्वालन तोपनो, शिवसरण मिश्रा, छात्री हेमरोम, जशिनता, फिूलचंद मुंडा, संदीप सांगा, सूचित सांगा, मंगरा मुंडा, बिरसा सांगा, बिरसा, मुंडा, पौलुस मुंडा, दयाल कोनगाड़ी, हादुु तोपनो, पूरन तोपनो, एनेम तोपनो, मोरिश तोपनो, कुलदीप हेमरोम, सुलेमान तोपनो, सूनिल कच्छप, सिमोन मुंडा, कोका पाहन, खुदिया पाहन, अशियन होरो, प्रभुसहाय सोय, श्याम सोय, अब्राहम मुंडा, एतवा मुंडा, मनसिंह मुंडा, बुधन लाल,।