Wednesday, September 12, 2018

ग्रामीण अर्थव्यस्था को समझने के लिए आदिविासी-मूलवासी, किसान, दलित सहित प्रकृति के साथ लीने वाले समुदाय के जीवनशैली तथा आार्थिक तानाबाना को समझने की जरूरत है

आर्थिक करोबार
ग्रामीण अर्थव्यस्था को समझने के लिए आदिविासी-मूलवासी, किसान, दलित सहित प्रकृति के साथ लीने वाले समुदाय के जीवनशैली तथा आार्थिक तानाबाना को समझने की जरूरत है। प्रकृतिकमूलक जीवन प्रकृति और पर्यावरण के जीवन चक्र के साथ ही समुदाय का आर्थिक चक्र भी चलते रहता है। जहां मित्तल कंपनी प्लांट लगाने की योजना बनायी है, वहां की ग्रामीण अर्थव्यस्था की एक झलक यहां रखने की कोशिश की जा रही है। इस इलाके से हर साल मौसम आधारित फलों के व्योपारी बाहर से आते हैं। कटहल, आम, सकरकंद, मुर्गी, बकरी ,बत्तक आदि खरीदन के लिए व्योपारी गांव-गांव घुमते हैं। आवागमने के लिए रोड़ तथा रेलवे लाईन की सुविधा है। ट्रेन रास्ते से भी बड़ी संख्या में व्योपारी आते हैं। गोविंदपुर, जरिया, बकसपुर, पोकला, पकरा, कुरकुरा स्टेषनों में भारी मा़त्रा में आम, कटहल, इमली, अमरूद के अलावे हर तरह के मौसमी साग-सिलयारी, कुदरूम,सनाईफूल,दतून, पत्त करोड़ो का माल इस क्षेत्र से बाहर जाता है।


इमली, लकड़ी, खुखडी-रूगडा- आम ,दतुन-पताल आदि बाहर भेजा जातहै। इस तरह इन स्टेषनों से एक दिन मे करोड़ो का माल इस क्षेत्र से बाहर जाता है।


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