इतिहास गवाह है कि-हमारे पूर्वज सांप, बिच्छू, बाघ, भालू से लडकर झारखंड की धरती को आबाद कियां। जंगल-झाड को साफ किया, रहने लायक घर बनाये। खेती लायक जमीन साफ किया। गांव बसाया। जहां तक जंगल -झाडी साफ कर लोग बसते गये, गांव का विस्तार होता गया। अपने गांव को अपने तरह से संचालित -संरक्षित एवं विकसित करने के लिए नियम-कानून बनाये, जो उनका परंपरागत व्यवस्था कहलाया। जंगल-झाड साफ करके जमीन-जंगल को आबाद किये, इस जंगल-जमीन पर आदिवासी समुदाय ने अपना खूंटकटी अधिकार माना।
स्वतंत्रता संग्राम के राजनीतिक क्षीतिज पर जवाहरलाल नेहरूजी, शुबास चंन्द्र बोस जैसे नेताओं का नाम कहीं दिखाई नहीं दिया था-तभी चुटियानागपुर के आदिवासी वीरों के क्रांति के बिंगुल से देश के अंगे्रज हुकुमत डोलने लगा था। 1807 का तमाड़ विद्रोह, 1819-20 में रूदु और कोंता मुंडा का तमाड़ विद्रोह, 1820-21 में पोडाहाट में हो विद्रोह, 1832 में भरनो में बुद्वु भगत का विद्रोह, 1830-33 में कोल्हान में मानकी-मुंडाओं का विद्रोह, 1854 में मोगो मांझी एवं बिर सिंह मांझी में संतालों का आंदोलन, 1855-56 में सिद्वु-कान्हू, चांद-भैरव, फूलो-झानो के नेतृत्व में संताल हूल, 1855-56 में लुबिया मांझी और बैरू मांझी का भूमि आंदोलन, 1885 में बैठबेगारी और जमीनदारों, इजारेदारों के खिलाफ आंदोलन, 1895-1900 में बिरसा उलगुलान ने आंदोलनों का इतिहास रचाा। आजादी की लडाई में देश एवं सामाज के सभी, जाति-धर्म समुदाय ने संघर्स में हिस्सा लिया था। सबने मिलकर देश के जन,गण,मन के गीत गाये थे। सबने भारतीय संविधान अपना सुरक्षा कवच माना। 15 अगस्त और 26 जनवरी को अपना राष्ट्रीय त्योहार माना।
आजाद भारत के राजनीतिज्ञों, बुधीजीवियों, एवं संविधान निर्माताओं ने यह अनुभव किया कि-देश का विकास एवं शांति-व्यवस्था एक तरह के कानून से संभव नहीं हैं-क्योंकि देश के विभिन्न इलाके में अलग-अलग बोली-भाषा, जाति-समुदाय एवं वर्ग के लोग रहते हैं। देश के आदिवासी, किसान, दलित, मेहनतकश वर्ग का जीवन शैली प्रकृति एवं पर्यावरण के ताना-बाना के साथ जुड़ा हुआ है। इसीलिए देश में दो तरह के कानून बनाये गये। एक सामान्य कानून जो सामान्य क्षेत्र के लिए दूसरा विशेष कानून विशेष क्षेत्र के लिए बनाया गया। प्रकृतिकमूलक आदिवासी बहुल एरिया को विशेष क्षेत्र के अंतर्गतं रखा गया। इन क्षेत्रों पांचवी अनुसूचि तथा छठी अनुसूचि में बांटा गया, जबकि सामान्य जाति वर्ग समुदाय के इलाके को सामान्य क्षेत्र में रखा गया।
इसी अनुसूचि क्षेत्र में झारखंड में ंछोटानागपुर काष्तकारी अधिनियम 1908, संताल परगना अधिनियम 1949, पेसा कानून 1996, वन अधिकार अधिनियम 2006 भी है। ये सभी कानून आदिवासी, मूलवासी, दलित, मच्छूवरा सहित 32 आदिम जनजाति समुदायों के अधिकारों के रक्षा के लिए है।
लेकिन दुखद बात यह है कि -आजादी के बाद विकास के नाम पर देष के आदिवासी, किसान, दलित, मेहनतकषों के हितों और अधिकारों की रक्षा के लिए प्रावधान सभी तरह के कानूनों को बदल कर देष की अर्थव्यस्था को विष्व के पूंजि बाजार के ढांचे में ढाल दिया गया। आज देष की अर्थव्यस्था को विष्व पूंजिबाजार के पैमाने पर संचालित किया जा रहा है। जो पूरी तरह से पूंजि-पतियों, माल्टिनेषनल कंपनियों तथा वाल्डबैंक द्वारा संचालित तथा नियंत्रित हो रहा है। देष की सरकार भारतीय नागरिकों के लिए रक्षा के लिए प्रावधान नीति, नियमों, कानूनों को विष्व पूंजि बाजार के अनुकूल बदलने का काम कर रही है।
देष के आजादी के इन 70 सालों में देष के आदिवास, किसान, मच्छुवारे, मजदूर, दलित, सहित सभी मेहनतकष एवं प्रकृति एवं पर्यावरण के साथ जीने वाले समुदायों के हाथ से छीन कर पूंजिपतियों को मुनाफा कमाने के लिए, व्यसायिक वस्तु बना कर सौंप रही है। आम नागरिकों का अधिकार समाप्त किया जा रहा है। आज ये समुदाय सवाल उठा रहे हैं-हम भारतीय संविधान में प्रदत्त अधिकार के अंतर्गत हमें जीने का अधिकार है या नहीं? हमारा देष एक कल्याणकारी देष है। सरकार की पहली प्रथमिकता अपने नागरिकों के हक-अधिकार की रक्षा करना, नागरिकों के लिए राज्य एवं देष में षांति-व्यवस्था स्थापित करना। लेकिन आज सरकार की प्रथमिकता बन गयी है-बाहरी पूजिपतियों, कारपोरेट घरानों को सुख-सुविधा उपल्बध कराना। अब सरकार और आम नागरिकों के बीच की दूरी बढ़ते जा रही है।
बाजार आधारित अर्थव्यवस्था में आम आदमी की भागीदारी सुकुडता जा रहा है। उत्पादन और आय के वितरण का केंन्द्र बिंदू सिर्फ पूंजिपति वर्ग हैं। यही कारण है कि-देश की अर्थव्यवस्था का 80 प्रतिषत हिस्सा देश के 10 प्रतिशत अमीरों के हाथों सिमट गया है। आज विकास के नाम पर एैसे-एैसे कानून बनाये जा रहे हैं-जो सिर्फ और सिर्फ पूंजिपतियों और कारपोरेट हितों की रक्षा के लिए है। इससे समझना जरूरी है। आज हम क्या खायेगें? क्या पहनेगें? क्या पढेंगें? कौन सा धर्म मानेंगें? क्या बोलेंगें इस पर भी प्रतिबंध लगाया जा रहा है। इसके लिए कई कानून लाये गये-जो आम लोगों के अभिव्यित्कि सहित धर्म स्वतंत्रता को भी खत्म कर दिया।
विकास का भ्रमजाल क्यों?
विकास के मकडजाल में आदिवासी-मूलवासी किसान, मेहनतकश्स समुदाय फंसते जा रहा है। विकास का यह मकडजाल काॅरपोरेट घरानों, देश-विदेश के पूंजिपतियों के लिए जमीन की लूट के लिए केंन्द्र तथा राज्य के रघुवर सरकार द्वारा तैयार नीतियों का जाल है। जो आदिवासी-मूलवासी, किसान सामाज के उपर एक ष्ष्फेंका जालष्ष् की तरह है। इस जाल के सहारे आदिवासी-मूलवासी, किसान एवं मेनतकस समुदाय को राज्यकीय व्यवस्था के सहारे काबू में ला कर इनके हाथ से जल-जंगल-जमीन एवं पर्यावरण को छीन कर काॅरपोरेट घरानों कों सौंपने की पूरी तैयारी है। एक ओर भाजपानीत केंन्द्र एवं राज्य सरकार आदिवासी, किसानों के हक-अधिकारों के संगरक्षण की ढोल पीटती है, और दूसरी ओर इनके सुरक्षा कवच के रूप में भारतीय संविधान में प्रावधान अधिकारों को ध्वस्त करते हुए काॅरपोरेटी सम्राज्य स्थापित करने जा रही है। जिंदगी के तमाम पहलूओं-भोजन, पानी, स्वस्थ्य, षिक्षा, सहित हवा सभी को व्यवसायिक वस्तु के रूप में मुनाफा कमाने के लिए ग्लोबल पूंजि बाजार में सौदा करने के लिए डिस्पले-सजा कर के रख दिया है।
ग्राामीण अर्थव्यवस्था,भाषा -संस्कृति , सामाजिक मूल्यों एव पर्यावरण पर हमला
अपनी मिटटी के सुगंध तथा अपने झाड-जंगल के पुटुस, कोरेया, पलाष, सराई, महुआ, आम मंजरी के खुषबू से सनी जीवनौली के साथ विकास के रास्ते बढने के लिए संक्लपित परंपरागत आदिवासी-मूलवासी, किसान समाज के उपर थोपी गयी विकास का मकडजाल स्थानीयता नीति 2016, सीएनटी, एसपीटी एक्ट संशोधन बिल 2017, महुआ नीति 2017, जनआंदोलनों को नियंत्रित करने के लिए बनाया गया-क्षति पूर्ति कानून 2016, गो रक्षा कानून 2017, झारखंड धर्मातरण विधेयक 2017, भूमिं अधिग्रहण विधेयक 2017, भूमि बैंक, डिजिटल झारखंड, लैंण्ड रिकार्ड आॅनलाइन करना, सिंगल विण्डोसिस्टम से आॅनलाइन जमीन हस्तांत्रण एवं म्यूटेशन जैसे नीतियों को लागू करना, निश्चित रूप से आदिवासी-मूलवासी किसान, मेहनतकश समुदायों के समझ के परे की व्यवस्था है। यह व्यवस्था राज्य के एक-एक इंच जमीन, एक-एक पेड-पौधों, एक-एक बूंद पानी को राज्य के ग्रामीण जनता के हाथ से छीनने का धारदार हथियार है।
आज सरकार विकास के नाम पर लैंड बैंक---बना कर आदिवासी समुदाय के हाथ से उनका जमीन-जंगल छीन कर उद्योपतियों को देने का योजना बना रही हैं। केंन्द्र की मोदी सरकार तथा राज्य की रघुवर सरकार झारखंड से बाहर एवं देष के बाहर कई देषों में पूजिपतियों को झारखंड की धरती पर पूंजि निवेष के लिए आमंत्रित करने में व्यस्त हैं। 16-17 फरवरी 2017 को झारखंड की राजधानी रांची में ग्लोबल इनवेस्टर समिट को आयोजन कर 11 हजार देषी-विदेषी पूंजिपतियों को आमंत्रित किया गया था। इस दौरान 210 कंपनियों के साथ एमओयू किया गया। इस एमओयू में 121 उद्वोगों के लिए किया गया, जबकि कृषि -खेती-के क्षेत्र के लिए सिर्फ एक एमओयू किया गया। इसके पहले 2000 से 2006 के बीच 104 बड़े बडे कंपनियों के साथ एमओयू किया गया हे। यदि सभी कंपनियों को अपने जरूरत के हिसाब से जमीन, जंगल, पानी, खनीज उपलब्ध किया जाए-तो आने वाले दस सालों के अंदर झारख्ंाड में एक इंज भी जमीन नहीं बचेगी, एक बूंद पानी नहीं बचेगा। इसे सिर्फ आदिवासी मूलवासी, किसान ,मेहनतकष समुदाय केवल नहीं उजडेगें, परन्तु प्रकृति पर निर्भर सभी समुदाय स्वता ही उजड़ जाऐगें। जिनका कल का कोई भविष्य नहीं होगा।
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