झारखंड सहित देशभर के 11 करोड़ प्रकृति पूजक आदिवासियों ने तेज की धर्म कोड की मांग-
आजनीतिक दल आदिवासी धर्म कोड के पक्षधर, पर लागू करने की पहल नहीं, कर रहे सिर्फ राजनीति
झारखंड सहित पूरे देश में रह रहे आदिवासियों ने जैन धर्माबलंबियों की संख्या को आधार बनाते हुए सरना धर्म कोड की मांग तेज कर दी है। 2011 की जनगणना के अनु सार देश में जैन ध्र्मावलंबियों की अबादी 44, 51, 753 आंकी गयी है। आदिवासी समाज का तर्क है कि जब इनका अलग से धर्म कोड हो सकता है तो पूरे देश में रह रहे 10,42,81,034 प्रकृति पूजक आदिवासियों को अलग धर्म कोड क्यों नहीं हो सकता। झारखंड बनने के बाद आदिवासियों की संख्या में कमी दर्ज की गयी है। केवल झारखंड की बात की जाए, तो यहां 30 लाख आदिवासियों की गणना किस धर्म में हुए यह वे कहां गए, इसका किसी को पता नहीं। झारख्ंाड के सभी राजनीतिक दल सरना धर्म कोड के पक्षधर हे, लेकिन 17 वर्षों में अबतक किसी ने भी सरना धर्म कोड लागू करने की पहल नहीं की है।
संख्या बढ़ी, फिर भी प्रतिशत में कमी दर्शायी गयी-
दो दशक की जनगणना के आंकडे के अनुसार आदिवासियों की संख्या कम हो गयी। 2001 की जनगणन रिपोर्ट के अनुसार झारखं डमें आदिवासियों की आबादी 70.14 लाख थी, वहीं 2011 में आबादी बढ़ कर 86,45,042 हो गयी। लेकिन 2001 में 26.3 प्रतिशत दर्शायी गयी। जबकि 2011 में यह घट कर 26.2 प्रतिशत हो गयी।
2011 के जनगणना के हिसाब से झारखं डमें आदिवासियों की कूल संख्या 86,45,042 है। जिसमें ईसाई लिखने वाले आदिवासियों की संख्या 14 लाख और सरना लिखने वाले 42,35,786 हैं। अगर दोनों को मिला दिया जाए, तो ईसाई व सरना आदिवासियों की संख्या 56,35,786 है। इसे कुल संख्या से घटा दिया जाए, तो 30,09,256 किधर गए। या तो इन्होनें हिंदू धर्म दर्ज कराया या फिर अन्य में। 2011 में सरना कोड की मांग उठी, तो आदिवासियों ने जनगणना में फार्म में खुद ही सरना धर्म अंकित कर दिया था। इसलिए जनगणना रिपोर्ट में सरना धर्मावलंबियों का अंकडा 42 लाख आ सका। (स्त्रोत-दैनिक भास्कर 17 अक्टोबर 2017)
विदित हो कि 2011 में जनगणना के पहले सरना कोड की मांग को लेकर जोरदार आंदोलन हुआ था-तब यह तय किया गया था, कि जब तक जनगणना फोम में सरना कोड अंकित नहीं किया जाएगा, आदिवासी समुदाय जनगणना का बहिस्कार करेगें। लेकिन सरकार की ओर से किसी तरह को कार्रवाई नहीं किया गया, और जनगणना भी शुरू कर दिया गया। तब कई ग्रामीण ईलाकों में आदिवासी समुदाय ने जनगणना का बहिस्कार किया। परिणामता, उन गांवों की आदिवासी आबादी जनगणना रिपोर्ट से गौण हो गया।
सरकार को बताना होगा कि 30,09,256 आदिवासी आबादी को किस धर्म समुह में शामिल किया गया है। यदि आदिवासियों हित की चिंता किसी भी राजनीतिक पार्टीयांें को है-तो स्वेतपत्र जारी करना चाहिए कि इनकी गणना कहां की गयी है।
जहां तक दोहरा लाभ लेने का अरोप--जहां तक ईसाई बने आदिवासियों पर दोहरा लाभ लेने का अरोप है, तो इसको भी उजागार करना चाहिए कि किन किन योजनाओं में ये दोहरा लाभ ले रहे हैं, क्योंकि इसका अंकड़ा सरकार के पास तो होगा ही। ताकि अरोप साफ हो सके।
सरना, मसना घेरा बंदी करने पीछे और कोई रहस्य तो नहीं?
रघुवर सरकार ने घोषणा की है कि आदिवासी समुदाय के सरना, मसना, कब्रस्थान, हडगड़ी का घेराबंदी किया जाएगा, ताकि आदिवासियों का धर्मिक स्थल सुरक्षित रहे। इस योजना के तहत सरकार ने 44 करोड राशि देकर राज्य के 603 स्थलों की घेराबंदी करने का निर्देश दिया है। यह काम शहरी ईलाकों में जहां आदिवासी गांव विलुप्त हो रहे हैं, जमीन का अतिक्रमण हो रहा है, आदिवासी गांव अब नगरिय रूप ले चुका है, जहां वहां गांव बसाने वाले आदिवासी आबादी और उनकी जमीन पूरी तरह खत्म हो चुकी है-वहां सरना, मसना, हडगडी स्थलों के घेराबंदी की मांग समाज करते आया है। लेकिन आरएसएस और बीजेपी ने इस मांग को अलग रूप देने की कोशिश कर रहा है। इस योजना के तहत आदिवासी समाज को अपनी ओर खिंचने का एक बड़ा जरीया मान रहा है। लेकिन सवाल है कि-ग्रामीण ईलाकों के सरना, मसना, कब्रिस्थान, हडगडी का घेराबंदी करने के पीछे उद्वेश्य अलग है, सरकार भूमिं बैंक बनायी है-इसमें पूरे राज्य के सभी समुदाय के कब्रिस्थानों, अखड़ा, सरना, मसना, हडगडी, जहेरथान, झील, नाला-लोर, खेलमैदान, आम रास्ता, चरागाह, डोंगरी, झाड़ी, सहित सभी गैर मजरूआ आम, मजरूआ खास जमीन को मिलाकर भूमिं बैंक बनाया है। सरकार धर्मिक स्थलों योजना के तहत इन भूमिं बैंक की योजना को सफल बनाना चाहती है। ताकि समाज विरोध न करें और भूमिं बैंक के तहत आदिवासी ईलाके को इए-एक इंच जमीन ंिसगल विंडो सिस्टम से आॅन लाईन सरकार जिसको चाहे हस्तंत्रित कर सके। यह जमीन लूटने का एक बड़ी साजिश का हिस्सा है, इसको समझने की जरूरत है।
क्या सही में भाजपा सरकार सरना आदिवासी समाज के हितों की रक्षा करना चाहती है?
रघुवर सरकार 2016 में कई कानून लेकर आये। सबसे पहले आदिवासी-मूलवासी जनविरोधी स्थानीयता नीति 2016 लाया। गो रक्षा कानून, आदिवासी-मुलवासी किसान विरोधी महुआ नीति 2017, झारखंड धर्म स्वतंत्र विधेयक 2017, जमीन अधिग्रहण संशोधन विधेयक 2017, भूमिं बैक, इन सभी कानून को बिना बहस किये, जनता से बिना विमार्श किए एक छण भर में राज्य का कानून का रूप दिया गया। तब सरना समुदाय के लिए सरना धर्म कोड देने में विलंब क्यों? क्योंकि राज्य में बीजेपी की सरकार और केंन्द्र में भी बीजेपी की सरकार है। यही नहीं राज्य के 14 संासदों में 12 संसद बीजेपी के, 4 राज्यसभा सदस्यों में 3 बीजेपी के हैं। तब सरना कोर्ड को कानूनी रूप देने में कोई बाधा है ही नहीं, सिर्फ इच्छा शक्ति हो।
आजनीतिक दल आदिवासी धर्म कोड के पक्षधर, पर लागू करने की पहल नहीं, कर रहे सिर्फ राजनीति
झारखंड सहित पूरे देश में रह रहे आदिवासियों ने जैन धर्माबलंबियों की संख्या को आधार बनाते हुए सरना धर्म कोड की मांग तेज कर दी है। 2011 की जनगणना के अनु सार देश में जैन ध्र्मावलंबियों की अबादी 44, 51, 753 आंकी गयी है। आदिवासी समाज का तर्क है कि जब इनका अलग से धर्म कोड हो सकता है तो पूरे देश में रह रहे 10,42,81,034 प्रकृति पूजक आदिवासियों को अलग धर्म कोड क्यों नहीं हो सकता। झारखंड बनने के बाद आदिवासियों की संख्या में कमी दर्ज की गयी है। केवल झारखंड की बात की जाए, तो यहां 30 लाख आदिवासियों की गणना किस धर्म में हुए यह वे कहां गए, इसका किसी को पता नहीं। झारख्ंाड के सभी राजनीतिक दल सरना धर्म कोड के पक्षधर हे, लेकिन 17 वर्षों में अबतक किसी ने भी सरना धर्म कोड लागू करने की पहल नहीं की है।
संख्या बढ़ी, फिर भी प्रतिशत में कमी दर्शायी गयी-
दो दशक की जनगणना के आंकडे के अनुसार आदिवासियों की संख्या कम हो गयी। 2001 की जनगणन रिपोर्ट के अनुसार झारखं डमें आदिवासियों की आबादी 70.14 लाख थी, वहीं 2011 में आबादी बढ़ कर 86,45,042 हो गयी। लेकिन 2001 में 26.3 प्रतिशत दर्शायी गयी। जबकि 2011 में यह घट कर 26.2 प्रतिशत हो गयी।
2011 के जनगणना के हिसाब से झारखं डमें आदिवासियों की कूल संख्या 86,45,042 है। जिसमें ईसाई लिखने वाले आदिवासियों की संख्या 14 लाख और सरना लिखने वाले 42,35,786 हैं। अगर दोनों को मिला दिया जाए, तो ईसाई व सरना आदिवासियों की संख्या 56,35,786 है। इसे कुल संख्या से घटा दिया जाए, तो 30,09,256 किधर गए। या तो इन्होनें हिंदू धर्म दर्ज कराया या फिर अन्य में। 2011 में सरना कोड की मांग उठी, तो आदिवासियों ने जनगणना में फार्म में खुद ही सरना धर्म अंकित कर दिया था। इसलिए जनगणना रिपोर्ट में सरना धर्मावलंबियों का अंकडा 42 लाख आ सका। (स्त्रोत-दैनिक भास्कर 17 अक्टोबर 2017)
विदित हो कि 2011 में जनगणना के पहले सरना कोड की मांग को लेकर जोरदार आंदोलन हुआ था-तब यह तय किया गया था, कि जब तक जनगणना फोम में सरना कोड अंकित नहीं किया जाएगा, आदिवासी समुदाय जनगणना का बहिस्कार करेगें। लेकिन सरकार की ओर से किसी तरह को कार्रवाई नहीं किया गया, और जनगणना भी शुरू कर दिया गया। तब कई ग्रामीण ईलाकों में आदिवासी समुदाय ने जनगणना का बहिस्कार किया। परिणामता, उन गांवों की आदिवासी आबादी जनगणना रिपोर्ट से गौण हो गया।
सरकार को बताना होगा कि 30,09,256 आदिवासी आबादी को किस धर्म समुह में शामिल किया गया है। यदि आदिवासियों हित की चिंता किसी भी राजनीतिक पार्टीयांें को है-तो स्वेतपत्र जारी करना चाहिए कि इनकी गणना कहां की गयी है।
जहां तक दोहरा लाभ लेने का अरोप--जहां तक ईसाई बने आदिवासियों पर दोहरा लाभ लेने का अरोप है, तो इसको भी उजागार करना चाहिए कि किन किन योजनाओं में ये दोहरा लाभ ले रहे हैं, क्योंकि इसका अंकड़ा सरकार के पास तो होगा ही। ताकि अरोप साफ हो सके।
सरना, मसना घेरा बंदी करने पीछे और कोई रहस्य तो नहीं?
रघुवर सरकार ने घोषणा की है कि आदिवासी समुदाय के सरना, मसना, कब्रस्थान, हडगड़ी का घेराबंदी किया जाएगा, ताकि आदिवासियों का धर्मिक स्थल सुरक्षित रहे। इस योजना के तहत सरकार ने 44 करोड राशि देकर राज्य के 603 स्थलों की घेराबंदी करने का निर्देश दिया है। यह काम शहरी ईलाकों में जहां आदिवासी गांव विलुप्त हो रहे हैं, जमीन का अतिक्रमण हो रहा है, आदिवासी गांव अब नगरिय रूप ले चुका है, जहां वहां गांव बसाने वाले आदिवासी आबादी और उनकी जमीन पूरी तरह खत्म हो चुकी है-वहां सरना, मसना, हडगडी स्थलों के घेराबंदी की मांग समाज करते आया है। लेकिन आरएसएस और बीजेपी ने इस मांग को अलग रूप देने की कोशिश कर रहा है। इस योजना के तहत आदिवासी समाज को अपनी ओर खिंचने का एक बड़ा जरीया मान रहा है। लेकिन सवाल है कि-ग्रामीण ईलाकों के सरना, मसना, कब्रिस्थान, हडगडी का घेराबंदी करने के पीछे उद्वेश्य अलग है, सरकार भूमिं बैंक बनायी है-इसमें पूरे राज्य के सभी समुदाय के कब्रिस्थानों, अखड़ा, सरना, मसना, हडगडी, जहेरथान, झील, नाला-लोर, खेलमैदान, आम रास्ता, चरागाह, डोंगरी, झाड़ी, सहित सभी गैर मजरूआ आम, मजरूआ खास जमीन को मिलाकर भूमिं बैंक बनाया है। सरकार धर्मिक स्थलों योजना के तहत इन भूमिं बैंक की योजना को सफल बनाना चाहती है। ताकि समाज विरोध न करें और भूमिं बैंक के तहत आदिवासी ईलाके को इए-एक इंच जमीन ंिसगल विंडो सिस्टम से आॅन लाईन सरकार जिसको चाहे हस्तंत्रित कर सके। यह जमीन लूटने का एक बड़ी साजिश का हिस्सा है, इसको समझने की जरूरत है।
क्या सही में भाजपा सरकार सरना आदिवासी समाज के हितों की रक्षा करना चाहती है?
रघुवर सरकार 2016 में कई कानून लेकर आये। सबसे पहले आदिवासी-मूलवासी जनविरोधी स्थानीयता नीति 2016 लाया। गो रक्षा कानून, आदिवासी-मुलवासी किसान विरोधी महुआ नीति 2017, झारखंड धर्म स्वतंत्र विधेयक 2017, जमीन अधिग्रहण संशोधन विधेयक 2017, भूमिं बैक, इन सभी कानून को बिना बहस किये, जनता से बिना विमार्श किए एक छण भर में राज्य का कानून का रूप दिया गया। तब सरना समुदाय के लिए सरना धर्म कोड देने में विलंब क्यों? क्योंकि राज्य में बीजेपी की सरकार और केंन्द्र में भी बीजेपी की सरकार है। यही नहीं राज्य के 14 संासदों में 12 संसद बीजेपी के, 4 राज्यसभा सदस्यों में 3 बीजेपी के हैं। तब सरना कोर्ड को कानूनी रूप देने में कोई बाधा है ही नहीं, सिर्फ इच्छा शक्ति हो।
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