5 जुलाई 2015 को कोयलकारो जनसंठन जल-जंगल-जमीन, भाषा-संस्कृति अपने इतिहास और पहचान की रक्षा के लिए 20वां संक्लप दिवस तोरपा-तपकरा के शहीद स्थल पर मना रही है। तत्कालीन बिहार सरकार द्वारा प्रस्तावित 710 मेगावाट बिजली उत्पादन के लिए खूंटी जिला में बह रही कोयल नदी और गुमला जिला के बसिया क्षेत्र से बह रही कोयल नदी पर दो अलग अलग जगह पर डैम बनाने की योजना थी। के्रन्द्र सरकार और तत्कालीन राज्य सरकार ने 5 जुलाई 1995 को परियोजना का शिलान्यास करने की घोषणा की थी। कोयलकारो हाईडल पावर प्रोजेक्ट के बनने से खूंटी जिला, गुमला जिला और पष्चिमी सिंह भूंम के कुल 245 गांव प्रभावित होते। 55 हजार एकड़ खेती की जमीन जलमग्न हो जाती। 27 हजार एकड़ जंगल भूमिं पानी में डूब जाता। आदिवासी-मूलवासियों के सैकडों धर्मिक स्थल सरना-ससन दीरी भी जलमग्न हो जाता। प्रभावित क्षेत्र के ग्रामीण कोयलकारो जनसंगठन के बेनर तले 1966-67 से ही परियोजना का विरोध करते आ रहे हैं। कोयलकारो जनसंगठन का मनना है कि-आदिवासियों के इतिहास-पहचान, भाषा-संस्कृति, जंल-जंगल-जमीन को किसी मुआवजा से नहीं भरा जा सकता है, न ही इसका पूर्नास्थापना या पुर्नास्थापित संभव है। 5 जुलाई 1995 को कोयलकारो जनसंगठन ने संकल्प लिया-कि हम किसी भी कीमत में विस्थापन स्वीकार नहीं करेगें।
कोयलकारो जनसंगठन स्वर्गीय मोजेश गुडिया, स्वर्गीय राजा पौलुस गुडिया, सोमा मुंडा, सदर कंडुलना, धनिक गुडिया, रेजन गुडिया, अमृत गुडिया, बिजय गुडिया, कोयल क्षेत्र से बलकु खडिया, अलफ्रेद आइंद, पीसी बड़ाईक सहित सैकड़ों संर्घरत साथियों के सामूहिक नेतृत्व में संर्घष को जीत के मंजिल तक पहुंचाये। आंदोलन ने कई उतार-चढ़ाव देखे, लेकिन कभी झुका नहीं, न ही टूटा। राज्य बनने के बाद पुलिस प्रशासन द्वारा साजिश के तहत कोयलकारो जनसंगठन द्वारा लगाया गया डेरांग स्थित बैरेकेटिंग को 1 फरवरी 2001 को तोड़ा गया। इसके विरोध में जनसंगठन ने 2 फरवरी को तपकरा ओपी के सामने शतिपूर्वक धरना दे रहा था-इस पर पुलिस ने गोली चलायी। जिसमें आठ साथी शहीद हो गये। शहीद समीर डहंगा-बण्डआजयपुर, सुंदर कन्डुलना-बनाय, सोमा जोसेफ गुडिया, लूकस गुडिया-दोनों गोंडरा, बोदा पाहन-चम्पाबहा, जमाल खाॅं-तपकरा, सुरसेन गुडिया-डेरांग इन शहिदों के खून से लाल इस धरती ने पूरे देश के जनआंदोलन को दिशा दिया है-हम षहिद हो सकते हें-लेकिन अपने धरोहर का सौदा नहीं कर सकते हैं।
कोयलकारो जनसंगठन के इतिहास में कई महत्वपूर्ण दिन और घटनाएं जनआंदोलनों को उर्जा देती हैं। इनमें से प्रमूख तौर पर 5 जुलाई 1995 को जनविरोध की ताकत के सामने केंन्द्र और तत्कालीन राज्य सरकार को झुकना पड़ा था-और परियोजना के शिलान्यास का कार्यक्रम स्थागित करना पड़ा था। 2 फरवरी 2001 को जनसंगठन पर पुलिस फायरिंग किया गया था। इन दोनों तिथि में जनसंगठन शहिदों के रास्ते चलने के लिए तथा कोयलकारो परियोजना से होने वाले विस्थापन को रोकने का संकल्प लेता है
कोयलकारो जनसंगठन स्वर्गीय मोजेश गुडिया, स्वर्गीय राजा पौलुस गुडिया, सोमा मुंडा, सदर कंडुलना, धनिक गुडिया, रेजन गुडिया, अमृत गुडिया, बिजय गुडिया, कोयल क्षेत्र से बलकु खडिया, अलफ्रेद आइंद, पीसी बड़ाईक सहित सैकड़ों संर्घरत साथियों के सामूहिक नेतृत्व में संर्घष को जीत के मंजिल तक पहुंचाये। आंदोलन ने कई उतार-चढ़ाव देखे, लेकिन कभी झुका नहीं, न ही टूटा। राज्य बनने के बाद पुलिस प्रशासन द्वारा साजिश के तहत कोयलकारो जनसंगठन द्वारा लगाया गया डेरांग स्थित बैरेकेटिंग को 1 फरवरी 2001 को तोड़ा गया। इसके विरोध में जनसंगठन ने 2 फरवरी को तपकरा ओपी के सामने शतिपूर्वक धरना दे रहा था-इस पर पुलिस ने गोली चलायी। जिसमें आठ साथी शहीद हो गये। शहीद समीर डहंगा-बण्डआजयपुर, सुंदर कन्डुलना-बनाय, सोमा जोसेफ गुडिया, लूकस गुडिया-दोनों गोंडरा, बोदा पाहन-चम्पाबहा, जमाल खाॅं-तपकरा, सुरसेन गुडिया-डेरांग इन शहिदों के खून से लाल इस धरती ने पूरे देश के जनआंदोलन को दिशा दिया है-हम षहिद हो सकते हें-लेकिन अपने धरोहर का सौदा नहीं कर सकते हैं।
कोयलकारो जनसंगठन के इतिहास में कई महत्वपूर्ण दिन और घटनाएं जनआंदोलनों को उर्जा देती हैं। इनमें से प्रमूख तौर पर 5 जुलाई 1995 को जनविरोध की ताकत के सामने केंन्द्र और तत्कालीन राज्य सरकार को झुकना पड़ा था-और परियोजना के शिलान्यास का कार्यक्रम स्थागित करना पड़ा था। 2 फरवरी 2001 को जनसंगठन पर पुलिस फायरिंग किया गया था। इन दोनों तिथि में जनसंगठन शहिदों के रास्ते चलने के लिए तथा कोयलकारो परियोजना से होने वाले विस्थापन को रोकने का संकल्प लेता है
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