Tuesday, July 7, 2015

विकास का इतिहास गवाह है कि-जब तक आदिवासी-मूलवासी-किसान-मेहनतकश अपने खेत-खलिहान, जंगल-जमीन से जुड़ा रहता है,

               आदिवासी मूलवासी अस्तित्व रक्षा मंच
                     खूंटी-गुमला-झारखंड
            केंन्द्रीय कार्यालय कोरको टोली-तोरपा-खूंटी-झारंखड      
सेवा में                                              पत्रांक.......o1..............
महामहिम राज्यपाल महोदय                             दिनांक...19 jan..2015.......................   
झारखंड
विषय-जल-जंगल-जमीन सहित तमाम प्राकृतिक संसाधनों की खुली लूट को स्थापित करने वाले भूमिं अधिग्रहण अध्यादेश  201५  को हर हाल में वापस लेना होगा, तथा भूंमि अधिग्रहण कानून 2013 को वापस लाना होगा। साथ ही राज्य के सीएनटी एक्ट और एसपीटी एक्ट को कड़ाई से लागू करने की मांग।

इतिहास गवाह है कि हमारे पूर्वजों ने बाघ-भालू, सांप-बिच्छुओं से लड़ कर झारखंड की धरती को आबाद किया है। झाड़-जंगल साफ कर खेती लायक जमीन बनाया। जंगल-झाड़ एवं पर्यावरण को सुरक्षित रक्षा। जंगल-जमीन-पहाड़-नदी-नाला आदिवासी-मूलवासी, किसानों का इतिहास, अस्तित्व और पहचान है। यही हमारी भाषा-संस्कृति, गीत और संगीत भी है। 
विकास का इतिहास गवाह है कि-जब तक आदिवासी-मूलवासी-किसान-मेहनतकश  अपने खेत-खलिहान, जंगल-जमीन से जुड़ा रहता है, तब तक ही आदिवासी-मूलवासी-किसान जीवित रह सकते हैं। जल-जंगल-जमीन के साथ हमारा सहअस्तित्व को अच्छुन रखने के लिए ही-छोटानागपुर काशतकारी तथा संताल परगना कशतकारी अधिनियम बनाया गया। आजाद भारत के संविधान ने भी पांचवी-छठवीं अनुसूचि के तहत हमारे समुदाय को प्रकृतिक संसाधनों के साथ विकसित तथा इसे संचालित और नियंत्रित करने का अधिकार गांव सभा-ग्राम सभा को दिया है। 
भूमिं अधिग्रहण कानून 1894 के जनविरोधी प्रावधानों को खत्म कर जनपक्षिये कानून लाने,  देश  के प्रकृतिक संसाधनों पर किसानों-आदिवासियों-मूलवासियों तथा स्थानीय ग्राम सभा का नियंत्रण बरकरार रखनंे की मांग को लेकर लंबे संघर्ष के बाद, 2013 में ग्राम सभा के अधिकारों तथा आदिवासी-मूलवासी-किसानों के अधिकारों को मजबूदी देने के लिए भूमिं अधिग्रहण कानून 2013 बनाया गया। 
ल्र्किन  केंन्द्र की मोदी सरकार ने इन  तमाम अधिकारों को सीरे से खारीज करते हुए भूमिं अधिग्रहण अध्यादेश  2014 लाया। जो पूर्ण रूप से राज्य के आदिवासी-मूलवासी-किसान विरोधी है। यह कानून सिर्फ पूजिंपती और कारपोरेट कंपनियों को जंगल-जमीन और तमाम प्रकृतिक संपदा को देने के लिए लाया गया है। यह सिर्फ जंगल-जमीन और प्रकृतिक संसाधनों की खूली लूट को ही बढ़वा देगा। इसे तेजी से झारंखडी जनता विस्थापित होंगें। परर्यावरण नष्ट होगा। बेरोजगारी बढ़ेगी। देश  सहित राज्य में प्रकृतिक अपदा बढ़ेगा। आदिवासी-मूलवासी-किसानों सहित तमाम मजदूर-मेहनतकशों  पर हर तरह के हिंसा और अत्याचार बढ़ेगा। 
हमारी मांगें
1-उपरोक्त दुशपरिणामों को रोकने के लिए भूमिं अधिग्रहण अध्यादेश  2014 को हर हाल में वापस लेना होगा तथा भूंमि अधिग्रहण कानून 2013 को वापस लाना होगा। 
2-झारखंडी आदिवासी-मूलवासियों की भवना के अनुरूप स्थानीययता नीति बना कर तुरंत लागू किया जाए।
3-शिक्षा एवं स्वास्थ्य का निजीकरण, पीपीपी माॅडल को नहीं सौंपा जाए। राज्य और देश  के कल्याणकारी सरकार की जिम्मेदारी है कि  राज्य के नागरिकों को शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधा दे।
4-सरकारी स्कूलों में शिक्षा अधिकार कानून के तहत क्षकों की नियुक्ती तुरंत किया जाए।
5-प्रत्येक पंचायत में स्वस्थ्य उपकेंन्द्र खोला जाए तथा उपकेंन्द्रो में स्वास्थ्य कर्मचारियों की नियुक्ती की जाए।
6-मनरेगा योजना को पूर्ववत चलाया जाए तथा इस योजना में फलदार वृक्षारोपण को भी शमिल   किया जाए।
7-प्रखंड कार्यालयों, स्कूलों, स्वास्थ्य केंन्द्रों, अंचल कार्यालयों तथा पंचायतों में स्थानीय जनभावनाओं को देखते हुए स्थानों को भरा जाए। 
8-विभिन्न विकास परियोजनाओं से पूर्व में विस्थापितों को पूनर्वासित-तथा जिन परियोजनाओं से विस्थापित हुए हैं-वहीं नौकरी-रोजगार दिया जाए। 
                                           निवेदक
      आदिवासी मूलवासी अस्तित्व रक्षा मंच, डैम प्रभावित संघर्ष समिति - झारखंड

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