Monday, November 4, 2013

अगर ऐसा ही करत्ते आ रहे हैं - तब लोकतंत्र कि रक्छा में हम अपना ईमानदारी योगदान नहीं कर रहे हैं।

समाज , राज्य और पूरे  देश में अभी एक ही चर्चा है कि -देश से किस तरह भ्रस्टाचार को जड़ से उखाड़  फेंका जा सकता है - इसके लिए सभी चिंता जाहिर करते हैं -लेकिन सच तो यही है कि -जो राज्य और देश कि बागडोर सँभालने वाले कतई  नहीं चाहत्ते हैं कि -देश से भ्रस्टाचार और भ्रस्टाचरी ख़तम हो जाएँ।  जब चुनाव सामने आता है -तो राजनेतिक पार्टीं उन्ही आदमी को अपना उमीदवार बनाएगा - जो कितना बड़ा गुंडा होगा, कितना हत्या किया है, कितना डाका डालने में बड़ा रेकॉर्ड बना पाया है , कितना छल -बल, छूट -फाँस माँ मास्टर डिग्री हासिल किया है। .आप जनता को कितना ठग सकता है ---यही है उमीदवारों कि - योग्यता।  हाँ हमें भी इस चुनाव में अपने भूमिका तलाशनी चाहिए कि - हम क्या करते हैं ? 
मुझे लगता है कि हैम लोगों को भी अपनी भूमिका - जो अभी तक निभाते आये हैं -उससे ईमानदारी से स्वीकार कर लेना चाहिए।  कि हमने क्या नेताओं के -कहने पर उनके दवारा खड़ा किये - भ्रस्ट , लुटेरे , कातिल, खुनी , डकैत उमीदवारों को ही अपना जनप्रतिनिधि बनाने के लिए -अपना योगदान-किये हैं ???????
अगर ऐसा ही करत्ते आ रहे हैं - तब लोकतंत्र कि रक्छा में हम अपना ईमानदारी योगदान नहीं कर रहे हैं। 

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