Tuesday, November 19, 2013

इन १३ बर्षो में राज का मुखिया पद आदिवासियों के हाथ में रहा. राज में सैकड़ों आदिवासी मंत्री बने बिभिन बिभागों को संचालित-नियंत्रित करने कि जिम्मेवारी आदिवासियों में ही हाथ में रहा। आदिवासी कल्याण मंत्री भी आदिवासी ही रहे। फिर भी राज में आदिवासियों के हित में बने कानूनों का आदिवासी हित में न तो पालन-लागु किया गया न ही सुरक्छा किया गया.

राज बने  13 साल पुरे  हो गए इन १३ सालों  में ९ आदिवासी मुख्यमंत्री  बने।   इन १३ वर्षों  में नियम अनुसार टी ए सी कि  25 बैठकें होनी चहिये थी।  लेकिन २५ बैठकों  के बदले 12 बैठकें ही कि गयी।   नौ महीने से बैठक नहीं, प्रशासनिक नियंत्रण भी पूरी तरह शिथील है। 
82 सदस्यों वाली झारखंड विधान सभा में 28 विधायक आदिवासी, लेकिन टीएसी प्रभावी नहीं हो सकी। विदित हो की ये 28 विधायक आदिवासी आरक्षित सीट से चुन कर आते हैं। एसटी विधायक भी इसे साफ तौर पर महसूस करते हैं। जनजातीय अनुसूचित क्षेत्रों और अनुसुचित जनजातियों के प्रशासन  और नियंत्रण में जनजातीय सलाहकार परिषद की भूमिंका सबसे महत्वपूर्ण होती है। लेकिन झारखंड में राजनीतिक अस्थिरता ने टीएसी को लगभग अप्रभावी बना दिया है। कई बार ऐसा हुआ, जब छह महीने से अधिक समय तक टीएसी की बैठक नहीं हुई है। 
राष्ट्रपति शासन  में नये सिरे से टीएसी के गठन के लिए फाइल बढ़ायी गयी थी। लेकिन विधि परमार्श  लेने में ही मामला लटक गया। इससे पहले 2010 में राष्ट्रपति प्रशसान  के दरम्यान राज्यपाल ने डाॅ रामदयाल मुंडी को टीएसी का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया था। परिषद की नियमावली के अनुसार साल में कम से कम दो बार टीएसी की बैठक होनी चाहिए। 
टीएसी की जिम्मेदारी
परिषद का यह कर्तव्य होगा  िकवह उस राज्य की अनुसूचित जनजातियों के कल्याण और उन्नति से संबंधित ऐसे विषयों पर सलाह दे सकती है, जो उसको राज्यपाल द्वारा निर्दिष्ट किये जायें। मुख्यमुत्री टीएसी के अध्यक्ष और कल्याण मंत्री उपाध्यक्ष होते हैं। इसमें आदिवासी विधायकों को ही सदस्य बनाया जाता है। 
हर माह बैठक का प्रस्ताव
15.07, 2010 को हुई बैठक में कुल 18 प्रस्ताव रखे गये थे। इनमें जनजातीय कमीशन यह तमाम बिकाश योजनाओं  पर बिमर्श , पाँचवी  अनुसूचित क्षेत्र में प्रशासन  को बेहतर बनाने के उपाय तथा टीएसी की बैठक हर महीने हो, इस पर विचार किया  जाना शामिल है , लेकिन यह नहीं हो सका। 
इन १३ बर्षो में राज का मुखिया पद आदिवासियों के हाथ में रहा. राज में सैकड़ों आदिवासी मंत्री बने बिभिन बिभागों को संचालित-नियंत्रित करने कि जिम्मेवारी आदिवासियों में ही हाथ में रहा।  आदिवासी कल्याण मंत्री भी आदिवासी ही रहे।  फिर भी राज में आदिवासियों के हित में बने कानूनों का आदिवासी हित में न तो पालन-लागु किया गया न ही  सुरक्छा किया गया. न ही राज में आदिवासी-मूलवासी-दलित-मेहनतकशों के अधिकारिओं कि गारेंटी के लिए स्थानीय निति बनाये।  झारखण्ड अलग राज कि लड़ाई झारखण्ड के आदिवासी-मूलवासी- के किसानों कि सामाजिक सांस्कृतिक -भाषा-इतिहाश -जल -जंगल-जमीन- कि सुरक्छा और बिकास के लिए लड़ी गयी थी साथ ही किसान -मजदूरों -मेहनतकशों-शोषितों  को न्याय देना ही राज का सपना था ---तब हैम किसको दोस देंगे ? 
स्मीक्षा में दिलचस्पी नहीं
15.07, 2010 को टीएसी की बैठक में आठ विधायकों को विभिन्न जिलों में विकास योजनाओं की समीक्षा कर रिपोर्ट देने को कहा गया था, लेकिन अधिकतर विधायकों ने समीक्षा कर रिपोर्ट सौंपने में दिलचस्पी नही नहीं दिखायी। टीएसी की अब तक हुई बैठकों में जितने प्रस्वाव पारित हुए या अफसरों को निर्दे’ा दिये वे सभी हवा होते चले गये। 
आज तक हुई बैठक
पहली बैठक 14.02.02 अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी
दूसरी बैठक 24.03.03 व 19.11.03 अध्यक्ष अर्जुन मुंडा
तीसरी बैठक 22.04.05 अध्यक्ष अर्जुन मुंडा
चैथी बैठक 28.01.06 अध्यक्ष अर्जुन मुंडा
पांचवी बैठक 16.01.07 अध्यक्ष मधु कोडा
छठी बैठक 15.03.08 अध्यक्ष मधु कोडा
सतवीं बैठक 15.07.10 कार्य0 अ0 डा. रामदयाल मुंडा
आठवीं बैठक 21.08.10 कार्य0 अ0 डा. रामदयाल मुंडा
नौवीं बैठक 19.04.2.11 अध्यक्ष अर्जुन मुंडा
दसवीं बैठक 16.06.11 अध्यक्ष अर्जुन मुंडा
11वी बैठक 30 01.12 अध्यक्ष अर्जुन मुंडा
12 वीं बैठक 9.11.12 अध्यक्ष अर्जुन मुंडा
 (यह  रिपोर्ट 9 अगस्त 2013 तक कि है )
 

Wednesday, November 13, 2013

जिंदगी में पहली बार गुलाब का फूल लगायी हूँ .

maine 
मैंने २०१३ में अपने घर के पास फूल लगायी -इस फूल का पौधा को मैं पड़ोस के आँगन से उतर कर लायी थी। '
 जुलाई २०१३  को मैं नगड़ी  के  केस की  तारीख  में  उपास्थित होने सिबिल कोर्ट गयी थीं -कोर्ट के बाद मैं बाहर फूल बेचने वालों के पास फूल का गाछी खरीदने जगन के साथ गयी-मैं गुलाब का गाछी देखने लगी।  दुकानदार बोले -दीदी आप पसंद कीजिये।  मैं पूछी इसको कितना में बेचेंगे? दुकानदार बोला -आप पसंद तो कीजिए -मैं बोली आप दम बताएँगे, तब तो मई तय करुँगी-कि किस को कितना ले जाना है। दुकानदार बोले-आप जब हैम लोगों के लिए लड़ रही हैं- तो हम आप से  फूल पैसा क्यों लेंगे।  मैं दुकानदार को सिर्फ देख रही थी-कुछ नहीं बोल प् रही थी।  आगे बोला - आप तो हमको नहीं पहचानेगे -लेकिन मई आप को पहचानता हूँ जिस दिन आप जेल से निकली- मैं  वंही गेट पर था। मैंने तीन गुलाब चुनी- आज तीन में से दो बड़ा हो मैं जिंदगी में पहली बार गुलाब का फूल लगायी हूँ .-
इसको मैं अपने बड़े भाई शुसील के आँगन से पौधा को उखड कर लायी थी --जो निचे है 

Monday, November 11, 2013

jingadi ek bagiya hai--aap sabhi muskurate rahiye--jagat ko apni sugandh se mahkate rahiye-

jindagi  bhi  ek  pulwari  hai----iski  sugandh  sabhi  tak  pahunche---sabhi  nigahon  ko  moh  paye--yahi  jindagi  ka maksad hai 





Monday, November 4, 2013

अगर ऐसा ही करत्ते आ रहे हैं - तब लोकतंत्र कि रक्छा में हम अपना ईमानदारी योगदान नहीं कर रहे हैं।

समाज , राज्य और पूरे  देश में अभी एक ही चर्चा है कि -देश से किस तरह भ्रस्टाचार को जड़ से उखाड़  फेंका जा सकता है - इसके लिए सभी चिंता जाहिर करते हैं -लेकिन सच तो यही है कि -जो राज्य और देश कि बागडोर सँभालने वाले कतई  नहीं चाहत्ते हैं कि -देश से भ्रस्टाचार और भ्रस्टाचरी ख़तम हो जाएँ।  जब चुनाव सामने आता है -तो राजनेतिक पार्टीं उन्ही आदमी को अपना उमीदवार बनाएगा - जो कितना बड़ा गुंडा होगा, कितना हत्या किया है, कितना डाका डालने में बड़ा रेकॉर्ड बना पाया है , कितना छल -बल, छूट -फाँस माँ मास्टर डिग्री हासिल किया है। .आप जनता को कितना ठग सकता है ---यही है उमीदवारों कि - योग्यता।  हाँ हमें भी इस चुनाव में अपने भूमिका तलाशनी चाहिए कि - हम क्या करते हैं ? 
मुझे लगता है कि हैम लोगों को भी अपनी भूमिका - जो अभी तक निभाते आये हैं -उससे ईमानदारी से स्वीकार कर लेना चाहिए।  कि हमने क्या नेताओं के -कहने पर उनके दवारा खड़ा किये - भ्रस्ट , लुटेरे , कातिल, खुनी , डकैत उमीदवारों को ही अपना जनप्रतिनिधि बनाने के लिए -अपना योगदान-किये हैं ???????
अगर ऐसा ही करत्ते आ रहे हैं - तब लोकतंत्र कि रक्छा में हम अपना ईमानदारी योगदान नहीं कर रहे हैं। 

पर्यावरण का विकास- हमारा विकास , प्रकृति का विकाश -देश का विकाश।

प्रकृति - 
आज जब भी विकास कि बात आती है -सभी एक ही बात करते है -कि देश में उद्योग -कल-कारखाना -खदान चलेगा -तभी देश विकाश कर सकता है। . अगर यही बिकाश का पैमान है तब तो हमारे राज्य  और देश में गरीब-बेघर-लचर-बेवस - अन्याय -भ्रस्टाचार कि आग में हम और हमारा राज्य और देश नहीं जलता। …हम जिसको विकाश का  पैमाना मन ले रहे हैं -वाली विनाश का रास्ता है -जिस पर हम जा रहे हैं। ।हमरा मन्ना है - पर्यावरण का विकास- हमारा विकास , प्रकृति का विकाश -देश का विकाश।  मैं  जल -जंगल -जमीन -नदी -नाला सहित प्रकृति में जितने भी हैं - सबको जीवित रहने कि बात करती हूँ -सुरक्षि रखने कि बात करती हूँ -तो लोग मुझे विकाश बिरोधी मानते हैं -