Sunday, March 27, 2011

इनकी भाषा-सांस्कृति, पहचान, इतिहास का ताना बाना जल-जंगल-जमीन से जुटा हुआ है।-simdega

झारखंड की राजधानी रांची से 250 किलो मीटर दूर छतिसगढ़ और हमारे राज्य के सीमा में है बागबेड़ा महुआ टोली गांव। झारखंड की एतिहासिक नदी शंख इसी इलाके में इठलाती शादियों से बह रही है। 6 फरवरी 2011 को सिमडेगा जिला के गोंडवाणा आदिवासी कल्याण एवं विकास मंच ने पांचवा वार्षिक सम्मलेन का आयोजन किया था। झारखंड में आदिवासी सामाज विविधता में एकता के सूत्र में पिरोया हुआ है। उरांव, मुंडा, हो, संताल, खडिया के अलावे यहां 33 अनूसचित जनजातियां हैं। इसमें गोंड आदिवासी भी एक हैं। हो, मुंडा, की तरह ही गोंड आदिवासी समाज भी प्रकृतिकमूलक समाज है। इनकी भाषा-सांस्कृति, पहचान, इतिहास का ताना बाना जल-जंगल-जमीन से जुटा हुआ है। सिमडेगा जिला में इनकी जनसंख्या..95,574 हैं। प्रतिशत में 1.66 हैं। इस समुदाय में education का प्रतिशत 20.00 है। बोलबा और कुरडेगा में ही लगभग ३,000 परिवार हैं। केरसाई, बोलबा, पिरिया पोंछ इलाके के कानसकेली, सिकरी बिउरा, कर्रा झरिया, बासेन, किंकेल, चालाबारी, हेठया, आसनबेड़ा, बागबेड़ा, ठेसु टोली, पाकर बाहर, कोशिमर्पनी , अम्बेरा टोली, अम्बाटोली, करई गोड़ा, चाटी टोली, टंगार टोली, देवदरहा, भीम कोठी आदि गांवों से लोग सम्मेलन में शामिल हुए। कार्यक्रम में शामिल होने के लिए प्रत्येक परिवार से 1 किलो चावल, 1 पाव दाल, और 10 रूपया जमा किये। साथ ही प्रत्येक गांव से 1 बोझालकड़ी , दोना-पातल भी लाये।
कार्यक्रम में आने का आमंत्रण सिमडेगा के कमलेश मांझी ने फोन पर दिये थे। फोन में ही तय हुआ था कि 6 मार्च को मैं समय दे सकती हूं यह नहीं। कमलेश के साथ किसी तरह का परिचय नहीं था। इनके छोटे भाई गणेश मांझी जेएनयू दिल्ली में पढ़ाई कर रहे हैं। 12 जनवारी 2011 को जेएनयू में कमप्यूटर सांइस की प्रोफेसर-डीन सुश्री सोना झरिया एवं करीब 10-12 छात्र-छात्रों के साथ एक छोटी मुलाकात हुई थी। झारखंड के सामाजिक, राजनीतिक परिस्थिति, वर्तन एवं आने वाले चुनौतियों पर लंम्बी चर्चा हुई थी। इसी समय गणेश मांझी से मिले थे। इन्होंने हीकमलेश जी से मेरा परिचय करवाये थे।
रांची से 7.30 में गाड़ी लेकर सिमडेगा के लिए निकले। कमलेश बोल दिये थे कि आप सिमडेगा तक आईये, यहां से प्रफूल जी आप को गांव तक लेकर आऐंगें। करीब 12.20 में सिमडेगा पहुंचे। सिमडेगा थाना के पास प्रफूलजी से मिले। इन्होंने अपनी बहन के घर समडेगा खाना खाने के लिए ले गाये। वहां गणेश मांझी और मेरी रौशनी .मिले। वहां दो और सामाजिक कार्यकताओं से मुलाकात हुई। हम लोगों के बीच सामाजिक-राजनीतिक परिस्थिति पर लंम्बी बात-चीत हुई। चर्चा छिड़ा सिमडेगा का विकास और पूर्व मंत्री एनोस एक्का पर। लोगों ने बताया कि थाना के सामने 5-6 मंजिला बड़ा अपार्टमेंट बन रहा है वहा एनोश का है। ठीक उसे थोड़ा अंदर दो जगह बड़ा बड़ा गैरेज के नाम पर है। लोगों ने बाताया पहले से हीएनोश का चरित्र सिर्फ पैसा कमाने का रहा है। ठेकेदारी करता था तब से ही। इन्होंने अपना तो खूब विकास किया लेकिन अपने आम वोटरों का कुछ नहीं किया। जो उनके आगे-पीछे थे इन्होंने भी खूब कामाया।
खाने के बाद 2 बजे सिमडेगा से बाग बेड़ा के लिए निकले करीब 60 किलो मीटर दूर है बाग डेगा महुंआ टोली गांव सिमडेगा से। कुछ दूर पक्की संडक में चलने के बाद कच्ची संडक। कई छोटे छोटे नदी-नाला पार किये। दूर जाना है वापस भी लौटना है। लेकिन मन नदी-नाला देख कर मन बहुत पुलकित होता जा रहा था। आज अब रांची शहर के साथ अन्य सभी शहरों में पानी का हाहाकार मचा हुआ है। तब छोटे नदी -नालों में बहते पानी को देखकर जो आंनद होता है उसको तो प्रकृतिक प्रेमी ही महसूस कर सकता है। कच्ची संडक कई गांवो को जोडते हुए शंख नदी पहुंचती है। अभी हाल ही में पुल तैयार हुआ है। शंख नदी का चैड़ाई देखने से लगता है-शायद यह झारखंड का सबसे चौड़ा नदी है। जो साथी हमें गांव के लिए अगुवाई कर रहे थे-बोलते हैंशायद झारंखड में यही पूल सबसे लंम्बा होगा। सुखद बात तो यह है कि नदी में अभी भी पानी है।
शंख नदी पार कर कई बरसाती नालों को लांधते हुए खेत-टांड से गुजरते महुंआ टोली पहुंचे। कार्याक्रम शुरू हो चुका था। जिंदगी में यह मेरा दूसरा मौका था-जब मंत्री, अधिकारीयों के साथ मंच में बैठने का। मैं हमेशा इसे परहेज करते आयी हूं। एक बार जब बंधु तिर्की education मंत्री थे-तब खूंटी जिला के कर्रा प्रखंड में 29 नवंबर 2006 को अर्सेलर मित्तल कंपनी के खिलाफ लड़ रहे जमीन बचाव संगठन ने उसे बुलाया था। तब मंत्री श्री बंधु तिर्की ने कहा था-मित्तल कंपनी को यहां जमीन नहीं दिया जाएगा। याद है-तब सभी मंत्रियों ने श्री तिर्की को घेरा था, सभों ने कहा-मंत्री बंधुजी राज्य का विकास करना नहीं चाहते हैं इसलिए विकास के विरोध में बयान दिये है। इनके जवाब में श्री तिर्की बोले थे-आदिवासी मूलवासी, किसान गाय बैल नहीं हैं कि जब चाहो-उसे जहां-तहां खादेड़ दो। आदिवासी मूलवासियों को अपने जंगल-जमीन पर जीने का हक है।
जब मैं कार्यक्रम स्थल पहुंची तब पर्यटन एवं समाज कल्याण व बाल-विकास मंत्री श्रीमति विमला प्रधान का भाषण चल रहा था। इन्होंने लोगों अपने भाषण में समाज कल्याण व बाज विकास योजना के तहत चलायी जा रही योजनाओं पर प्रकाश डाली। लोगों से अपील की कि आंगनबाड़ी केंन्द्रों में महिलाओं और बच्चों के लिए पोषाहार दिया जाता है इसका लाग उठाना चाहिए। पहली बार गर्भवती होने वाली महिलाओं के लिए बिशेष सहयोग दिया जाता है। इन्होंने कहा-आप अपने बेटियों का दिल्ली, बोम्बें आया काम करने के लिए नहीं भेजिएगा। बालिकाओं का स्कुल जरूर भेजें। पर्याटन विकास का काम भी इस इलाके में किया जाएगा, इसमें आप लोगों के सहयोग की जरूरत हैं। बिदित हो की मंत्री बिमला प्रधानजी गोंड़ आदिवासी समाज से ही हैं.

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