Saturday, March 12, 2011

बांध से उजड़े 64 मौजा के विस्थापितों को 40 सालों बाद भी न तो नौकरी मिली, न सही पूनर्वास ही किया गया, न ही सही मुआवजा ही मिला-part-1

AFTER 50 YEARS..DISPLACED OF TENUGHAT DAM..THEY FIGHTING FOR JOB, WATER, EDUCATION, HEALTH, FOOD, HOME, ELECTRICITY AND OTHERS BASIC NEEDS
विकास के नाम पर बोकारो जिला में 1996 में तेनुघाट डैम बना। डैम से 64 मौजा के आदिवासी-सदान, मुसलम, महतो, वस्थापित हुए। वर्तमान में इस डैम के पानी से सरकार करोड़ों धन कमा रही है। डैम का पानी बोकारोस्टीलप्लांट, टीटीपीएस आदि उद्यागों कां पानी दिया जा रहा है। इससे उद्योंगपति भी कई karodon का मुनाफा कमा रहेहैं। दूसरी ओर इस बांध से उजड़े 64 मौजा के विस्थापितों को 40 सालों बाद भी तो नौकरी मिली, सही पूनर्वासही किया गया, ही सही मुआवजा ही मिला। पूनर्वास के नाम पर गागा, मिर्जापुर, पथकी, हरदियामों, चुटे में विस्थापितों को भेजा गया। आज ये विस्थापित रोटी के लिए लुधियाना, पंजाब, बोम्बे, कलकता, उडि़सा, गुजरात, हैदराबाद आदि राज्यों में दिहाड़ी मजदूरी कर रहे हैं। मेहनत मजदूरी करके पेट पाल रहे हैं। पेट काट कर सरछिपाने के लिए झोपडीनुमा घर बनाये हैं। बच्चों को स्कूली शिक्षा नसीब नहीं है। डैम के पानी से उत्पादित बिजलीकी चमक से लाखों की जिंदगी चमक गयी, जबकि विस्थापितों की जिंदगी आज भी अंधेरे में डुबी हुई है।
विस्थापित दुर्गा सोरेन कहता है बाप-दादा का 80 से 85 एकड़ जमीन था जो डैम के पानी में डूब गया। परिवार मेंकिसी को नौकरी नहीं मिली। दफतर में नौकरी के लिए चक्कर लगाने जाते हैं -तो चपरासी बोलता है, ये-हटो-हटो।वर्षीय आलम अंसारी जिंदगी के बोझ से दबा अपने आंसुओं को रोक नहीं सकते हैं, रोते-रोते कहतें हैं-सरकारहमलोंगों को कचड़ा की तरह फेंक दिया। मेरे पिताजी को मास्टर रोल में नौकरी मिला था, लेकिन आज हम औरहमारे बच्चें रोटी के लिए दर-दर भटक रहे हैं। कहते हैं-हमारे दादा का 36 एकड़ जमीन था। काशीनाथ केवट जोतेनुघाट से विस्थापित हो कर वर्तमान में चलकरी में रहते हैं-कहते हैं-किसान केवल जमीन से ही विस्थापित नहींहुए, अपने समाज से उजड़े, नाते-रिस्तेदारों से उजड गये। विस्थापितों को जिन इलाकों में बसने के लिए फेंकाजाता है, स्थानीय लोग इन्हें उठलु कह कर उलहाना देते हैं।
55 गंधौनिया, पिपरा गांव से उजड़े लोगों को बसने के लिए कोई जगह नहीं दिया गया। विस्थापित लिपया में 300 एकड़ गैरमजरूवा जमीन पर कब्जा कर रह रहे हैं। यहां करीब 400 परिवार रहते हैं। महेश प्रसाद गुप्ता का परिवारडैम से उजड़ने के बाद गागा पूनर्वास में रह रहे हैं। इनके पिता स्व. अकलु साहू, बेनालाल साहु तथा अघनु साहू तीनभाई थे। महेशजी कहते हैं-मेरे बाप-दादा जमींदार थे, घुड़सवार करते थे-आज कंगाल हो गये। नियोजन के नाम सेपरिवार के किसी को भी नौकरी नहीं मिला। कहते हैं गगा पूनर्वास में 60 एकड़ जमीन पर 200 परिवार रहते हैं।गागा के 4-5 लोगों को मास्टर रोल में काम मिला। बाकी अफसरों के घरों में नौकर और नौकरानी बने। विदित होकि महेशजी विस्थापन के खिलाफ लड़ते हुए तथा अब विस्थापितों को नौकरी, बिजली, पानी दिलाने के लिए लड़तेहुए 4 बार जेल जा चुके हैं। कहते हैं-विस्थापितों को नौकरी मिला ठीका-पटा का ही काम मिला। बेरमोअनुमंडल विस्थापित-प्रभावित समिति के अध्यक्ष अजहर अंसारी कहते हैं-हमारा परिवार जमींदार परिवार था, दोगांवों में जमीन था। सारा जमीन डैम के पानी में डूब गया, नाम मात्र का मुआवजा मिला था। हम को भी नौकरीमिली थी लेकिन विस्थापितों के साथ हो रहे अन्याय को देखकर नौकरी छोड़ दिये। कहते हैं-विस्थापितों को हकदिलाने के लिए विस्थापितों को संघर्ष जारी है, इसके लिए मैं 16 बार जेल जा चुका हुं।
तेनुघाट डैम से विस्थापित मिर्जापुर गांव के लोगों को मिर्जापुर पुनर्वास में रखा गया है। जो बंजर भूमि का भाग है।यहां 120 विस्थापित परिवार रहते हैं। यह स्थल ललपानिया टीटीपीएस से मात्र चार किलोमीटर में है। टीटीपीएसतेनुघाट डैम के पानी से जीवित है, जिसके उत्पादित पावर से कई फैक्ट्रीयां चल रही है, लेकिन जिनके कीमत परकई उद्योग चल रहे हैं, इनकी बस्तीयां आज भी अंधेरे में डूबा हुआ है, लोग बिजली का मुंह तक नहीं पाये हैं।विस्थापित परिवार बार-बार बिजली विभाग से अग्राह कर रहे हैं कि गांव में बिजली लाया जाए। बिजली विभागकहता हेै-हम तुमको विस्थापित नहीं किये हैं, तेनुघाट किया है वही तुमको सुविधा देगा। अब लोग अपने खर्चे सेबिजली लाने की तैयारी में हैं

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