Thursday, March 31, 2011

अंम्बा मांजरे-मधु मुधवाए जोड़ी पेलो मताला जाए रे 2-sarhul-part-3


sarna me jhumte log


Sirom toli sarna akhra

संताली समाज सरहुल पर्व-चंडु उपिन दिन से(चांद निकलने के चैथे दिन से) बाहा पोरोब मनाना शुरू करते हैं और पुर्णिमा के दिन अंत करते हैं। इसी बीच लोग अपनी सुविधानूसार दिन निश्चित कर लेतें हैं। संताली समाल भी प्राकृति के साथ सामाजिक ताना-बाना को बाहा पोरोब में गीतों में प्रकट करता है-
ओकोए मई रे सबेआ दादा
ने सरजोम बाहा दो,
ओकोए मई रे सबेआ दादा
ने मदुकम बाहा दो।
नायके मई रे सबेआ दादा
ने सरजोम बाहा दो,
देवरी मई रे सबेआ दादा
ने मदुकम बाहा दो।
(
हिन्दी-दादा कौन पकडेगा सखुआ फूल, और कौन पकडेगा महुंआ फूल। नायके पकडेगा सखुआ फुल, पुजार पकडेगा महुंआ फुल)

उरांव समाज सरहुल पर्व अपने मान्यता के आधार मानता है। इसी तरह मुंडा और हो भी। पुरा बसंत झारखंड के गांव-गांव गीतों से गूंज उठता है।
गीत-सदरी में
सराई फूला-फूली गेंलैं आयो
बोना में चारेका दिसै रे 2
सराई फूले बना सोभाए
धवाई फूले रसा चुवाए रे 2
अंम्बा मांजरे-मधु मुधवाए
जोड़ी पेलो मताला जाए रे 2

1 comment:

  1. शुभागमन...!
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    ये पत्नियां !

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