Wednesday, April 6, 2022

 सेवा में,

माननीय ग्रामीण विकास मंत्री

श्री आलमगीर आलम                          पत्रांक-01/21

झारखंड सरकार                              दिनांक-14/12/2022

विषय- केंन्द्र की मोदी सरकार द्वारा काॅरपोरेट घराणों एवं पूंजिपतियों के लिए लायी जा रही स्वामित्व योजना के तहत प्रोपटी/ संपति कार्ड नहीं चाहिए-पांचवी अनुसूचि क्षेत्र सह सीएनटी एक्ट क्षेत्र के आदिवासी बहुल खॅटी जिला में ग्रामसभाओं को सही जानकारी बिना दिये,  साथ ही ग्रामसभाओं की सहमति के बिना ड्रोन से जमीन का सर्वे किया जा रहा है, को रोका जाए। 

                     एवं

आदिवासी-मूलवासी किसानों के परंपरागत अधिकार सीएनटी एक्ट, एसपीटी एक्ट, मुंडारी खूंटी अधिकार, हो इलाके के विलकिनसन रूल्स एवं 5वीं अनुसूचि को कड़ाई से लागू किया जाए। 

महाशय

इतिहास गवाह है कि झारखंड में जल, जंगल, जमीन को आबाद करने का आदिवासी-मूलवासी किसान समुदाय का अपना गैरवशाली इतिहास है। आदिवासी समुदाय खतरनाक जंगली जानवरों से लड़ कर जंगल-झाड़ को साफ कर गाॅंव बसाया, जमीन आबाद किया है। आदिवासी-मूलवासी किसान समुदाय जंगल, नदी, पहाडों की गोद में ही अपने इतिहास, भाषा-संास्कृति, पहचान के साथ विकसित होता है। 

प्रकृतिक-पर्यावरण जीवन मूल्य के  साथ आदिवासी -मूलवासी समुदाय के ताना-बाना को संरक्षित और विकसित करने के लिए ही छोटानापुर काश्तकारी अधिनियम 1908, संताल परगना काश्तकारी अधिनियम 1949 बनाया गया है। साथ ही भारतीय संविधान में पेसा कानून 1996 एवं पांचवी अनुसूचि में आदिवासी समुदाय के जल, जंगल, जमीन पर इनके खूंटकटी अधिकार सहित अन्य परंपरागत अधिकारों का प्रावधान किया गया है। 

सर्व विदित है कि आदिवासी समुदाय के जंगल, जमीन, सामाजिक-संस्कृतिक, आर्थिक आधार को संरक्षित एवं विकसित करने के लिए भारतीय संविधान में विशेष कानूनी प्रावधान किये गये हैं। सीएनटी, एसपीटी एक्ट, पेसा कानून में विशेष प्रावधान है कि गांव के सीमा के भीतर एवं बाहर जो प्रकृतिक संसाधन है जैसे गिटी, मिटी, बालू, झाड़-जंगल, जमीन, नदी-झरना, सभी गांव की सामुदायिक संपति है। इस पर क्षेत्र के ग्रामीणों का सामुदायिक अधिकार है। जो खतियान और विपेज नोट में भी दर्ज है। 

ये सभी सामुदायिक अधिकार को सीएनटी एक्ट, एसपीटी एक्ट, पेसा कानून, कोल्हान क्षेत्र के लिए विलकिनसन रूल, मुंडारी खूुंटकटी अधिकार में कानूनी मन्यता मिला हुआ है। ये सभी अधिकार आदिवासी समुदाय के लंबे संघर्ष और शहादत के बाद मिला है। खतियान एवं वीलेज नोट में दर्ज सामुदायिक एवं खूंटकटी अधिकार को बचाना जगरूक नागरिकों के साथ राज्य की कल्याणकारी सरकार की भी जिम्मेदारी है।

वर्तमान में लाया जा रहा केंन्द्र सरकार की स्वामित्व योजना का उदेश्य भारत के लिए एक एकीकृत संपति सत्यापन -समाधान करना है। 

इसके तहत व्यक्तिगत ग्रामीण संपति के सीमांकन के अलावा, अन्य ग्राम पंचायत और सामुदायिक संपत्ति जैसे गांव की सड़कें, तालाव, नहरें, खुले स्थान, स्कूल, आंगनबाड़ी, स्वास्क्य उपकेंन्द्र आदि का भी सर्वेक्षण किया जाएगा और जीआईएस मानचित्र बनाए जाएंगे। देखें-पेज-एक-पारा 2(स्वमित्त योजना के कार्यान्वयन के लिए रूपलेखा, पंचायती राज मंत्रालय भारत सरकार)

जबकि खूंटी जिला के गांवों में ड्रोन से सर्वे किया जा रहा है-अधिकारियों से सवाल करने पर कहते हैं-सिर्फ घर का सर्वे हो रहा है-जो कई सवालों को खड़ा कर रहा है। क्या ड्रोन से घर का केवल सर्वे होगा? या फिर गांव की सारी संपत्ति का?। 

विदित हो कि पूरे राज्य के आदिवासी-मूलवासी जंगल-जमीन के संबंध में कई समस्याओं से जुझ रहे हैं-2014 के बाद जो भूमि बैंक बना, आखिर किस नीति के तहत बना? क्या सीएनटी, एसपीटी एक्ट में संशोधन कर लाया गया? या पांचवी अनूसूचि के पेसा कानून में संशोधन कर भूमि बैंक बनाया गया? इस सवाल का जवाब कौन देना? राज्य का आदिवासी-मूलवासी समुादाय जानना चाहती है। 

संपति कार्ड/प्राॅपर्टी कार्ड लागू होने से आदिवासी इलाके में निम्नलिखित खतरे भविष्य में होगें। 

1- परंपरागत ग्रामीण आदिवासी इलाके का डेमोग्राफी -भौगोलिक एरिया पूरी तरह बदल जाएगा-कारण 2016 में ही ग्रामीण इलाके के गैरमरूआ आम भूमि, गैरमरूआ खास, जंगल-झाडी, नदी-नाला, सरना-मसना, ससनदीरी, अखड़ा जैसे सामुदायिक भूमि को चुन-चुन कर भूमि बैंक में डाल दिया गया, जिसका आॅनलाइन खरीद-फरोक्त चरम पर हो रहा है। 

2-5 वीं अनुसूचि क्षेत्र, सीएनटी एक्ट, एसपीटी एक्ट, मुंडारी खूंटकटी एवं विलकिसन रूल्स के तहत गांव के सीमा के भीतर के गैर मजरूआ आम, खास, जंगल-झाड़ी, परती-झरती, नदी-नाला आदि सामुदायिक जमीन की, खरीद-फरोक्त के कारण भारी संख्या में अब  बाहरी सामुदाय का प्रावेश एवं कब्जा होगा। 

3-आदिवासी ग्रामीण इलाके में शहरी आबादी के प्रवेश स,े प्रकृतिक जीवनशैली से जुडे आदिवासी-मूलवासी किसान, दलित समुदाय का परंपरागत सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, आधार टूट जाएगा।

4-ड्रोन सर्वे पूरा होने के साथ ही गांव का नया डिजिटल नक्सा बनेग। इस नये डिजिटल  नक्सा और 1932 के खतियान कोई मेल नहीं रहेगा। ताजा उदाहरण है -आॅनलाइन डिजिटल खतियान और 1932 का मैनुअल-आॅफलाइन खतियान। तब निश्चित है कि नया डिजिटल नक्या बनने के साथ ही आदिवासी-मुलवासी समुदाय को, समुदायिक अधिकार देने के साथ एैतिहासक पहचान देने वाला 1932 का खतियान अस्तित्व विहीन हो जाएगा।

5-परिणामस्वरूप आदिवासी समुदाय के अधिकार, सीएनटी एक्ट, एसपीटी एक्ट, पांचवी अनूसूची, मुंडारी खूंटकटी अधिकार, कोल्हान क्षेत्र का विल्किनसन रूल्स स्वता कमजोर हो जाएगा।

6-ड्रोन से सर्वे के बाद में जमीन का मालिकाना हक क्लेम-दावा करने के लिए ग्रामीण आदिवासी, मूलवासी, दलित समुदाय से, अपना जमीन संबंधित संभता कई तरह के दस्वावेज मागे जाएंगें, भोले-भाले ग्रामीण दस्तावेज पेस नहीं कर पायेगें-ऐसे परिस्थिति में जमीन उनके हाथ से निकल जाएगा। 

7-ग्रामीण इलाके में बढ़ते शहरी आबादी के कारण ग्रामीण कृषि अर्थव्यवस्था, वन व्यवस्था, जल स्त्रोत एवं पर्यावरणीय व्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। 

8- ग्रामीण आदिवासी इलाके में बड़ी संख्या में बाहरी आबादी के प्रवेश होने से, राज्य में आदिवासी आबादी तेजी से घटेगी, परिणाम स्वरूप आदिवासी सामुदाय की सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक एवं राजनीतिक शक्ति स्वतः कमजोर होगा। 

फोरेस्ट राईट एक्ट के तहत सरकारी व्यवस्था के सामने दावा साबित नहीं कर पाने के कारण, परंपरागत वासिदे कानून का लाभ नहीं ले पा रहे-इसका ताजा उदाहरण-

1-विगत सुप्रीम कोट का फैसला-जिसमें झारखंड से 1,07,187 लोगों ने दावा पेस किया गया, इसमें 27,809 आवेदकों के दावापत्र रदद करने का फैसला दिया था। कारण कि लोगों ने अपना दावा साबित नहीं कर पाया। इससे बहुत सारी बातों का समझा जा सकता है। 


2-जमीन पर कब्जा ग्रामीणों के हाथ में है, जोत-कोड कर रहे हैं, पहले जमीन का रसीद काटता था-अब रसीद काटना बंद कर दिया- 

झारखंड में भूमि सुधार कानून के तहत राज्य में लाखों छोटे किसानों को एक-एक एकड, कहीं कहीं दो-तीन एकड़ तक जमीन बंदोबस्त कर दिया गया था। लोग इस जमीन का मजगूजारी रसीद भी काटते थे, लेकिन अब कई इलाके में इस जमीन का रसीद काटना बंद कर दिया गया, और किसानों को उक्त जमीन की बंदोबस्ती संबंधित कई तरह के कागजात मांगें जाते हैं।  लोग अधिकारियों के समुख कागजात पेस नहीं कर पा रहे हैं, इस कारण ग्रामीण जमीन का रसीद भी नहीं काट पा रहे हैं। 

3-जमीन आॅनलाइन व्यवस्था में भारी गड़बडी-

राज्य में जमीन संबंधित काम-कागज 2014-15 तक आॅफलाइन हो रहा था। जमीन मालिक आॅफलाइन रसीद हल्का करमचारी द्वारा कटवा रहे थे। आॅनलाइन व्यवस्था होने के बाद जमीन का खतियान में भारी गडबडियां हो गयी हैं। किसी का खतियान में रैयत का नाम गलत है, खाता नबंर गलत है, प्लोट नंबर गलत है, जमीन का रकबा भी गलत है। इसको सुधरवाने के लिए लोग अमीन के पास, सीओ के पास दौडते दौडते थक रहे हैं-कोई कार्रवाई नहीं हो रहा है। 

4-आॅनलाइन खतियान में गलती के कारण-बहुत से किसान जमीन का मलगुजारी रसीद 4-5 सालों से नहीं कटवा पा रहे हैं। 

इस तरह से आदिवासी -मुलवासी, किसान, दलित समाज से जमीन निकल जाएगा। यही नहीं समुदाय का सुरक्षा कवच सीएनटी, एसपीटी एक्ट, पेसा कानून में मिला अधिकार मुंडारी खूंटकटी अधिकार कागजों में रह जाएगा, लेकिन वास्तविक अधिकार स्वतः खत्म हो जाएगा।

उपरोक्त परिणामों से जमीन का लूट बढेगा। परिवार और समाज में अशांति बढ़ेगा। इससे उत्पन्न परिस्थ्यिों से विस्थापन, पलायन, बेरोजगारी, भूख, भूमिहीन, अस्वस्थ्य, सूखा-आकाल एवं प्रदूषण जैसे महामारी का ही सामना करना पड़ेगा। 

 हमारी मांगें हैं-

1-केंन्द्र सरकार की नयी स्वामीत्व योजना /प्रोपटी/संपति कार्ड बनाने के लिए आदिवासी बहुल खूंटी जिला में परंपरागत ग्राम सभी एवं आदिवासी किसान संगठनों के मांग को अनसुनी करके, ड्रोन द्वारा जमीन का सर्वे किया जा रहा है, को रोका जाए। 

2-मोदी सरकार द्वारा काॅरपोरेट घराणों एवं पूंजिपतियों के लिए लाया जा रहा स्वामित्व योजना को झारखंड में लागू नहीं किया जाए। साथ ही इस योजना को झारखंड में लागू नहीं किया जाए। 

3-सीएनटी एक्ट, एसपीटी एक्ट, मुंडारी खूंटकटी एवं 5वीं अनुसूची में प्रावधान ग्राम सभा के अधिकारों को कड़ाई से लागू किया जाएं एवं आदिवासी-मूलवासी समुदाय के सामुदायिक अधिकारों को संरक्षित किया जाए। 

4-भूमि बैंक को रदद किया जाए-रघुवर सरकार ने गैर मजरूआ आम, गैर मजरूआ खास जमीन, को भूमि बैंक में शमिल किया गया है,  इस भूमि बैंक को रदद किया जाए।

5-क्षेत्र के सभी जलस्त्रोतों, नदी-नाला का पानी लिफट ऐरिगेशन के तहत पाइप लाइन द्वारा किसानों के खेतों तक कृषि विकास के लिए पहुंचाया जाए।

6-आॅनलाइन जमीन के दस्तावेजों का हो रहा छेड़-छाड़ एवं जमीन का हेरा-फेरी बंद किया जाए।

             निवेदक-आदिवासी-मूलवासी अस्तित्व रक्षा मंच

               मुंडारी खूंटकटी परिषद

              आदिवासी एकता मंच एव सभी ग्राम सभाएं

 संर्पक-दयामनी बरला, तुरतन तोपनो, हादु तोपनो, दयाल कोनगाड़ी, सिमोन कच्छप, फुलचंद मुंण्डा, एतो मुंण्डा, मानसिंह मुंण्डा, सुचित सांगा, संदीप सांगा, सुलेमान तोपनो, आनंद तोपनो, सुलामी तोपनो, राजू लोहरा, ज्वालन तोपनों, शिवशरण मित्र, रेंघवा मुंण्डा।         


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