Tuesday, November 16, 2021

भगवान बिरसा मुंडा का गांव का तस्बीर बदल गया हे। लेकिन दुखद है कि उलिहातू सहित इस इलाके का तकदीर नहीं बदला।

 दयामनी बरला

बिरसा मुंडा के 146 वें जयंांती पर बिरसा मुंडा जन्मस्थाली उलीहातू में आप सभी का स्वागत है-जोवर गी मर सोबेन कुपुल को। राज्य के बाहर से आने वाले सभी मेहमानों का रांची स्थित बिरसा मुंडा एयरपोर्ट में राज्य के आदिवासी-मूलवासी किसान समुदाय द्वारा परंगरात गीत-गोडधोवी के साथ जमा जोवर। आप यहां से सीधे बिना परेषानी के चलाचक डबल लेन रोड़ से खूंटी जिला के अड़की प्रखंड में सरजोम, मुरूद, इचआ, सेकरेज, तीरील, तरोब जैसे परंपरागत जंगल-झाड़ो से अच्छादित हरियाली वादियों की गोद में बसा बिरसा मुंडा का गांव सिर्फ डेढ़ घंण्टा में पहुंच जाएगें।अब उलिहातू गांव का नाक्सा बदला-बदला दिखता है। सभी तरफ सोलर प्लेट, जगह-जगह स्वाच्छ जल का पानी टांकी, सौच मुक्त गांव का वादा पूरा करता घर-घर में सौचालय, बिरसा मुंडा कम्पेक्स, बिरसा स्टेडियम, आवासीय स्कूल, सामुदायिक भवन, ग्राम संसद भवन, अस्पताल भवन, बडा चाबूतरा, बैंक भी है। इसके अलावा उद्योग विभाग का बोर्ड सहित विभिन्न योजनाओं पर जागरूकता फैलाने के लिए कई बोर्ड लगा हुआ है। दिल खुष हो जाता है कि भगवान बिरसा मुंडा का गांव का तस्बीर बदल गया हे। लेकिन दुखद है कि उलिहातू सहित इस इलाके का तकदीर नहीं बदला। 

 खूंटी से तमाड़ रोड़ में थोड़ी सावधानी बरतनी होगी, कारण की चैड़ी फिसलन रोड़ में दस चक्का वाले भारी माल वाहन हर 10-12 मिनट में दौड़ता हैं। छोटी गाडियों का तो संख्या ज्यादा है और स्पीड भी ज्यादा है। सोयको का गाया मुंडा चैक बहुत विकसित हो गया है। बस अब 11 किमी ही दूर है उलिहातू गांव।  सांप, बाघ, भालू जैसे खुंखार जंगली जानवरो से लड़कर जिस धरती को आदिवासी सामुदाय ने आबाद किया था, जिस पर इनका खूंटकटी अधिकार था, जहां अबुआ हातु रे अबुआ राईज की परंपरा थी। 1771 में ईस्ट इंडिया कंपनी का झारखंडमेंष्षासकीय अधिकार स्थापित हुआ। अंग्रेजो ष्षासकों के सहयोगी, जमींदारों द्वारा खूंटकटी हक पर हमला के खिलाफ तमाड़ के बिसू मानकी, दुखन मानकी, रूदु मुंडा, कोंता मुंडा आदि षहीदों के नेतृत्व में मुुडा सरदारी आंदोलन चरम पर था। तब उलिहातु के सुगना मुंडा और करमी मुंडी के गोद में वीर बिरसा पैदा हुआ। मुंडा उलगुलान की तपती धरती में बालक बिरसा युवा हुआ। मात्र 21 साल की उम्र में ही बिरसा मुंडा के अबुआ दिषुम रे अबुआ राईज का उलगुलान ने अंग्रेज षासक को लोहा मनवाया और सीएनटी एक्ट बना।

हक-अधिकार की लड़ाई को कमजोर करने के लिए बिरसा को रोगोतो जंगल से गिरत्फार कर रांची के जेल में रखा गया। आज जेल का नामकेंन्द्री बिरसा मुंडाकारागह है। पुराने जेल परिसर को अब 146 करोड़ खर्च कर बिरसा स्मृति स्थल बना दिया। यहां बिरसा मुंडा का 25 फीट का प्रतिमा बना है साथ ही करीब 12 झारखंड के वीर षहीदों की प्रतिमा बनायी गयी।  राज्य में बिरसा मुंडा के नाम पर सौंकडो व्यावसायिक संस्थान बाजार की षोभा बढ़ा रहें हैं। बिरसा मुंडा के नाम से राज्य और देष की राजनीति गुलजार है। 

झारखंड अलग राज्य की लड़ाई, जल, जंगल, जमीन, भाषा, सांस्कृति को संगक्षित एवं विकसित करने के लिए था। यहां के मिटटी से उपजी नौकरी, रोजगार, जीविका के संसाधनों पर अधिकार यहां के लोगों के हाथों में हो, यही था अलग राज्य का सपना। षायद इसी सपना को पूरा करने के लिए बिरसा मुंडा के 125 वें जयंती पर, 15 नंवोंबर 2000 को अलग राज्य का पुर्नगठन किया गया। राज्य बनने के बाद जिनकी तकदीर बदलनी थी, खूब बदली। अबुआ हातु -दिषुम रे अबुआ राईज का सपना विकास के मुख्यधारा में विलीन हो गया। राज्य पूर्नगठन से पहले से ही देष की कई राजनीतिक पार्टीयों के षीर्ष नेताओं ने बिरसा मुंडा के गांव उलिहातू की माटी को नमन करते आ रहे हैं। ये गर्व का विषय है। 

मुंडा आदिवासी बहुल इस जंगली इलाके का विकास के लिए 12 सितंबर 2007 में रांची जिला से अलग कर खूंटी जिला बना। जिला बनने के बाद प्रखंड मुख्यालाय से लेकर जिला मुख्यालाय तक दर्जनों प्रषानिक अधिकारियों को बहाल किया गया। अधिकारी आये और गये। उलिहातू पहुंचने वाले नेता, विधायकों, मंत्रियों, मुख्यमंत्रीयों, संासदों, केंन्द्रीय मंत्रीयों, गृह मंत्रीयों, उपायुक्तों, प्रखंड पदाधिकारियों, सर्किल अधिकारियों ने सौंकड़ों वादा किये। आष्वासन दिये । उलिहातु को नमन करने वालों की गिनती की जाए तो, सूची बहुत लंबी है, सूची को रखने में थोड़ी झिझक होती है, लगता है यह तो बिरसा मुंडा सहित तमाम राज्य के षहीदों का अपमान है, कि जो वादा आप ने किया था, पूरा नहीं किया। 

बिरसा मुंडा की परपोती जौनी मुंडा सब्जी बेचकर पढ़ाई कर रही है, अखबार के खबर के साथ बाॅलीवूड के अभिनेता सोनू सदू ने जौनी कीे पढ़ाई का खर्च उठाने के लिए सामने आया। साथ ही राजस्थान के दो संासद ने भी मदद की पेषकष की। नौकरी के नाम पर बिरसा के खनदान के दो लोगों को खूंटी जिला मुख्यालय में चपरासी की नौकरी मिली। 

गांव के लोगों ने सरकारी वादों पर भरोसा न करते हुए स्वंय अपना विकास करने का रास्ता तलाष रहे हें। गांव में 20-25 से अधिक मैट्रिक पास युवा हैं। 6-7 बीए पास हैं। बेरोजगार युवा अपनी पूंजी से गांव में ही छोटा-छोटा गुमटी बना कर किराना दुकान का समान से लेकर आॅनलाइन ग्राहक केंन्द्र के तौर पर मुंडा समुदाय का सेवा कर रहे हैं। कई लड़कियों ने बतायी वे 9वीं क्लास तक पढ़ाई किये, लेकिन आर्थिक कमी के कारण आगे पढ़ नहीं पायी। कस्तुबरा स्कूल जहां फीस नहीं लगता है, आवेदन दी थी, लेकिन नहीं हुआ। इस कारण कई लड़कियां बाहर पलायन कर गयी हैं। जाने के बाद अभी तक वापस नहीं आयी हैं। युवकों ने बताया-हम लोग पढने की कोषिष कर रहे हैं, लेकिन सरकारी सहयोग किसी तरह का नही है, इस कारण कई युवा पढ़ाई छोड़कर गुजरात, महाराष्ट्र, हरियाणा मजदूरी करने चले गये। 

अस्पताल भवन तो उलिहातु में बना है, लेकिन बीमारी के समय गांव के लोग खूंटी, अड़की या रांची इलाज कराने जाते हैं। लघु ग्रामीण जलापूर्ति योजना के तहत जलमीनार बना हुआ है, पानी घर-घर पहुंचाने के लिए सभी मिटटी के मकानों के आंगन में लोहा का पाईप खड़ा कर दिया गया है। लोगों ने बताया यह करीब चार साल से बंद पड़ा हुआ है। जगह-जगह चपाकल है, सभी टूटा पड़ा है। दर्जनों पानी टंकी लगा है, इसमें से सिर्फ एक टंकी में केवल बरसात में पानी रहता है। 2017 गृह मंत्री के घोषणा के बाद षहीद गांव मे 160 पका मकान निर्माण के लिए आबंटित है । प्रत्येक मकान 2 लाख 60 हजार का है। गांव में तीन-चार मकान षुरू किया मिला, एक-दो मकान का दीवार 5 फीट तक चढ़ा है। बाकी इंतजार में। बिरसा कृषि विविद्यालय की ओर से ग्रामीणों को मधुपालन का प्रषिक्षण दिया गया, बक्सा दिया गया, रस निकालने की मषीन दी गयी, गांव वालों ने बताया, सभी मधुमखी भाग गये, एक भी नहीं हैं। हां, ध्यान रखियेगा, यूरिन लगेगा तो थोड़ी परेषानी होगी, सौचालय है लेकिन घुस नहीं सकते हैं। इस बार के जयंती समाहरोह में उलिहातु पहुंचने वाले, बिरसा ओडआ में बिरसा की प्रतीमा पर श्रधासुमन अर्पित करने के बाद, गांव वाले जिस चुंवा, डोभा, नाला का पानी लाकर पीते हैं, उनका भी दर्षन करते आयें, तो उलिहातु गांव के लोगों का उपकार होगा। 


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