Tuesday, March 2, 2021

विषय- तीनों नये कृषि कानून 2020 को रदद करने मी मांग एव परंपरागत खेती-किसानी को सशक्त करने की मांग के संबंध में।

 सेवा में प्रधान मंत्री महोदय                           पत्रांक.....01....

मननीय श्री नरेंन्द्र मोदी जी                          दिनांक...28.Jan. 2021....

भारत सरकार

नई दिल्ली

विषय- तीनों नये कृषि कानून 2020 को रदद करने मी मांग एव परंपरागत खेती-किसानी को सशक्त करने की मांग के संबंध में। 

महाशय,

भारत एक कृषि प्रधान देश है। देश की 80 प्रतिशत आबादी परंपरागत कृषि अर्थव्यवस्था पर निर्भर है। झारखंड में 80 प्रतिशत जनता खेती और वनोपज पर निर्भर करती हैं, इन आदिवासी-मूलवासी, किसानों का सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक अस्तित्व का जीवंत ताना-बाना जंगल, जमीन, नदी-नाला, खेत-खलिहान के साथ है। खाद्यान्न के लिए खेतों की उपज और वनोपज ही हमारी जीवन का मूल आधार है, जो हमारे अत्मनिर्भरता का सशक्त स्थंभ है। 

परंपरागत खेती-किसानी ही राज्य के पौने चार करोड़ आबादी के खाद्यान्न की आवश्यकता पूरा कर सकता है। किसानों की आय दोगुणी करने के लिए राज्य में उपलब्ध जलस्त्रों के पानी को पाईपलाइन द्वारा किसानों के खेतों तक पहुंचाना, एवं राज्य की बंजर भूमि एवं असिंचिंत भूमि को कृषि उपज के लिए विस्तार करना भी राज्य सरकार की जिम्मेदारी है। 

तथाकथित विकास के नाम पर करोड़ों झारखंडी आदिवासी-मूलवासी किसान पहले ही अपने धरोहर से विस्थापित हो चुके हैं, जिनको आज तक न तो नौकरी मिला, और न आर्दश पूनर्वास किया है। किसानों को अपने खेत-खलिहान, जंगल-नदी, झारना से अलग करने वाली काॅरपोरेट खेती, कंपनियों का किसानों के खेती-किसानी में किसी तरह का दखल या हस्तक्षेप की इजाजत झारखंडी किसान नहीं देगें।

राज्य में भूमिहीन परिवार, विस्थापित परिवार, मेहनत-मजदूरी कर जिंदगी गुजारने वालों की संख्या भी काफी है। तीनों नये कृषि कानून से सिर्फ अनाज यह फसल उपजाने वाले किसानों पर ही संकट नहीं आएगा, बल्कि किसानों के फसलों के स्थानीय छोटे व्यापारी एवं उपभोगक्ता या खरीदकर खाने वालों की भी परेशानी बढ़ेगी, क्योंकि काॅरपोरेट, कंपानियां अपने गोदाम में जमा किये, खाद्यान्न को उंची दाम पर उपभोक्ताओं को बेचेगें। इसे मंहगाई और भूखमरी बढ़ेगी। 

हमारी जनता में शिक्षा का दर कम है, इसके कारण काॅरपोरेट और मुकदमों के दांव-पेंच में ठगे जाएंगें । इतिहास गवाह है कि आजादी के बाद बड़े बड़े उद्योग धंधों से विस्थापित जनता को मुअवाजे में रूपया दिया गया था, उस पैसों से बिजनेस और व्यापार नहीं कर सके और भूमिहीन मजदूर बन कर शहरों के श्लाम में खो गये। हमारी जमीन गयी, हमारी जीविका चली गयी, हमारी आबादी घटी, हमारी परंपरा, पहचान, गयी। अब इसका पुनरावृति झारखंड में नही ंहोने देगें। 

तीनों नये कृषि कानून 2020 जो लाये गये हंै, उसका झारखंड के किसानों, पर जिनके पास छोटा जोत है, प्रतिकूल असर पड़ेगा। इसलिए यहां की जनता तीनों नये कृषि कानून 2020  का विरोध करती हैं। 

राज्य के करीब 56 लाख विभिन्न राशन कार्डधारी परिवारों को पौष्टिक खाद्यान्न की अपूर्ति के लिए, जरूरी है कि राज्य के परंपरागत खेती-किसानी को सशक्त करें, किसानों के गोपालन, मुर्गीपालन, बत्तक पालन, मधुमक्खी पालन, मतस्य पालन आदि को बढ़वा दें, ताकि किसानों की अमदनी के टिकाउ स्त्रोत बनी रहे।  

हमारी परंपरागत खेती-किसानी को संरक्षित एवं विकसित करतेे हुए राज्य कि किसानों की आय दोगुणी करने एवं टिकाउ विकास को सशक्त बनाने  के लिए हमारी मांगें हैं-

1-तीनों नये कृषि कानून को रदद किया जाए

2-धान के साथ हमारा परंपारिक फसल मडुंआ, शकरकंद, मक्का, मुंगफली, सुरगुजी, तिल आदि फसलों के साथ सब्जियों का एमएसपी (न्यूनतम सर्मथन मूल्य) तय किया जाए

3-पांचवी अनुसूचि क्षेत्र में गांवों के भीतर एवं गांवों की सीमाओं के गैर मजरूआ आम, गैर मजरूआ खास जमीन गांव की है, इसको भूमि बैंक में शामिल किया गया है, जो किसानों के परंपरागत अधिकार का हनन है, इसलिए भूमि बैंक को रदद किया जाए।

4-क्षेत्र के सभी जलस्त्रोतों, नदी-नाला का पानी लिफट ऐरिगेशन के तहत पाइप लाइन द्वारा किसानों के खेतों तक पहुंचाया जाए।

5-जमीन का आॅनलाइन व्यवस्था से भारी संख्या में किसानों के जमीन के दस्तावेजों में छेड़-छाड़ किया जा रहा है। इससे किसानों के जमीन की लूट बढ़ रही है। इसलिए आॅनलाइन जमीन के दस्तावेजों का हो रहा छेड़-छाड़ एवं जमीन का हेरा-फेरी बंद किया जाए।

6-संविधान के पांचवी अनुसूचि को कड़ाई से लागू किया जाए।

7-आदिवासी समुदाय के जमीन का सुरक्षा कवच, सीएनटी एक्ट, एसपीटी एक्ट, मुंण्डारी खूंटकटी कानून का कड़ाई से पालन  करते हुए गांव के भूमिहीन परिवार को 5 एकड खेती के जमीन उपलब्ध कराया जाए।

8-किसानों को भूमिहीन एवं गरीब बनाने वाली -भारतमाला सड़क परियोजना, जो खूंटी जिला के कर्रा प्रखंड के किसानों के खेतो से होकर गुजरने वाली है, को रदद किया जाए। क्योंकि रांची से उडिसा, सम्बलपुर, बोम्बे तक जाने के लिए पहले से ही रेल मार्ग,(डबल लाईन), राज्यमार्ग सहित कई संड़कों का जाल बिछा हुआ है। 

           निवेदक-आदिवासी-मूलवासी अस्तित्व रक्षा मंच

           मुंण्डारी खूंटकटी परिषद

           आदिवासी एकता मंच


No comments:

Post a Comment