Thursday, March 4, 2021

बजट 21-22, झारखंड सरकार

 बजट 21-22, झारखंड सरकार

91,277 करोड़

हेमंत सरकार का वित्तीय वर्ष 2021-22 का बजट-गांव और गरीब पर केंन्द्रीत किया गया है। सरकार ने बजट में ग्रामीण विकास विभाग, सिंचाई, कृषि, सहकारित व पशुपालन विभाग के लिए 18,653 करोड़ रूप्ये का प्रावधान कर ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने का प्रयास किया है। किसानों को जोड़ा बैल, प्शुपालकों को दो गाय, गरीब के लिए भोजन, मनरेगा मजदूरी में 31 रूपये की वृद्वि, बंधुआ मजदूरों के पुनर्वास के लिए काॅर्पस फंड, विदेश में प्रवासी मजदूरों की मौत पर पांच लाख का मुआवजा, महिलाओं को स्वालंबी बनाने के उद्वेश्य से फूलो-झानों आर्शीबाद योजना को आगे बढ़ाने का प्रावधान करते हुए सरकार ने समाज के अंतिम व्यक्ति पहुंचाने की कोशिश की है। खास बात यह है कि लोगों पर किसी तरह का नया टैक्स नहीं लगाया गया है, यह सरकार का मानना है। ं

कृषि-पशुपालान-राज्य में बकरी प्रक्षेत्र बनाया जायेगा, जोड़ा बैल बांटने की भी योजना । 80 लाख लीटर दूध प्रतिदिन उत्पादन का लक्ष्य, खूंटी के गौरियाकरमा में चूजा प्रजनन केंन्द्र की होगी स्थापना। जमशेदपुर व गिरिडिल में डेयरी प्लांट खुलेगा। रांची में मिल्क प्रोडक्ट व मिल्क पाउडर प्लांट की होगी स्थापना। 

स्वास्थ्य

500 बेड का सदर अस्पताल रांची में, इसी महीने से शुरू होगा। दुर्गम स्थानों पर पर रहने वाले लोगो को मोबाइल वैन से चिकित्सा सेवा उपलब्ध होगी।

समाज कल्याण

बुजुर्गों की समस्या का समाधान करने के लिए चालू होगी टेलीफोर हेल्पलाइन, सरकारी स्वास्थ्य केंन्द्रों पर सस्ती दवाओं के लिए जन औषधि केंन्द्र खुलेंगें।

श्रम नियोजन

थ्वदेश गये प्रवासी श्रमिक की असामयिक मौत पर उनके आश्रित को एकमुश्त पांच लाख रूपये का भुगतान शिल्पियों को अनुदान पर सामान।

ग्रामीण विकास

सखी मंडलों के उत्पादन और करोबार को पलाश ब्रांड के जरिये बढ़ाने का लक्ष्य निर्धारित, बिरसा ग्राम विकास योजना के लिए 61 करोड़ं।

खेलकूद-पर्यटन

सभी गांवों में एक-एक सिदो-कान्हू खेल कल्ब की स्थापना की जायेगी। लुगुबुरू व रजरप्पा को बृहद पर्याटन गंतव्य के रूप में विकसित किया जायेगा। 

राजस्व व्यय--75,755.01 करोड

पूंजीगत व्याय-15,521.99 करोड़

सामान्य क्षेत्र-26,734.05 करोड़

सामाजिक क्षेत्र-33,625.72 करोड़

आर्थिक क्षेत्र-30,917.23 करोड़

महत्वपूर्ण विभागों को बजट आवंटन-राशि करोड़ रूपये में

ग्रामीण विकास-7388.42

पंचायती राज-2196.36

प्राथमिक शिक्षा-4039.32

उर्जा विभाग-4200.00

पथ विभाग-3480.00

स्वास्थ्य विभाग-2983.72

कृषि विभाग-2973.20

न्गर विकास-2702.95

खाद्य आपूर्ति-2060.13

डद्योग विभाग-3350.00

ग्रामीण क्षेत्रों में आधारभूत संरचना के लिए-2125.36 करोड़

क-पंचायत समिति-304.03

ख-ग्राम पंचायतों को-1,618.65

ग-जिला परिषद-202.68


Wednesday, March 3, 2021

ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए अबांटित 18,653 करोड़ राशि को राज्य के विकास के लिए बुनियादी ढांचों की स्थापना को प्रमुखता देने की जरूरत है।

 झारखंड सरकार- बजट 2021-22 

झारखंड की गंठबंधन सरकार ने 2021-22 के लिए 91,277 करोड़ का बजट पेस किया है। इसमे 18,653 करोड़ रूपये ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए रखा है।  इसके लिए राज्य की हेमंत सरकार को निमीलिखित नीतिगत फैसला लेने की जरूरत है। इसके लिए निम्नलिखित कदम उठाते हुए, ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए अबांटित 18,653 करोड़ राशि को राज्य के विकास के लिए बुनियादी ढांचों की स्थापना को प्रमुखता देने की जरूरत है। 

1--पांचवी अनुसूचि में प्रावधान अधिकारों को स्थापित करना-स्थानीय ग्रामीणों के लिए प्रावधान अधिकारों को लागू करते हुए सरकार राज्य के लघुवनोउपज और लघु उद्वोगों को स्थापित एवं संचालित करने की जिम्मेदारी स्थानीय ग्राम सभा को दे, इसके लिए ग्राम सभा इकाइयों का पंजीकरण को प्रथमिकता दी जाए। इसके लिए राज्य सरकार ग्राम सभा समितियों को काॅपरेटिव लाइसेंस दे, ताकि राज्य के खनिज संपदा के उपयोग पर स्थानीय लोगों की भागीदारी सुनिश्चित हो सके।

2--गांव-पंचायत के अंदर गिटटी, बालू, पत्थर खदान का लीज स्थानीय गांव समितियों को दंे। क्योंकि यह ग्रामीणों का कानूनी अधिकार है, जो आज तक किसी भी सरकार ने ग्रामीणों को नहीं दिया। इसके लिए ग्रामीणों को प्रशिक्षित करने का अभिायान चलाये। 

3--राज्य के खनिज से हर साल करोड़ो रूपया का रोयल्टी राज्य को मिलता है। इसका उपयोग, कृषि विकास, शिक्षा, स्वस्थ्य, रोजगार सृजन को विकसित करने में उपयोग हो, इसके लिए नीति बने। 

4--स्थानीय बेरोजगारों को कौशल विकास का प्रशिक्षण देकर स्थानीय स्तर पर ही रोजगार का अवसर दिये जाने का प्रावधान किया जाए। 

5--राज्य में कृषि विकास को प्रथमिकता देते हुए कृषि विश्वविद्यालय को सशत्क किया जाए, और यह जिम्मेवारी दी जाए की राज्य में कृषि के परंपरागत तकनीकी को सुद्धीढ किया जाए। कृषि विभाग स्वेतपत्र जारी करे कि, राज्य में कितना कृषि भूमि पिछले 50 वर्षों में घट गया है। यह भी जारी करे कि राज्य में आबादी के अनुपात खाद्यान की क्या स्थिति है? ताकि राज्य में खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए कृषि क्षेत्र को विकसित किया जा सके। 

6--पुनासी जलाशय, औरंगा जलाशय, उतरी कोयल जलाशय, बटेश्वर नहर योजना, भैखा जलाशय, सुरू जलाशाय, नकटी जलाशय, रामरेखा जलाशय, झरझरा जलाशय, घगरी जलाशाय, केशो जलाशाय, बटाने जलाशाय, सलैया जलाशाय,, कांस जलाशाय, सतपोटका जलाशाय,, तोराई जलाशाय, कतरी जलाशाय, धनसिंह जलाशाय, आदि बनाये गये हैं। राज्य में औद्योगिक विकास के लिए तिलैया डैम, कोनार, मैथन, पंचेत, तेनुघाट डैम, चांडिल डैम, इन सभी डैमों का पानी को पाईप लाईन द्वारा उन क्षेत्रों के किसानों के खेतों तक पहुंचाना सुनिश्चित किया जाए। इसे राज्य में कृषि भूमि का विस्तार के साथ कृषि उत्पादन  भी बढ़ेगा। ताकि झारखंड खाद्यन्न उत्पदान के साथ पर्यावरण संरक्षण को लेकर विश्व में मोडल पेश कर सके। 

7--राज्य में औद्योगिकीकरण के कारण जितने जलस्त्रोत प्रदूषित हो चुके हैं, उनको प्रदूषण मुत्कि किया जाए। ताकि राज्य में पानी का अभाव दूर किया जा सके। 

8--राज्य को भौगोलिक क्षेत्र सिर्फ  79,741 वर्गकिलो मीटर है। इस सीमित जंल-जमीन एवं प्रकृतिक धरोहर के साथ सस्टेनेबल विकास(टिकाउ विकास) के मोडल को लागू करने की जरूरत है। इसके लिए विकास का रोड़ मैप तैयार किया जाए, जैसे आवागमन के लिए रेलमार्ग, संडक मार्ग, हवाई मार्ग के लिए कुल कितना जमीन उपयोग करना है, कितना क्षेत्रफल कृषि के लिए, जंगल-प्र्यावरण के लिए, कितना उद्योगों के लिए उपयोग करना है। शिक्षण संस्थानो-स्कूल, काॅलेजं, इंजिनीयरिंग, टेनिकल, विश्वविद्यालयों,  अस्पताल, मेडिकल आदि की स्थापना के लिए भी जमीन उपयोग का रोड मैप तय हो । 

9--राज्य के गैर मजरूआ आम, खास, परती, जंगल-भूमि, जमीन को सरकार लेंड बेंक के दायरे में आयी हे, इन सभी नेचर के भूमि को  भूमि बैंक से मुक्त किया जाए, तभी राज्य का पर्यावरण ओैर कृषि उद्योग को विकसित हो। 

10--बड़े उद्योगों के लिए कितना पानी की जरूत है, यह तय होना चाहिए। एैसा न हो कि सारा पानी सिर्फ बड़े औद्योगिकों को ही प्रथमिकता में रखा जाता है। दूसरी ओर कृषि-पर्यावरण और सामुदाय के उपयोग के लिए पानी का हाहाकार मच जाता है। 

11--मनरेगा योजना के तहत -गांव सभा तय करे के गांव में क्या चाहिए, कृषि, जलसंसाधन और पर्यावरण को विकसित करना है, ना कि संड़क केवल बनाया जाए। 

12--राज्य में सिर्फ 13 राजकीय टेकनिकल सेंटर हैं, उससे बढाया जाये, ताकि राज्य के अधिक छात्राओं को प्रशिक्षित किया जा सके

13--राज्य में खेती किसानीं के काॅरपोरेटीकरण करने वाली किसी व्यवस्था को लागू नहीं किया जाए। ताकि ग्रामीण किसान अपने परंपरागत खेती-किसानी को विकसित कर सकेगें। 

14--किसानों के उत्पादों को बिक्री करने के लिए बाजार का उचित व्यवस्था हो, जहां किसान अपना उत्पाद उचित मूल्यों में बेच सके। 

15--राज्य में उपलब्ध वनोपज तथा कृषि उत्पाद की उपलब्धता के अनुसार राज्य के सभी जिला मुख्यालायों में एक फूड प्रशेषिंग यूनिट बनाया जाए।

16--कृषि उत्पादन एवं वनोपज की उपलब्धता के अनुसार हर प्रखंड एव जिला मुख्यालय में सरकारी कोल्ड स्टोरेज की व्यवस्था की जाने चाहिए। 

17--राज्य के अधिकांश जिलों में कुसुम, पलाश, बैर के पेड अधिकाई से मिलेगें, जिसमें किसान पहले से हि लाह खेती करते आया है, इसको और बेहतर कैसे किया जाए, इसकी नीति बनाने की जरूरत है

18--राज्य के अधिकांश जिलों में बांस होती है, आदिवासी गांवों में बहुत अधिक पैमाने पर बांस मिलेगा, इसको कुटीर -बांस उद्योग से जोड़ने की जरूरत है।

19--राज्य के भाषा-संस्कृति, लिपि, कला-संस्कृति, को विकसित -संरक्षित करने के लिए स्थानीय कलाकारों को प्रोत्साहित करने के लिए नीति बननी चाहिए। 

राज्य के सभी प्रखंड मुख्यलयों  के रेफरल अस्पतालों में दवा एवं डाक्टर, नर्स की उपस्थिति सुनिश्चित करने  के साथ जिला स्थित सदर अस्पतालों में एक-दो आईसीयू की व्यवस्था हो, ऐसी स्वास्थ्य नीति राज्य में बननी चाहिए।

-20---आॅउट सोरशिंग बद करके-स्थानीय बेरोजगारों को रोजगार प्रदान करने के लिए सभी प्रखंड मुख्यालय, स्कूल-काॅलेज, अस्पताल, पंचायत भवनों एवं जिला मुख्यालायों में चपरासी से लेकर कमप्यूटर आॅपरेटर तक स्थानीय युवाओं को नियुक्त करना होगा। 



Tuesday, March 2, 2021

विषय- तीनों नये कृषि कानून 2020 को रदद करने मी मांग एव परंपरागत खेती-किसानी को सशक्त करने की मांग के संबंध में।

 सेवा में प्रधान मंत्री महोदय                           पत्रांक.....01....

मननीय श्री नरेंन्द्र मोदी जी                          दिनांक...28.Jan. 2021....

भारत सरकार

नई दिल्ली

विषय- तीनों नये कृषि कानून 2020 को रदद करने मी मांग एव परंपरागत खेती-किसानी को सशक्त करने की मांग के संबंध में। 

महाशय,

भारत एक कृषि प्रधान देश है। देश की 80 प्रतिशत आबादी परंपरागत कृषि अर्थव्यवस्था पर निर्भर है। झारखंड में 80 प्रतिशत जनता खेती और वनोपज पर निर्भर करती हैं, इन आदिवासी-मूलवासी, किसानों का सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक अस्तित्व का जीवंत ताना-बाना जंगल, जमीन, नदी-नाला, खेत-खलिहान के साथ है। खाद्यान्न के लिए खेतों की उपज और वनोपज ही हमारी जीवन का मूल आधार है, जो हमारे अत्मनिर्भरता का सशक्त स्थंभ है। 

परंपरागत खेती-किसानी ही राज्य के पौने चार करोड़ आबादी के खाद्यान्न की आवश्यकता पूरा कर सकता है। किसानों की आय दोगुणी करने के लिए राज्य में उपलब्ध जलस्त्रों के पानी को पाईपलाइन द्वारा किसानों के खेतों तक पहुंचाना, एवं राज्य की बंजर भूमि एवं असिंचिंत भूमि को कृषि उपज के लिए विस्तार करना भी राज्य सरकार की जिम्मेदारी है। 

तथाकथित विकास के नाम पर करोड़ों झारखंडी आदिवासी-मूलवासी किसान पहले ही अपने धरोहर से विस्थापित हो चुके हैं, जिनको आज तक न तो नौकरी मिला, और न आर्दश पूनर्वास किया है। किसानों को अपने खेत-खलिहान, जंगल-नदी, झारना से अलग करने वाली काॅरपोरेट खेती, कंपनियों का किसानों के खेती-किसानी में किसी तरह का दखल या हस्तक्षेप की इजाजत झारखंडी किसान नहीं देगें।

राज्य में भूमिहीन परिवार, विस्थापित परिवार, मेहनत-मजदूरी कर जिंदगी गुजारने वालों की संख्या भी काफी है। तीनों नये कृषि कानून से सिर्फ अनाज यह फसल उपजाने वाले किसानों पर ही संकट नहीं आएगा, बल्कि किसानों के फसलों के स्थानीय छोटे व्यापारी एवं उपभोगक्ता या खरीदकर खाने वालों की भी परेशानी बढ़ेगी, क्योंकि काॅरपोरेट, कंपानियां अपने गोदाम में जमा किये, खाद्यान्न को उंची दाम पर उपभोक्ताओं को बेचेगें। इसे मंहगाई और भूखमरी बढ़ेगी। 

हमारी जनता में शिक्षा का दर कम है, इसके कारण काॅरपोरेट और मुकदमों के दांव-पेंच में ठगे जाएंगें । इतिहास गवाह है कि आजादी के बाद बड़े बड़े उद्योग धंधों से विस्थापित जनता को मुअवाजे में रूपया दिया गया था, उस पैसों से बिजनेस और व्यापार नहीं कर सके और भूमिहीन मजदूर बन कर शहरों के श्लाम में खो गये। हमारी जमीन गयी, हमारी जीविका चली गयी, हमारी आबादी घटी, हमारी परंपरा, पहचान, गयी। अब इसका पुनरावृति झारखंड में नही ंहोने देगें। 

तीनों नये कृषि कानून 2020 जो लाये गये हंै, उसका झारखंड के किसानों, पर जिनके पास छोटा जोत है, प्रतिकूल असर पड़ेगा। इसलिए यहां की जनता तीनों नये कृषि कानून 2020  का विरोध करती हैं। 

राज्य के करीब 56 लाख विभिन्न राशन कार्डधारी परिवारों को पौष्टिक खाद्यान्न की अपूर्ति के लिए, जरूरी है कि राज्य के परंपरागत खेती-किसानी को सशक्त करें, किसानों के गोपालन, मुर्गीपालन, बत्तक पालन, मधुमक्खी पालन, मतस्य पालन आदि को बढ़वा दें, ताकि किसानों की अमदनी के टिकाउ स्त्रोत बनी रहे।  

हमारी परंपरागत खेती-किसानी को संरक्षित एवं विकसित करतेे हुए राज्य कि किसानों की आय दोगुणी करने एवं टिकाउ विकास को सशक्त बनाने  के लिए हमारी मांगें हैं-

1-तीनों नये कृषि कानून को रदद किया जाए

2-धान के साथ हमारा परंपारिक फसल मडुंआ, शकरकंद, मक्का, मुंगफली, सुरगुजी, तिल आदि फसलों के साथ सब्जियों का एमएसपी (न्यूनतम सर्मथन मूल्य) तय किया जाए

3-पांचवी अनुसूचि क्षेत्र में गांवों के भीतर एवं गांवों की सीमाओं के गैर मजरूआ आम, गैर मजरूआ खास जमीन गांव की है, इसको भूमि बैंक में शामिल किया गया है, जो किसानों के परंपरागत अधिकार का हनन है, इसलिए भूमि बैंक को रदद किया जाए।

4-क्षेत्र के सभी जलस्त्रोतों, नदी-नाला का पानी लिफट ऐरिगेशन के तहत पाइप लाइन द्वारा किसानों के खेतों तक पहुंचाया जाए।

5-जमीन का आॅनलाइन व्यवस्था से भारी संख्या में किसानों के जमीन के दस्तावेजों में छेड़-छाड़ किया जा रहा है। इससे किसानों के जमीन की लूट बढ़ रही है। इसलिए आॅनलाइन जमीन के दस्तावेजों का हो रहा छेड़-छाड़ एवं जमीन का हेरा-फेरी बंद किया जाए।

6-संविधान के पांचवी अनुसूचि को कड़ाई से लागू किया जाए।

7-आदिवासी समुदाय के जमीन का सुरक्षा कवच, सीएनटी एक्ट, एसपीटी एक्ट, मुंण्डारी खूंटकटी कानून का कड़ाई से पालन  करते हुए गांव के भूमिहीन परिवार को 5 एकड खेती के जमीन उपलब्ध कराया जाए।

8-किसानों को भूमिहीन एवं गरीब बनाने वाली -भारतमाला सड़क परियोजना, जो खूंटी जिला के कर्रा प्रखंड के किसानों के खेतो से होकर गुजरने वाली है, को रदद किया जाए। क्योंकि रांची से उडिसा, सम्बलपुर, बोम्बे तक जाने के लिए पहले से ही रेल मार्ग,(डबल लाईन), राज्यमार्ग सहित कई संड़कों का जाल बिछा हुआ है। 

           निवेदक-आदिवासी-मूलवासी अस्तित्व रक्षा मंच

           मुंण्डारी खूंटकटी परिषद

           आदिवासी एकता मंच